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सेमीकंडक्टर योजना के जीर्णोद्धार की आवश्यकता (Need to revamp semiconductor scheme)

Samsul Ansari January 25, 2024 06:03 162 0

संदर्भ

यह लेख सेमीकंडक्टर डिजाइन-लिंक्ड इंसेंटिव (Design-Linked-Incentive-DLI) योजना में अपेक्षित  सुधार और महत्त्व पर प्रकाश डालता है, क्योंकि हाल ही में सेमीकंडक्टर डिजाइन-लिंक्ड इंसेंटिव योजना के  मध्यावधि मूल्यांकन की बात कही गई है।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: डिजाइन-लिंक्ड इंसेंटिव (DLI) योजना।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: डिजाइन-लिंक्ड इंसेंटिव (DLI) योजना- आवश्यकता, चुनौतियाँ एवं आगे की राह।

डिजाइन-लिंक्ड प्रोत्साहन (DLI) योजना के बारे में

वित्तीय सहायता योजना: यह योजना सेमीकंडक्टर डिजाइन के अंतर्गत इंटीग्रेटेड सर्किट (ICs), चिपसेट, सिस्टम ऑन चिप्स (SoCs), सिस्टम और आईपी कोर(IP Cores) एवं सेमीकंडक्टर लिंक्ड डिजाइन के विकास और उनकी उपस्थिति के विभिन्न चरणों के दौरान वित्तीय प्रोत्साहन देने के साथ-साथ डिजाइन से संबंधित बुनियादी ढाँचे के लिए भी वित्तीय सहायता प्रदान करती है।

  • उद्देश्य: भारत में सेमीकंडक्टर डिजाइन से संबंधित क्षमताओं के विकास से ही स्वदेशी आईपी का व्यवस्थित रूप से विकास संभव हो सकेगाI 
    • इस प्रयास से स्थानीय प्रतिभा के उन्नयन के कारण स्वदेशी कंपनियों के निर्माण को भी समय के साथ बढ़ावा मिलेगा।
  • नोडल एजेंसी: इसके लिए उन्नत कंप्यूटिंग विकास केंद्र को नोडल एजेंसी बनाया गया है, जो MeitY के तहत संचालित एक वैज्ञानिक सोसायटी है।
  • सुधार की आवश्यकता: इस घोषणा के उपरांत से डीएलआई योजना द्वारा केवल सात स्टार्ट-अप को ही मंजूरी दी गई है, जो पाँच वर्षों में 100 स्टार्ट-अप को समर्थन देने के अपने लक्ष्य से काफी कम है।
  • यह योजना नीति निर्माताओं के लिए योजना का मूल्यांकन और सुधार करने का अवसर प्रस्तुत करती है।
  • महत्त्व: यह भारत को सेमीकंडक्टर के पॉवरहाउस के रूप में उसकी प्रतिष्ठा को नई ऊँचाई प्रदान करेगा ।
  • हालाँकि, भारत के पास सीमित संसाधन हैं इसलिए इसकी औद्योगिक नीतियों की  प्राथमिकताओं में निवेश (Investment) के कारक को सुनिश्चित करना जरूरी है।
  • भारत के 10 बिलियन डॉलर के सेमीकॉन इंडिया कार्यक्रम के मिले-जुले परिणाम देखे गए हैं।

भारत की सेमीकंडक्टर रणनीति के लक्ष्य

  • आयात पर निर्भरता में कमी लाना : विभिन्न देशों, विशेष रूप से चीन से आयात निर्भरता में कमी लाना, खासकर रणनीतिक और उभरते क्षेत्रों यथा रक्षा अनुप्रयोगों से लेकर कृत्रिम बुद्धिमत्ता के विकास से संबंधित क्षेत्रों तक में।
  • आपूर्ति शृंखला में लोच बनाने हेतु : आपूर्ति शृंखला में परिवर्तन को सुगम बनाने हेतु इस योजना को सेमीकंडक्टर वैश्विक मूल्य शृंखला (GVC) से एकीकृत करना।

  • भारत के तुलनात्मक लाभ को दोगुना करने के लिए: भारत पहले से ही प्रत्येक प्रमुख वैश्विक सेमीकंडक्टर उद्योग के व्यावसायिकों के लिए डिजाइन हाउस की भूमिका निभाता आया है और भारतीय चिप डिजाइन इंजीनियर, सेमीकंडक्टर GVC का एक अनिवार्य हिस्सा माने जाते हैं।

