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भारत में मातृ मृत्यु दर: एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या

Lokesh Pal July 08, 2025 05:15 7 0

संदर्भ:

भारत में मातृ मृत्यु दर (MMR) में गिरावट आ रही है, लेकिन ऐसे राज्य हैं जिन्हें बुनियादी और प्रणालीगत मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।

भारत में मातृ मृत्यु दर की वर्तमान स्थिति

  • मातृ मृत्यु दर: मातृ मृत्यु दर, गर्भवती होने के दौरान या गर्भावस्था की समाप्ति के 42 दिनों के भीतर किसी महिला की मृत्यु है, चाहे गर्भावस्था की अवधि और स्थान कुछ भी हो, गर्भावस्था या उसके प्रबंधन से संबंधित या उससे बढ़े किसी भी कारण से, लेकिन आकस्मिक या आकस्मिक कारणों से नहीं।
    • इसे एक विशिष्ट समयावधि के दौरान प्रति 100,000 जीवित जन्मों पर मातृ मृत्यु की संख्या के रूप में परिभाषित किया जाता है।
    • नमूना पंजीकरण प्रणाली (SRS) के तहत रिपोर्ट के अनुसार, भारत के लिए मातृ मृत्यु दर (MMR) 2019-21 की अवधि के लिए प्रति 100,000 जीवित जन्मों पर 93 थी।
  • भारत में मातृ मृत्यु दर में गिरावट देखी गई है, जो 2017-19 में 103 से घटकर 2018-20 में 97 और अंततः 2019-21 में 93 हो गई।

मातृ मृत्यु दर का राज्यवार वर्गीकरण

मातृ मृत्यु की स्थिति को बेहतर ढंग से समझने के लिए राज्यों को तीन समूहों में वर्गीकृत किया गया है तथा मातृ मृत्यु को कम करने के लिए राज्यों के प्रत्येक समूह के लिए भिन्न-भिन्न रणनीतियाँ मौजूद हैं।

  • एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप (EAG) राज्य: इनमें बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और असम राज्य शामिल हैं।
    • असम में मातृ मृत्यु दर (MMR) बहुत अधिक – 167 है।
    • इस समूह में झारखंड का प्रदर्शन बेहतर है, जहाँ मातृ मृत्यु दर 51 है।
    • बिहार, छत्तीसगढ़, ओडिशा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड 100-151 की श्रेणी में आते हैं
  • दक्षिणी राज्य: इस समूह में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु शामिल हैं।
    • केरल में देश में सबसे कम मातृ मृत्यु दर 20 है।
    • इस समूह में कर्नाटक का स्थान सबसे ऊपर है, जहाँ उसकी संख्या 63 है।
  • अन्य राज्य: इस श्रेणी में शेष राज्य और संघ राज्यक्षेत्र शामिल हैं।
    • महाराष्ट्र में मातृ मृत्यु दर- 38 है, तथा गुजरात में 53 है।

मातृ मृत्यु के कारण –तीन देरी” (Three Delays)

