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भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए दवा विज्ञापनों का प्रबंधन

Lokesh Pal October 28, 2025 05:00 26 0

सन्दर्भ:

बिग टेक प्लेटफार्मों पर भ्रामक दवा विज्ञापनों का अनियंत्रित प्रसार, उनकी कानूनी प्रतिरक्षा और विनियामक निष्क्रियता के साथ मिलकर, एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दे के रूप में विकसित हुआ है, जो विधिक जवाबदेही और संवैधानिक संप्रभुता को नष्ट कर रहा है

भारत में दवा विज्ञापन: पृष्ठभूमि

  • प्रारंभिक चिंताएँ (1927): यह मुद्दा पहली बार सर हारून जाफर ने राज्य परिषद में उठाया था, जिसमें झूठे दवा संबंधी दावों को विनियमित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया।
  • विधायी प्रतिक्रिया (1954): औषधि एवं चमत्कारिक उपचार (आक्षेपणीय विज्ञापन) अधिनियम, 1954 (DMRA) को 54 सूचीबद्ध चिकित्सा स्थितियों (जैसे- मधुमेह, कैंसर) को ठीक करने या रोकने का दावा करने वाली दवाओं के विज्ञापनों को बिना अनुमोदन के प्रतिबंधित करने के लिए अधिनियमित किया गया था।

इंटरनेट-आधारित विज्ञापन का उदय

  • माध्यम में परिवर्तन: इंटरनेट और सोशल मीडिया के उदय ने पारंपरिक प्रिंट और प्रसारण विज्ञापन का स्थान ले लिया, जिससे नई विनियामक चुनौतियाँ उत्पन्न हुईं
  • विनियामकीय अंध बिंदु: बड़े तकनीकी प्लेटफॉर्म – जिनमें सर्च इंजन, सोशल मीडिया और ई-कॉमर्स साइटें शामिल हैं – नियमित रूप से आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक उत्पादों के लिए असत्यापित तथा भ्रामक स्वास्थ्य विज्ञापन प्रकाशित करते हैं।
  • सीमा पार चुनौतियाँ: विज्ञापन की डिजिटल प्रकृति और विदेशी स्वामित्व के कारण भारतीय विनियामकों के लिए अनुपालन लागू करना कठिन हो जाता है।

भारतीय कानूनों के प्रति बड़ी टेक कंपनियों की अवहेलना

  • DMRA का उल्लंघन: प्लेटफार्म डीएमआरए के तहत प्रतिबंधों की अनदेखी करते हैं तथा झूठे चिकित्सीय दावे करने वाले विज्ञापन प्रदर्शित करते हैं
  • दुहरे मापदंड: इसके विपरीत, संयुक्त राज्य अमेरिका में यही कंपनियाँ FDA नियमों के अनुपालन में सख्त विज्ञापन-स्क्रीनिंग नीतियों का पालन करती हैं
  • पूर्व उल्लंघन: बिग टेक ने अवैध विज्ञापनों की अनुमति देकर ”गर्भधारण-पूर्व और प्रसव-पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन निषेध) अधिनियम, 1994 (पीएनडीटी)” का भी उल्लंघन किया है, लेकिन विधिक खामियों के कारण जवाबदेही से बच गए हैं।

बिग टेक की दण्डहीनता के कारण

  • कॉर्पोरेट अवमानना: कई अमेरिकी कंपनियाँ भारतीय जीवन और कानूनों के प्रति प्रणालीगत उपेक्षा दिखाते हैं, जो कॉर्पोरेट अवमानना और नस्लीय पूर्वाग्रह की विरासत को दर्शाता है।
  • न्यायिक निष्क्रियता: विलंबित न्यायिक कार्यवाही और उदार प्रवर्तन इन प्लेटफार्मों को भारतीय नियमों का उल्लंघन जारी रखने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
  • मध्यस्थ की स्थिति का दुरुपयोग: विज्ञापन मांगने और उससे लाभ कमाने वाले प्रकाशक होने के बावजूद, बिग टेक कंपनियाँ उत्तरदायित्व से बचने के लिए मात्र मध्यस्थ होने का झूठा दावा करती हैं।
  • क्षेत्राधिकार संबंधी खामियाँ: विदेश में स्थित मूल कंपनी पर आसानी से मुकदमा नहीं चलाया जा सकता, जबकि भारतीय सहायक कंपनी को कानून के तहत एक पृथक इकाई माना जाता है।

