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अति-केंद्रीयकरण से संघीय स्वास्थ्य नीति को खतरा

Lokesh Pal March 06, 2025 05:00 25 0

“विकास दर्दनाक है, बदलाव दर्दनाक है, लेकिन किसी ऐसी जगह पर फँसे रहना, जहाँ आप नहीं हैं, जितना दर्दनाक कुछ भी नहीं है।” – मैंडी हेल

संदर्भ:

डॉ. तन्वी बहल बनाम श्रेय गोयल (2025) मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय ने राज्य संचालित मेडिकल कॉलेजों में स्नातकोत्तर चिकित्सा प्रवेश में निवास-आधारित आरक्षण को रद्द कर दिया।

प्रमुख बिन्दु

  • अनुच्छेद 14 का उल्लंघन: न्यायालय ने माना कि इस प्रकार के आरक्षण प्रावधान भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 (समता का अधिकार) का उल्लंघन करते हैं।
  • समाप्ति: इस निर्णय से निवास-आधारित आरक्षण समाप्त हो गया है, जिसका उपयोग राज्य स्थानीय मेडिकल कॉलेजों में प्रशिक्षित चिकित्सकों को अपने पास रखने के लिए करते थे।
  • योग्यता: यह योग्यता को प्राथमिकता देता है, लेकिन राज्यों की सार्वजनिक स्वास्थ्य योजना आवश्यकताओं की अनदेखी करता है।
  • केंद्रीकरण: यह निर्णय चिकित्सा शिक्षा नीतियों को केंद्रीकृत करता है, जिससे सरकारी मेडिकल कॉलेजों में राज्य के निवेश को हतोत्साहित किया जा सकता है।

निर्णय के संभावित प्रभाव

  • लाभ: स्नातक प्रवेश में क्षेत्रीय और सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को मान्यता दी जाती है, लेकिन यही बात स्नातकोत्तर प्रवेश में लागू नहीं होती।
    • निवास-आधारित आरक्षण यह सुनिश्चित करता है, कि राज्य अपने संस्थानों में प्रशिक्षित चिकित्सकों को बनाए रखें, जिससे वंचित क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच संबंधी समस्याओं का समाधान करने में मदद मिलती है।
  • चिकित्सा कार्यबल: राज्य चिकित्सा शिक्षा में भारी निवेश करते हैं तथा स्नातकों से स्थानीय स्वास्थ्य देखभाल में योगदान की अपेक्षा करते हैं। निवास-आधारित कोटा राज्य के स्वास्थ्य परिदृश्य से परिचित चिकित्सकों की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करने में भी सहायता करता है।
  • विशेषज्ञों की उपलब्धताएमबीबीएस कार्यक्रमों के विपरीत, जहाँ विद्यार्थी बुनियादी चिकित्सा शिक्षा प्राप्त करते हैं, स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम विशेषज्ञों को बढ़ावा देते हैं। 
    • निवास-आधारित आरक्षण को समाप्त करने से यह प्रक्रिया बाधित होती है तथा राज्यों को अप्रत्याशित बाह्य भर्ती पर निर्भर रहना पड़ता है।
  • कमजोर प्रोत्साहन: प्रशिक्षित चिकित्सकों की उपलब्धता सुनिश्चित किए बिना, राज्य मेडिकल कॉलेजों के लिए धन का आवंटन कम कर सकते हैं। इससे बुनियादी ढाँचे में गिरावट आ सकती है और क्षेत्रीय स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएँ और भी खराब हो सकती हैं।
  • निम्न स्वायत्तता: अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS), पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (PGIMER), और जवाहरलाल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्टग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (JIPMER) ने चयन स्वायत्तता बरकरार रखी है, जिससे उन्हें अपने उद्देश्यों के साथ प्रवेश संरेखित करने की अनुमति मिलती है। 
    • सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए महत्त्वपूर्ण होने के बावजूद राज्य मेडिकल कॉलेजों में अब समान नियंत्रण का अभाव है, जिससे दीर्घकालिक स्वास्थ्य देखभाल आवश्यकताओं के लिए योजना बनाने की उनकी क्षमता सीमित हो गई है।
  • अत्यधिक केंद्रीकरण: अत्यधिक केंद्रीकरण राज्य-विशिष्ट स्वास्थ्य नीतियों को कमजोर करता है। न्यायिक निर्णय में सार्वजनिक स्वास्थ्य योजना में  राज्य मेडिकल कॉलेजों की भूमिका पर विचार किया जाना चाहिए।
    • राज्य विधानसभा और न्यायालय को यह स्वीकार करना होगा, कि चिकित्सा शिक्षा नीतियाँ सीधे तौर पर स्वास्थ्य देखभाल अवसंरचना को प्रभावित करती हैं।

चिकित्सा शिक्षा और सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंध

  • संवैधानिक परिप्रेक्ष्यअनुच्छेद 21 स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच सहित प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है। सार्वजनिक स्वास्थ्य राज्य के अधिकार क्षेत्र में आता है, जिसके लिए चिकित्सा प्रवेश में राज्य की स्वायत्तता आवश्यक है।
  • दृष्टिकोण: सरकारी मेडिकल कॉलेज सिर्फ शैक्षणिक संस्थान नहीं हैं, बल्कि राज्य स्वास्थ्य बुनियादी ढाँचे के महत्त्वपूर्ण घटक हैं
    • चिकित्सा शिक्षा को सार्वजनिक स्वास्थ्य आवश्यकताओं के साथ एकीकृत करने के लिए एक प्रणाली-आधारित दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

