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पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, 1996

Lokesh Pal March 06, 2024 05:00 95 0

संदर्भ:

हाल ही में, PESA के सुदृढीकरण के संबंध में दूसरे दो दिवसीय क्षेत्रीय सम्मेलन का आयोजन राँची एवं झारखंड में  किया गया ।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: पेसा अधिनियम, अनुसूचित क्षेत्र, पंचायती राज संस्थाएँ, 73वाँ संशोधन अधिनियम के बारे में ।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, 1996 के बारे में।

संबंधित तथ्य :

  • 73वें संवैधानिक संशोधन की प्रयोज्यता: ग्रामीण भारत में स्थानीय स्वशासन को बढ़ावा देने के लिए 73वें संवैधानिक संशोधन, 1992 को अधिनियमित किया गया था। हालाँकि, अनुच्छेद 243 (M) के तहत अनुसूचित और आदिवासी क्षेत्रों में इसका विस्तार प्रतिबंधित था
  • 1995 की भूरिया समिति की सिफारिश: इस समिति की सिफारिशों के आधार पर भारत के अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए आदिवासी स्वशासन सुनिश्चित करने हेतु पेसा अधिनियम 1996 लाया गया ।

पेसा की पृष्ठभूमि:

  • अधिनियमित: 24 दिसंबर, 1996
  • उद्देश्य: संविधान के भाग 9 के प्रावधानों को कुछ अपवादों और संशोधनों के साथ अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तारित करना।
  • नोडल मंत्रालय: पंचायती राज मंत्रालय.
  • अधिनियम के अंतर्गत राज्य: पाँचवीं अनुसूची के तहत दस राज्य-आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान और तेलंगाना।

ग्राम सभाओं को प्रदत्त शक्तियाँ और कार्य:

  • विस्थापित व्यक्तियों को भूमि अधिग्रहण, पुनःस्थापन और पुनर्वास के संबंध में अनिवार्य परामर्श का अधिकार।
  • जनजातीय समुदायों की पारंपरिक आस्था और संस्कृति का संरक्षण।
  • लघु वन उत्पादों का स्वामित्व।
  • स्थानीय विवादों का समाधान।
  •  भूमि हस्तांतरण का रोकथाम।
  • ग्रामीण बाजारों का प्रबंधन।
  • शराब के उत्पादन, आसवन और निषेध को नियंत्रित करने का अधिकार।
  • सूदखोरी पर नियंत्रण का प्रयास ।
  • अनुसूचित जनजातियों से जुड़े कोई अन्य अधिकार।

अधिनियम के प्रावधान:

  • प्रथागत कानून के साथ संरेखित करना: अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायतों के संबंध में राज्य विधायिका का  प्रथागत कानून, सामाजिक और धार्मिक प्रथाओं और सामुदायिक संसाधनों के पारंपरिक प्रबंधन प्रथाओं के साथ संरेखन आवश्यक है ।
  • अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए ग्राम सभा के माध्यम से स्वशासन का अनुपालन I
  • पंचायतों में आरक्षण: प्रत्येक पंचायत में अनुसूचित क्षेत्रों में सीटों का आरक्षण उन समुदायों की जनसंख्या के अनुपात में किया जाएगा, जिनके लिए संविधान के भाग 9 के तहत आरक्षण प्रदान करने की माँग की गई है।
    • हालाँकि, अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित सीटें, कुल सीटों की संख्या के आधे से कम नहीं होंगी ।
    • इसके अलावा, सभी स्तरों पर पंचायतों के अध्यक्षों की सभी सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित की जाएंगी।

अधिनियम का महत्व:

  • सशक्त ग्राम सभा: ग्राम सभाएँ, विकास योजनाओं को मंजूरी देने और सामाजिक क्षेत्रों से संबंधित सभी प्रमुख विकास कार्यों के नियंत्रण और प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
  • जनजातीय एकीकरण: विकेंद्रीकृत शासन का कार्यान्वयन, जनजातीय लोगों की शिकायतों के निवारण और  मुख्यधारा के साथ उनके एकीकरण के प्रति विश्वास बहाली में मदद करता है।
  • पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा : PESA, ग्राम सभाओं के माध्यम से जनजातियों को पारिस्थितिकी तंत्र के साथ उनके अंतर्निहित संबंधों को बनाए रखने के लिए सशक्त बनाता है। उदहारणस्वरुप वर्ष  2013 में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ओडिशा सरकार को ओडिशा के कालाहांडी और रायगढ़ जिले में बॉक्साइट खनन हेतु  ग्राम सभा की अनुमति प्राप्त करने का आदेश दिया गया था, जिसके कारण नियमगिरि पहाड़ियों में चल रहे खनन को रद्द कर दिया गया।
  • आदिवासी हितों और अधिकारों की रक्षा : संस्थानों और पदाधिकारियों पर नियंत्रण से आदिवासियों को पारंपरिक संस्कृति, धर्म और पहचान के साथ-साथ संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों की रक्षा करने में मदद होती है।

अधिनियम की सीमाएँ:

  • राज्यों द्वारा नियमों का निर्माण न किया जाना : छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश और ओडिशा की सरकारों द्वारा अभी तक इस संबंध में नियम नहीं बनाए गए हैं।
  • कानून को दरकिनार करने हेतु अनुचित साधनों का उपयोग: अन्य अधिनियमों के तहत होने वाले भूमि अधिग्रहण के कारण पेसा की अंतर्निहित भावना यथा आदिवासी भूमि की रक्षा और ग्राम सभाओं की सहमति आदि का उल्लंघन होता है।
    • उदहारणस्वरुप, छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में, अधिकारियों द्वारा कोयला धारक अधिनियम, 1957 का प्रयोग करके भूमि अधिग्रहण करने का निर्णय लिया गया था।
  • कानून का ख़राब किर्यान्वयन : वर्ष 2010 में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन द्वारा आंध्र प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़, झारखंड और उड़ीसा में “पेसा की स्थिति” के संबंध में किये गए एक अध्ययन के द्वारा इस अधिनियम के खराब कार्यान्वयन पर प्रकाश डाला गया था। 
    • उदाहरणस्वरुप , झारखंड के खूंटी जिले में,अधिग्रहित की गई जमीन के संबंध में संबंधित भूमि के स्वामित्व वाले 65% लोगों से इसके बारे में कोई भी विचार विमर्श नहीं किया गया था।
  • स्पष्टता की कमी, कानूनी निर्बलता, नौकरशाही की उदासीनता और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी आदि इस संबंध में कुछ अन्य चिंताएँ हैं।

आगे की राह :

  • भूरिया समिति की सिफारिशों के अनुसार अनुसूचित क्षेत्रों में नगरपालिका विस्तार (MESA) को लागू किया जाना आवश्यक है ।
  • क्षमता निर्माण: ग्राम सभाओं को कर, शुल्क या टोल लगाने और एकत्र करने हेतु  प्रशिक्षण देना और उन्हें पर्याप्त संसाधन और उतरदायित्व सौपा जाना जरुरी है ।
  • नवीन जनजातीय विकास समुदाय मॉडल: जनजातीय विकास के लिए नवीन जनजातीय विकास समुदाय मॉडल का किर्यान्वयन आवश्यक है ।
  • अन्य विनियमों के साथ पेसा का सम्मिलन : वन अधिकार अधिनियम (2006), भूमि अधिग्रहण में उचित मुआवजे और पारदर्शिता का अधिकार आदि विनियमों के साथ पेसा के सम्मिलन को सुनिश्चित करना ।

News Source: PIB

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