100% तक छात्रवृत्ति जीतें

रजिस्टर करें

मीडिया ट्रायल

Lokesh Pal May 29, 2024 05:00 197 0

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार, मुक्त भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मुद्दा। 

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: मीडिया द्वारा सुनवाई से जुड़ी चुनौतियाँ, लोकतंत्र में मीडिया की भूमिका। 

संदर्भ: 

हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को आपराधिक मामलों में पुलिस अधिकारियों द्वारा दिए गए प्रेस कॉन्फ्रेंस के विषय पर तीन माह के भीतर एक संपूर्ण मानक संचालन प्रक्रिया विकसित करने का आदेश दिया है ।

मीडिया ट्रायल:

  • सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का उद्देश्य: यह आदेश उन लोगों को होने वाली समस्या व निराशा को कम करने के उद्देश्य से दिया गया था, जो अधिकारियों द्वारा दिए गए बयानों के आधार पर मीडिया ट्रायल के दायरे में आ जाते हैं।
    • ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि हाल के दिनों में जिस तरह से सुशांत सिंह राजपूत और आर्यन खान जैसे हाई-प्रोफाइल मामलों को प्रचारित किया जा रहा है, उसने “स्वतंत्र भाषण और अभिव्यक्ति” तथा “निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार” के मध्य एक अलग प्रकार के वाद-विवाद को जन्म दिया है।
  • मीडिया ट्रायल के प्रसार का प्रभाव: यह आपराधिक न्यायशास्त्र की मूल अवधारणाओं में से एक को कमजोर कर रहा है, अर्थात “दोषी साबित होने तक निर्दोष” की धारणा।

मीडिया ट्रायल के बारे में: 

  • मीडिया ट्रायल की उत्पत्ति: “मीडिया ट्रायल” या “मीडिया द्वारा ट्रायल” की अवधारणा की उत्पत्ति 19वीं शताब्दी के दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका में हुई थी।  
    • भारत में यह “के.एम. नानावटी बनाम महाराष्ट्र राज्य (1961)” के प्रसिद्ध मामले के बाद सार्वजनिक संज्ञान में आया।
    • मिडिया ट्रायल कोई कानूनी शब्द नहीं है इसे किसी भी कानून या कानूनी शब्दावली में परिभाषित नहीं किया गया है।
  • मीडिया ट्रायल की परिभाषा: कुछ कानूनी विशेषज्ञविदों ने समय-समय पर इस अवधारणा को परिभाषित करने की कोशिश की है। 
  • हालाँकि, सबसे सटीक व मान्य  परिभाषा आर. सुरेटे द्वारा प्रस्तुत की गई है, जो इस प्रकार है:
    • आर. सुरेटे के अनुसार, “मीडिया ट्रायल को कुछ क्षेत्रीय या राष्ट्रीय ‘घटनाओं’ से संबंधित समाचारों के रूप में परिभाषित किया जाता है, जिसमें आपराधिक न्याय प्रणाली को मीडिया द्वारा एक नाटक और मनोरंजन के स्रोत के रूप में अपनाया जाता है।”
  • प्रमुख समस्या: हमारे देश में, इसे सर्वोच्च न्यायालय द्वारा संक्षेप में, अनौपचारिक सुनवाई के रूप में निर्दिष्ट किया गया था, जहाँ “दोषी होने की धारणा” होती है और जिसका निर्णय केवल निष्पक्ष कार्यवाही की संभावना को हानि पहुँचाएगा और अभियुक्त के न्यायपूर्ण एवं निष्पक्ष सुनवाई पाने के अधिकार में हस्तक्षेप करेगा।
    • इसमें आम जनता की नजर में किसी भी निर्दोष को दोषी घोषित करने की क्षमता निहित है।
  • मीडिया कर्मियों के अधिकार: इस बात पर कोई असहमति नहीं है कि मीडिया कर्मियों को न्यायालयों में चल रही घटनाओं को कवर करने और उन्हें अपने दर्शकों तक प्रसारित करने का कानूनी और संवैधानिक अधिकार है।

मीडिया ट्रायल पर न्यायालय का दृष्टिकोण:

