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नये श्रम कानून और अनौपचारिक श्रमिक

Lokesh Pal December 25, 2025 05:15 40 0

संदर्भ:

नये श्रम कानून, 2019 और 2020 ने चिंताएं बढ़ा दी हैं क्योंकि ये श्रमिकों, विशेष रूप से असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के अधिकारों और कल्याण को कमज़ोर कर सकते हैं।

नये श्रम कानूनों से जुड़ी चिंताएं:

  • नये श्रम कानूनों के बारे में: 2019 और 2020 के नये श्रम कानून औद्योगिक संबंधों, मजदूरी, सामाजिक सुरक्षा, तथा व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य दशाओं से संबंधित कई श्रम कानूनों को एकीकृत करते हैं।
  • त्रिपक्षीय परामर्श का अभाव: ये कानून ‘भारतीय श्रम सम्मेलन’ (ILC) में श्रमिकों, नियोक्ताओं और सरकारी प्रतिनिधियों के बीच व्यापक परामर्श के बिना पारित किए गए थे।
  • श्रम अधिकारों के लिए खतरा: जैसे-जैसे इन कानूनों का कार्यान्वयन प्रारंभ हो रहा है, यह चिंता व्यक्त जा रही है कि विभिन्न क्षेत्रों के श्रमिकों के कठोर संघर्ष से प्राप्त श्रम अधिकार या तो संकट में हैं या समाप्त हो रहे हैं।
  • अनौपचारिक क्षेत्र का बहिष्करण: यद्यपि भारत के कुल कार्यबल का 90% हिस्सा अनौपचारिक क्षेत्र में है (जो GDP में 65% का योगदान देता है), फिर भी चार में से तीन नये कानूनों में उनकी व्यापक रूप से उपेक्षा की गई है।
  • नियामक शिथिलता: व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य दशा (OSHWC) संहिता, 1996 के ‘भवन और अन्य निर्माण श्रमिक (BOCW) अधिनियम’ को निरस्त करती है, जिससे 180 से अधिक क्षेत्र-विशिष्ट सुरक्षा प्रावधान समाप्त हो गए हैं। यह उच्च जोखिम वाले निर्माण क्षेत्र में कार्यरत लाखों लोगों के लिए एक विनियामक शून्यता पैदा करता है।
  • वेब-आधारित निरीक्षण प्रणाली: भौतिक निरीक्षण के स्थान पर वेब-आधारित निरीक्षण प्रणाली को अपनाना कार्यस्थल की सुरक्षा और न्यूनतम मजदूरी के प्रभावी प्रवर्तन को कमजोर करता है।
    • यह अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अभिसमय 81 (श्रम निरीक्षण) का उल्लंघन है, जिसकी भारत ने पुष्टि की है और जो कार्यस्थल पर सत्यापन को अनिवार्य बनाता है।
  • व्यावसायिक स्वास्थ्य संकट: असंगठित श्रमिक गंभीर स्वास्थ्य जोखिमों का सामना करते हैं—जैसे निर्माण क्षेत्र में सिलिकोसिस (Silicosis), कीटनाशकों के संपर्क के कारण कृषि श्रमिकों में कैंसर के मामले, और नमक-पैन श्रमिकों में आंखों, त्वचा और गुर्दे के पुराने रोग
  • वैश्विक मानदंडों का उल्लंघन: OSHWC संहिता व्यावसायिक रोगों की वास्तविकताओं को पहचानने में सीमित दृष्टिकोण दिखाती है, जो ILO अभिसमय 161 के विरुद्ध है। यह अभिसमय एक राष्ट्रीय व्यावसायिक स्वास्थ्य नीति की आवश्यकता पर बल देता है और प्रभावित श्रमिकों की पहचान, उपचार और पुनर्वास को अनिवार्य बनाता है।
  • सामाजिक सुरक्षा से बहिष्करण: कर्मचारी राज्य बीमा (ESI) तक अनौपचारिक श्रमिकों की पहुँच नगण्य होने के कारण, लाखों श्रमिक व्यावसायिक स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए किसी भी संस्थागत मान्यता या प्रभावी राज्य-समर्थित तंत्र से वंचित हैं।

