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भारत में निष्क्रिय इच्छामृत्यु संबंधी कानून तथा उसमें सुधार की आवश्यकता

Lokesh Pal October 07, 2025 05:15 107 0

संदर्भ: 

भारत में कठोर दिशा-निर्देशों के तहत निष्क्रिय इच्छामृत्यु कानून के तहत मान्यता प्राप्त है, जबकि चिकित्सक-सहायता प्राप्त मृत्यु की अनुमति देने वाला यूके विधेयक वैश्विक नैतिक विवादों को उजागर करता है, जो जीवन के अंत में देखभाल और चिकित्सा हस्तक्षेप पर तुलनात्मक परिप्रेक्ष्य प्रस्तुत करता है।

इच्छामृत्यु के बारे में:

  • इच्छामृत्यु को दया मृत्यु’ के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो किसी असाध्य बीमारी और असहनीय दर्द से पीड़ित रोगी को प्रदान की जाती है।
  • सक्रिय इच्छामृत्यु: सक्रिय इच्छामृत्यु तब होती है जब कोई चिकित्सक जानबूझकर किसी मरीज का जीवन समाप्त करने के लिए उसे घातक पदार्थ देता है।
    • भारत में इस प्रथा को कानूनी रूप से मान्यता नहीं दी गई है।
  • निष्क्रिय इच्छामृत्यु: निष्क्रिय इच्छामृत्यु में जीवन रक्षक उपकरणों, जैसे- वेंटिलेटर या फीडिंग ट्यूब को हटा दिया जाता है, जिससे रोगी को स्वाभाविक रूप से मरने दिया जाता है।
    • भारत में विशिष्ट परिस्थितियों में इसकी कानूनी अनुमति है।

इच्छामृत्यु के संबंध में भारत की विधिक यात्रा:

  • अरुणा शानबाग मामला, 2011: यह मामला एक नर्स से जुड़ा था, जो एक क्रूर सामूहिक बलात्कार के बाद 42 वर्षों तक स्थायी रूप से निष्क्रिय अवस्था में रही। सर्वोच्च न्यायालय ने उनके लिए निष्क्रिय इच्छामृत्यु की अनुमति देत हुए भारत में पहली बार इस अवधारणा को मान्यता दी।
    • इसमें यह प्रावधान किया गया, कि असाधारण मामलों में उच्च न्यायालय की अनुमति से जीवन रक्षक सहायता वापस ली जा सकती है।
  • कॉमन कॉज़ मामला, 2018: सर्वोच्च न्यायालय ने घोषणा की, कि सम्मान के साथ मृत्यु का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षित एक मूल अधिकार है। इस निर्णय ने औपचारिक रूप से लिविंग विल की अवधारणा को प्रस्तुत किया।
    • लिविंग विल (Living Will): यह एक मानसिक रूप से सक्षम व्यक्ति द्वारा पहले से लिखा गया दस्तावेज होता है, जिसमें कोमा या इसी तरह की स्थिति में पड़ने पर जीवन समर्थन के संबंध में उसकी इच्छा का विवरण होता है।
    • इस प्रक्रिया के लिए दो मेडिकल बोर्ड गठित करने की आवश्यकता होती है तथा लिविंग विल को न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा सत्यापित किया जाता है।
  • वर्ष 2023 अद्यतन: सर्वोच्च न्यायालय ने बाद में प्रक्रिया को आसान बनाते हुए कहा, कि न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा सत्यापन अब अनिवार्य नहीं है, नोटरी द्वारा साधारण सत्यापन पर्याप्त होगा।

