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संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का गैर-स्थाई सदस्य : पाकिस्तान

Lokesh Pal December 13, 2024 05:30 33 0

संदर्भ: 

1 जनवरी 2025 को, पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के निर्वाचित गैर-स्थायी सदस्य के रूप में अपना आठवां दो-वर्षीय कार्यकाल शुरू करेगा, जो एशिया महाद्वीप की तरफ से जापान का स्थान ग्रहण करेगा।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के आगामी सदस्य

  • वर्ष 2025-26 के कार्यकाल के लिए चुने गए 10 सदस्यों में से लगभग आधे इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) के देशों को अवसर दिया गया है।
  • नव निर्वाचित देश: नव निर्वाचित देशों में से डेनमार्क, ग्रीस, पाकिस्तान, पनामा और सोमालिया हैं, जो 31 दिसंबर को समाप्त होने वाले इक्वाडोर, जापान, माल्टा, मोजाम्बिक और स्विटजरलैंड का स्थान ग्रहण करेंगे।
  • मौजूदा सदस्य-देश: नए सदस्य देशों में से अल्जीरिया, गुयाना, कोरिया गणराज्य, सिएरा लियोन और स्लोवेनिया शामिल होंगे, जो वर्तमान में गैर-स्थायी सदस्य हैं।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद

  • सुरक्षा परिषद पंद्रह सदस्य देशों से बनी है, जिसमें पाँच स्थायी सदस्य (P5) चीन, फ्रांस, रूस, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका हैं। इसके दस गैर-स्थायी सदस्य हैं, जिन्हें क्षेत्रीय आधार पर महासभा द्वारा दो साल के कार्यकाल के लिए चुना जाता है।
  • पाँच स्थायी सदस्य (P5) : ये चीन, फ्रांस, रूस, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका हैं जिनके पास “वीटो पावर” है, जो सुरक्षा परिषद के किसी भी प्रस्ताव को वीटो (अस्वीकार) करने की स्थायी सदस्य की शक्ति को संदर्भित करता है।

पाकिस्तान की प्राथमिकताएं और फोकस क्षेत्र

  • अफगानिस्तान: अपने कार्यकाल के दौरान पाकिस्तान की तत्काल प्राथमिकताओं में से एक अफगानिस्तान होगा, क्योंकि पाकिस्तान वर्तमान समय में तालिबान के साथ अपने तनावपूर्ण संबंधों को सुधारना चाहता है।
    • तालिबान को मान्यता: रूस और चीन के समर्थन से, पाकिस्तान से तालिबान के राजनयिक पुनर्वास के लिए दबाव डालने की उम्मीद है।
    • चुनौती: हालांकि पाकिस्तान के लिए इसे हासिल करना आसान नहीं होगा, क्योंकि तालिबान की समावेशिता की कमी उसे मान्यता देने में बाधा बन सकती है। इस मामले में  उसे अन्य देशों से विरोध का सामना करना पड़ सकता है।
  • गाजा युद्धविराम: OIC देशों के समर्थन से, पाकिस्तान गाजा में युद्धविराम की वकालत कर सकता है और UNSC में फिलिस्तीनी मुद्दे को बचाने की कोशिश कर सकता है।
    • पाकिस्तान के लिए लाभ: हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि गाजा की वकालत करके, पाकिस्तान सहानुभूति हासिल करना चाहता है और इस्लामी देशों के बीच अपनी सॉफ्ट पावर को बढ़ाना चाहता है।
  • शांति प्रयास: पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों में महत्वपूर्ण सैन्य योगदान देने वाला देश है, और यह UNSC में अपने कार्यकाल के दौरान शांति प्रयासों को प्राथमिकता देना जारी रखेगा।
    • पाकिस्तान के लिए लाभ: शांति स्थापना के प्रति अपनी ऐतिहासिक प्रतिबद्धता को देखते हुए, पाकिस्तान अपनी छवि सुधारने और “आतंकवादी राज्य” होने की धारणा का मुकाबला करने के लिए अपने कूटनीतिक एजेंडे में इस पर जोर दे सकता है।

पाकिस्तान के यूएनएससी कार्यकाल से भारत क्या उम्मीद कर सकता है?

