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भारत में शहरी भारत के लिए व्यापक एजेंडे की आवश्यकता

Lokesh Pal July 09, 2025 05:15 21 0

संदर्भ:

भारत तेजी से शहरीकरण के दौर से गुजर रहा है। 2035 तक, 67.5 करोड़ लोग भारतीय शहरों में रहेंगे, जिसके 2045 तक 7 करोड़ तक बढ़ने का अनुमान है। निस्संदेह, शहर भारत के आर्थिक और सामाजिक विकास के इंजन हैं, जिससे भविष्य की समृद्धि के लिए एक सुपरिभाषित शहरी कार्यसूची अत्यंत महत्त्वपूर्ण हो जाती है।

भारतीय शहरों की वर्तमान स्थिति और उनके समक्ष विद्यमान बाधाएँ

  • यातायात दबाव: इससे समय और ईंधन की काफी बर्बादी होती है तथा उत्पादकता में कमी आती है
    • एशियाई विकास बैंक के अनुसार, खराब परिवहन क्षमता और बुनियादी ढाँचे के कारण भारत को प्रतिवर्ष $22 बिलियन का नुकसान होता है।
  • जल की कमी: भारतीय शहरों में अत्यधिक जल दोहन, प्रदूषण और अनियमित वर्षा के कारण जल संकट बढ़ रहा है।
    • उदाहरण: उत्तर भारत में शिमला और तटीय कर्नाटक में उडुपी और मैंगलोर टियर 2 शहर बनने के कगार पर हैं, जहाँ जल्द ही डे जीरो‘ की स्थिति होगी। (डे जीरो स्थिति: यह वह स्थिति है, जब नलों में पानी नहीं होगा और पानी का उपयोग केवल आवश्यक सेवाओं के लिए ही सीमित हो जाएगा।)
  • अप्रभावी ठोस अपशिष्ट प्रबंधन: स्वच्छ भारत मिशन जैसी प्रमुख पहलों के बावजूद शहरी क्षेत्र असंयोजित और अतिप्रवाहित अपशिष्ट की समस्या से जूझ रहे हैं।
  • अपर्याप्त स्वच्छता सुविधाएँ: कई शहरों में अभी भी सुरक्षित शौचालयों और उचित सीवेज प्रणालियों तक पहुँच का अभाव है, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य और सम्मान प्रभावित होता है।
  • खराब लॉजिस्टिक एकीकरण: खंडित परिवहन नेटवर्क माल के सुचारू प्रवाह में बाधा डालते हैं, लागत में वृद्धि और शहरी प्रतिस्पर्धात्मकता को कम करते हैं।
  • अपर्याप्त नगरपालिका वित्तपोषण: कमजोर राजस्व सृजन और अनुदान पर अत्यधिक निर्भरता, आवश्यक बुनियादी ढाँचे को उन्नत करने की शहरों की क्षमता को सीमित करती है।

