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न्यूनतम समर्थन मूल्य में आवश्यक सुधार और कृषि कल्याण

Lokesh Pal January 21, 2025 05:15 3 0

संदर्भ:

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र से न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के लिए विधिक गारंटी की मांग वाली एक याचिका पर प्रतिक्रिया देते हुए किसानों की माँगों पर विचार करने का आग्रह किया।

पृष्ठभूमि

  • सब्सिडी : भारत में, सरकार किसानों की सहायता के लिए उर्वरक और बिजली जैसे विभिन्न कृषि आगत पर सब्सिडी प्रदान करती है।
  • उर्वरक सब्सिडी : यदि किसी उर्वरक की कीमत ₹500 प्रति किलोग्राम है, तो सरकार कंपनियों को इसे ₹300 पर बेचने का आदेश देती है। शेष ₹200 सरकार द्वारा सब्सिडी के रूप में उर्वरक कंपनी को प्रतिपूर्ति की जाती है।
  • विद्युत सब्सिडी: कई राज्य किसानों को विशेष रूप से सिंचाई उद्देश्यों के लिए मुफ्त या सब्सिडी वाली बिजली प्रदान करते हैं, जिससे वहनीयता को बढ़ावा मिलता है।
  • न्यूनतम समर्थन मूल्य विस्तार: पारंपरिक रूप से चावल और गेहूँ पर केंद्रित, न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रणाली को अब कई राज्यों में अन्य फसलों को शामिल करने के लिए विस्तारित किया गया है, जिससे किसानों के लिए बेहतर मूल्य समर्थन सुनिश्चित होता है।
    • ये सभी उपाय कृषि सब्सिडी के उदाहरण हैं, जिनका उद्देश्य किसानों की लागत कम करना तथा आर्थिक एवं खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
  • सरकारी हस्तक्षेप का प्रभाव: सरकारी हस्तक्षेप अक्सर अकुशलताएँ पैदा करते हैं, लेकिन बेहतर ढंग से कार्य करने वाले बाजारों को सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

कृषि मूल्य निर्धारण में सुधार के लिए सरकार द्वारा उठाए जाने वाले प्रमुख कदम

  • बाजार पहुँच में वृद्धि : किसानों और उपभोक्ताओं को वास्तविक समय का डेटा प्रदान करके सूचना समरूपता सुनिश्चित करना। सड़कें, भंडारण सुविधाएँ और रसद जैसी भौतिक अवसंरचना विकसित करना।
  • कुशल मूल्य शृंखलाएँ : किसानों और उपभोक्ताओं के बीच मूल्य अंतर को कम करने के लिए संस्थागत नवाचारों को सुविधाजनक बनाना।
    • एक कुशल कृषि मूल्य शृंखला एक ऐसी प्रणाली है, जो प्रत्येक चरण में कृषि उत्पादों में मूल्य संवर्द्धन करती है, जबकि अपव्यय और अकुशलता को न्यूनतम करती है।
  • दूरदर्शी तंत्र : जोखिम को कम करने के लिए वायदा बाजारों को बढ़ावा देना और किसानों को पुराने मूल्यों के बजाय भविष्य के मूल्य पूर्वानुमानों के आधार पर रोपण निर्णय लेने में सक्षम बनाना।
    • उदाहरण के लिए, रबी फसल ऋतु के दौरान, एक किसान गेहूँ बोता है और छह महीने बाद पूर्व निर्धारित मूल्य पर 3,000 किलोग्राम गेहूँ बेचने के लिए पूर्व-बिक्री समझौता पर हस्ताक्षर करता है।
    • यदि यह समझौता बुवाई से पूर्व हस्ताक्षरित किया जाता है, तो यह किसान को मूल्य आश्वासन प्रदान करता है, जोखिम को कम करता है, साथ ही संसाधनों की बेहतर योजना बनाने में मदद करता है। 
  • बाजार संचालित मूल्य निर्धारण: कृषि क्षेत्र में बाजार की शक्तियों को एकीकृत करने के लिए भारत की वर्ष 1991 की उदारीकरण नीतियों के साथ कृषि सुधारों को संरेखित करना |