योजना से संबंधित मुद्दे

  • प्रोत्साहन पर सीमा: इस योजना के तहत लाभार्थियों द्वारा स्टार्ट-अप प्रोत्साहन प्राप्त करने के बाद कम-से-कम तीन वर्षों तक अपनी घरेलू स्थिति बनाए रखना अनिवार्य है और इसके लिए वे अपनी अपेक्षित पूँजी के 50% से अधिक के हिस्से को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के माध्यम से प्राप्त नहीं कर सकते।
  • सेमीकंडक्टर डिजाइन स्टार्ट-अप में उच्च लागत: देश में आईपी संबंधित और व्यावसायिक संभावनाओं के मौजूद रहने के बावजूद भारत में चिप स्टार्ट-अप के लिए वित्तीयन (Funding) संबंधी परिदृश्य अभी भी चुनौतीपूर्ण ही बना हुआ है।
  • दीर्घकालिक पहुँच पर प्रभाव: DLI योजना के तहत प्रदान किया गया अपेक्षाकृत एक छोटा-सा प्रोत्साहन (उत्पाद DLI के लिए 15 करोड़ और प्रति आवेदन Deployed linked Incentive के लिए 30 करोड़ तक की सीमा निर्धारित) स्टार्ट-अप व्यापार के लिए कोई मायने नहीं रखता क्योंकि उनके लिए दीर्घकालिक वित्तपोषण तक पहुँच मायने रखती है ।
  • कम भागीदारी: इस योजना के परिणाम काफी निराशाजनक रहे हैं और स्टार्ट-अप भागीदारी में भी कमी पाई गई है।
  • अप्रभावी नोडल एजेंसी: नोडल एजेंसी की भूमिका की प्रभावशीलता में भी कमी पाई गई है, जिससे हितों के टकराव की संभावना उत्पन्न होती है।

आगे की राह

  • इक्विटी फाइनेंसिंग: DLI लाभार्थी द्वारा स्टार्ट-अप के लिए निवेश में हुई किसी भी कमी को, विदेशी फंड के तहत इक्विटी फाइनेंसिंग द्वारा पूरा किया जा सकता है।
  • डिजाइन विकास से स्वामित्व को अलग करना: स्टार्ट-अप स्वामित्व (Ownership) को सेमीकंडक्टर डिजाइन के विकास से संबंधित क्षेत्र से अलग रखने और स्टार्ट-अप-अनुकूल निवेश से संबंधित दिशा-निर्देशों को अधिक-से-अधिक अपनाए जाने की जरूरत है। 
    • इससे उनकी वित्तीय स्थिरता को बढ़ावा देने के साथ-साथ उन्हें वैश्विक एक्सपोजर भी मिल सकेगा।
  • योजना में संशोधन: जब तक डिजाइन विकास प्रक्रिया में संलग्न इकाई भारत में पंजीकृत है, देश के भीतर चिप्स के डिजाइन और आकार की एक विस्तृत शृंखला के निर्माण के लिए डिजाइन क्षमताओं को सुविधाजनक बनाने हेतु योजना को संशोधित करने की आवश्यकता हैI
  • वित्तीय परिव्यय में वृद्धि: नीति परिवर्तन के द्वारा वित्तीय परिव्यय में  वृद्धि करना।
  • नई और प्रभावी कार्यान्वयन एजेंसी: कर्नाटक की सेमीकंडक्टर फैबलेस एक्सेलेरेटर लैब (SFAL-Semiconductor Fabless Accelerator Lab), भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सेमीकंडक्टर एसोसिएशन, ईडीए (EDA) विक्रेताओं, आईपी और परीक्षण कंपनियों के साथ विशिष्ट साझेदारी के तहत, DLI हेतु एक उपयुक्त कार्यान्वयन एजेंसी साबित हो सकती है।
  • स्वदेशी क्षमताओं को विकसित करना: दीर्घकालिक सफलता के लिए भारत में स्वदेशी क्षमताओं  को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न:  भारत की सेमीकंडक्टर डिजाइन-लिंक्ड-इंसेंटिव योजना के बारे में विस्तार से चर्चा करते हुए इसके महत्त्व को बिन्दुवार चर्चा कीजिए|

                                                                                                                                  News Source: The Hindu

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