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एक राष्ट्र, एक चुनाव विचार: संघवाद के विरुद्ध (One Nation, One Election Idea: Against Federalism)

Samsul Ansari January 24, 2024 03:26 179 0

संदर्भ

यह लेख एक राष्ट्र, एक चुनाव पर उच्च स्तरीय समिति के संभावित निहितार्थों पर प्रकाश डालता है, जिसे केंद्र सरकार द्वारा सितंबर 2023 में भारत के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में स्थापित किया गया था।

प्रारंभिक परीक्षा की प्रासंगिकता: एक राष्ट्र, एक चुनाव पर उच्च स्तरीय समिति।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: एक राष्ट्र, एक चुनाव- आवश्यकताएँ, चिंताएँ तथा आगे की राह।

एक राष्ट्र, एक चुनाव की आवश्यकता (ONOE)

  • उच्च व्यय से निपटान हेतु : रिपोर्ट में उल्लिखित वर्ष 2014 के आम चुनावों में सरकारी खजाने पर अनुमानित ₹3,870 करोड़ का व्यय आया था। इसके लिए यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि संसद और राज्य विधानसभाओं के एक साथ चुनाव कराए जाने से खर्च में काफी कमी आएगी।
  • सरकारी कार्यों का निर्बाध संचालन: आदर्श आचार संहिता को पाँच वर्ष के चक्र में दो बार लागू किया जाता है, जिससे सरकारी कामकाज का निर्बाध संचालन प्रभावित होता है और इसके परिणामस्वरूप गवर्नेंस डाउनटाइम(किसी अवधि के दौरान शासन की सक्रियता में कमी) की स्थिति उत्पन्न होती है।

एक राष्ट्र, एक चुनाव (ONOE) से जुड़ी चुनौतियाँ

  • संवैधानिक भाषा के विरुद्ध: भारतीय संविधान में राज्य विधानसभाओं और संघीय संसद के लिए एक विशिष्ट कार्यकाल का प्रावधान किया गया हैI इसे देखते हुए माना जा रहा है कि ONOE का अनुपालन संवैधानिक शब्दों के विरुद्ध साबित होगा।
  • सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ: एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ (1994), मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा घोषणा की गई थी कि राज्यों का अपना एक स्वतंत्र संवैधानिक अस्तित्व है और लोगों के राजनीतिक, सामाजिक, शैक्षिक तथा सांस्कृतिक जीवन में राज्यों की भी उतनी ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है जितनी संघ की है। इसलिए ONOE का अनुपालन SC द्वारा व्यक्त किए गए विचारों  का उल्लंघन माना जाएगा।
  • समानता के सिद्धांतों के संबंध में : सभी प्रासंगिक सूचनाओं के संग्रहण और सभी हितधारकों से बातचीत हेतु एक मंच के रूप में कार्य करने के लिए उच्च स्तरीय समिति द्वारा बनाई गई वेबसाइट, संघ की सभी 22 आधिकारिक भाषाओं के बजाय केवल अंग्रेजी और हिंदी में उपलब्ध है।
  • इसे अनुपालन के दौरान अपनाए गए पूर्वाग्रह, बहिष्कार और असमानता का मामला माना जाएगा।
  • चुनाव आयोग की स्वतंत्रता के संबंध में: यह एक संवैधानिक निकाय है, जिसके पास चुनावों के संबंध में स्वतंत्र निर्णय लेने की स्वायत्तता होती है लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि उच्च स्तरीय समिति द्वारा की गई इस पूरी प्रक्रिया में चुनाव आयोग की भूमिका सिर्फ एक मूकदर्शक के समान ही रही है।
  • लोकतांत्रिक मूल्यों के विरुद्ध: विपक्ष का तर्क है कि कार्यशील लोकतंत्र की सफलता के लिए चुनाव और आदर्श आचार संहिता सहित विभिन्न लोकतांत्रिक प्रक्रियाएँ आवश्यक हैं ।
  • लोगों को अपनी पसंद की सरकार चुनने के लिए स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने की कीमत एक ऐसी कीमत है, जो कभी भी अधिक नहीं हो सकती।
  • चुनाव आयोग द्वारा जारी आदर्श आचार संहिता और अन्य दिशा-निर्देश यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हैं कि मतदाताओं पर कार्यकारी प्रभाव न्यूनतम रखा जाए और चुनाव अवधि के दौरान प्रत्येक प्रतिभागी को जीत के लिए निष्पक्ष तथा समान अवसर उपलब्ध हो सके (Playing Field Level)।
  • सरकार गिरने के पश्चात् पुनः चुनाव की आवश्यकता: कई बार ऐसे अवसर आते हैं जब कोई सरकार पाँच वर्ष का पूरा कार्यकाल पूर्ण नहीं कर पाती है और ऐसे में पुनः चुनाव की स्थिति उत्पन्न हो सकती हैं।

आगे की राह :

  • भारत में संसद सर्वोच्च नहीं है I संसदीय कार्यों के द्वारा निर्दिष्ट क्षेत्रों के उल्लंघन की स्थिति में भारतीय संविधान द्वारा उच्च न्यायालयों को न्यायिक समीक्षा की व्यापक शक्तियाँ प्रदान की गई हैं।
  • भारत के बेकर बनाम कैर (Baker vs Carr) मामले में, अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय नेराजनीतिक दायरे में प्रवेशकी अवधारणा पर विचार-विमर्श किया था।
  • भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी संवैधानिक भूमिका को विवेक का प्रहरी के रूप में चित्रित किया है, जिसे भारतीय लोकतंत्र का त्वरित और उद्देश्यपूर्ण निर्धारण कहा जाएगा।

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न : भारतीय राजनीति के परिप्रेक्ष्य में एक देश-एक चुनाव की आवश्यकता के मद्देनजर इसके सकारात्मक और नकारात्मक पक्ष का विश्लेषण कीजिएI


News Source: The Hindu

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