  • भारत विरोधी पहल: पाकिस्तान अपनी स्थिति का उपयोग भारत के विरुद्ध पहल करने के लिए कर सकता है। विशेष रूप से ओआईसी के भीतर अपने सहयोगियों के समर्थन से वह इसे साकार करने का प्रयास करेगा।

हालांकि पर्दे के पीछे अनौपचारिक बातचीत के माध्यम से द्विपक्षीय सहयोग में वृद्धि से स्वतः ही बेहतर बहुपक्षीय सहयोग, खासतौर पर संयुक्त राष्ट्र में प्राप्त नहीं हो सकता है। यहां तक ​​कि भारत के साथ घनिष्ठ संबंध रखने वाले देश, जैसे कि कुछ OIC सदस्य, संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के उन मसौदों का समर्थन करते हैं जिनमें भारत विरोधी भाषा शामिल है।


  • आतंकवाद की कहानी: यूएनएससी में पाकिस्तान का मुख्य ध्यान आतंकवाद से लड़ने पर है, उम्मीद है कि इससे उसे “आतंकवादी राज्य” का लेबल हटाने में मदद मिलेगी। वह अक्सर भारत पर आतंकवाद में शामिल होने का आरोप लगाने की कोशिश करता है, जबकि पाकिस्तान का खुद का इतिहास लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकवादी संगठनों को पनाह देने का रहा है, जिन्हें यूएनएससी संकल्प 1267 के तहत सूचीबद्ध किया गया है।
  • भारत को दोषी ठहराने का प्रयास: पाकिस्तान नियमित रूप से यूएन में “डोजियर” पेश करता है, जिसमें भारत पर पाकिस्तान के खिलाफ आतंकवाद का आरोप लगाया जाता है। यह अंतरराष्ट्रीय समुदाय में भारत विरोधी भावनाओं को जीवित रखने की एक रणनीति है।

यूएनएससी प्रतिबंधों में भारत की सफलता

2021-22 में यूएनएससी में भारत के गैर-सदस्यी कार्यकाल के दौरान, यूएनएससी संकल्प 1267 के तहत पाकिस्तानी आतंकवादी अब्दुल रहमान मक्की, लश्कर के उप नेता को सूचीबद्ध करने के लिए भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव को मंजूरी दी गई, जिसमें चीन भी शामिल था। यह भारत के लिए एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक जीत थी।


  • भारतीय हिंदुओं को आतंकवादी के रूप में सूचीबद्ध करना: पाकिस्तान ने यूएनएससी में भारतीय हिंदुओं को आतंकवादी के रूप में लेबल करने की भी कोशिश की, लेकिन उसके प्रयासों को दो बार खारिज कर दिया गया। 
    • पाकिस्तान के इन प्रयासों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को कमजोर करने की पाकिस्तान की व्यापक रणनीति के हिस्से के रूप में देखा गया। हालांकि पाकिस्तान द्वारा यूएनएससी चर्चाओं में भारत विरोधी बयानबाजी शुरू करने के अपने प्रयासों को जारी रखा गया।

कश्मीर समस्या 

  • कश्मीर मुद्दा : वर्ष 2019 में भारत द्वारा अनुच्छेद 370 निरस्त करने के बाद, पाकिस्तान ने परिषद के भीतर जम्मू और कश्मीर (J&K) पर चर्चा के लिए दबाव डाला।
    • पी5 के विचार: हालाँकि पी-5 सदस्यों ने यूएनएससी में जम्मू-कश्मीर को एक बड़ा मुद्दा बनाने में बहुत कम रुचि दिखाई है, लेकिन पाकिस्तान संभवतः इस मामले को उठाने के लिए अपनी यूएनएससी सदस्यता का उपयोग करना जारी रखेगा, खासकर इस विषय पर वह चीन के समर्थन से अपना वक्तव्य स्पष्ट करना चाहेगा।
  • पाकिस्तान के समक्ष चुनौती: जम्मू-कश्मीर में हाल ही में हुए चुनावों और एक लोकप्रिय सरकार की स्थापना के साथ, पाकिस्तान को अपने दावों के लिए महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय समर्थन हासिल करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

शक्सगाम घाटी

शक्सगाम घाटी, एक ट्रांस-काराकोरम क्षेत्र, यह रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र है जो पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) का हिस्सा है। इसे भारत-चीन युद्ध के एक साल बाद 1963 में पाकिस्तान ने चीन को सौंप दिया था।

भारत का रुख: यह भारत के क्षेत्र का हिस्सा है और भारत ने 1963 के तथाकथित चीन पाकिस्तान सीमा समझौते को कभी स्वीकार नहीं किया, जिसके माध्यम से पाकिस्तान ने अवैध रूप से इस क्षेत्र को चीन को सौंपने का प्रयास किया, और लगातार इसे अस्वीकार किया है।

इस्लामोफोबिया क्या है?

