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सिविल सेवा भर्ती परीक्षाओं में तकनीकी सुधार की आवश्यकता

Lokesh Pal October 14, 2025 05:00 110 0

संदर्भ:

एक मजबूत और पारदर्शी भर्ती प्रणाली न केवल एक आवश्यकता है, बल्कि अपने देश की सेवा करने के इच्छुक प्रत्येक नागरिक का मूल अधिकार है।

पृष्ठभूमि:

  • संस्थागत पारदर्शिता में कमी: पारदर्शिता तथा संस्थाओं पर भरोसा किसी भी समाज के कार्य करने की नींव है तथा किसी देश की वास्तविक उपलब्धि उसके नागरिकों का उन संस्थाओं पर यकीन है, जो उसे संचालित करते हैं।
  • लोक सेवा आयोगों (पीएससी) का उद्देश्य: सरकारी भर्ती में निष्पक्षता, योग्यता और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए केंद्रीय तथा राज्य दोनों स्तरों पर लोक सेवा आयोग (पीएससी) बनाए गए थे।
  • PSC की सत्यनिष्ठा तथा ईमानदारी सुनिश्चित करने संबंधी चुनौतियाँ: हालाँकि पिछले कुछ वर्षों में खासकर राज्य-स्तरीय आयोगों में बार-बार होने वाले भर्ती घोटालों, गड़बड़ियों, भ्रष्टाचार, पेपर लीक और हेरफेर के कारण इन मूल्यों की कठोर परीक्षा हुई है।

प्रणालीगत विफलताओं के उदाहरण:

  • UPSC: पूजा खेडकर (फर्जी दिव्यांगता और OBC सर्टिफिकेट का प्रयोग) जैसे मामले संस्थागत समस्याओं और कमियों को सामने लाते हैं।
  • बिहार पुलिस परीक्षा, 2023: मुद्दों में पेपर लीक और प्रॉक्सी का उपयोग शामिल था
  • पंजाब PPSC-2021: प्रणालीगत असफलताएँ सामने आई, जहाँ शामिल लोगों ने रिश्वत लेकर पेपर लीक किए।
  • उत्तर प्रदेश RO ARO और पुलिस कांस्टेबल परीक्षा: बड़े पैमाने पर विरोध और सरकारी दबाव के कारण पेपर लीक के कारण परीक्षाएँ रद्द कर दी गईं।
  • पश्चिम बंगाल SSC: बड़े अधिकारियों और नेताओं से जुड़ा एक न्यूज़ स्कैंडल

संकट के निहितार्थ:

  • सरकारी नौकरियों का महत्त्व: लाखों युवा भारतीयों के लिए सरकारी नौकरियाँ आर्थिक स्थिरता और सामाजिक रूप से आगे बढ़ने का सबसे भरोसेमंद मार्ग प्रदान करती हैं।
  • वंचितों के लिए आशा: पीएससी को प्रतिभाशाली और वंचित वर्ग के उम्मीदवारों के लिए अवसर के प्रकाश स्तंभ के रूप में देखा जाता है, जो आगे बढ़ने के लिए एक निष्पक्ष प्रणाली पर निर्भर करते हैं।
  • युवाओं और समाज पर प्रभाव: घोटालों ने योग्य उम्मीदवारों के करियर को बर्बाद कर दिया है और व्यापक निराशा तथा सार्वजनिक विरोध को जन्म दिया है।
  • शासन की विश्वसनीयता को ख़तरा: भर्ती प्रक्रियाओं में विश्वास की कमी, राज्य संस्थाओं में विश्वास तथा शासन के नैतिक आधार को कमज़ोर करती है।
  • राष्ट्रीय अनिवार्यता: भर्ती में विश्वसनीयता और निष्पक्षता बहाल करना भारत की समृद्धि, सामाजिक सद्भाव और लोकतांत्रिक स्थिरता के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

संकट के कारण:

  • नियुक्तियों का राजनीतिकरण: आयोगों में पदों को अक्सर योग्यता या क्षमता की बजाय राजनीतिक निष्ठा के आधार पर भरा जाता है।
  • भर्ती प्रक्रियाओं में अस्पष्टता: परीक्षा की रूपरेखा, मूल्यांकन और परिणाम प्रकाशन में पारदर्शिता का अभाव है, जिससे हेरफेर तथा भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है।
  • जवाबदेही का अभाव: कदाचार के दोषी पाए गए सदस्य प्रायः अपर्याप्त आंतरिक निगरानी प्रणालियों के कारण जाँच से बच जाते हैं।
  • तकनीकी कमियाँ: पुरानी, ​​कागज़-आधारित प्रक्रियाओं पर निर्भरता, प्रॉक्सी, प्रतिरूपण और लीक को आसान बना देती है।
  • कमज़ोर कानूनी प्रवर्तन: धीमी न्यायिक प्रक्रियाएँ और कम दंड परीक्षा संबंधी धोखाधड़ी और कदाचार को रोकने में विफल रहते हैं।

