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असम का राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) डेटा

Lokesh Pal May 06, 2025 05:15 13 0

संदर्भ:

असम की आव्रजन निरोध व्यवस्था न केवल इसमें फँसे लोगों की स्वतंत्रता और हित के लिए खतरा है, बल्कि यह संवैधानिक सिद्धांतों पर भी महत्त्वपूर्ण प्रश्न चिह्न लगाती है।

भारत में गैर-नागरिकों का अनिश्चितकालीन डिटेन्शन

  • राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 और विदेशी अधिनियम, 1946 के तहत, भारत में गैर-नागरिकों को लंबे समय तक डिटेन्शन केंद्रों में रखा जा सकता है, प्रायः बिना किसी स्पष्ट कानूनी उद्देश्य या समयसीमा के।

असम राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) संकट

  • NRC से बाहर: असम में 19 लाख लोगों को राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) से बाहर रखा गया।
  • अनुचित घोषणा: कई लोगों को भारत में आजीवन निवास करने और विदेश में कोई संबंध न होने के बावजूद विदेशी घोषित कर दिया गया।
  • अनुचित दस्तावेज की माँग: 1971 से पूर्व प्रमाण की आवश्यकताएँ अनुचित थीं, विशेष रूप से बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में, नामों में छोटी-छोटी त्रुटियों के कारण भी आवेदन अस्वीकार कर दिए गए।

प्रमुख चुनौतियाँ अथवा समस्याएँ

  • विधिक चुनौतियाँ:
    • सर्वोच्च न्यायालय में निर्णय को चुनौती: राजुबाला दास बनाम भारत संघ मामले (2020) में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय से अनिश्चितकालीन नजरबंदी (डिटेन्शन) की संवैधानिकता का आकलन करने के लिए कहा गया।
    • वैश्विक उदाहरण:
      • ऑस्ट्रेलिया का उच्च न्यायालय: ऑस्ट्रेलिया में उच्च न्यायालय ने NZYQ (2023) में फैसला सुनाया, कि गैर-नागरिकों को निर्वासन की यथार्थवादी संभावना के बिना डिटेन्शन में नहीं लिया जा सकता है – यह सिद्धांत स्वतंत्रता पर संवैधानिक सीमाओं पर आधारित है
  • विधिक सिद्धांतों का उल्लंघन:
    • स्वतंत्रता से वंचित करने का कानूनी आधार: भारतीय कानून स्वतंत्रता से वंचित करने को न्यायिक शक्ति, आपराधिक दोषसिद्धि या वैध निवारक निरोध (अनुच्छेद 22 के तहत) से जोड़ता है।
    • असम में अनिश्चितकालीन डिटेन्शन असम के बंदियों पर कोई आरोप नहीं लगाया गया है, उन्हें दोषी नहीं ठहराया गया है तथा उन्हें हटाया भी नहीं गया है – फिर भी वे डिटेन्शन केंद्रों में रहते हैं
  • निर्वासन तंत्र का अभाव:
    • अप्रभावी निर्वासन: 2017 से अब तक 1.59 लाख से अधिक घोषित विदेशियों में से केवल 26 को असम से निर्वासित किया गया है।
    • निर्वासन असंभव: कई लोगों को कोई अन्य देश स्वीकार करने को तैयार नहीं है – जिससे निष्कासन असंभव हो जाता है
  • कोई वैध उद्देश्य नहीं:
    • वैध डिटेन्शन उद्देश्य का अभाव: डिटेन्शन सजा नहीं है, निवारक नहीं है, और निर्वासन के लिए नहीं है
    • संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन: यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करता है, जो जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा की गारंटी देता है
  • मानवीय एवं नैतिक चिंताएं:
    • बूढ़े, गरीब और निर्दोष लोगों को बिना अपराध के डिटेन्शन केंद्रों में डाल दिया गया।
    • बुनियादी सम्मान, कानूनी सहायता और मान्यता से वंचित किया गया।
    • कोई समय-सीमा नहीं – परिवार अनिश्चित काल के लिए अलग हो गए।
    • नैतिक दुविधा: राज्य बनाम व्यक्तिगत स्वतंत्रता।
    • संवैधानिक नैतिकता और मानवाधिकारों पर प्रश्न उठाता है।

संवैधानिक निहितार्थ

  • न्यायिक प्राधिकार को कमजोर करना: डिटेन्शन पर कार्यपालिका का नियंत्रण न्यायपालिका की पारंपरिक भूमिका को कमजोर करता है
  • विधि के शासन को खतरा: इससे विधि के शासन और संवैधानिक शासन को गंभीर खतरा उत्पन्न होता है।

निष्कर्ष

असम में गैर-नागरिकों का अनिश्चितकालीन डिटेन्शन अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करता है, विधि के शासन को कमजोर करता है और गंभीर संवैधानिक चिंताओं को जन्म देता है। न्याय की बहाली और मूल अधिकारों की सुरक्षा के लिए सुधार तथा न्यायिक निगरानी आवश्यक है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

विदेशी अधिनियम, 1946 और राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 के तहत ‘घोषित विदेशियों’ के लंबे समय तक डिटेन्शन पर विचार करते हुए, संवैधानिक लोकतंत्र में ऐसी प्रथाओं से उत्पन्न कानूनी और मानवीय चुनौतियों पर चर्चा कीजिए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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