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यूक्रेन में शांति स्थापना प्रयास तथा भारत की इसमें भूमिका

Lokesh Pal April 05, 2025 05:30 47 0

संदर्भ:

यूक्रेन संघर्ष, जो अब अपने चौथे वर्ष में प्रवेश कर रहा हैयुद्ध विराम की ओर बढ़ता हुआ प्रतीत हो रहा है, जिसे रियाद (सऊदी अरब) में मध्यस्थता से समुद्री और ऊर्जा युद्ध विराम द्वारा प्रमुखता मिल रही है। 

मुख्य बिंदु

  • कूटनीतिक प्रयास: पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की पहल और मध्यस्थता के प्रयासों की परिणति हाल ही में ’काला सागर समझौते’ (Black Sea deal) के रूप में हुई है, जिससे पता चलता है कि रूस और यूक्रेन दोनों ही युद्ध से गंभीर रूप से प्रभावित हैं

यूरोपीय प्रयास और इनकी सीमाएँ

  • यूरोपियन नेतृत्व वाला मिशन: संघर्ष की निकटता और क्षेत्रीय हित यूरोप को शांति स्थापना के लिए एक प्रमुख उम्मीदवार बनाते हैं।
    • ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टारमर और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रोन जैसे नेताओं ने यूरोपीय सेना भेजने का प्रस्ताव रखा है, जो “इच्छुक लोगों का गठबंधन” दर्शाता है।
  • रूस का विरोध: रूस किसी भी नाटो सदस्य की भागीदारी को गंभीर संघर्ष के रूप में देखता है। यूरोपीय नेतृत्व वाली सेना को नाटो ट्रोजन हॉर्स के रूप में देखा जाता है, जिसे मॉस्को द्वारा पूरी तरह से खारिज कर दिया जाएगा
  • वृद्धि का जोखिम: कतर में रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा, कि इस तरह की सेना “संघर्ष को बढ़ावा देगी” और शांति प्रयासों में बाधा उत्पन्न करेगी। यूरोपीय सैनिकों की तैनाती से विपरीत परिणाम हो सकते हैं, जिससे तनाव कम होने की बजाय नए सिरे से शत्रुता शुरू हो सकती है।
  • घरेलू प्रतिरोध: यूरोप में जनता के विचार मोटे तौर पर यूक्रेन में सैन्य तैनाती के खिलाफ है:
    • फ्रांस में बहुमत ने मैक्रोन द्वारा सेना भेजने के प्रस्ताव का विरोध किया।
    • ब्रिटेन में, युद्ध-पश्चात अस्थिर क्षेत्र में प्रवेश करने के जोखिम को लेकर संशय बना हुआ है।
  • परिचालन सीमाएँ: अमेरिकी सैन्य रसद पर यूरोपीय निर्भरता एक प्रमुख कमजोरी है। ट्रम्प की अनिश्चित विदेश नीति के तहत, नाटो के नेतृत्व वाले मिशनों के लिए अमेरिकी समर्थन की गारंटी नहीं दी जा सकती है, जिससे स्थिरता और प्रभावशीलता के बारे में संदेह उत्पन्न होता है।
  • सामरिक जोखिम: रूस-यूक्रेन सीमा पर नाटो सैनिकों की उपस्थिति, यहाँ तक ​​कि शांति स्थापना की भूमिका में भी, व्यापक टकराव का जोखिम बढ़ाती है, जिसे वैश्विक समुदाय वहन नहीं कर सकता
  • रूस की स्थिति: मास्को के लिए, नाटो की उपस्थिति को प्रत्यक्ष उकसावे के रूप में देखा जाता है, जो किसी भी शांति स्थापना के प्रयास की वैधता को कमजोर करता है और संभवतः युद्ध विराम की प्रगति को बाधित करता है

वैश्विक दक्षिण के नेतृत्व वाली शांति पहल का समर्थन करने के कारण

  • परिचालन अनुभव: अफ्रीकी संघ (एयू) ने सूडान, सोमालिया और मध्य अफ्रीकी गणराज्य में शांति स्थापना प्रयासों का नेतृत्व किया है, जिससे संघर्ष के बाद के संवेदनशील वातावरण को नियंत्रित करने की उसकी क्षमता सिद्ध हुई है।
  • ब्रिक्स और संयुक्त राष्ट्र अभियान: ब्राजील, भारत, दक्षिण अफ्रीका और इंडोनेशिया जैसे देशों के पास संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में व्यापक अनुभव है, जो कूटनीतिक संतुलन और सैन्य क्षमता दोनों को दर्शाता है
  • छोटे राष्ट्रों की क्षमताएँ: चिली जैसे राष्ट्र विशेष कौशल का योगदान करते हैं, जैसे- बारूदी सुरंगों को हटाना, जो यूक्रेन में युद्धोत्तर पुनर्निर्माण के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • विश्वसनीयता: ग्लोबल साउथ (वैश्विक राष्ट्र) के राष्ट्र रूस-यूक्रेन संघर्ष में व्यापक रूप से तटस्थ रहे हैं। यह निष्पक्षता उन्हें दोनों पक्षों द्वारा विश्वसनीय शांति अभियानों का नेतृत्व करने का नैतिक अधिकार देती है

