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उच्च शिक्षा में माइक्रो-क्रेडेंशियल्स

Lokesh Pal February 05, 2024 05:15 118 0

संदर्भ

यह लेख इस बात पर प्रकाश डालता है कि भारत में उच्च शिक्षा संस्थान, प्रणाली में उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए मौजूदा शैक्षणिक कार्यक्रमों के साथ सूक्ष्म-साख (Micro-credential) का एकीकरण कर उत्प्रेरक की भूमिका निभा सकते हैं।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: माइक्रो-क्रेडेंशियल्स के बारे में।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: सूक्ष्म प्रमाण-पत्र एवं इसका महत्त्व, चुनौतियाँ और आगे की राह।

माइक्रो-क्रेडेंशियल्स क्या है?

  • लघु अवधि के शिक्षण कार्यक्रम: लघु शिक्षण कार्यक्रम, जो आमतौर पर ऑनलाइन के रूप में देखे गए हैं, विशिष्ट कौशल या दक्षताओं पर केंद्रित होते हैं और औपचारिक डिग्री की तुलना में कोर्स पूरा करने में बहुत कम समय लेते हैं। यह समय कुछ घंटों से लेकर कई हफ्तों तक हो सकता है।
  • वैधता: इसके तहत कोर्स समापन के प्रमाण के रूप में एक डिजिटल बैज, प्रमाण-पत्र या क्रेडिट जारी किया जाता है।
  • उदाहरण: Google या Facebook द्वारा डिजिटल मार्केटिंग सर्टिफिकेट, NASSCOM या IBM से डेटा साइंस कोर्स, EY या Deloitte से फिनटेक प्रोग्राम, Coursera से जावा प्रोग्रामिंग कोर्स, अंग्रेजी शिक्षण के लिए शॉर्ट टर्म TEFL कोर्स, BSE इंस्टिट्यूट से एक्सेल मॉडलिंग कोर्स, आदि।

माइक्रो-क्रेडेंशियल्स का महत्त्व

  • विद्यार्थियों द्वारा कॉलेज से प्राप्त शिक्षा और नियोक्ताओं के अपेक्षित माँगों के मध्य के कौशल अंतराल को पाटने में मदद करते हैं।
  • उद्योगों की आवश्यकताओं के अनुसार अनुकूलित कौशल विकास को बढ़ावा मिलता है। यह विद्यार्थियों को शीघ्रता से रोजगारपरक एवं बाजार-माँग वाले कौशल प्राप्त करने में मदद करता है।
  • पहुँच: इन माइक्रो-क्रेडेंशियल्स का एक महत्त्व यह है कि इन्हे समय के साथ संचित कर औपचारिक डिग्रियों के लिए भी उपयोग में लाया जा सकता है। यह औपचारिक डिग्रियों की तुलना में अधिक लचीला और सुलभ है।
  • सीखना: पारंपरिक शिक्षा से अलग आजीवन सीखने की प्रवृति ऑनलाइन क्रांति का एक हिस्सा बन गया है।
  • रोजगार हेतु : रोजगार हेतु योग्यता महत्त्वपूर्ण है क्योंकि नियुक्तियाँ केवल डिग्री के बजाय कौशल पर अधिक केंद्रित होती हैं। यह कामकाजी पेशेवरों को पूर्ण डिग्री के बिना भी कौशल विकास की प्रेरणा देता है।

मैक्रो-क्रेडेंशियल्स के बारे में

  • औपचारिक डिग्री: यह स्नातक, मास्टर डिग्री जैसी औपचारिक डिग्री प्रदान करता है जिसमें 2-4 साल का पूर्णकालिक अध्ययन होता है।
  • व्यापक-आधार वाली  शिक्षा: यह कई विषयों में व्यापक-आधार वाली शिक्षा प्रदान करता है।
  • क्रेडिट: ये क्रेडिट कक्षाओं/प्रयोगशालाओं में व्यतीत किए गए समय पर आधारित होते हैं।
  • उदाहरण: इंजीनियरिंग विषयों में बीटेक या बीई डिग्री, मेडिसिन में एमबीबीएस डिग्री, विज्ञान में बीएससी/एमएससी डिग्री, सामाजिक विज्ञान और मानविकी में बीए/एमए डिग्री, बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में एमबीए डिग्री, कानून में एलएलबी डिग्री, आदि।

माइक्रो-क्रेडेंशियल्स के साथ चुनौतियाँ

  • मान्यता: कई भारतीय नियोक्ताओं और शैक्षणिक संस्थानों की  माइक्रो-क्रेडेंशियल्स के संबंध में अभी भी जागरूकता का अभाव और औपचारिक मान्यता की कमी है। अभी भी इनके मूल्य स्थापित किए जाने बाकी है।
  • गुणवत्ता आश्वासन: विभिन्न माइक्रो-क्रेडेंशियल प्रदाताओं के पास सूक्ष्म साख से संबंधित गुणवत्ता और निरंतरता सुनिश्चित करने हेतु कोई स्पष्ट नियम या बेंचमार्क नहीं है। इस संबंध में विश्वसनीयता एक चिंता का विषय माना जा रहा है I
  • औपचारिक डिग्रियों के साथ एकीकरण: राष्ट्रीय क्रेडिट फ्रेमवर्क के तहत मुख्यधारा के डिग्री कार्यक्रमों हेतु क्रेडिट के प्रावधानों के संबंध में सूक्ष्म-क्रेडेंशियल्स का आकलन अभी भी प्रारंभिक चरण में है।
  • पहुँच: डिजिटल डिवाइड, पाठ्यक्रमों की वहनीयता और पात्रता मानदंड जैसे मुद्दे ऑनलाइन माइक्रो-क्रेडेंशियल्स प्राप्ति तक की पहुँच को सीमित कर सकते हैं, खासकर वंचित समूहों के लिए।
  • प्रदाताओं के लिए प्रेरणा: भारतीय विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के पास उनकी मुख्यधारा वाले कोर्सेस की तुलना में माइक्रो-क्रेडेंशियल कार्यक्रम के विकास हेतु वित्तीय प्रोत्साहन की उपलब्धता सीमित होती है।
  • मानसिकता बाधाएँ: पारंपरिक मानसिकताएँ इस दिशा में बाधक सिद्ध होती है क्योंकि वे कौशल कार्यक्रमों या निरंतर सीखने की तुलना में औपचारिक डिग्री को ज्यादा प्राथमिकता देती हैं। छात्र और संस्थान दोनों के द्वारा बहु-वर्षीय डिग्रियाँ ही पसंद की जाती है।

निष्कर्ष

भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों को सामाजिक रूपांतरण के कारक के रूप में कार्य करना चाहिए और माइक्रो-क्रेडेंशियल्स को अपने रणनीतिक संस्थागत उद्देश्यों के एक महत्त्वपूर्ण अवयव के रूप में पेश करने पर विचार करना चाहिए I इसके लिए नियामकों और संस्थानों को स्पष्ट सत्यापन परीक्षण के माध्यम से मौजूदा शैक्षणिक कार्यक्रमों के साथ माइक्रो-क्रेडेंशियल्स को सुसंगत बनाने की दिशा में कार्य करना होगा।

                                                                                                                                       News Source: The Hindu

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