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भारतीय न्यायालयों में लंबित मामले : न्याय वितरण प्रणाली के लिए एक बड़ी चुनौती

Lokesh Pal February 22, 2025 05:15 6 0

संदर्भ:

हालिया शोध अध्ययनों के मुताबिक, भारत में लंबित मामलों की संख्या बहुत अधिक है, लाखों मामले न्यायालयों में लंबित हैं। न्याय व्यवस्था को विश्वसनीय व सतत बनाने के लिए, न्यायिक सुधारों की ओर कदम बढ़ाने व मामलों के त्वरित समाधान की तत्काल आवश्यकता है।

भारतीय न्यायिक प्रणाली में मामलों के लंबित होने के कारण:

  • लंबित मामलों का अवलोकन :
    • सुप्रीम कोर्ट: 82,000 मामले
    • हाई कोर्ट: 62 लाख से ज़्यादा मामले
    • निचली अदालतें: लगभग 5 करोड़ मामले
    • लंबे समय से लंबित मामले: 10 साल से अधिक अवधि के लगभग 50 लाख से ज़्यादा मामले लंबित
    • न्यायाधीश व जनसंख्या अनुपात का जोखिम : प्रति दस लाख लोगों पर मात्र 21 जज या प्राधिकृत व्यक्ति का होना। 
  • प्रतिकूल व्यवस्था: लंबित अंतरिम आवेदन और अपील के कारण समाधान में देरी होना। 
  • बुनियादी ढांचे से जुड़ी समस्याएँ: अपर्याप्त कोर्ट रूम, वित्त और कर्मचारी। 
  • सतत स्थगन नीति : बार-बार स्थगन से देरी होती है। यहाँ तक कि जनता को लंबे समय तक लंबित रहने से न्याय से वंचित होना पड़ता है। विलंबित मामले प्रासंगिकता खो देते हैं, जिससे न्यायिक अक्षमता होती है।

सुधार के उपाय:

  • डेटा गवर्नेंस: यह बार-बार दर्ज होने वाले मुक़दमों से बचने और निपटान में तेज़ी लाने में मदद कर सकता है। 
  • समयबद्ध नियुक्ति: सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति करना, क्योंकि तदर्थ नियुक्तियाँ अस्थायी राहत तो देती हैं, लेकिन प्रणालीगत समाधान नहीं। 
  • लक्षित कानूनी सुधार: मकान मालिक-किराएदार विवादों और चेक बाउंस मामलों को सुव्यवस्थित करना, अतार्किक या अनावश्यक मुक़दमों को रोकने के लिए दंडात्मक लागतों की शुरुआत करना। 
  • सरकार की भूमिका: सभी अदालती मामलों में से आधे में मुख्य मुक़दमेबाज़ सरकार को अनावश्यक मुक़दमों को कम करने और समझौतों को प्राथमिकता देने की ज़रूरत।

भारत में मध्यस्थता:

  • मध्यस्तता का अर्थ : वकील के नेतृत्व में, न्यायाधीश द्वारा निर्देशित प्रक्रिया, जहाँ विवादकर्ता गोपनीय संवाद के माध्यम से एक तटस्थ मध्यस्थ के साथ जुड़कर अपने मुद्दे को हल करने का प्रयास करते हैं।
  • ऐतिहासिक दृष्टिकोण : 
    • 1990 का दशक: इस दौरान मध्यस्थता अपने प्रारंभिक चरण में थी। 
    • 2005 के बाद: न्यायालय द्वारा स्वीकृत विवाद समाधान पद्धति के रूप में प्रमुखता प्राप्त हुई।

मध्यस्थता की मुख्य विशेषताएँ

  • गैर-अधिरोपण: कोई जबरन फैसला नहीं; पक्षकार परस्पर स्वीकार्य समाधान पर पहुँचते हैं। 
  • हितों पर ध्यान: व्यावहारिक और निष्पक्ष समाधान को प्रोत्साहित करता है। 
  • प्रयोज्यता: सिविल, वाणिज्यिक, व्यक्तिगत, संपत्ति, वैवाहिक और व्यापारिक विवादों में उपयोग किया जाता है।