  • पहली देरी: खतरे को पहचानने और विशेषज्ञ की देखभाल लेने का निर्णय लेने में देरी।
    • कारण: परिवार के सदस्य प्रायः पारंपरिक जड़ता दिखाते हैं, यह मानते हुए कि प्रसव पूरी तरह से एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जिसके लिए धैर्य की आवश्यकता होती है, चिकित्सक की नहीं।
    • वित्तीय बाधाएँ और परिवारों में जागरूकता या शिक्षा का अभाव भी अस्पताल में देखभाल के लिए समय पर निर्णय लेने में बाधा उत्पन्न करता है।
      • इस समस्या के समाधान हेतु पहल: सशक्त स्थानीय माताओं और महिला स्वयं सहायता समूहों ने इस परिदृश्य को महत्त्वपूर्ण रूप से बदल दिया है, जिससे परिवार के सदस्यों द्वारा गर्भवती माताओं की उपेक्षा को रोका जा सका है।
      • 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) के शुभारंभ के बाद से मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं (ASHA) ने सहायक नर्स दाइयों (ANM) के साथ मिलकर घरेलू प्रसव की तुलना में संस्थागत प्रसव को बढ़ावा दिया है।
      • माताओं और आशा कार्यकर्ताओं दोनों को प्रदान किए गए वित्तीय प्रोत्साहनों ने अस्पताल में प्रसव को और अधिक प्रोत्साहित किया है।
  • दूसरी देरी: स्वास्थ्य सुविधा तक परिवहन में देरी
    • कई महिलाओं की स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए यातायात संसाधनों की अनुपलब्धता के चलते मार्ग में ही मृत्यु हो जाती है, विशेष रूप से दूरदराज के ग्रामीण क्षेत्रों, वन बस्तियों या द्वीपों से, जहाँ अस्पताल पहुँचने में कई घंटे या यहाँ तक ​​कि रात भर का समय भी लग सकता है।
      • इस समस्या के समाधान हेतु पहल: राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत 108 एम्बुलेंस प्रणालियाँ और अन्य आपातकालीन परिवहन तंत्र स्वास्थ्य सुविधाओं तक समय पर पहुँच सुनिश्चित करके हेतु महत्त्वपूर्ण उपाय सिद्ध हुए हैं।
  • तीसरी देरी: स्वास्थ्य सुविधा में विशेष देखभाल शुरू करने में देरी
    • गर्भवती महिला के अस्पताल पहुँचने पर देरी: इसके निम्नलिखित कारण हैं:
      • आपातकालीन कक्ष में एक महिला की देखभाल में देरी;
      • प्रसूति विशेषज्ञ अथवा चिकित्सक के मरीज़ के पास पहुँचने में देरी;
      • आसानी से उपलब्ध रक्तदाताओं या प्रयोगशाला सहायता का अभाव;
      • ऑपरेशन थियेटर तैयार न होना या एनेस्थेटिस्ट का उपलब्ध न होना आदि।
    • बुनियादी ढाँचे की कमी: दो मिलियन की आबादी वाले प्रत्येक जिले में न्यूनतम चार प्रथम रेफरल इकाइयों (FRU) को क्रियान्वित करने की अवधारणा महत्त्वपूर्ण है, लेकिन 1992 से यह अपेक्षा के अनुरूप कार्यरत नहीं है
      • प्रथम रेफरल इकाइयों (FRU) के रूप में नामित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में विशेषज्ञों के 66% पद रिक्त हैं।
      • इसके अलावा, इन FRU में पर्याप्त रक्त बैंकों या रक्त भंडारण इकाइयों की कमी के कारण अपर्याप्त रक्त आधान के कारण मृत्यु हो जाती है।

अन्य कारण

  • प्रसव के बाद रक्तस्राव (प्रसवोत्तर रक्तस्राव): यदि प्रसव के बाद पूर्ण देखभाल प्राप्त न हो, तो अत्यधिक रक्तस्राव का खतरा होता है।
    • अत्यधिक रक्त की हानि से अवसाद और मृत्यु भी हो सकती है।
    • पहले से मौजूद कुपोषण इस जोखिम को और बढ़ा देता है
    • तत्काल रक्त आधान और आपातकालीन शल्य चिकित्सा देखभाल महत्त्वपूर्ण हैं।
  • बाधित प्रसव: यह तब होता है, जब अविकसित या कुपोषित माँ में संकुचित श्रोणि हड्डी के कारण बच्चा बाहर नहीं आ पाता है, जिसके परिणामस्वरूप लंबे समय तक प्रसव, भ्रूण संकट और संभावित गर्भाशय का टूटना शामिल होता है
    • ऐसे मामलों में सिजेरियन (शल्य चिकित्सा) आवश्यक है, जिसके लिए एक अच्छी तरह से सुसज्जित ऑपरेशन थियेटर और आसानी से उपलब्ध सर्जिकल विशेषज्ञों की आवश्यकता होती है।
  • गर्भावस्था के उच्च रक्तचाप संबंधी विकार: यदि इनकी पहचान नहीं की गई और तुरंत उपचार नहीं किया गया, तो ये गंभीर आपातस्थितियाँ उत्पन्न कर सकते हैं, जिनमें ऐंठन और कोमा शामिल हैं तथा उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने के लिए बहुत कम समय प्राप्त होता है।
  • संक्रमण (सेप्सिस): अप्रशिक्षित परिचारिकाओं द्वारा अस्वास्थ्यकर घरेलू प्रसव से आघात और प्रसूति संक्रमण हो सकता है, जिससे संक्रमण और मृत्यु तक हो सकती है।
    • देर से अस्पताल में भर्ती होने से ये मामले और भी जटिल हो जाते हैं।
    • अवांछित गर्भधारण के कारण नीम हकीमों द्वारा गर्भपात की अपरिष्कृत तकनीकें अपनाई जाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप संक्रमण और मृत्यु भी होती है।
  • संबंधित बीमारियाँ: EAG अवस्थाओं में, मलेरिया, दीर्घकालिक मूत्र मार्ग संक्रमण और तपेदिक जैसी सहवर्ती बीमारियाँ गर्भावस्था और प्रसव के दौरान जोखिम को व्यापक रूप से बढ़ा देती हैं।