कठोर योग्यता आधारित प्रणाली से संबंधित मुद्दे

  • संरचनात्मक असमानताएँ: मेडिकल प्रवेश में सर्वोच्च न्यायालय का कठोर योग्यता आधारित ढाँचा भारत की प्रवेश प्रणाली में संरचनात्मक असमानताओं को नजरअंदाज करता है।
  • NEET-PG से संबंधित समस्याएँ: प्रतिशत आधारित कटऑफ प्रणाली के कारण ऐसे उदाहरण सामने आए हैं, जहाँ नकारात्मक अंक वाले अभ्यर्थी उत्तीर्ण हो जाते हैं
    • 2023 में, स्वास्थ्य मंत्रालय के निर्देशों के तहत राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) ने रिक्त सीटों को भरने के लिए NEET-PG और सुपर स्पेशियलिटी कटऑफ को शून्य कर दिया।

वर्तमान सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से संबंधित समस्याएँ

  • योग्यता के आधार पर गलत प्रयोग: यह निर्णय सार्वजनिक स्वास्थ्य आवश्यकता की वास्तविकताओं को नजरअंदाज करके योग्यता के आधार पर गलत प्रयोग करता है। यह निम्नलिखित के मध्य अंतर को प्रभावित करता है:
    • संवैधानिक व्याख्या (मौलिक अधिकारों की रक्षा)।
    • विस्तृत नीतिगत आधार (इसे विधानसभाओं और राज्यों पर छोड़ देना ही बेहतर होगा)।
  • केंद्रीकरण: चिकित्सा प्रवेश पर बढ़ता केंद्रीय नियंत्रण चिकित्सा शिक्षा में राज्य के निवेश को कमजोर कर सकता है, क्षेत्रीय स्वास्थ्य देखभाल असमानताओं को बढ़ा सकता है और स्थानीय नवाचार को हतोत्साहित करके प्रतिस्पर्धी संघवाद को नष्ट कर सकता है।

आगे की राह

  • व्यापक योग्यता अवधारणा: पूर्व के निर्णयों में इस बात पर बल दिया गया है, कि योग्यता का मूल्यांकन उसके सामाजिक संदर्भ में किया जाना चाहिए:
    • जगदीश सरन एवं अन्य बनाम भारत संघ (1982)
    • प्रदीप जैन बनाम भारत संघ (1984)
    • नील ऑरेलियो नून्स बनाम भारत संघ (2022)
    • ओम राठौड़ बनाम स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक (2024)
    • इन मामलों में इस बात पर बल दिया गया कि प्रशासनिक दक्षता केवल अमूर्त योग्यता पर आधारित नहीं होनी चाहिए, बल्कि ऐसे परिणामों पर आधारित होनी चाहिए जो सामाजिक हित को बढ़ावा दें और असमानताओं को कम करें
  • प्रमुख सिफारिशें: आर्थिक सर्वेक्षण, 2024-25 इस विचार का समर्थन करता है, कि जो उम्मीदवार अपने गृह राज्यों में रहते हैं और सेवा करते हैं, वे बेहतर स्वास्थ्य सेवा पहुँच में योगदान करते हैं। 
    • निवास-आधारित आरक्षण क्षेत्रीय असमानताओं को कम करने में तथा योग्यता की अधिक समावेशी परिभाषा को सुनिश्चित करने में मदद करता है।
  • पुनर्मूल्यांकन: सर्वोच्च न्यायालय का हालिया निर्णय प्रदीप जैन बनाम भारत संघ (1984) मामले के निर्णय के समान है, लेकिन वर्तमान स्वास्थ्य सेवा चुनौतियों के संदर्भ में पुनर्विचार की आवश्यकता है। कोविड-19 महामारी और गैर-संक्रामक रोगों के बढ़ते बोझ के चलते भारत का स्वास्थ्य सेवा परिदृश्य विकसित हुआ है, जो राज्य प्रणालियों में विशेषज्ञों को बनाए रखने के महत्त्व को उजागर करता है| 
  • सेवा-संबंधी कोटा: सीधे तौर पर समाप्त करने की बजाय, अधिवास कोटा को सार्वजनिक सेवा दायित्वों के साथ जोड़ा जा सकता है। तमिलनाडु का चिकित्सा शिक्षा मॉडल सार्वजनिक संस्थानों में अनिवार्य सेवा के साथ कोटा को एकीकृत करता है, और सुनिश्चित करता है:
    • बेहतर स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच;
    • चिकित्सा शिक्षा में राज्य निवेश पर प्रतिफल |
  • न्यायिक सिद्धांत विकास: न्यायालय की यह धारणा कि निवास-आधारित कोटा राष्ट्रीय विभाजन उत्पन्न कर करता हैगलत है। अत्यधिक केंद्रीकरण राज्यों की निम्नलिखित क्षमताओं को सीमित करके संघीय स्वास्थ्य नीति को हानि पहुँचा सकता है:
    • स्थानीय स्वास्थ्य देखभाल आवश्यकताओं के अनुरूप नीति निर्माण।
    • सतत, दीर्घकालिक चिकित्सा शिक्षा रणनीति का विकास।

निष्कर्ष

एक संतुलित दृष्टिकोण, जो सामाजिक समानता, क्षेत्रीय स्वास्थ्य देखभाल आवश्यकताओं और प्रशासनिक दक्षता पर विचार करता है, एक न्यायसंगत और प्रभावी चिकित्सा प्रवेश नीति बनाने के लिए आवश्यक है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

चिकित्सा शिक्षा में निवास-आधारित आरक्षण पर हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के आलोक में, स्वास्थ्य सेवा तक समान पहुँच और मानव संसाधन नियोजन में राज्य की स्वायत्तता के लिए इसके निहितार्थों की आलोचनात्मक जाँच कीजिए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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