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भारत का विनिर्माण क्षेत्र तथा राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन

Lokesh Pal March 15, 2025 05:00 5 0

“जिसके पास जीने के लिए एक ‘क्यों’ है, वह लगभग किसी भी ‘कैसे’ को सहन कर सकता है।”   -फ्रेडरिक नीत्शे

व्याख्या: उपर्युक्त उद्धरण में, ‘क्यों’ शब्द किसी व्यक्ति के उद्देश्य या उसके जीवन जीने के कारण को दर्शाता है। उदाहरण के लिए, एक सैनिक देश की रक्षा करने के लिए जीता है, एक चिकित्सक मरीज का जीवन बचाने के लिए जीता है तथा एक शिक्षक विद्यार्थियों को ज्ञान प्रदान और प्रेरित करने के लिए जीता है। दूसरी ओर ‘कैसे’ का अर्थ है, जीवन में लोगों के समक्ष आने वाली चुनौतियाँ या कठिनाइयाँ।

  • अगर किसी व्यक्ति के पास पर्याप्त रूप से मज़बूत ‘क्यों’ है, तो वह लगभग किसी भी ‘कैसे’ को सहन कर सकता है। उदाहरण के लिए, आईएएस अधिकारी बनने का लक्ष्य रखने वाले एक अभ्यर्थी को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन अगर उसका उद्देश्य स्पष्ट है – जैसे लोगों की सेवा करना और समाज में सुधार करना – तो वह किसी भी कठिनाई को पार कर  सकता है।
  • विक्टर फ्रैंकल, एक होलोकॉस्ट उत्तरजीवी, अपनी पुस्तक “मैन्स सर्च फॉर मीनिंग” में इस अवधारणा पर चर्चा करते हैं। वह बताते हैं, कि विश्व युद्ध के दौरान कई प्रताड़ित यहूदी इसलिए जीवित बच गए क्योंकि उनके पास एक मजबूत ‘क्यों’ था – जीने का एक कारण। उद्देश्य की इस गहन भावना ने उन्हें उन अकल्पनीय कठिनाइयों को सहन करने में मदद की, जिनका उन्होंने सामना किया।

संदर्भ:

फरवरी 2025 में केंद्रीय वित्त मंत्री ने राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन की घोषणा की, जिसका उद्देश्य भारत के विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देना है।

भारत की औद्योगिक नीति : पृष्ठभूमि

  • औद्योगिक नीति, 1957: इस नीति ने भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के विकास की शुरुआत की, जहाँ  सरकार ने अर्थव्यवस्था में प्रमुख भूमिका निभाई। इसका उद्देश्य आत्मनिर्भरता तथा प्रमुख उद्योगों पर नियंत्रण प्राप्त करना था।
    • परिणामस्वरूप विद्युत, तेल और इस्पात जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों का उत्तरदायित्व संभालने के लिए BHEL, ONGC और SAIL जैसे कई सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (पीएसयू) स्थापित किए गए।
  • उदारीकरण (1991) : 1991 के आर्थिक सुधारों ने व्यापक परिवर्तन किया, जिसका मुख्य उद्देश्य देश में उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण को बढ़ावा देना था। सरकार ने अर्थव्यवस्था को निजी उद्यमों और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के लिए खोल दिया।
    • इन सुधारों के बावजूद सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्र आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में काफी पीछे रह गया, जिससे इसे विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
  • 2008 की वैश्विक मंदी: 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद वैश्विक व्यापार वृद्धि, जो वार्षिक तौर पर लगभग 20% की दर से बढ़ रही थी, धीमी पड़ने लगी।
    • संरक्षणवादी नीतियाँ अधिक प्रचलित हो गईं, क्योंकि देशों ने आर्थिक अनिश्चितताओं के जवाब में अपने स्वयं के उद्योगों की सुरक्षा पर अधिक ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया।
  • वर्तमान चुनौतियाँ: वर्तमान में वैश्विक उद्योगों को कई नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिनमें वैश्विक व्यवधान, एआई जैसी तकनीकी प्रगति और हरित प्रौद्योगिकी की ओर परिवर्तन  शामिल हैं।
    • वैश्विक राजनीति: इसके अतिरिक्त, राजनीतिक परिवर्तन विश्व में औद्योगिक नीतियों को प्रभावित कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका ने तेजी से संरक्षणवादी उपायों को अपनाया है, विशेष रूप से डोनाल्ड ट्रम्प के “मेक अमेरिका ग्रेट अगेन” अभियान के तहत, जिसका उद्देश्य अमेरिकी उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाना था।
    • चीन की डंपिंग नीति: एक और बड़ी चिंता चीन द्वारा डंपिंग की नीति है, जहाँ वह बाजार मूल्य से कम कीमतों पर सामान बेचता है, जो अन्य देशों में उद्योगों की प्रतिस्पर्धात्मकता को कमजोर करता है तथा स्थानीय व्यवसायों को नुकसान पहुँचाता है।
  • स्लोबलाइजेशन: इन वैश्विक व्यवधानों और संरक्षणवादी प्रवृत्तियों के उत्तर में, विश्व “स्लोबलाइजेशन” के चरण की ओर बढ़ रहा है – एक शब्द जिसका उपयोग वैश्वीकरण की धीमी गति को दर्शाने के लिए किया जाता है। इस प्रवृत्ति में वैश्विक व्यापार एकीकरण में कमी और अधिक स्थानीयकृत तथा संरक्षणवादी आर्थिक नीतियों की ओर परिवर्तन शामिल है।

राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन : मुख्य विशेषताएँ

राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन

  • मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने के लिए एक राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन की घोषणा की गई, जिसमें नीतिगत समर्थन, कार्यान्वयन रोडमैप और शासन तथा निगरानी के लिए रूपरेखा प्रदान की गई।
  • यह मिशन सौर पीवी सेल, ईवी बैटरी, पवन टर्बाइन, उच्च वोल्टेज ट्रांसमिशन उपकरण और ग्रिड-स्केल बैटरी जैसे क्षेत्रों में स्वच्छ-तकनीक विनिर्माण का भी समर्थन करेगा।
  • राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन निम्नलिखित पाँच क्षेत्रों पर बल देगा:
    • व्यवसाय करने में सुगमता और लागत
    • माँग-आधारित रोज़गार के लिए भविष्य हेतु तैयार कार्यबल
    • एक जीवंत और गतिशील एमएसएमई क्षेत्र
    • प्रौद्योगिकी उपलब्धता
    • गुणवत्तापूर्ण उत्पाद।

  • फुटवियर और चमड़ा क्षेत्र: राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन के तहत एक प्रमुख पहल भारत के फुटवियर और चमड़ा उद्योग पर केंद्रित है। इसमें एक व्यापक सहायता योजना शामिल है, जिसका उद्देश्य गैर-चमड़े की गुणवत्ता वाले फुटवियर के उत्पादन के लिए आवश्यक डिजाइन क्षमता, घटक विनिर्माण और मशीनरी को बढ़ाना है।
    • रोज़गार सृजन: इस योजना से लगभग 2.2 मिलियन रोज़गार सृजित होने की अपेक्षा है।
  • खिलौनों के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना: इसके अतिरिक्त, इस पहल में खिलौनों के लिए एक राष्ट्रीय कार्य योजना की शुरुआत भी शामिल है। यह योजना क्लस्टर विकास, कौशल विकास और घरेलू तथा अंतर्राष्ट्रीय दोनों बाजारों के लिए उच्च गुणवत्ता वाले, अभिनव खिलौने बनाने के लिए एक विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण पर जोर देती है।
    • क्लस्टर विकास: इसका लक्ष्य खिलौना उत्पादन को एक ही क्षेत्र में केन्द्रीकृत करना है, जहाँ कुशल श्रम और कच्चे माल सहित सभी संबंधित उद्योग एक ही स्थान पर उपलब्ध हों।
    • संभावना: भारतीय खिलौना बाज़ार में ₹15,000 करोड़ के मूल्य तक पहुँचने की क्षमता है, हालाँकि वर्तमान में इस पर चीन का प्रभुत्व है।
  • खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र: भारत अनाज, फल, सब्जियाँ और डेयरी के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है तथा खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में इसकी प्रचुर अप्रयुक्त क्षमता है।
    • अविकसित प्रसंस्करण उद्योग: हालाँकि, प्रसंस्करण के निम्न स्तर के कारण यह क्षेत्र अविकसित रहा है, जो रोज़गार सृजन और आय सृजन को सीमित करता है।
    • समस्या समाधान: इस समस्या के समाधान के लिए, 2025 के बजट में बिहार में एक नए राष्ट्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी, उद्यमिता और प्रबंधन संस्थान की स्थापना का प्रस्ताव किया गया है।
    • मखाना बोर्ड का निर्माण: बिहार में मखाना बोर्ड का गठन भी एक प्रमुख पहल है, जिसे इस पारंपरिक फसल के प्रसंस्करण में मूल्य संवर्द्धन हेतु डिज़ाइन किया गया है।

खाद्य प्रसंस्करण

भारत विश्व में कई कृषि/खाद्य वस्तुओं का एक प्रमुख उत्पादक है, लेकिन इसका केवल 10% से भी कम प्रसंस्करण किया जाता है। हालाँकि, अमेरिका जैसे देशों में यह लगभग 50% है।


  • एमएसएमई के लिए सहायता: बजट में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) को सहायता देने के लिए महत्त्वपूर्ण उपाय किए गए हैं, जिनमें शामिल हैं:
    • निवेश और टर्नओवर सीमा को दुगुना करने के मानदंड: एमएसएमई को परिभाषित करने के मानदंडों को संशोधित किया गया है, जिससे निवेश और टर्नओवर सीमा को दुगुना कर दिया गया है।

