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स्वच्छ ऊर्जा की आवश्यकता और नवीन तकनीक: भारतीय खनिज प्रशासन

Lokesh Pal July 18, 2025 05:00 16 0

संदर्भ:

भारत की वृद्धि और विकास उसके खनिज संसाधनों पर अधिक निर्भर है। जैसे-जैसे राष्ट्र स्वच्छ ऊर्जा और नई तकनीकी प्रगति की दिशा में आगे बढ़ रहा है, ऐसे में खनिज प्रशासन में सुधार, स्थायी कार्यप्रणालियों और कुशल विनियमन को सुनिश्चित करने की तत्काल आवश्यकता है।

पृष्ठभूमि:

  • 21 जुलाई, 2025 से शुरू होने वाले संसद के आगामी मानसून सत्र में खान एवं खनिज विकास एवं विनियमन (MMDR) संशोधन विधेयक सहित आठ नए मसौदा विधेयक पेश किए जाएंगे, जो इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत है।

खनिजों का पुनर्वर्गीकरण और सामरिक महत्व:

  • 20 फरवरी, 2025 को एक महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णय में, खान मंत्रालय ने कई लघु खनिजोंको प्रमुख खनिजों‘ के रूप में पुनर्वर्गीकृत किया।
    • इनमें बेराइट्स, फेल्सपार, अभ्रक और क्वार्ट्ज़ शामिल हैं।
  • यह पुनर्वर्गीकरण महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये खनिज उभरती प्रौद्योगिकियों, हरित ऊर्जा की ओर नवीकरणीय ऊर्जा परिवर्तन, अंतरिक्ष यान उद्योग और स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण हैं।
  • सरकार का यह रणनीतिक कदम राष्ट्रीय महत्वपूर्ण खनिज मिशन के अनुरूप है, जिसका उद्देश्य भारत के स्वच्छ ऊर्जा और तकनीकी भविष्य के लिए महत्वपूर्ण और रणनीतिक खनिज संसाधनों को सुरक्षित करना, आत्मनिर्भरता बढ़ाना और अंतर्राष्ट्रीय निर्भरता को कम करना है।

प्रमुख और लघु खनिजों का अवलोकन:

  • लघु खनिज: खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम 1957 के तहत परिभाषित किए गए हैं। लघु खनिजों में पारंपरिक रूप से भवन निर्माण पत्थर, बजरी, साधारण मिट्टी और साधारण रेत शामिल हैं।
    • प्रायः ऐसा माना जाता है कि उनका महत्व कम है या वे प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं
    • क्वारी ओनर्स एसोसिएशन बनाम बिहार राज्य (2000) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह वर्गीकरण उनकी मात्रा या उपलब्धता के बजाय उनके अंतिम उपयोग और स्थानीय महत्व पर आधारित है।
  • प्रमुख खनिज: ये राष्ट्रीय और सामरिक महत्व के खनिज होते हैं। उदाहरण के लिए; कोयला, लौह अयस्क और बॉक्साइट।
    • यह वर्गीकरण मुख्यतः प्रशासनिक सुविधा के लिए किया गया है।
    • केंद्र सरकार प्रमुख खनिजों का विनियमन और संबंधित प्रावधानों का प्रबंधन करती है, जबकि राज्य सरकारें लघु खनिजों के विनियमन और प्रबंधन के लिए उत्तरदायी हैं। वर्तमान समय में, लगभग 31 खनिजों को लघु खनिजों के रूप में अधिसूचित किया गया है, जिनमें जिप्सम, अभ्रक, क्वार्ट्ज, मिट्टी-आधारित खनिज और रेत शामिल हैं।

लघु खनिजों की स्थानीय अर्थव्यवस्था में भूमिका:

  • अपने ‘मामूली’ पदनाम के बावजूद, ये खनिज भारत के बुनियादी ढांचे, विनिर्माण और स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • इन्हें आमतौर पर छोटे से मध्यम पैमाने पर विभिन्न स्रोतों जैसे नदी तल, बाढ़ के मैदान, पहाड़ियों, तटीय क्षेत्रों, रेगिस्तानों और खुली खदानों से निकाला जाता है।

लघु खनिजों के प्रमुख उपयोग:

  • क्वार्ट्ज और सिलिका रेत जैसे सिलिका युक्त खनिज: कांच निर्माण और इलेक्ट्रॉनिक्स में व्यापक रूप से उपयोग किए जाते हैं।
  • रेत: कंक्रीट, मोर्टार और डामर का एक महत्वपूर्ण घटक, जो इमारतों, सड़कों और अन्य बुनियादी ढांचे जैसे निर्माण कार्यों के लिए आवश्यक है।
  • फेल्डस्पार, अभ्रक और काओलिन: मुख्य रूप से सिरेमिक, पेंट और रबर उद्योग में उपयोग किया जाता है।
  • चूना पत्थर व्युत्पन्न (कैल्साइट, जिप्सम, चूना कंकर): रासायनिक प्रसंस्करण और निर्माण (जैसे, सीमेंट उत्पादन) के लिए यह अति आवश्यक है।
  • बेराइट्स (अब एक प्रमुख खनिज): मुख्य रूप से तेल और गैस ड्रिलिंग में उपयोग किया जाता है।
    • बेराइट्स जैसे खनिजों का पुनर्वर्गीकरण औद्योगिक और तकनीकी प्रगति के लिए उनके बढ़ते महत्व को दर्शाता है।

खनिज प्रशासन में चुनौतियाँ और चिंताएँ:

  • पर्यावरणीय क्षरण:
    • भूजल में कमी और जल गुणवत्ता संबंधी समस्याएँ: नदी तल से अत्यधिक रेत खनन के कारण रेत की मात्रा में कमी आती है, जिससे जल का रिसाव रुक जाता है और भूजल स्तर गिर जाता है। इससे जल की गुणवत्ता पर भी असर पड़ता है।
    • प्रदूषण: खनन गतिविधियां प्रसंस्करण के दौरान अशुद्धियों के डंपिंग और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक अतिरिक्त सामग्रियों के निष्कर्षण के कारण आस-पास के क्षेत्रों में प्रदूषण को बढ़ाने में योगदान करती हैं।
    • जलीय पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव: नदियों से रेत और बजरी का लगातार निष्कर्षण जलीय जीवन को गंभीर रूप से प्रभावित करता है, जिससे गंगा नदी डॉल्फिन और घड़ियाल जैसी प्रजातियों की आबादी में गिरावट आ रही है।
    • भूमि क्षरण और मृदा उर्वरता की हानि: भू-सतह का अत्यधिक दोहन व खनन गतिविधियों से भूमि का क्षरण होता है, जबकि सतही खनन (जैसे मिट्टी का खनन) उपजाऊ ऊपरी मृदा को हटा देता है, जिसके परिणामस्वरूप दीर्घावधि में भूमि क्षरण और मृदा उर्वरता की हानि होती है।
  • विनियामक और प्रवर्तन चूक:
    • अवैज्ञानिकता और अवैध खनन: अनेक नियमों और न्यायिक निगरानी के बावजूद, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, पंजाब, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में अवैध और अवैज्ञानिक खनन जारी है, जिससे पर्यावरण के लिए खतरा और अनावश्यक अपशिष्ट भन्डारण की समस्या उत्पन्न हो र् ही है।
    • अनुमोदनों की अनदेखी: खनन कार्य प्रायः अनिवार्य पर्यावरणीय मंजूरी और खनन योजनाओं सहित उचित अनुमोदन प्राप्त किए बिना ही निष्कर्षण संबंधी गतिविधियों में संलग्न हो जाते हैं।
    • कानून-व्यवस्था की समस्याएँ: अवैध खनन ने कानून-व्यवस्था के समक्ष गंभीर समस्या पैदा कर दी है, जिसके कारण कानून प्रवर्तन एजेंसियों और रेत माफियाओं के बीच हिंसक झड़पें हो रही हैं। इन गतिविधियों पर अंकुश लगाने का प्रयास करने वाले कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और अधिकारियों को धमकियों और हमलों का सामना करना पड़ता है, यहाँ तक कि अपनी जान जोखिम में डालनी पड़ती है।
    • राजनीतिक और नौकरशाही इच्छाशक्ति का अभाव: एक महत्वपूर्ण चुनौती राजनेताओं, नौकरशाहों और आपराधिक तत्वों के बीच गठजोड़ है, जो जनता के विश्वास से समझौता करता है और कानूनों के प्रभावी प्रवर्तन में बाधा डालता है।

संवैधानिक ढांचा और न्यायिक हस्तक्षेप:

  • भारतीय संविधान राज्य सरकारों (सूची II, राज्य सूची के अंतर्गत) और केंद्र सरकार (सूची I, संघ सूची के अंतर्गत) दोनों को खानों और खनिजों पर कानून बनाने की शक्ति प्रदान करता है
  • केंद्र सरकार ने खनन क्षेत्र को विनियमित करने, खनिजों को वर्गीकृत करने तथा खनन पट्टों और रॉयल्टी संग्रह के लिए रूपरेखा स्थापित करने के लिए खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 लागू किया है।
  • खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 की धारा 15 विशेष रूप से राज्य सरकारों को लघु खनिजों के लिए नियम बनाने का अधिकार देती है, जिसमें पट्टे देना, परमिट जारी करना और किराया और रॉयल्टी एकत्र करना शामिल है।
  • सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालयों और राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) जैसे न्यायिक निकायों ने लघु खनिज खनन को विनियमित करने में, विशेष रूप से पर्यावरणीय मंजूरी को अनिवार्य बनाकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
    • दीपक कुमार बनाम हरियाणा राज्य (2012) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने सभी खनन कार्यों के लिए पर्यावरणीय मंजूरी अनिवार्य कर दी थी, यहां तक कि पांच हेक्टेयर से कम क्षेत्र के लिए भी, तथा पर्यावरणीय मंजूरी से पहले अनिवार्य खनन योजना की आवश्यकता पर बल दिया था।
    • हालांकि, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MOEFCC) की वर्ष 2013 की अधिसूचना में पांच हेक्टेयर से कम पट्टा क्षेत्र वाली नदी रेत खनन परियोजनाओं को पर्यावरणीय मंजूरी से छूट दी गई थी।
    • NGT ने हिम्मत सिंह शेखावत बनाम राजस्थान राज्य (2014) मामले में इस अधिसूचना को अमान्य कर दिया तथा सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों की पुष्टि की।
    • इसी प्रकार, सतेंद्र पांडे बनाम भारत संघ (2018) मामले में, NGT ने वर्ष 2016 की एक अधिसूचना को रद्द कर दिया था। इस मामले में 25 हेक्टेयर से कम क्षेत्रफल वाले लघु खनिज खनन के लिए पर्यावरणीय मंज़ूरी प्रक्रिया को सार्वजनिक परामर्श और पर्यावरणीय प्रभाव आकलन से छूट देकर उसे कमज़ोर कर दिया गया था। ये निर्णय खनन परियोजनाओं में उचित प्रक्रिया और सार्वजनिक परामर्श के महत्वपूर्ण महत्व को रेखांकित करते हैं।

आगे की राह:

  • मजबूत राजनीतिक और नौकरशाही इच्छाशक्ति: अवैध खनन से निपटने और पर्यावरण कानूनों को बनाए रखने के लिए राजनीतिक हस्तियों और नौकरशाहों की ओर से निर्णायक कार्रवाई की तत्काल आवश्यकता है।
  • सार्वजनिक विश्वास के सिद्धांत को कायम रखना: राज्य सरकारों को खनिज संसाधनों के ट्रस्टी के रूप में कार्य करना चाहिए, तथा यह सुनिश्चित करना चाहिए कि खनन पट्टे निजी लाभ के बजाय व्यापक सार्वजनिक हित में काम करें।
  • सख्त कानून प्रवर्तन: अवैध निकासी पर अंकुश लगाने और अवैध गतिविधियों को उजागर करने वालों की सुरक्षा के लिए मौजूदा कानूनों का कठोरता से प्रवर्तन अत्यंत महत्वपूर्ण है।
  • टिकाऊ प्रथाओं और विकल्पों को बढ़ावा देना: टिकाऊ निर्माण प्रथाओं को प्रोत्साहित करना और प्राकृतिक संसाधन निष्कर्षण के लिए व्यवहार्य विकल्प विकसित करने की नितांत आवश्यकता है। उदाहरण के लिए; निर्मित रेत (M-sand) और फ्लाई ऐश ईंटें, प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव को काफी कम कर सकती हैं।
  • व्यापक मॉडल विनियामक ढांचा: सभी राज्यों के लिए एक सुसंगत, पारदर्शी और व्यापक मॉडल विनियामक ढांचा विकसित करना आवश्यक है।
    • इस ढांचे में पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों को विकासात्मक लक्ष्यों के साथ एकीकृत किया जाना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि इसके माध्यम से अधिकतम आबादी को लाभ मिल सके।

निष्कर्ष:

मजबूत नीतियों, सख्त प्रवर्तन और टिकाऊ प्रथाओं के माध्यम से इन चुनौतियों का समाधान करके, भारत यह सुनिश्चित कर सकता है कि उसके खनिज संसाधन आने वाली पीढ़ियों के लिए पर्यावरण को संरक्षित करते हुए, स्वच्छ ऊर्जा और तकनीकी भविष्य में प्रभावी रूप से योगदान दे सके।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: लघु खनिज भारत के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, फिर भी उनके प्रबंधन के समक्ष गंभीर चुनौतियाँ हैं। इस संदर्भ में, भारत के विकास में लघु खनिजों के महत्व का परीक्षण कीजिए। उनके अन्वेषण से जुड़ी चुनौतियाँ क्या हैं? सतत लघु खनिज प्रबंधन के लिए एक सुदृढ़ व नियामक ढाँचा सुझाइए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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