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विकसित भारत@2047 विजन में पशु कल्याण को शामिल करने की आवश्यकता

Lokesh Pal October 27, 2025 05:30 27 0

सन्दर्भ:

हालाँकि भारत के कानून पशुओं को संवेदनशील प्राणी मानते हैं, लेकिन कमज़ोर प्रवर्तन के कारण उन्हें संपत्ति जैसा ही माना जाता है। विकसित भारत@2047 के लक्ष्य को साकार करने के लिए, अभिशासन को करुणा और पशु कल्याण को नैतिक राज्य नीति के मुख्य स्तंभों के रूप में शामिल करना होगा।

पशु कल्याण को एकीकृत करना – एक नैतिक और प्रशासनिक अनिवार्यता:

  • संवैधानिक नैतिकता और आचार: पशु कल्याण को एकीकृत करना संविधान की नैतिक कल्पना के अनुरूप है, जो सभी जीवित प्राणियों के प्रति करुणा, न्याय और कर्तव्य आदि पर बल देता है।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य और एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण: पशुओं के साथ मानवीय व्यवहार एक स्वस्थ सामाजिक ढांचे का समर्थन करता है, जो पशु कल्याण को मानव और पर्यावरणीय स्वास्थ्य परिणामों से जोड़ता है।
  • आर्थिक और आपूर्ति शृंखला लाभ: पशुधन, डेयरी और पोल्ट्री उद्योगों में नैतिक मानक निर्यात विश्वसनीयता में सुधार करते हैंरोग के जोखिम में कमी तथासतत विकास सुनिश्चित करते हैं
  • प्रशासनिक स्पष्टता: पशुओं पर स्पष्ट नीतिगत दृष्टिकोण नौकरशाही अस्पष्टता में कमी तथा जवाबदेह, समन्वित शासन को बढ़ावा देता है
  • सभ्यतागत मूल्य: भारत की विरासत ने सदैव अहिंसा और करुणा जैसे मूल्यों पर बल दिया है – पशु कल्याण को एकीकृत करके आधुनिक शासन में इस विरासत को शामिल किया गया है।

पशु कल्याण प्रशासन में प्रणालीगत अंतराल:

  • खंडित नीतिगत कार्यान्वयन: अंतर-सरकारी नीति के अभाव के कारण तदर्थ नगरपालिका कार्रवाई, असंगत नसबंदी और असमन्वित आपदा प्रतिक्रिया होती है।
  • विधिक-प्रशासनिक विच्छेदन: जबकि कानून पशुओं की गरिमा को बनाए रखते हैं, नीतियाँ अभी भी उन्हें चल संपत्ति के रूप में वर्गीकृत करती हैं, जिससे व्यावहारिक प्रवर्तन सीमित हो जाता है।
  • मानकों और प्रवर्तन का अभाव: सूअरों जैसी कई प्रजातियों में अधिसूचित कल्याण मानकों का अभाव है तथा पोल्ट्री और डेयरी क्षेत्रों में मौजूदा संहिताओं का खराब तरीके से पालन किया जाता है
  • सीमित संस्थागत क्षमता: नगर पालिकाओं, कृषि विभागों और पशु चिकित्सा सेवाओं में प्रायः प्रशिक्षित कर्मचारियों, वित्त पोषण और निगरानी तंत्र का अभाव होता है
  • निम्न नीतिगत प्राथमिकता: मानवीय शासन को प्रायः मानव विकास प्राथमिकताओं के मुकाबले गौण मानकर खारिज कर दिया जाता है, जिससे कार्यान्वयन में जड़ता उत्पन्न होती है।
  • डेटा और जवाबदेही में अंतराल: जिला या राज्य स्तर पर पशु कल्याण परिणामों को मापने के लिए कोई एकीकृत निगरानी प्रणाली नहीं है।

आगे की राह:

  • प्रजाति-विशिष्ट मानकों का विकास: सभी कृषि और कार्यशील पशुओं के लिए न्यूनतम कल्याण मानकों को अधिसूचित करें, तथा उन्हें सरकारी योजनाओं, सहकारी समितियों और ऋण लाइनों में पात्रता मानदंड बनाएँ।
  • मानवीय खरीद को संस्थागत बनाना: आवास, परिवहन और वध प्रक्रियाओं में मानवीय स्थितियों को शामिल करने के लिए सामान्य वित्तीय नियमों और मॉडल निविदा दस्तावेजों में संशोधन करना।
  • जिला पशु कल्याण स्कोरकार्ड निर्मित करें: पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिए प्रदर्शन संकेतकों – नसबंदी दर, सुविधा अनुपालन, चारा तैयारी और शिकायत निवारण – को ट्रैक एवं प्रकाशित करें।
  • मानवीय बुनियादी ढाँचे में निवेश: आश्रयों, पशु चिकित्सा क्लीनिक और मानवीय परिवहन प्रणालियों के आधुनिकीकरण के लिए मौजूदा वित्त पोषण चैनलों (जैसे- वित्त आयोग अनुदान, NRLM और राज्य योजनाएँ) का उपयोग करें।
  • शिक्षा और जागरूकता को सुदृढ़ करें: स्कूलों, एनसीसी और सिविल सेवा प्रशिक्षण में पशु कल्याण मॉड्यूल शुरू करें, ताकि नागरिक कौशल के रूप में करुणा विकसित की जा सके
  • शासन में पशु दृष्टिकोण को एकीकृत करना: शहरी नियोजन, कृषि, सार्वजनिक खरीद और आपदा प्रबंधन नीतियों में मानवीय मानकों को मुख्यधारा में लाना |

निष्कर्ष:

मानवीय नीति विकास का अभिन्न अंग है। शासन में पशु कल्याण को शामिल करने से संवैधानिक नैतिकता बनी रहती हैजन स्वास्थ्य सुदृढ़ होता है, साथ ही यह सुनिश्चित होता है कि विकसित भारत@2047 आर्थिक समृद्धि के साथ-साथ नैतिक प्रगति को भी प्रतिबिंबित करे।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: विकसित भारत@2047 का लक्ष्य पूर्ण करने के लिए मानव-केंद्रित विकास से आगे बढ़कर, पशुओं के प्रति करुणा, सह-अस्तित्व और नैतिक उत्तरदायित्व को भी शामिल करना चाहिए। चर्चा कीजिए, कि भारत के विकास और नीतिगत ढाँचे में पशु कल्याण को शामिल करने से पर्यावरणीय नैतिकता और सतत विकास को किस प्रकार बल मिल सकता है।

(10 अंक, 150 शब्द)

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