इस्लामोफोबिया मुसलमानों के प्रति भय, पूर्वाग्रह और घृणा है, जो शत्रुता और असहिष्णुता को जन्म देता है। इसमें ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह से मुसलमानों और गैर-हिंदुओं को धमकाना, परेशान करना, गाली देना और डराना शामिल हो सकता है।

इस्लामोफोबिया और पाकिस्तान की कूटनीतिक रणनीति

  • इस्लामोफोबिया का हथियार के रूप में उपयोग: पाकिस्तान ने आतंक के औचित्य के रूप में इस्लामोफोबिया को पेश करने का प्रयास किया है। पाकिस्तान ने आतंकवाद से ध्यान हटाने और हाल ही में भारत को निशाना बनाने के लिए इस्लामोफोबिया का इस्तेमाल एक उपकरण के रूप में किया है। 
    • उदाहरण के लिए: 2021 और 2023 में, संयुक्त राष्ट्र वैश्विक आतंकवाद विरोधी रणनीति (GTS) पर चर्चा के दौरान, OIC द्वारा समर्थित पाकिस्तान ने आतंकवाद के औचित्य के रूप में इस्लामोफोबिया का उपयोग करने की कोशिश की थी। 
  • भारत की प्रतिक्रिया: भारत ने इसका कड़ा विरोध किया और इस संदर्भ को चर्चाओं की श्रेणी से सफलतापूर्वक हटा दिया। 
  • भारत के UNSC कार्यकाल के बाद: हालाँकि, 2022 के अंत में भारत के UNSC छोड़ने के बाद, UAE और अन्य OIC देशों ने फरवरी 2023 में UNSC के अध्यक्षीय वक्तव्य में इस्लामोफोबिया को शामिल किया।

यूएनएससी सदस्यता का दुरुपयोग

  • सिंधु जल संधि: पाकिस्तान ने हाल ही में यूएनएससी में सिंधु जल संधि का मुद्दा उठाया, जबकि यह भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक द्वारा मध्यस्थता किया गया एक द्विपक्षीय समझौता है।
    • इस कदम को व्यापक रूप से घरेलू राजनीतिक उद्देश्यों के लिए यूएनएससी का उपयोग करने के प्रयास के रूप में देखा गया था, और यह संभावना है कि पाकिस्तान अपने कार्यकाल के दौरान ऐसे उद्देश्यों के लिए यूएनएससी का दुरुपयोग करना जारी रखेगा।
  • भारत का कार्यकाल: 2021-22 के अपने कार्यकाल के दौरान, भारत ने अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को मजबूत करने में एक मजबूत और सकारात्मक भूमिका निभाई।
  • “अररिया फॉर्मूला”: जबकि कई यूएनएससी सदस्य “अररिया फॉर्मूला” बैठकों (परिषद को दरकिनार करते हुए अनौपचारिक बैठकें) का दुरुपयोग करते हैं। जबकि भारत ने इससे परहेज किया और अपनी प्राथमिकताओं पर ध्यान केंद्रित किया। हालाँकि, पाकिस्तान भारत के समान संयम बरतेगा इसकी कोई संभावना नहीं है।

भारत और पाकिस्तान के बीच साझा हित

  • यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख मुद्दों पर भारत के साथ बहुपक्षीय सहयोग की संभावना को नजरअंदाज कर रहा है। 
  • दोनों देश अनेक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में समान हित साझा करते हैं। 
    • संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना (प्रमुख सैन्य योगदानकर्ता के रूप में)। 
    • जलवायु परिवर्तन से निपटना (क्योंकि दोनों ही गंभीर जलवायु-प्रेरित आपदाओं का सामना कर रहे हैं)। 
    • 2030 के लिए सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करना। 
    • वैश्विक दक्षिण के ऋण बोझ को रेखांकित करना। 
    • बहुपक्षीय वित्तीय संस्थानों में सुधार करना।
  • फिर भी, पाकिस्तान के मिशन द्वारा भारतीय राजनयिकों के साथ बुनियादी कार्यात्मक संपर्क को भी अक्सर हतोत्साहित किया जाता है।

निष्कर्ष 

पाकिस्तान की राजनीतिक अस्थिरता, आर्थिक संघर्ष और गलत प्राथमिकताओं ने बहुपक्षवाद के प्रति उसके समर्थन में बाधा उत्पन्न की है। हालाँकि यूएनएससी में उसका कार्यकाल भारत विरोधी बयानबाजी पर केंद्रित हो सकता है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि पाकिस्तान अन्य यूएन सदस्यों से किस तरह से प्रभावी ढंग से समर्थन प्राप्त कर पाएगा।

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न 

प्रश्न: 2021-22 के कार्यकाल के दौरान यूएनएससी के अस्थायी सदस्य के रूप में, भारत की उपलब्धियों पर विचार करें। वैश्विक बहुपक्षीय संस्थाओं में भविष्य की भागीदारी को बढ़ाने के लिए भारत द्वारा कौन से सबक सीखे जा सकते हैं? 

(10 अंक, 150 शब्द)

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