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भारत में मोटापे की समस्या : एक गंभीर स्वास्थ्य चिंता

Lokesh Pal March 03, 2025 05:00 11 0

जीवन को केवल पीछे की ओर देखकर ही समझा जा सकता है, लेकिन इसे आगे की ओर जीना चाहिए” – सोरेन कीर्केगार्ड

संदर्भ:

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल ही में अपने रेडियो कार्यक्रम ”मन की बात” में, विशेषकर बच्चों में मोटापे में वृद्धि की समस्या पर प्रकाश डाला।

मुख्य बिंदु: 

  • कार्रवाई का आह्वान: माननीय प्रधानमंत्री ने नागरिकों से मोटापे से निपटने और एक स्वस्थ एवं पोषण युक्त राष्ट्र के निर्माण के लिए हर महीने तेल की खपत में 10% की कमी करने का आग्रह किया।
  • जागरूकता पहल: प्रधानमंत्री ने सोशल मीडिया अभियान के माध्यम से जागरूकता विस्तार और मोटापे के विरुद्ध लड़ाई को मज़बूत करने के लिए प्रमुख नामी हस्तियों को नामित किया।

भारत में मोटापे का पैमाना:

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) परिभाषा: अधिक वजन और मोटापे को असामान्य या अत्यधिक वसा संचय के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो स्वास्थ्य संबंधी जोखिम उत्पन्न करता है।
  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण डेटा:
    • महिलाएँ: मोटापा 20.6% (NFHS-4, 2015-16) से बढ़कर 24% (NFHS-5, 2019-21) हो गया
    • पुरुष: इसी अवधि में पुरुषों में यह 18.9% से बढ़कर 22.9% हो गया।
    • शहरी बनाम ग्रामीण: शहरी क्षेत्रों में मोटापे का स्तर ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में काफी अधिक है।
  • पेट का मोटापा: कमर की परिधि के आधार पर 40% महिलाओं और 12% पुरुषों में पेट का मोटापा था।
  • बचपन का मोटापा: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण डेटा के अनुसार 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चे अधिक वजन वाले हैं, व्यापकता 2.1% (2015-16) से बढ़कर 3.4% (2019-21) हो गई है
  • अनुमानित बाल मोटापा: बाल मोटापे की अनुमानित व्यापकता 5-9 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए 10.81% और 10-19 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए 6.23% है।

मोटापे से जुड़े स्वास्थ्य संबंधी जोखिम:

  • मोटापा: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) मोटापे को खराब स्वास्थ्य और शीघ्र मृत्यु के लिए एक प्रमुख जोखिम कारक मानता है।
  • संबंधित बीमारियाँ: मोटापे के कारण होने वाली प्रमुख बीमारियाँ निम्न हैं:
    • हृदय और रक्त वाहिनी रोग (Cardiovascular disease)    
    • मधुमेह (Diabetes)
    • कई सामान्य प्रकार के कैंसर
    • ऑस्टियोआर्थराइटिस (Osteoarthritis)

भारत में बीमारियों का बोझ:

  • मधुमेह: भारत में मधुमेह रोगियों की संख्या विश्व में सर्वाधिक है, अनुमानतः यहाँ 101 मिलियन रोगी विद्यमान हैं।
  • कैंसर: रोगियों का 14.6 लाख (2022) से बढ़कर 15.7 लाख (2025) होने का अनुमान है (आईसीएमआर-राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम)।
  • हृदय रोग (सी.वी.डी.): भारत में मृत्यु और दिव्यांगता के प्रमुख कारणों में से एक। अन्य देशों की आबादी की तुलना में भारतीयों को 10 वर्ष पूर्व प्रभावित करता है।
  • गैर-संचारी रोग (Non-Communicable Diseases- NCDs): भारत में होने वाली सभी मौतों में से लगभग 60% इनके कारण होती हैं।

मोटापे का प्रभाव:

  • स्वास्थ्य प्रभाव: जीवन की प्रारंभिक अवस्था में गैर-संचारी रोगों का खतरा बढ़ जाता है तथा स्कूल में प्रदर्शन और जीवन की गुणवत्ता पर प्रभाव पड़ सकता है।
  • मनोसामाजिक परिणाम: कलंक, भेदभाव और अंधविश्वास।
  • दीर्घकालिक प्रभाव: मोटापे से ग्रस्त बच्चों में बड़े होकर मोटे होने की संभावना अधिक होती है, साथ ही आगे चलकर गैर-संचारी रोगों के विकसित होने का जोखिम भी अधिक होता है।

