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संसदीय कार्यप्रणाली में सुधार हेतु प्रमुख प्रयास

Lokesh Pal December 15, 2025 05:15 13 0

सन्दर्भ:

संसद की कार्यप्रणाली प्रायः व्यवधान, संघर्ष, सत्ताधारी दल और विपक्ष के बीच कम विश्वास से प्रभावित रहती है, जिसके परिणामस्वरूप सीमित चर्चा के साथ कानून पारित हो जाते हैं, जिसे भारत की लोकतांत्रिक विचार-विमर्श प्रक्रिया के लिए हानिकारक माना जाता है।

सुझाए गए समाधान

  • साप्ताहिक प्रधानमंत्री प्रश्नकाल (PMQ): ब्रिटेन के मॉडल के आधार पर एक साप्ताहिक प्रधानमंत्री प्रश्नकाल शुरू किया जाना चाहिए, जिसमें प्रधानमंत्री प्रत्येक बुधवार को दोपहर 12:00 बजे कुल 30 मिनट के लिए सदन में उपस्थित हों।
    • इस सत्र के दौरान विपक्ष का नेता प्रधानमंत्री से छह सीधे प्रश्न पूछ सकता है।
    • कारण: हालाँकि भारत में सुबह 11:00 बजे प्रश्नकाल होता है, लेकिन प्रधानमंत्री हमेशा सीधे तौर पर शामिल नहीं होते हैं और मंत्री आमतौर पर जवाब देते हैं।
      • साप्ताहिक प्रधानमंत्री प्रश्न-पत्र से प्रधानमंत्री की संसद के प्रति सीधी जवाबदेही सुनिश्चित होगी।
      • इससे विपक्ष को अपनी शिकायतें उठाने के लिए एक व्यवस्थित मंच प्राप्त होगा।
      • इससे जनता को राजनीतिक जवाबदेही और शासन व्यवस्था की बेहतर समझ प्राप्त होगी।
  • विपक्ष दिवस: सप्ताह में एक दिन को विपक्ष दिवस के रूप में नामित किया जाना चाहिए, जिस दौरान विपक्ष संसद का एजेंडा निर्धारित करे।
    • कारण: फर्स्ट पास्ट द पोस्ट प्रणाली के तहत, कोई भी पार्टी सरकार बना सकती है भले ही उसे संयुक्त विपक्ष से कम वोट मिले हों।
      • विपक्ष दिवस से विपक्ष को संसदीय कार्यप्रणाली में सार्थक भागीदारी मिलेगी।
      • इससे सदन में विपक्ष के उत्तरदायित्व की भावना का विस्तार होगा तथा कार्यवाही में प्रतिदिन बाधा डालने की प्रवृत्ति भी कम हो सकती है।
  • अध्यक्ष की निष्पक्षता सुनिश्चित करना: अध्यक्ष को चुनाव के बाद अपनी राजनीतिक पार्टी से औपचारिक संबंध तोड़ देने चाहिए ताकि स्वतंत्रता सुनिश्चित हो सके, क्योंकि अध्यक्ष सदन के ’रेफरी’ के रूप में कार्य करता है और उससे निष्पक्ष तथा स्वतंत्र रूप से कार्य करने की अपेक्षा की जाती है।
    • ब्रिटेन मॉडल: यूनाइटेड किंगडम में, अध्यक्ष चुनाव जीतने पर अपनी राजनीतिक पार्टी से इस्तीफा दे देते हैं और सक्रिय राजनीति से सेवानिवृत्त हो जाते हैं। इससे अध्यक्ष को बिना किसी भय या पक्षपात के सत्ताधारी पार्टी को चुनौती देने का अधिकार प्राप्त हो जाता है।
    • भारतीय संदर्भ: भारत में अध्यक्ष आमतौर पर सत्ताधारी दल के सदस्य बने रहते हैं। इस प्रथा के कारण अक्सर सरकार के पक्षपातपूर्ण रवैये के आरोप लगते हैं

निष्कर्ष

प्रस्तावित सुधारों की सफलता सार्थक संसदीय कार्यप्रणाली को बहाल करने के लिए आवश्यक प्रतीत होती है, लेकिन उनकी सफलता अंततः सभी दलों के मध्य राजनीतिक स्वीकृति प्राप्त करने के लिए निरंतर जन दबाव पर निर्भर करती है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: संसदीय चर्चा में आने वाली निरंतर बाधाओं ने, जवाबदेही और प्रतिनिधित्व के मंच के रूप में इसकी भूमिका को कमजोर कर दिया है। इस संदर्भ में विश्लेषण कीजिए, कि संस्थागत सुधार भारत में संसदीय लोकतंत्र को किस प्रकार मजबूत कर सकते हैं।

(10 अंक, 150 शब्द)

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