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स्वशासी संस्थाओं के रूप में पंचायतें

Lokesh Pal February 21, 2024 05:30 112 0

संदर्भ :

यह लेख भारत में विकेंद्रीकरण, इसकी प्रभावशीलता और चुनौतियों पर प्रकाश डालता है I साथ ही यह भविष्य में आत्मनिर्भरता और विकेंद्रीकरण की दिशा में अधिक सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने हेतु किए गए प्रयासों की आवश्यकता पर जोर देता है।

प्रारंभिक परीक्षा की प्रासंगिकता: स्वशासी संस्थाएँ, 73वाँ और 74वाँ संविधान संशोधन अधिनियम और ग्राम सभाओं की भूमिका।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: स्वशासी संस्थाएँ- ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, महत्व, चुनौतियाँ और आगे की राह ।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:

  • वर्ष 1992 :भारत में करीब तीन दशक पूर्व वर्ष 1992 में 73वाँ और 74वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम लागू किया गया था,जो सत्ता के विकेंद्रीकरण से संबंधित था ।
  • वर्ष 2004 : ग्रामीण स्थानीय सरकारों को मजबूत करने के लिए वर्ष 2004 में पंचायती राज मंत्रालय का गठन किया गया था।
  • परिकल्पना: केंद्र सरकार द्वारा उठाये गए इन कदमों का उद्देश्य भारत में स्थानीय निकायों द्वारा स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं के रूप में कार्य करने की दिशा में अपनी भूमिकाओं का निर्वहन करना था ।
  • राज्य सरकार की भूमिका: विकेंद्रीकरण के प्रति राज्य सरकारों की प्रतिबद्धता पंचायती राज संस्थाओं को एक प्रभावी स्थानीय शासन तंत्र बनाने में महत्वपूर्ण रही है।
  • ग्राम सभाओं की भूमिका: इस दिशा में ग्राम सभाओं की भूमिका जमीनी स्तर पर आत्मनिर्भरता और सतत विकास को बढ़ावा देना है ।
    • ग्राम सभा कृषि और पर्यटन से लेकर छोटे स्तर के उद्योगों के द्वारा राजस्व-सृजन हेतु किये जाने वाले विभिन्न पहलों के लिये योजना के निर्माण, निर्णय लेने और उनके कार्यान्वयन आदि में संलग्न होती है ।
    • ग्राम सभा को स्थानीय विकास परियोजनाओं, सार्वजनिक सेवाओं और सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों के लिए धन की व्यवस्था हेतु कर, शुल्क और लेवी लगाने का भी अधिकार प्राप्त होता है ।
  • जमीनी स्तर पर सशक्तीकरण प्रक्रिया : पारदर्शी वित्तीय प्रबंधन और समावेशी भागीदारी के माध्यम से स्थानीय निकायों द्वारा जवाबदेहिता सुनिश्चित होती है और सामुदायिक विश्वास को बढ़ावा मिलता है, जिससे अंततः गांवों को आर्थिक रूप से स्वतंत्रता और विभिन्न अवसर प्रदान कर सशक्त बनाया जाता है।

राजकोषीय एवं राजस्व शक्तियाँ:

  • संवैधानिक संशोधन द्वारा राजकोषीय हस्तांतरण पर विशिष्ट विवरण निर्धारित किया गया है, जिसमें स्थानीय निकायों द्वारा स्वयं के लिये राजस्व के सृजन के अधिकार संबंधी प्रावधान शामिल किये गए हैं।
  • केंद्रीय अधिनियम के तहत, विभिन्न राज्यों द्वारा पंचायती राज अधिनियमों के माध्यम से कराधान और संग्रह हेतु विभिन्न प्रावधान किए गए हैं। 
  • इन अधिनियमों के प्रावधानों के आधार पर, पंचायतों द्वारा अधिकतम सीमा तक स्वयं के राजस्व सृजन का प्रयास किया जाता है।

स्थानीय निकायों के राजस्व के अपने स्रोत (OSR) के संबंध में :

  • विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट: ग्रामीण स्थानीय निकायों के राजस्व के उनके स्रोत (OSR) के संबंध में पंचायती राज मंत्रालय द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट में, उन राज्य अधिनियमों का विस्तार से विवरण दिया गया है, जिसमें पंचायतों द्वारा एकत्र और उपयोग किया जा सकने वाले कर और गैर-कर राजस्व को शामिल किया गया है । 
  • प्रमुख OSR: संपत्ति कर, भूमि राजस्व पर उपकर, अतिरिक्त स्टांप शुल्क पर अधिभार, टोल, व्यवसाय संबंधी कर, विज्ञापन, जल और स्वच्छता एवं विभिन्न स्थानों पर प्रकाश की व्यवस्था के लिए उपयोगकर्ता शुल्क आदि ।