एक सफल वैश्विक दक्षिण-नेतृत्व मिशन के लिए पूर्व शर्तें

  • कार्यान्वयन के लिए आवश्यक शर्तें: मजबूत और स्पष्ट युद्ध-विराम समझौता, सटीक रूप से वार्ता के माध्यम से सीमा रेखा का सीमांकन और संघर्षरत दोनों पक्षों से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का प्राधिकरण और सहमति।
  • वित्तीय और सैन्य सहायता: पश्चिमी वित्तपोषण, विशेष रूप से यूरोपीय संघ से, मिशन की प्रभावशीलता और परिचालन पहुँच के लिए महत्त्वपूर्ण होगा।
  • नाटो सैनिकों का बहिष्कार: तटस्थता और रूसी स्वीकृति बनाए रखने के लिए, नाटो समूह को ऑपरेशन से पूरी तरह से बाहर रखना आवश्यक है।
  • महिला शांति सैनिकों की भूमिका: भारत द्वारा लाइबेरिया में तैनात (2007) जैसी महिला कार्मिक, समुदाय में विश्वास का निर्माण करती हैं और लिंग आधारित हिंसा से निपटने में मदद करती हैं, जिससे मिशन की वैधता बढ़ती है

शांति अभियानों में भारत की भूमिका

  • भारतीय विरासत: भारत ने 50 से अधिक संयुक्त राष्ट्र मिशनों में 2,90,000 से अधिक शांति सैनिकों का योगदान दिया है, जिनमें से 5,000 से अधिक वर्तमान में 9 मिशनों में तैनात हैं। 
    • भारत सर्व-महिला पुलिस इकाई भेजने वाला पहला देश था (लाइबेरिया, 2007) और इसने 160 से अधिक सैनिकों को खो दिया है, जो संयुक्त राष्ट्र सैनिक-योगदानकर्ताओं में सबसे अधिक है
  • ऐतिहासिक मान्यता: 1992 में, संयुक्त राष्ट्र महासचिव बुट्रोस बुट्रोस-घाली यूगोस्लाविया में शांति स्थापना का नेतृत्व करने के लिए भारत को चुना, जो भारत की गुटनिरपेक्ष नीति में विश्वास को दर्शाता है।
  • दृढ़ता: रूस, पश्चिम और यूक्रेन के साथ भारत की तटस्थ कूटनीति उसे वर्तमान शांति प्रक्रिया का नेतृत्व करने के लिए एक स्वाभाविक उम्मीदवार बनाती है।
    • यह भारत के लिए अपनी रणनीतिक सावधानी त्यागकर दृढ़ कूटनीति और नेतृत्व के साथ आगे बढ़ने का एक मजबूत मुद्दा है।
  • चीन की चुनौती: मॉस्को के साथ घनिष्ठ संबंधों के बावजूद, चीन अधिक सक्रिय रहा है, उसने यूक्रेन के लिए एक विशेष दूत नियुक्त किया है तथा स्वयं को एक संभावित मध्यस्थ के रूप में प्रस्तुत किया है
    • इसके विपरीत, भारत ने अभी तक तुलनीय कूटनीतिक कदम नहीं उठाए हैं, जिससे वैश्विक शांति कूटनीति में अवसरों का अंतराल उत्पन्न हो रहा है।

आगे की राह

  • रणनीतिक अवसर यूक्रेन में संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन पूर्वी यूरोप को स्थिर करने के साधन से कहीं अधिक है। यह वैश्विक दक्षिण के लिए अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में एक विश्वसनीय शक्ति के रूप में उभरने का एक रणनीतिक अवसर है
  • संयुक्त राष्ट्र के लिए प्रासंगिकता: वैश्विक दक्षिण के नेतृत्व वाला मिशन संयुक्त राष्ट्र को अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने के अपने मूल अधिदेश की पुनः पुष्टि करने का अवसर प्रदान करता है। 
    • इससे संयुक्त राष्ट्र की विश्वसनीयता पुनर्जीवित होगी, जिस पर भू-राजनीतिक पूर्वाग्रह और निष्क्रियता के कारण प्रश्न चिह्न लगे हैं।
  • कूटनीतिक संतुलन: रूस, यूक्रेन और पश्चिम के साथ भारत के तटस्थ संबंध उसे संतुलित पहल का नेतृत्व करने के लिए बेहतर स्थिति में रखते हैं। 

निष्कर्ष

संयुक्त राष्ट्र और वैश्विक दक्षिण के नेतृत्व में यूक्रेन में शांति स्थापना अभियान वैश्विक कूटनीति को नया आकार देने का एक अनूठा अवसर प्रदान करता है। यह भारत और उसके साझेदार राष्ट्रों की अधिक संतुलित और बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था को आकार देने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका को उजागर करता है। 

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

यूक्रेन में शांति स्थापना अभियान का नेतृत्व करने में वैश्विक दक्षिण, विशेष रूप से भारत के लिए क्या चुनौतियाँ और अवसर हैं? यह पहल संघर्ष समाधान और शांति स्थापना के प्रति वैश्विक दृष्टिकोण को कैसे बदल सकती है?

(15 अंक, 250 शब्द)

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