शहरी भारत के लिए छह सूत्री सुधार एजेंडा

  • शहरी बुनियादी ढाँचा मुख्य राष्ट्रीय बुनियादी ढाँचे के रूप में: शहरी परिसंपत्तियों जैसे गतिशीलता (मेट्रो, सार्वजनिक परिवहन), अपशिष्ट प्रबंधन और जल उपलब्धता को सड़कों, बंदरगाहों और ऊर्जा के समान आक्रामक रूप से विकसित किया जाना चाहिए।
    • स्मार्ट शहरों और लॉजिस्टिक्स पारिस्थितिकी तंत्रों को रणनीतिक राष्ट्रीय बुनियादी ढाँचे के रूप में माना जाना चाहिए, जिसके लिए केंद्रित ध्यान और पर्याप्त वित्तपोषण की आवश्यकता है।
  • शहरी विस्तार को औद्योगिक गलियारों के साथ एकीकृत करना: आवागमन की अक्षमताओं और लागतों को कम करने के लिए शहरी नियोजन को औद्योगिक विकास के साथ जुड़ाव किया जाना चाहिए।
    • पारगमन क्षेत्रीकरण और क्षेत्रवार विकास को शामिल करते हुए एकीकृत योजना से निवास योग्य शहरी-औद्योगिक क्षेत्र बनाने, उत्पादकता में सुधार लाने और आर्थिक अपव्यय को कम करने में मदद मिलेगी।
  • प्रौद्योगिकी-सक्षम शहरी शासन निकायों का एकीकरण:
    • प्रौद्योगिकी और नवाचार के माध्यम से शहरी प्रबंधन को आगे बढ़ाना।
    • परियोजना कार्यान्वयन को बढ़ाने के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी को परामर्श से आगे बढ़कर हितधारक स्वामित्व की ओर ले जाना होगा।
    • वास्तविक समय प्रदर्शन डैशबोर्ड और डिजिटल ट्विन्स (जो पूर्वानुमानित प्रौद्योगिकी के साथ लाइव डेटा को एकीकृत करते हैं) शहरी मुद्दों के लिए गतिशील समाधान प्रदान कर सकते हैं।
    • उदाहरण: बंगलूरू का एजेंडा टास्क फोर्स, जहाँ राजनेता, नागरिक और उद्योग डिजिटल अपशिष्ट प्रबंधन पर सहयोग करते हैं।
  • स्वच्छता और अपशिष्ट प्रबंधन को राष्ट्रीय आर्थिक प्राथमिकता बनाना:
    • स्वच्छता और अपशिष्ट प्रबंधन पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है और इसमें निजी क्षेत्र की भागीदारी से लाभ मिल सकता है।
    • तिरुपुर जल परियोजना में देखे गए बिल्ड-ओन-ऑपरेट-ट्रांसफर (BOT) जैसे सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल को स्थिरता सुनिश्चित करने और निवेश आकर्षित करने के लिए अपनाया जा सकता है।
    • दीर्घकालिक सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए जोखिम-साझाकरण तंत्र को निजी कंपनियों का समर्थन करना चाहिए।
  • शहरी वास्तविकताओं के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल का पुनर्निर्माण: जिस प्रकार वृहद अवसंरचना परियोजनाओं को व्यवहार्यता अंतराल निधि से लाभ मिलता है, उसी प्रकार शहरी विकास को एक समर्पित शहरी चुनौती निधि के माध्यम से समर्थन दिया जाना चाहिए।
    • इस निधि से ब्राउनफील्ड परियोजनाओं (उन्नयन) और ग्रीनफील्ड पहल (अपशिष्ट जल उपचार संयंत्र जैसी नई परियोजनाएँ) दोनों को सहायता मिलेगी, जिससे जोखिम कम करने और निजी निवेश को प्रोत्साहित करने में मदद मिलेगी।
      • व्यवहार्यता अंतराल अनुदान (VGF): यह सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली एक वित्तीय सहायता प्रणाली है, जो सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के तहत आर्थिक रूप से न्यायसंगत लेकिन वित्तीय रूप से अव्यवहार्य बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं को निजी निवेशकों के लिए आकर्षक बनाने के लिए प्रदान की जाती है।
      • यह आर्थिक अवसंरचना (जैसे- सड़क, बंदरगाह आदि) तथा एक विशेष विंडो के तहत सामाजिक क्षेत्र की अवसंरचना के लिए उपलब्ध है।
  • आधुनिक शहरों की डिजिटल अवसंरचना का सह-विकास: आधुनिक शहरों को डिजिटलीकरण और कृत्रिम बुद्धिमत्ता का लाभ उठाना चाहिए।
    • उदाहरण: एआई-अनुकूलित ट्रैफिक लाइटें, जो वास्तविक समय की यातायात स्थितियों के अनुसार समायोजित हो जाती हैं।
    • आधार के समान डिजिटल सार्वजनिक वस्तुओं का विकास करने से सेवा दक्षता और पहुँच में सुधार हो सकता है।

निष्कर्ष

भारत के समग्र विकास के लिए शहरी सुधार अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। जैसे-जैसे भारत 2045 की ओर बढ़ रहा है, उसका भविष्य वैध और सशक्त नागरिक संस्थाओं द्वारा समर्थित लचीले, कुशल और समावेशी शहरों पर निर्भर करेगा।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

“भारत का शहरी परिवर्तन केवल जनसांख्यिकीय अनिवार्यता नहीं, बल्कि एक आर्थिक अनिवार्यता है।” भारत के शहरी परिवर्तन में आने वाली प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा कीजिए। संधारणीय शहरी शासन सुनिश्चित करने के लिए एक उपयुक्त रोडमैप सुझाइए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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