प्रवर्तन में प्रणालीगत अंतराल

  • कमजोर संस्थाएँ: स्वास्थ्य और आईटी विनियामकों में डिजिटल विज्ञापनों की निगरानी करने की क्षमता और समन्वय का अभाव है।
  • न्यायिक विलंब: मुकदमेबाजी की धीमी गति डीएमआरए और पीएनडीटी जैसे कानूनों के निवारक प्रभाव को कम कर देती है।
  • खंडित निरीक्षण: स्वास्थ्यआईटी और उपभोक्ता मामलों के मंत्रालयों के मध्य ओवरलैपिंग जनादेश विनियामक अस्पष्टता को जन्म देता है।
  • अपारदर्शी विज्ञापन प्रणालियाँ: एल्गोरिद्मिक विज्ञापन मॉडल विशिष्ट उल्लंघनों के लिए जवाबदेही सुनिश्चित करना, कठिन बना देते हैं।
  • दंड का अभाव: त्वरित दंडात्मक उपायों का अभाव बार-बार उल्लंघन को बढ़ावा देता है।

सुधार की आवश्यकता

  • सार्वजनिक स्वास्थ्य प्राथमिकता: बिग टेक के उल्लंघनों को संबोधित करना, राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य और शासन प्राथमिकता के रूप में मान्यता प्राप्त होना चाहिए
  • आपराधिक जवाबदेही: सरकार को इन कंपनियों के उत्तरदायी अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू करनी चाहिए।
  • विधिक सुधार: भारतीय न्यायालयों को विदेश स्थित मूल कंपनियों और वरिष्ठ प्रबंधन को समन करने का अधिकार देने के लिए कानूनों में संशोधन किया जाएगा।
  • मध्यस्थ दायित्व में सुधार: बार-बार अवैध स्वास्थ्य विज्ञापन प्रकाशित करने वाले प्लेटफार्मों के लिए प्रतिरक्षा को रद्द करने के लिए आईटी मध्यस्थ नियमों को संशोधित करें।
  • भारतीय संप्रभुता: यह सुनिश्चित करना, कि सामग्री और विज्ञापन नीतियों को संभालने वाले प्रमुख प्रबंधकीय कार्मिक भारतीय नागरिक हों तथा भारतीय न्यायालयों के प्रति जवाबदेह हों।

आगे की राह:

  • विनियामक तंत्र को सुदृढ़ करना: उल्लंघनों की निगरानी और दंड देने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय के अंतर्गत एक डिजिटल विज्ञापन विनियामक प्राधिकरण की स्थापना करना।
  • स्थानीय जवाबदेही को अनिवार्य बनाना: स्वास्थ्य संबंधी विषय-वस्तु और विज्ञापन के लिए भारत-आधारित अनुपालन अधिकारियों को उत्तरदायी बनाना।
  • गैर-अनुपालन पर प्रतिरक्षा रद्द करना: भारतीय कानूनों को लागू करने में विफल रहने वाले प्लेटफार्मों के लिए मध्यस्थ संरक्षण वापस लेना।
  • विज्ञापन पूर्व-स्क्रीनिंग प्रणाली: सभी स्वास्थ्य संबंधी विज्ञापनों की अनिवार्य पूर्व-स्क्रीनिंग लागू करें, जैसा कि अमेरिका में प्रचलित है
  • अंतर-मंत्रालयी समन्वय: एकीकृत प्रवर्तन के लिए स्वास्थ्यआईटी और उपभोक्ता मामलों के मंत्रालयों के मध्य सहयोग विस्तार।
  • जन जागरूकता: नागरिकों को फर्जी स्वास्थ्य दावों की पहचान करने और रिपोर्ट करने में मदद करने के लिए डिजिटल साक्षरता अभियान को बढ़ावा देना।

निष्कर्ष:

डिजिटल युग में सार्वजनिक स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए भारतीय कानूनों के कठोर प्रवर्तन, मजबूत कॉर्पोरेट जवाबदेही और स्थानीय विनियमन की आवश्यकता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि बिग टेक प्लेटफॉर्म संवैधानिक नैतिकताविधि के शासन और नैतिक शासन की सीमाओं के भीतर कार्य करें।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: औषधि एवं चमत्कारिक उपचार (आक्षेपणीय विज्ञापन) अधिनियम, 1954 के बावजूद, डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर चिकित्सीय दावों के भ्रामक विज्ञापन विकसित हो रहे हैं। बिग टेक और सीमा-पार डिजिटल मीडिया के युग में भारतीय औषधि विज्ञापन कानूनों को लागू करने में विद्यमान चुनौतियों पर चर्चा कीजिए।

(10 अंक, 150 शब्द)

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