आगे की राह:

  • संस्थागत सुधार:
    • पारदर्शी नियुक्तियाँ: न्यायिक नियुक्तियों की भाँति PSC सदस्यों की नियुक्ति के लिए एक कॉलेजियम प्रणाली बनाई जानी चाहिए।
      • इस कॉलेजियम में मुख्यमंत्री, विपक्ष के नेता और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश शामिल होने चाहिए।
    • जवाबदेही और योग्यता: एक समीक्षा पैनल को आयोग के निर्णयों की निगरानी करनी चाहिए और लीक के लिए उत्तरदायित्व निर्धारित करना चाहिए।
      • परीक्षा आयोजित करने के लिए चयन योग्यता आधारित होना चाहिए, तथा यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि पेशेवर योग्यता और स्वच्छ रिकॉर्ड वाले विशेषज्ञों का चयन किया जाए।
    • पारदर्शिता में वृद्धि: मुख्य परीक्षा के उत्तरों के मूल्यांकन मानदंडों तथा साक्षात्कार के अंकों के आधार में पारदर्शिता होनी चाहिए। प्रदर्शन के आँकड़े जारी किए जाने चाहिए।
      • उत्तर कुंजियाँ शीघ्र प्रकाशित की जानी चाहिए, ताकि अभ्यर्थी अपने परिणाम देख सकें।
  • तकनीक-आधारित समाधान:
    • बायोमेट्रिक पहचान: आधार-आधारित फ़िंगरप्रिंट और आईरिस स्कैनिंग का उपयोग करके प्रॉक्सी उम्मीदवारों को परीक्षा में प्रवेश करने से रोकना।
    • एन्क्रिप्टेड डिलीवरी: परीक्षा केंद्रों के लिए विशेष प्रिंटर डिज़ाइन करें, जो पासवर्ड का उपयोग करके परीक्षा से कुछ समय पहले ही पेपर प्रिंट करें। इससे पेपर को भौतिक रूप से ले जाने से जुड़ा जोखिम समाप्त हो जाता है।
    • एआई निगरानी: ऑनलाइन परीक्षाओं में उम्मीदवारों की आँखों की गतिविधियों की निगरानी और वास्तविक समय में धोखाधड़ी का पता लगाने के लिए वार्ता संबंधी रिकॉर्ड करने के लिए एआई तकनीकी का उपयोग करें।
  • कानूनी ढाँचा:
    • केंद्रीय कानून: सार्वजनिक परीक्षा अधिनियम, 2024 (संसद द्वारा पारित, यूपीएससी, एसएससी, रेलवे, बैंकिंग पर लागू) संगठित पेपर लीक के लिए 10 वर्षों का कारावास और ₹1 करोड़ तक के जुर्माने का प्रावधान करता है।
    • राज्य कानून: राज्यों को उत्तराखंड के नकल-रोधी कानून, 2023 जैसे कठोर कानून लागू करने चाहिए, जिसमें नकल माफिया के लिए आजीवन कारावास और संपत्ति जब्ती सहित ₹10 करोड़ तक के जुर्माने का प्रावधान है।
    • फास्ट ट्रैक कोर्ट: त्वरित न्याय सुनिश्चित करने के लिए विशेष अदालतों की आवश्यकता है, जिनका लक्ष्य छह महीने से एक वर्ष के भीतर मामलों का निपटान करना है।
  • प्रशासनिक निगरानी: भर्ती प्रक्रियाओं का लेखा-जोखा रखने और सभी राज्य लोक सेवा आयोगों के लिए मानक निर्धारित करने हेतु एक राष्ट्रीय विनियामक निकाय की स्थापना की जा सकती है (या यह दायित्व यूपीएससी को दिया जा सकता है)।
  • नागरिक समाज की भूमिका: निगरानी संगठनों और नागरिक समूहों को जवाबदेही सुनिश्चित करने और आयोगों पर दबाव बनाने के लिए निगरानी प्रदान करनी चाहिए।

निष्कर्ष:

जनता का विश्वास बहाल करने और नागरिकों के निष्पक्ष अवसर के अधिकार को बनाए रखने के लिए भर्ती में ईमानदारी सुनिश्चित करना आवश्यक है। संस्थागत सुधार, नैतिक नेतृत्व और सहभागी निगरानी राष्ट्रीय प्रगति के लिए आवश्यक योग्यता-आधारित प्रणाली में विश्वास को नवीनीकृत कर सकते हैं।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

प्रश्न. राज्य लोक सेवा आयोगों में व्यापक भर्ती घोटालों ने जनता के विश्वास और योग्यता को कमजोर किया है। मूल कारणों का विश्लेषण कीजिए और भर्ती में पारदर्शिता तथा जवाबदेही बढ़ाने के लिए संस्थागत तथा प्रौद्योगिकी-संचालित सुधारों का सुझाव दीजिए।

(10 अंक, 150 शब्द)

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