  • सकारात्मक प्रभाव: कार्यवाही में जनता का विश्वास बढ़ेगा।
  • समानांतर परीक्षण: हालाँकि, यह पूर्ण स्वतंत्रता कभी-कभी समाचार स्टूडियो में संदिग्धों के समानांतर आपराधिक परीक्षण में विकसित होती है।
    • इसका मुकाबला करने के लिए, यह मुद्दा “आर.के. आनंद बनाम रजिस्ट्रार, दिल्ली उच्च न्यायालय” में सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष उठाया गया और सर्वोच्च न्यायालय ने पहली बार इस बात का जिक्र किया कि मीडिया द्वारा समवर्ती सुनवाई का हमारी न्यायिक प्रणाली में कोई कानूनी आधार नहीं है। 
      • क्योंकि यह “स्वतंत्र भाषण और अभिव्यक्ति” के अधिकार तथा “निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार” के मध्य टकराव की स्थिति को जन्म देता है।
    • हालाँकि, बाद के एक निर्णय में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यदि इन दोनों अधिकारों  (“स्वतंत्र भाषण और अभिव्यक्ति” और “निष्पक्ष सुनवाई”)  में टकराव की स्थिति उत्पान हो जाती है, तो व्यापक सार्वजनिक हित को देखते हुए पहले को दूसरे पर प्राथमिकता दी जाएगी।
  • प्रेस की स्वतंत्रता: इससे पहले, यह मानते हुए कि भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का मुद्दा अप्रतिबंधित अनुमति प्रदान करने के बराबर है, सर्वोच्च न्यायालय ने “रि: हरिजई सिंह (Re: Harijai Singh)” मामले में इस बात का जिक्र किया है कि प्रेस की स्वतंत्रता न तो पूर्ण  है और न ही अनंत। 
    • सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार यदि इसे पूरी तरह से अप्रतिबंधित छोड़ दिया जाए, यहाँ तक ​​कि कुछ हद तक भी, तो यह बड़ी समस्याओं और उथल-पुथल का कारण भी बन सकता है।
  • मौलिक अधिकार: “आर. राजगोपाल बनाम तमिलनाडु राज्य” नामक एक अन्य महत्त्वपूर्ण निर्णय में, सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 19(1) भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सुनिश्चित करता है, जिसमें प्रेस की स्वतंत्रता का अधिकार भी शामिल है।
    • लेकिन यह विशेषाधिकार उचित प्रतिबंधों के अधीन है क्योंकि अनुच्छेद 19(2) में स्पष्ट रूप से शालीनता और मानहानि को मीडिया के अधिकारों को कम करने के दो आधारों के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
  • कानूनी कार्यवाही की रिपोर्टिंग: ध्यातव्य है कि “नीलेश नवलखा बनाम भारत संघ” के नाम से प्रसिद्ध जनहित याचिका के मामले में, अदालत ने इस बारे में एक मानक स्थापित किये कि मीडिया प्रकाशनों और नेटवर्कों को कानूनी कार्यवाही की रिपोर्टिंग कैसे करनी चाहिए?
  • मौलिक निर्देश: इसके तहत न्यायालय ने कई मानदंड जारी किए, जिनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण मौलिक निर्देश निम्नलिखित हैं:
    • पीड़ित की निजता और गरिमा का हमेशा सम्मान किया जाना चाहिए। 
    • मामले से जुड़ी संवेदनशील जानकारी कभी भी सार्वजनिक नहीं की जानी चाहिए। 
    • जाँचकर्ता के समक्ष की गई स्वीकारोक्ति/स्वीकृति को प्रकाशित नहीं किया जाना चाहिए।
    • जब मामला न्यायालय में विचाराधीन हो तो मामले से जुड़े किसी भी व्यक्ति का साक्षात्कार नहीं लिया जा सकता है ।
    • फैसले के अंत में कुछ अन्य टिप्पणियाँ भी  प्रस्तुत की गईं, जैसे कि मीडिया द्वारा समाचारों को उनके वास्तविक और सटीक स्वरूप में प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
    • इसमें घटनाओं का स्पष्ट विवरण शामिल होना चाहिए जिसे कि ईमानदारी के साथ बिना किसी अतिश्योक्ति या पूर्वाग्रह के साथ दर्ज किया गया हो इसके अतिरिक्त ये घटनाएँ किसी भी प्रकार की विकृति या पूर्वाग्रह से प्रभावित नहीं होनी चाहिए।
    • टीआरपी (TRP) पाने के उद्देश्य से इस घटना को अधिक महत्त्व नहीं दिया जाना चाहिए।