मोटापे के कारण:

  • अस्वास्थ्यकर आहार: अत्यधिक प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की खपत में वृद्धि, जिनमें शर्करा, अस्वास्थ्यकर वसा और परिष्कृत कार्बोहाइड्रेट अधिक होते हैं। पारंपरिक आहार को कैलोरी-युक्त, पोषक तत्त्वों से रहित खाद्य पदार्थों से बदला जा रहा है
  • शारीरिक गतिविधि में कमी, ऑफिस के काम और डिजिटल उपकरणों के कारण गतिहीन जीवनशैली भी इसमें नकारात्मक रूप से योगदान करती है। लगभग आधे भारतीय शारीरिक तौर पर पर्याप्त रूप से सक्रिय नहीं हैं (द लैंसेट ग्लोबल हेल्थ)। 
    • सुरक्षित पैदल पथ, साइकिल लेन और हरित स्थानों का अभाव बाह्य गतिविधियों को हतोत्साहित करता है।
  • चयापचयी विकारवायु प्रदूषण सूजन (inflammation) का कारण बनता है, जिससे आंत्र  संबंधी मोटापे और हृदय-चयापचय संबंधी रोगों का खतरा बढ़ जाता है।
  • पोषण संबंधी चुनौतियाँ: निम्न आय वाले परिवार विभिन्न समस्याओं के कारण कार्बोहाइड्रेट-युक्त आहार (जैसे- चावल, गेहूँ) पर निर्भर रहते हैं तथा आयरन और प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों (जैसे- फल, सब्जियाँ, दालें, डेयरी और पशु-आधारित खाद्य पदार्थ) का उपयोग कम करते हैं
  • शहरी और ग्रामीण विभाजन: वर्तमान में शहरी, मध्यम वर्ग की आबादी में यह अधिक प्रचलित है। ग्रामीण गरीबों में मोटापा बढ़ रहा है , जो जल्द ही अन्य समूहों से आगे निकल सकता है।

मोटापे से संबंधित नए दिशा-निर्देश:

  • BMI की सीमाएँ: यह वसा और माँसपेशी द्रव्यमान के मध्य अंतर तथा वसा वितरण को इंगित नहीं करता है , विशेष रूप से पेट की वसा, जो अधिक हानिकारक है। 
    • भारतीयों में आनुवांशिक रूप से पेट की चर्बी जमा होने की प्रवृत्ति होती है, जिससे चयापचयी समस्याओं (मधुमेह, स्ट्रोक और हृदय रोग से संबंधित) का खतरा बढ़ जाता है।
  • नया वर्गीकरण:
    • चरण 1: अंग विकार के बिना मोटापे में वृद्धि।
    • चरण 2: शारीरिक और आंगिक दोनों कार्य प्रभावित।
  • पेट की चर्बी: कमर की परिधि और कमर से ऊँचाई के अनुपात का उपयोग बॉडी मास इंडेक्स के साथ किया जाना चाहिए। अधिक सटीक निदान के लिए शरीर में वसा के प्रतिशत का मापन भी आवश्यक है।

बॉडी मास इंडेक्स:

  • बीएमआई किसी व्यक्ति के किलोग्राम में वजन को मीटर में उसकी ऊँचाई के वर्ग से विभाजित करके निकाला जाता है। अधिकांश वयस्कों के लिए, आदर्श बीएमआई 18.5 से 24.9 की सीमा में होता है।
  • उच्च बीएमआई: उच्च बीएमआई शरीर में अधिक मोटापे का संकेत हो सकता है।
  • मुख्य समस्या: बॉडी मास इंडेक्स उन वजन श्रेणियों की जाँच करता है, जो स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकती हैं, लेकिन यह शरीर में मोटापे या किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य का निदान नहीं करता है।

निष्कर्ष

मोटापे से लड़ने के लिए जीवनशैली में परिवर्तनजागरूकता और नीतिगत समर्थन की आवश्यकता है। सामूहिक कार्रवाई एक स्वस्थ भविष्य की कुंजी है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

जैसा कि NFHS-5 के आँकड़ों से पता चलता है, भारत में मुख्य रूप से बच्चों और वयस्कों में, मोटापे की समस्या में वृद्धि देखी जा रही है। इस प्रवृत्ति में योगदान देने वाले सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय कारकों का विश्लेषण कीजिए तथा मोटापे से निपटने के लिए एक बहुव्यापी दृष्टिकोण सुझाइए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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