कल्याणकारी निधि संकट:

  • सामाजिक सुरक्षा संहिता की कमियां: सामाजिक सुरक्षा संहिता में संगठित श्रमिकों को कुछ सामाजिक सुरक्षा लाभ मिलते दिखते हैं, जबकि अनौपचारिक श्रमिकों को अस्पष्ट रूप से परिभाषित कल्याणकारी योजनाएं दी गई हैं।
  • उपकर (Cess) की समाप्ति: बीड़ी, नमक, खनन और अन्य क्षेत्रों में श्रमिक कल्याण के लिए एकत्र किए जाने वाले विभिन्न उपकरों को GST सुधारों के तहत बिना किसी विकल्प के समाप्त कर दिया गया है।
  • एकल कल्याण बोर्ड: सामाजिक सुरक्षा संहिता सभी अनौपचारिक श्रमिकों के लिए एक ही कल्याण बोर्ड स्थापित करती है, जो निर्माण और गिग वर्क के अलावा अन्य क्षेत्रों की विविधता की उपेक्षा करता है।
  • केंद्रीकरण का जोखिम (Centralisation Risk): निर्माण क्षेत्र में, केंद्रीकृत ‘ई-श्रम’ (e-Shram) पंजीकरण प्रणाली केंद्र सरकार को लगभग ₹1 लाख करोड़ रूपये की संचित कल्याण निधि पर नियंत्रण करने की अनुमति दे सकती है।
  • राज्य कल्याण संरचना का क्षरण: तमिलनाडु जैसे राज्यों में, सामाजिक सुरक्षा संहिता सभी 39 क्षेत्र-विशिष्ट राज्य कल्याण बोर्डों के विघटन का खतरा पैदा करती है, जो लंबे समय से चली आ रही विकेंद्रीकृत श्रम कल्याण प्रणाली को कमजोर करती है।
  • व्यावृत्ति खंड (Saving Clauses) का अभाव: संहिता में राज्य-स्तरीय कल्याण बोर्डों या उनके द्वारा दिए जाने वाले लाभों (जैसे वृद्धावस्था पेंशन, प्रसूति सहायता और बच्चों की शिक्षा के लिए सहायता) की सुरक्षा के लिए कोई व्यावृत्ति प्रावधान (Saving provisions) नहीं हैं, जो सहकारी संघवाद पर प्रश्न खड़े करते हैं।

आगे की राह:

  • राज्य के अधिकारों की रक्षा: तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों को तब तक नियमों को अधिसूचित करने से अस्वीकार करना चाहिए जब तक कि उनके कल्याण बोर्डों की रक्षा के लिए “व्यावृत्ति खंड” (Saving Clauses) नहीं जोड़े जाते।
  • सुरक्षा नियमों की बहाली: BOCW अधिनियम के 180 सुरक्षा नियमों को केंद्रीय विनियमों में फिर से शामिल किया जाना चाहिए।
  • भौतिक निरीक्षण: ILO अभिसमय 81 का पालन करने के लिए वेब-आधारित प्रणालियों के साथ अनिवार्य भौतिक निरीक्षण का समर्थन होना चाहिए।
  • त्रिपक्षीय संवाद: सरकार को इन महत्वपूर्ण कमियों को दूर करने के लिए संबंधित संगठनों और नियोक्ताओं के साथ पुनः वार्ता प्रारंभ करनी चाहिए।

निष्कर्ष:

जैसा कि अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन और बी.आर. अंबेडकर ने बल दिया है, “श्रम कोई वस्तु नहीं है।” कार्यबल के 90% हिस्से की गरिमा और सुरक्षा से समझौता करके वास्तविक आर्थिक विकास प्राप्त नहीं किया जा सकता है।

मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न

प्रश्न: व्यावसायिक सुरक्षा और सामाजिक सुरक्षा के विशेष संदर्भ में, भारत में असंगठित क्षेत्र पर नये श्रम कानूनों के प्रभाव का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए। ये कानून श्रम कल्याण प्रशासन की संघीय संरचना को किस सीमा तक चुनौती देते हैं?

(15 अंक, 250 शब्द)

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