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पूर्वोत्तर भारत की विविधता और विकास में संभावना

Lokesh Pal May 26, 2025 05:15 9 0

संदर्भ:

भारत की विविधता में एकता, एक परिभाषित राष्ट्रीय शक्ति बनी हुई है – विशेष रूप से पूर्वोत्तर क्षेत्र में, जो सांस्कृतिक समृद्धि, प्राकृतिक संपदा और रणनीतिक महत्त्व के मिश्रण को दर्शाता है। हालाँकि, प्रगति के साथ-साथ चुनौतियाँ भी अभी बनी हुई हैं, जिन्हें संवेदनशीलता के साथ प्रबंधित किया जाना चाहिए।

पूर्वोत्तर भारत की विविधता और जटिलता:

  • सांस्कृतिक विविधता: यह क्षेत्र अनेक जातीय समूहों, भाषाओं और जनजातियों का घर है, जो इसे सांस्कृतिक रूप से समृद्ध बनाता है, लेकिन साथ ही संघर्ष-प्रवण भी।
  • मणिपुर संघर्ष: मणिपुर में (3 मई, 2023 से) कुकी और मैतेई समुदायों के बीच हिंसा संवेदनशील अंतर-सामुदायिक गतिशीलता को दर्शाती है।
  • भू-राजनीतिक जटिलता: क्षेत्र की जटिल भूगोल, ऐतिहासिक संदर्भ और संवेदनशील सीमाएं शासन को और अधिक जटिल बनाती हैं।

विकास पहल: बुनियादी ढाँचे और निवेश को बढ़ावा:

  • बुनियादी ढाँचे का विकास: वर्तमान केंद्र सरकार के तहत, इस क्षेत्र में बुनियादी ढाँचे में तेजी वृद्धि देखी गई है
  • प्रमुख परियोजनाएँ: इसमें सेला सुरंग (अरुणाचल प्रदेश), भूपेन हजारिका पुल (असम), 11,000 किलोमीटर राजमार्ग, नए रेलमार्ग और हवाई अड्डे शामिल हैं।
  • कनेक्टिविटी विस्तार: ब्रह्मपुत्र और बराक नदियों पर उन्नत जलमार्ग, साथ ही मोबाइल कनेक्टिविटी का विस्तार
  • ऊर्जा नेटवर्क: पूर्वोत्तर गैस ग्रिड (1,600 किमी) ऊर्जा पहुंच और औद्योगिक क्षमता में सुधार कर रहा है।
  • औद्योगिक निवेश: असम में टाटा का 27,000 करोड़ रुपये का सेमीकंडक्टर प्लांट क्षेत्र में निवेशकों के बढ़ते विश्वास का संकेत है।
  • पर्यटन वृद्धि: बेहतर बुनियादी ढाँचे, धारणा और क्षेत्र के समृद्ध हरित आवरण के कारण पर्यटन में वृद्धि हो रही है।

शांति प्रयास और सुरक्षा सुधार:

  • NSCN (IM) वार्ता: अगस्त 2015 में हस्ताक्षरित रूपरेखा समझौता तब से रुका हुआ है, जो अंतिम शांति समझौते को पूरा करने में चुनौतियों को दर्शाता है।
  • शांति समझौते: जनवरी 2020 में हुए बोडो शांति समझौते और ब्रू शरणार्थी समझौता, जातीय और शरणार्थी संबंधी संघर्षों को संबोधित करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम हैं।
  • अफस्पा वापसी: सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम को महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों से आंशिक रूप से हटा लिया गया है, जो नागरिक शासन और सामान्य स्थिति की ओर बदलाव का संकेत है।
  • निहितार्थ: ये प्रयास लंबे समय से चले आ रहे उग्रवाद को सुलझाने तथा पूर्वोत्तर में शांति और सुलह को बढ़ावा देने की सरकार की मंशा को उजागर करते हैं।

स्थाई मुद्दे और उभरते जोखिम:

  • मणिपुर में अस्थिरता: मणिपुर अस्थिर बना हुआ है, जबकि नागालैंड शांति वार्ता रुकी हुई प्रतीत होती है।
  • सीमा विवाद: अंतर-राज्यीय सीमा विवाद – जैसे असम और मिजोरम, नागालैंड के बीचअनसुलझे हैं, हालाँकि मेघालय और अरुणाचल प्रदेश के साथ आंशिक सफलता मिली है
  • जलविद्युत परियोजना विवाद: जलविद्युत परियोजनाओं (मुख्य रूप से अरुणाचल प्रदेश में ) के लिए किए जा रहे प्रयासों ने इस आपदा-प्रवण क्षेत्र में विस्थापन की आशंका और पर्यावरण संबंधी चिंताओं के कारण स्थानीय विरोध को जन्म दिया है।
  • सामाजिक तनाव: बांग्लादेशी और रोहिंग्या प्रवासियों को लेकर राजनीतिक बयानबाजी ने क्षेत्र में सामाजिक तनाव को बढ़ा दिया है

सामरिक महत्त्व: एक्ट ईस्ट नीति से संबद्ध करना:

  • सामरिक महत्त्व: पूर्वोत्तर भारत की एक्ट ईस्ट नीति के लिए आवश्यक है।
  • सफलता के कारक: इसकी सफलता के लिए आंतरिक स्थिरता और न्यायसंगत विकास की आवश्यकता होती है
  • कूटनीतिक सामंजस्य: बांग्लादेश और म्यांमार जैसे पड़ोसियों के साथ कूटनीतिक सामंजस्य बनाए रखना आवश्यक है।

निष्कर्ष:

भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र अवसर और अस्थिरता के चौराहे पर खड़ा है। विकास समावेशी, पारिस्थितिकी के प्रति संवेदनशील और संघर्ष-सचेत होना चाहिए। तभी यह क्षेत्र दक्षिण-पूर्व एशिया के प्रवेश द्वार के रूप में अपनी क्षमता को पूरा कर सकता है, साथ ही भारत की विविधता में एकता को मजबूत कर सकता है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: विश्लेषण कीजिए कि भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र आंतरिक संघर्षों, पर्यावरणीय चिंताओं और विकास आकांक्षाओं को शामिल करते हुए एक्ट ईस्ट नीति के लिए रणनीतिक प्रवेश द्वार के रूप में किस प्रकार काम कर सकता है? टिप्पणी कीजिए|

(15 अंक, 250 शब्द)

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