आर्थिक सुधारों में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का योगदान

  • औद्योगिक उदारीकरण : औद्योगिक नीतियों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त किया और लाइसेंस राज को खत्म किया। उन्होंने विनिमय दर को उदार बनाया तथा आयात शुल्क कम किया, जिससे भारत का बाजार वैश्विक व्यापार के लिए खुल गया।
  • कृषि बहिष्करण : कृषि को राज्य विषय के रूप में वर्गीकृत किए जाने के कारण सुधारों में शामिल नहीं किया गया।
  • यूरिया मूल्य सुधार : उन्होंने बढ़ती लागत को दर्शाने के लिए यूरिया की कीमतों में 30% की बढ़ोतरी का प्रस्ताव रखा, लेकिन चुनावी समर्थन खोने के डर से कांग्रेस पार्टी के भीतर से प्रतिरोध का सामना करना पड़ा।

न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की पृष्ठभूमि

  • 1960 के दशक में खाद्यान्न की कमी : भारत ने यू.एस. के साथ पीएल-480 समझौते के तहत वार्षिक 10 मिलियन टन गेहूँ का आयात किया। विदेशी सहायता अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक द्वारा निर्धारित थी। 
    • उदाहरण के लिए : भारत के वियतनाम समर्थक रुख के कारण यू.एस. ने 72 घंटों के लिए खाद्य शिपमेंट को निलंबित कर दिया। 
  • हरित क्रांति : 1966 में मेक्सिको से उच्च उपज वाले गेहूँ के बीजों का आयात एक महत्त्वपूर्ण मोड़ था। 
    • नई कृषि पद्धतियों को अपनाने के लिए गेहूँ और धान हेतु MSP का निर्माण किया गया। 
  • 1965 में जनसंख्या दबाव : 500 मिलियन की आबादी के साथ खाद्य सुरक्षा एक गंभीर चिंता का विषय थी, जिसके कारण मुख्य फसलों के लिए मूल्य समर्थन तंत्र की आवश्यकता थी। 
  • MSP की उत्पत्ति : केंद्र सरकार ने गेहूँ और चावल जैसे मुख्य खाद्य पदार्थों की कमी के दौरान खाद्य सुरक्षा चिंताओं को दूर करने के लिए 1965 में MSP की शुरुआत की। 
    • MSP कृषि मूल्य आयोग (APC) से जुड़ा था, जिसका उद्देश्य किसानों की आय को स्थिर करना तथा खाद्य उपलब्धता सुनिश्चित करना था।

भारत में कृषि उपज की वर्तमान स्थिति:

  • जनसंख्या और खाद्य सुरक्षा : लगभग 1.43 बिलियन जनसंख्या वाला भारत सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत 800 मिलियन से अधिक लाभार्थियों को मुफ्त गेहूँ और चावल (5 किलोग्राम/व्यक्ति/माह) प्रदान करता है।
  • वैश्विक भूमिका : भारत वैश्विक स्तर पर चावल का सबसे बड़ा निर्यातक है, जिसका उत्पादन अधिशेष है।
  • अत्यधिक भंडारण : भारतीय खाद्य निगम (FCI) के पास बफर स्टॉक मानदंडों से लगभग तीन गुना अधिक चावल का स्टॉक है, जो खरीद और भंडारण में अक्षमताओं को उजागर करता है।

MSP से जुड़ी चुनौतियाँ:

  • MSP बास्केट का विस्तार : मूल रूप से संकटों के लिए एक सांकेतिक मूल्य के रूप में डिज़ाइन किया गया MSP, अब राजनीतिक दबावों के कारण कई फसलों को शामिल करता है।
  • कृषि- एक राज्य विषय के रूप में : कार्यकर्ताओं ने केंद्रीय कृषि सुधारों का विरोध किया, यह तर्क देते हुए कि कृषि राज्य अधिकार क्षेत्र में आती है। हालाँकि, MSP को वैध बनाने की माँग इस रुख का खंडन करती है, क्योंकि राज्यों को आदर्श रूप से ऐसी नीतियों की जिम्मेदारी उठानी चाहिए।
  • क्षेत्रीय अत्यधिक उत्पादन : पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में व्यापक खरीद के परिणामस्वरूप अत्यधिक चावल का उत्पादन हुआ, जो मुफ्त बिजली और सब्सिडी वाले उर्वरकों पर निर्भरता से प्रेरित है तथा एकल फसल प्रणाली (मोनोक्रॉपिंग) को प्रोत्साहित करते हैं।
  • पारिस्थितिक परिणाम : चावल के अधिक उत्पादन से भूजल की कमी, मृदा क्षरण, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन विशेष रूप से धान की खेती से मीथेन उत्सर्जन जलवायु परिवर्तन में योगदान देता है।
  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस)
    • यह विशाल खरीद अकुशलता को बढ़ावा देती है और बाजार की गतिशीलता को बाधित करती है।
  • निर्भरता: 248 मिलियन लोगों को गरीबी से बाहर निकालने के दावों के बावजूद, मुफ्त वितरण पर निरंतर निर्भरता आर्थिक निर्भरता को संबोधित करने में प्रणालीगत मुद्दों का सुझाव देती है।

आगे की राह 

  • MSP ढाँचे पर पुनर्विचार : मौजूदा न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) ढाँचे में MSP को कानूनी बनाकर नहीं, बल्कि कृषि उत्पादों, उर्वरकों और बिजली जैसे इनपुट के मूल्य निर्धारण में अक्षमताओं को दूर करके महत्त्वपूर्ण सुधार की आवश्यकता है।
  • मूल्य निर्धारण सुधार : निर्गत (चावल और गेहूँ) तथा प्रमुख आगत (उर्वरक और बिजली) दोनों के लिए बाजार संचालित मूल्य निर्धारण की अनुमति देना।
  • भूमि बाजार सुधार : भूमि उपयोग में दक्षता बढ़ाने के लिए भूमि पट्टे बाजार खोलें और नियामक नियंत्रण कम करें।
  • सब्सिडी तंत्र में सुधार : भारत की डिजिटल खाद्य प्रणाली सब्सिडी तंत्र में सुधार करने का अवसर प्रदान करती है, जिससे लाभार्थियों के लिए अधिक कुशल और लक्षित समर्थन सुनिश्चित होता है।
  • प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण : आर्थिक आवश्यकता के आधार पर लक्षित लाभार्थियों के लिए प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण लागू करें।
    • अत्यंत गरीब: बड़ी सब्सिडी प्राप्त करते हैं। 
    • गरीबी रेखा से ऊपर: कम सहायता प्राप्त करते हैं।
  • इनपुट सब्सिडी सुधार : समग्र इनपुट सब्सिडी सहायता प्रति हेक्टेयर के आधार पर वितरित की जानी चाहिए, जिससे निष्पक्षता और दक्षता सुनिश्चित हो सके।
  • बाजार-संचालित मूल्य निर्धारण : विकृतियों को समाप्त करने के लिए खाद्य और कृषि इनपुट जैसे-  उर्वरक और बिजली के मूल्य निर्धारण को मुक्त करें। 
  • दक्षता लाभ का उपयोग : सब्सिडी सुधारों से बचत को पुनर्निर्देशित करें:
    • कृषि अनुसंधान एवं विकास तथा विस्तार;
    • शिक्षा एवं कौशल विकास;
    • सिंचाई एवं जल प्रबंधन;
    • भौतिक अवसंरचना: सड़कें और ग्रामीण बाजार।

निष्कर्ष 

स्पष्ट है कि 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, भारत को प्रतिस्पर्धी लोक-लुभावनवाद की तुलना में सतत और प्रभावशाली कृषि सुधारों को प्राथमिकता देनी होगी।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

भारत में कृषि सुधार 1965 की MSP व्यवस्था से लेकर वर्तमान जटिल चुनौतियों तक विकसित हुए हैं। पर्यावरण संबंधी चिंताओं को संबोधित तथा सतत कृषि को बढ़ावा देते हुए कल्याणकारी उपायों के साथ बाजार अर्थशास्त्र को संतुलित करना, विकसित भारत 2047 को प्राप्त करने के लिए कैसे महत्त्वपूर्ण है,  आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए | साथ ही उपयुक्त नीतिगत उपाय भी सुझाइए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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