कार्यान्वयन संबंधी चुनौतियाँ

  • अव्यवहारिकता: जागरूकता की कमी और जटिलता के कारण निष्क्रिय इच्छामृत्यु को क्रियान्वित करने की विधिक प्रक्रिया आम व्यक्ति के लिए अत्यधिक कठिन बनी हुई है।
  • क्रूरता: दो मेडिकल बोर्ड और न्यायिक निगरानी की आवश्यकता प्रक्रिया को लंबा बना देती है, जिससे रोगी और परिवार को अनावश्यक तनाव एवं क्रूरता का सामना करना पड़ता है।
  • डॉक्टरों की हिचकिचाहट: कठोर कानूनी प्रक्रियाओं के कारण चिकित्सकों को कानूनी कार्रवाई का भी रहता है, जिसके कारण वे औपचारिक विधिक मार्ग अपनाने की बजाय अनौपचारिक निर्णय लेते हैं (जैसे- परिवारों को वेंटिलेटर हटाने की सलाह देना)।
  • खराब बुनियादी ढाँचा: भारत का स्वास्थ्य बुनियादी ढाँचा आमतौर पर कमजोर है और उपशामक देखभाल के विकल्प अपर्याप्त हैं, जो ब्रिटेन जैसे देशों के विपरीत है।
  • अन्य जोखिम: अतिसंवेदनशील समूहों (वृद्ध या दिव्यांग) को भावनात्मक चुनौतियों का खतरा रहता है, जिससे उनका चुनने का अधिकार”, “मृत्यु के कर्तव्य” में बदल जाता है।

आगे की राह:

  • डिजिटल लिविंग विल: लिविंग विल को डिजिटल रूप से संगृहीत किया जाना चाहिए, जो बायोमेट्रिक्स या आधार का उपयोग करके सत्यापन योग्य होना चाहिए, जिससे जटिल नोटरीकरण प्रक्रियाओं की आवश्यकता समाप्त हो जाएगी।
  • आचार समिति: दो मेडिकल बोर्ड की बोझिल आवश्यकता को अस्पताल आचार समिति से प्रतिस्थापित करें।
    • इस समिति में वरिष्ठ चिकित्सक, एक उपशामक चिकित्सक और एक तटस्थ तृतीय पक्ष शामिल होना चाहिए तथा वे अंतिम निर्णय लेने हेतु उत्तरदायी होंगे।
  • स्वतंत्र लेखा परीक्षा: लोकपाल प्रणाली की बजाय, उन मामलों का समय-समय पर ऑडिट करने के लिए स्वतंत्र चिकित्सा लेखा परीक्षकों का उपयोग करें जहाँ निष्क्रिय इच्छामृत्यु का प्रयोग किया गया था, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई गलत कार्य नहीं हुआ है।
  • अनिवार्य सुरक्षा उपाय:
    • निर्णय के बाद 7 दिन की कूलिंग-ऑफ अवधि लागू की जानी चाहिए, ताकि आवश्यकता पड़ने पर निर्णय को परिवर्तित किया जा सके।
    • रोगी और परिवार के लिए उचित मनोवैज्ञानिक परामर्श।
    • इच्छामृत्यु पर आगे बढ़ने से पूर्व सभी उपलब्ध उपशामक देखभाल विकल्पों को प्राथमिकता दें और उनका उपयोग करें।
  • प्रशिक्षण और जागरूकता: चिकित्सा शिक्षा में नैतिक और विधिक घटकों सहित जीवन के अंतिम चरण की देखभाल पर प्रशिक्षण को एकीकृत किया जाना चाहिए।

निष्कर्ष

अग्रिम देखभाल योजना पर चर्चा को सामान्य बनाने के लिए जन जागरूकता और शिक्षा अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, विश्वास और समझ के बिना सर्वाधिक बेहतर उद्देश्य वाले कानून भी अपना उद्देश्य प्राप्त नहीं कर सकते।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

प्रश्न. सक्रिय और निष्क्रिय इच्छामृत्यु में क्या अंतर है? भारत में निष्क्रिय इच्छामृत्यु से संबंधित प्रमुख चिंताएँ क्या हैं? भारत के निष्क्रिय इच्छामृत्यु ढाँचे को और अधिक मानवीय एवं प्रभावी बनाने के लिए कौन-से उपाय किए जा सकते हैं, सुझाव दीजिए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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