आगे की राह

  • व्यापक देखभाल: प्रारंभिक गर्भावस्था पंजीकरण, नियमित प्रसवपूर्व जाँच, संस्थागत प्रसव और कम-से-कम 42 दिनों तक निरंतर प्रसवोत्तर देखभाल के माध्यम से व्यापक मातृ देखभाल सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
  • प्रणालीगत सुदृढ़ीकरण:
    • राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के तहत सभी मातृ मृत्यु की अनिवार्य रिपोर्टिंग और ऑडिटिंग प्रणालीगत कमियों की पहचान करने और देखभाल की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए आवश्यक है।
    • EAG राज्यों को बुनियादी कार्यों के कार्यान्वयन एवं मौलिक बुनियादी ढाँचे को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
    • झारखंड, महाराष्ट्र और गुजरात के साथ-साथ दक्षिणी राज्यों को अपनी आपातकालीन और बुनियादी प्रसूति देखभाल की गुणवत्ता में सुधार करने की आवश्यकता है।
    • मातृ मृत्यु की गोपनीय समीक्षा के केरल मॉडल से सीख लेकर, जो विश्लेषणात्मक अंतर्दृष्टि प्रदान करता है, अन्य राज्यों को अपने मातृ मृत्यु दर (MMR) को और कम करने में मदद मिल सकती है।
  • विशिष्ट चुनौतियों का समाधान:
    • प्रथम रेफरल इकाइयों में प्रसूति विशेषज्ञों, एनेस्थेटिस्ट और बाल रोग विशेषज्ञों जैसे चिकित्सकों की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
    • यह सुनिश्चित करना, कि रक्त बैंक और ऑपरेशनल थिएटर आसानी से उपलब्ध हों और पूरी तरह कार्यात्मक हों।
    • प्रसवोत्तर रक्तस्राव और अन्य गंभीर स्थितियों जैसी जटिलताओं के प्रबंधन के लिए उन्नत चिकित्सा पद्धतियों को लागू करना, हालाँकि इनमें से कुछ अभी भी विकसित देशों में भी नियमित रूप से प्रचलित नहीं हैं।
    • प्रसवपूर्व अवसाद और प्रसवोत्तर मनोविकृति को संबोधित करना, क्योंकि मनोवैज्ञानिक तनाव भी प्रतिकूल परिणामों में योगदान दे सकता है।

निष्कर्ष

अंतः मातृ मृत्यु को रोकने की प्रतिबद्धता के लिए सामूहिक प्रयास, सक्रिय हस्तक्षेप, व्यापक जागरूकता तथा परिवारों और स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों दोनों की ओर से निर्णायक कार्यवाही की आवश्यकता है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

भारत में गर्भवती महिलाओं के जीवन को खतरे में डालने वाले प्रमुख चिकित्सा और सामाजिक-आर्थिक कारक क्या हैं? इसके लिए लक्षित हस्तक्षेप किस प्रकार निर्धारित किए जा सकते हैं? (15 अंक, 250 शब्द)

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