    • बढ़ी हुई ऋण गारंटी: ऋण गारंटी कवर को ₹5 करोड़ से बढ़ाकर ₹10 करोड़ (निर्यातक फर्मों के लिए ₹20 करोड़) कर दिया गया है।
    • सूक्ष्म उद्यमों के लिए क्रेडिट कार्ड: एक नई पहल सूक्ष्म उद्यमों को ₹5 लाख का क्रेडिट कार्ड प्रदान करेगी, जिससे उनकी दैनिक ऋण आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकेगा तथा अनौपचारिक ऋणदाताओं और माइक्रोफाइनेंस कंपनियों पर निर्भरता कम होगी।
  • स्टार्ट-अप के लिए फंड ऑफ फंड्स: नवाचार और उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए ₹10,000 करोड़ के नए योगदान के साथ एक नया फंड ऑफ फंड्स स्थापित किया गया है।
  • हरित उद्योगों पर ध्यान केंद्रित करना: राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन के भाग के रूप में, भारत स्वच्छ ऊर्जा समाधानों को बढ़ावा देने वाले हरित उद्योगों को बढ़ावा देगा। ये क्षेत्र, जैसे- सौर ऊर्जा, इलेक्ट्रिक वाहन और पवन ऊर्जा, तेजी से विकास हेतु तैयार हैं।
    • यह 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन तक पहुँचने की भारत की प्रतिज्ञा के अनुरूप होगा।

संबंधित चुनौतियाँ

  • आउटसोर्सिंग: पारंपरिक उद्योगों में कई स्थापित उद्योगकर्ता कम तकनीक वाली, श्रम-गहन वस्तुओं जैसे- वस्त्र, कृत्रिम फूल, क्रॉकरी, प्लास्टिक के बर्तन और फर्नीचर के उत्पादन को भी आउटसोर्स कर रहे हैं। ये वस्तुएँ प्रायः भारतीय ब्रांड नामों के तहत बेचे जाती हैं।
  • प्रभाव: इस आउटसोर्सिंग प्रवृत्ति का एक महत्त्वपूर्ण नकारात्मक पहलू है, कि यह लाखों नौकरियों को नष्ट कर रहा है, विशेष रूप से एमएसएमई क्षेत्र में, जो भारत के रोज़गार परिदृश्य के लिए महत्त्वपूर्ण है।

नई औद्योगिक नीति की आवश्यकता

  • त्वरित औद्योगिकीकरण: उपर्युक्त चुनौतियों के मद्देनजर औद्योगिक विकास अध्ययन संस्थान (आईएसआईडी) द्वारा तैयार भारत औद्योगिक विकास रिपोर्ट, 2024-25 एक नई औद्योगिक नीति की आवश्यकता पर बल देती है।
  • संबंधित सिद्धांत: प्रस्तावित नई नीति को कई व्यापक सिद्धांतों द्वारा निर्देशित किया जाना चाहिए:
    • स्थानीयकरण की प्रधानता: देश के भीतर रोज़गार सृजन और मूल्य संवर्द्धन पर बल देना।
    • उद्यमिता विकास: स्थानीय उद्यमिता और तकनीकी क्षमताओं को बढ़ावा देना। उदाहरण के लिए, सरकार मेक इन इंडिया 2.0 योजना की शुरुआत कर सकती है|
    • तकनीकी आत्मनिर्भरता: स्थानीय रूप से आधारित नवाचारों और क्षमताओं के लिए एक आधार तैयार करना।
    • केंद्र और राज्यों के बीच समन्वय: निरंतर विकसित हो रहे वैश्विक और घरेलू संदर्भ में इस नई नीति के समन्वित कार्यान्वयन के लिए एक उच्च-शक्ति वाला संस्थागत ढाँचा आवश्यक होगा।
  • लाभ: एक मज़बूत विनिर्माण क्षेत्र में 100 मिलियन तक रोज़गार सृजित करने की क्षमता है|
    • इससे भारत के सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण की हिस्सेदारी 17% से बढ़कर 25% या उससे अधिक हो सकती है। 
    • विनिर्माण क्षेत्र का विस्तार करने से भारत की वैश्विक व्यापारिक स्थिति भी सुदृढ़ होगी।

निष्कर्ष 

भारत में आर्थिक विकास को गति देने में विनिर्माण क्षेत्र की विशेष भूमिका है। भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए विनिर्माण क्षेत्र द्वारा कुल सकल घरेलू उत्पाद में 25% का योगदान आवश्यक है। यदि राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन को सही तरीके से लागू किया जाए, तो भारत विश्व का विनिर्माण केंद्र बन सकता है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

भारत के नए राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन का उद्देश्य औद्योगिक विकास को बढ़ावा देना है| भारत एक विकसित राष्ट्र के दर्जे के लिए एक व्यापक औद्योगिक नीति तैयार करते समय घरेलू रोज़गार सृजन, तकनीकी उन्नति, पर्यावरणीय स्थिरता और वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता को किस प्रकार संतुलित कर सकता है। आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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