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भारत में पोषण संकट

Lokesh Pal March 11, 2024 05:30 165 0

संदर्भ: हाल ही में, 92 निम्न और मध्यम आय वाले देशों (LMIC) में शून्य-खाद्य बच्चों (zero-food children) की व्यापकता की गणना करने वाले एक अध्ययन में भारत को निम्न स्थान प्राप्त हुआ है।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: गरीबी और भूख से संबंधित मुद्दे

अध्ययन के बारे में: 

  • यह शोध JAMA नेटवर्क पत्रिका में प्रकाशित हुआ था और इसमें 92 LMIC देशों  में 6 से 23 महीने की उम्र के 276,379 शिशुओं को शामिल किया गया था।
  • डेटा संग्रह के तरीके: इस हेतु जनसांख्यिकीय और स्वास्थ्य सर्वेक्षण (DHS) और बहु-संकेतक क्लस्टर (MICS) सर्वेक्षण से डेटा एकत्र किये गए ।
  • अवधि: 20 मई 2010 से 27 जनवरी 2022 तक.के मध्य की अवधि I
  • भारत विशिष्ट डेटा: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के 2019-2021 डेटा का उपयोग किया गया।

भारत-विशिष्ट निष्कर्ष:

  • शून्य-प्रोटीन (zero-protein): 6-23 महीने के आयु वर्ग के 80% से अधिक बच्चों ने पूरे दिन (“शून्य-प्रोटीन”) किसी भी प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ का सेवन नहीं किया था।
  • शून्य-दूध (zero-milk): 6-23 महीने के आयु वर्ग के 10 में से छह बच्चे प्रति दिन किसी भी रूप में दूध या डेयरी (“शून्य-दूध”) उत्पाद का सेवन नहीं करते हैं।

भारत की पोषण स्थिति:

  • वैश्विक कुपोषण रैंकिंग: वैश्विक भूख सूचकांक (2022) में भारत 121 देशों में से 107वें स्थान पर है।
  • भारत में कमज़ोर बच्चों (child wasting) की दर (ऊंचाई के मुकाबले कम वज़न) 19.3% है, जो 2014 (15.1%) में दर्ज स्तरों और यहाँ तक कि 2000 (17.15%) से भी बदतर है। यह दुनिया के किसी भी देश के लिए सबसे ज्यादा है।
  • अविकसित बच्चे (stunted children): NFHS (2019-2021) के पाँचवें दौर के आँकड़ों के अनुसार, 22 राज्यों में से केवल नौ राज्यों में अविकसित बच्चों की संख्या में गिरावट देखी गई एवं 10 राज्यों में कमजोर बच्चों की संख्या में और 6 राज्यों में कम वजन वाले बच्चों की संख्या में गिरावट देखी गई।
    • आँकड़ों के अनुसार 35% बच्चे अविकसित हैं और 57% महिलाएं और 25% पुरुष एनीमिया(anaemia) से पीड़ित हैं।

भारत में पोषण सुरक्षा से जुड़ी चुनौतियाँ:

  • फसल पैटर्न और कृषि पद्धतियाँ: चावल और गेहूं की खेती से अक्सर बाजरा और दालों के उत्पादन प्रभावित होते हैं, जिससे पोषण संबंधी असुरक्षा उत्पन्न होती है ।
  • अपर्याप्त फंडिंग: भारत का सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय अभी भी इसके सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 1.3% है।
  • क्षेत्रीय असमानताएँ: हरित क्रांति के दौरान विकसित बेहतर सुविधाओं के कारण पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों को पौष्टिक भोजन तक बेहतर पहुँच प्राप्त है, जबकि झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों को सीमित संसाधनों के कारण कुपोषण की उच्च दर का सामना करना पड़ता है।
  • पर्यावरण एंटरोपैथी: निम्न स्वच्छता और साफ-सफाई के कारण एक उपनैदानिक ​​स्थिति उत्पन्न होती है, जिसे बच्चों में “पर्यावरण एंटरोपैथी”कहा जाता है, जो पोषण संबंधी ख़राब अवशोषण का कारण बनती है।

सरकार द्वारा उठाए गए कदम

  • प्रत्यक्ष लक्षित हस्तक्षेप: सरकार द्वारा प्रत्यक्ष लक्षित हस्तक्षेप के रूप में अंब्रेला इंटीग्रेटेड चाइल्ड डेवलपमेंट सर्विसेज स्कीम (ICDS) के तहत आंगनवाड़ी सेवाओं, किशोर लड़कियों के लिए योजना और प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना जैसी कई योजनाओं और कार्यक्रमों को लागू किया गया है।
  • पोषण अभियान: इसका उद्देश्य पंचायती राज संस्थानों/ग्राम संगठनों को शामिल करके देश में बच्चों (0-6 वर्ष) में बौनापन, कम वजन और एनीमिया के प्रसार को रोकना और जन्म के समय शिशु के कम वजन की व्यापकता में कमी लाना है।
  • एनीमिया मुक्त भारत (AMB) रणनीति: इसे वर्ष 2018 में बच्चों, किशोरों और प्रजनन आयु वर्ग के महिलाओं में एनीमिया के प्रसार को कम करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।
  • पोषण वाटिका: पोषण अभ्यासों में पारंपरिक ज्ञान का लाभ उठाते हुए आहार विविधता अंतराल को ख़त्म करने के लिए आंगनवाड़ी केंद्रों पर पोषण वाटिका के विकास हेतु कार्यक्रम भी शुरू किया जा चुका है।

  • सामाजिक कारक: भारतीय समाज में महिलाओं की निम्न स्थिति, बच्चों की देखभाल संबंधी  खराब प्रथाएँ, जैसे जन्म के बाद तुरंत स्तनपान शुरू न करना और बाल विवाह आदि सामाजिक कारक विभिन्न चुनौतियों के रूप में उपस्थित हैं ।
  • वितरण की राजनीति: प्रणालीगत भ्रष्टाचार, रिसाव, बहिष्करण-समावेशन त्रुटि आदि कमियां PDS को अक्षम बनाते हैं।
  • जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाएँ:  सूखा एवं बाढ़ की बारंबारता और अन्य जलवायु संबंधी घटनाओं के कारण खाद्यान की कमी का सामना करना पड़ता है।

आगे की राह:

  • सार्वभौमिक मातृत्व अधिकार और बाल देखभाल सेवाएँ: विशिष्ट स्तनपान, शिशु और छोटे बच्चे के लिये उचित आहार के साथ-साथ महिलाओं के अवैतनिक कार्य भार को पहचानते हुए उन्हें सक्षम बनाना आवश्यक है ।
  • सार्वजनिक प्रणालियों को सुदृढ़ करना: छत्तीसगढ़ में पीडीएस का कम्प्यूटरीकरण इस बात का उदाहरण है कि प्रौद्योगिकी किस प्रकार भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाते हुए सेवा वितरण में सुधार कर सकती है।
  • पोषण शिक्षा और जागरूकता: संतुलित आहार, स्वच्छता संबंधी अभ्यासों और स्तनपान आदि के महत्व के बारे में जागरूकता का प्रसार करना जरुरी है ।
  • अंतर्राष्ट्रीय अनुभव से सीख: 1980-1988 की अवधि में बाल कुपोषण को कम करने की दिशा में थाईलैंड सबसे सफल देशों में से एक रहा था एवं इस अवधि के दौरान थाईलैंड में बाल कुपोषण (कम वजन) की दर प्रभावी ढंग से 50 प्रतिशत से 25 प्रतिशत तक कम हो गई थी।

News Source: DTE

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