चुनौतियाँ :

  • कर संग्रह के माध्यम से कम आय: पंचायतें करों के माध्यम से राजस्व का केवल 1% ही सृजन कर पाती हैं और बाकी राजस्व राज्य और केंद्र से अनुदान के रूप में जुटाया जाता है।
    • स्थानीय निकायों को राजस्व का 80% केंद्र से और 15% राज्यों से आता है।
  • निर्भरता: लोगों के ‘फ्रीबी कल्चर’ (मुफ्त में प्राप्त करने की प्रवृति) के कारण स्थानीय निकायों द्वारा कर लागाये जाने की स्थिति में उनके द्वारा करों के भुगतान के संबंध में उदासीनता दर्शायी जाती है I
    • साथ ही इससे निर्वाचित प्रतिनिधियों को यह भी लगता है कि कर लगाने से उनकी लोकप्रियता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
  • स्वयं के आय सृजन में स्थानीय निकायों की विमुखता : जहाँ केंद्रीय वित्त आयोग (CFC) द्वारा अनुदान के आवंटन में हर बार वृद्धि की जा रही है, वहीं पंचायतों द्वारा स्वयं द्वारा आय सृजन (OSR) के प्रयासों में कम रुचि दिखा रहे हैं। 
    • उदाहरण: 14वें और 15वें CFC के तहत स्थानीय निकायों को क्रमशः ₹2,00,202 और ₹2,80,733 करोड़ आवंटित करते हुए इन अनुदानों में भारी वृद्धि की गई। इस वृद्धि के कारण इन निकायों की स्वयं द्वारा आय सृजन किये जाने की अपेक्षा अब इन अनुदानों पर निर्भरता में बढ़ोतरी हो गयी है I

आगे की राह :

  • शिक्षित किये जाने का प्रयास : पंचायतों को स्वशासी संस्थाओं के रूप में विकसित करने के लिए राजस्व में वृद्धि के महत्व पर निर्वाचित प्रतिनिधियों और जनता को शिक्षित किये जाने की आवश्यकता है।
  • प्रभावशीलता को बढ़ावा देना: राजस्व सृजन संबंधी प्रयासों की प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिए ग्राम सभाओं द्वारा उद्यमशीलता को बढ़ावा देने और वाह्य हितधारकों के साथ साझेदारी को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
  • स्पष्ट सीमांकन: समान साझाकरण सुनिश्चित करने के लिए संपूर्ण त्रिस्तरीय पंचायतों के लिए ORS का सीमांकन किये जाने की आवश्यकता है।
  • अनुदान पर निर्भरता में कमी लाना: केंद्र और राज्य द्वारा स्थानीय निकायों को प्राप्त होने होने वाले अनुदानों पर उनकी निर्भरता को कम करना होगा, जिससे पंचायतें सही समय में अपने राजस्व संसाधनों के द्वारा अपने कार्यों के निर्वहन में सक्षम हो सकेंगी। 
    • पंचायतों को शासन के सभी स्तरों, जिसमें राज्य और केंद्र स्तर भी शामिल हैं, पर समर्पित रूप से प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।
  • कराधान के लिए अनुकूल वातावरण के स्थापना की आवश्यकता : कर और गैर-कर राजस्व दोनों के संबंध में उचित वित्तीय नियम लागू किया जाना जरुरी है ।
  • नवोन्मेषी परियोजनाओं को लागू करना : कुछ ऐसी नवोन्मेषी परियोजनाओं का भी क्रियान्वयन किया जा सकता है, जिनसे OSR का सृजन किया जा सके, जैसे- ग्रामीण व्यापार केंद्रों द्वारा आय सृजन , नवोन्वेषी वाणिज्यिक उद्यम, नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएँ, कार्बन क्रेडिट, पर्यटन कर (जैसा भारत के मेघालय और इंडोनेशिया के बाली में देखने को मिल सकता है ) आदि के द्वारा राजस्व सृजन । 
  • चूककर्ताओं को दंडित करना: पंचायतों को OSR के संबंध में चूककर्ताओं को दंडित किये जाने की आवश्यकता है।

News Source: The Hindu

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