मध्यस्थता के लाभ

  • मुकदमों का बोझ कम करना : औपचारिक न्यायालय प्रणाली के बाहर विवादों को निपटाने में मदद करता है। 
  • समाधान में तेजी लाना : लंबी मुकदमेबाजी प्रक्रियाओं से बचता है। 
  • व्यवसाय और सरकार द्वारा अपनाया जाना: वाणिज्यिक और नीतिगत विवादों में इसका उपयोग बढ़ रहा है। 
  • उत्साहजनक प्रतिक्रिया: अधिक पेशेवर मध्यस्थ के रूप में प्रशिक्षण ले रहे हैं। 
  • कम लागत: मध्यस्थता पूर्ण मुकदमेबाजी की लागत का एक अंश है। 
  • तेज़ समाधान: अधिकांश मामलों में केवल कुछ सत्रों की आवश्यकता होती है, यहाँ तक कि जटिल मामलों में भी मुकदमेबाजी की तुलना में बहुत कम समय लगता है। 
  • न्यूनतम अवसंरचना: कोई भारी प्रशासनिक बोझ या लंबी सुनवाई नहीं होती है। 
  • व्यावहारिक समाधान: समाधान थोपे जाने के बजाय परस्पर सहमति से किए जाते हैं। 
  • संबंधों की बहाली: मध्यस्थता प्रतिकूल मुकदमेबाजी के विपरीत सहयोग को बढ़ावा देती है।

आगे की राह :

  • पूर्ण व्यावसायिकरण: व्यापक स्वीकृति और संरचित पारिश्रमिक की आवश्यकता है|
  • संस्थागत समर्थन: व्यवसाय, सरकार और कानूनी निकायों को विवाद समाधान में पहले कदम के रूप में मध्यस्थता को एकीकृत करना चाहिए|
  • न्यायिक समर्थन: न्यायाधीश व्यापक रूप से मध्यस्थता को त्वरित समाधान हेतु प्रोत्साहित करते हैं|
  • न्यायिक बैकलॉग:
    • न्यायाधीशों के लिए: बैकलॉग एक भारी बोझ का प्रतिनिधित्व करता है|
    • मध्यस्थों के लिए: यह विवाद समाधान के लिए एक विशाल अप्रयुक्त अवसर है|
  • मामले की पहचान: न्यायालयों को मध्यस्थता के लिए उपयुक्त मामलों को फ़िल्टर और असाइन करना चाहिए|
  • योग्य मध्यस्थ का चयन: पक्ष या तो मध्यस्थ चुन सकते हैं या उन्हें एक प्रशिक्षित पेशेवर सौंपा जा सकता है|
  • शुल्क संरचना: मध्यस्थों के लिए एक उचित शुल्क स्थापित करना स्थिरता सुनिश्चित करता है|
  • मध्यस्थता को संस्थागत बनाना : न्यायालयों को विवाद समाधान के पहले कदम के रूप में मध्यस्थता को संस्थागत बनाना चाहिए|
  • परिप्रेक्ष्य को पुनः तैयार करना: न्यायपालिका की विफलता के बजाय बैकलॉग को मध्यस्थता पाइपलाइन के रूप में देखना|
  • निरंतर सुधार: वादियों, वकीलों और व्यवसायों के बीच व्यापक स्वीकृति को प्रोत्साहित करना।

निष्कर्ष :

अतः मध्यस्थता में पारंपरिक मुकदमेबाजी के लिए एक त्वरित, लागत-प्रभावी और रुचि-आधारित विकल्प प्रदान करके न्यायिक बैकलॉग को कम करने की महत्वपूर्ण क्षमता है। इस नीति की सफलता कानूनी और वाणिज्यिक क्षेत्रों में अधिक व्यावसायिकता, जागरूकता और संरचित अपनाने पर निर्भर करती है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न. भारतीय न्यायालयों में लंबित मामलों की बढ़ती संख्या न्याय वितरण प्रणाली के लिए एक बड़ी चुनौती है। न्यायिक देरी में योगदान देने वाले प्रमुख कारकों का विश्लेषण करें और इस मुद्दे को हल करने के लिए संस्थागत और नीतिगत उपाय सुझाएँ।

(15 अंक, 250 शब्द)

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