सिफ़ारिशें:

  • दिशानिर्देश: 17वें विधि आयोग द्वारा अपनी 200वीं रिपोर्ट में प्रस्तुत किए गए दिशानिर्देशों, जिसका शीर्षक था “मीडिया द्वारा सुनवाई: दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के तहत स्वतंत्र भाषण और निष्पक्ष सुनवाई” का कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए।
  • कानूनों को अद्यतित किया जाना चाहिए  : “प्रसार भारती अधिनियम, 1990” और “केबल नेटवर्क अधिनियम, 1995” जैसे प्रमुख कानूनों को अद्यतित किए जाने की आवश्यकता है, ताकि इस डिजिटल युग में उनकी शर्तें औपचारिकता भर न रह जाएँ।
  • अनिवार्य विनियमन: “प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया” और “समाचार प्रसारण मानक प्राधिकरण” को अपने विनियमनों को विवेकाधीन बनाने के बजाय अनिवार्य बनाए जाने की आवश्यकता है।
  • मीडिया एक निगरानी तंत्र  के रूप में: लोकतंत्र में, प्रेस एक निगरानी तंत्र के रूप में कार्य करता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रत्येक सुनवाई सत्यनिष्ठा, स्वतंत्रता और गहनता के साथ प्रस्तुत की जाएँ।
    • परंतु सामान्यतः ऐसा देखा गया है कि, यह निगरानी तंत्र कभी – कभी अपना कर्तव्य भूल जाता है और मार्ग से भटक जाता है। 
    • यही नहीं कभी-कभी, यह खुद ही एक निर्णयकर्त्ता (जज) बन जाता है और संदिग्ध को दोषी ठहराने के लिए कंगारू अदालत चलाता है।
    • इसे नियंत्रित करने के लिए यह आवश्यक है कि प्रेस अपनी स्वतंत्रता का दुरुपयोग करने तथा आपराधिक कानून के मूल सिद्धांतों को कमजोर करने से बचें।

निष्कर्ष: 

अतः निष्कर्षस्वरुप यह कहा जा सकता है कि मीडिया को यह समझना चाहिए कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक अधिकार है इसलिए घटनाओं को सत्यनिष्ठा व स्पष्टता के साथ साझा करना आवश्यक है। इस प्रकार मीडिया राष्ट्र के प्रति अपने मूल कर्तव्यों का निर्वहन करने में सक्षम हो पाएगा अन्यथा नहीं।

प्रारंभिक परीक्षा पर आधारित प्रश्न :                                                                         

प्रश्न. निष्पक्ष सुनवाई में न्यायधीश की क्या भूमिका होती है?

  1. न्यायाधीश प्रस्तुत प्रमाणों और क़ानून के अनुसार तय करते हैं कि आरोपी निर्दोष है।
  2. न्यायाधीश निष्पक्ष भाव से और खुली अदालत में मुकदमों का संचालन करते हैं।
  3. जिन मुकद्दमों में जनता का अन्तर्विवेक अनियंत्रित हो जाता है उन पर न्यायाधीश शीघ्र ही निर्णय सुना देते हैं।

नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये :

  1. केवल 1
  2. केवल2 
  3. केवल 3 
  4. केवल1 और 2 

उत्तर: (d)

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न:

विषय GS-02: कार्यपालिका और न्यायपालिका की संरचना, संगठन और कार्यप्रणाली।

प्रश्न: “मीडिया ट्रायल” की अवधारणा और निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार पर उनके प्रभाव का विश्लेषण कीजिए। स्वतंत्र भाषण और न्याय प्रशासन के मध्य संतुलन बनाने के उपायों तथा मीडिया स्व-नियमन की भूमिका पर चर्चा कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

THE MOST
LEARNING PLATFORM

Learn From India's Best Faculty

      

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

<div class="new-fform">







    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.