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पेरियार की 146वीं जयंती: मूर्तिभंजक समाज सुधारक का महत्व

Lokesh Pal September 19, 2024 05:15 4 0

संदर्भ: 

ई.वी. रामासामी, को पेरियार के नाम से भी जाना जाता है। उनकी 146वीं जयंती 17 सितंबर को मनाई गई है, इस अवसर पर उनके सामाजिक, राजनीतिक और लैंगिक सुधारों में अविश्वसनीय योगदान पर नज़र डालना ज़रूरी है। 1879 में जन्मे पेरियार को आत्मसम्मान आंदोलन के लिए याद किया जाता है, जिसका उद्देश्य तमिलों की पहचान और सम्मान को बहाल करना था। उनकी विरासत तमिलनाडु और उसके बाहर के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य को आकार दे रही है।

प्रारंभिक जीवन और राजनीतिक शुरुआत

  • कांग्रेस कार्यकर्ता के रूप में : पेरियार ने अपने गृहनगर इरोड से एक प्रमुख कांग्रेस कार्यकर्ता के रूप में अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की। हालाँकि, वैचारिक मतभेदों के कारण कांग्रेस के साथ उनका जुड़ाव, खासकर जातिगत भेदभाव के सवाल पर अल्पकालिक था। एक उल्लेखनीय घटना जिसने पेरियार और कांग्रेस के बीच विभाजन पैदा किया, वह कांग्रेस द्वारा प्रायोजित स्कूल गुरुकुलम में ब्राह्मण और गैर-ब्राह्मण छात्रों के लिए अलग-अलग भोजन व्यवस्था के मुद्दे पर महात्मा गांधी के साथ उनका मतभेद था।

गुरुकुलम में भोजन की घटना

  • एक बार चेरनमहादेवी में वी.वी.एस. अय्यर द्वारा संचालित कांग्रेस द्वारा प्रायोजित स्कूल गुरुकुलम में ब्राह्मण और गैर-ब्राह्मण छात्रों के लिए अलग-अलग भोजन व्यवस्था के मुद्दे पर पेरियार महात्मा गांधी से उलझ गए। पेरियार इस अलगाव के खिलाफ थे, उनका तर्क था कि कांग्रेस पार्टी बहुत रूढ़िवादी है और जाति-आधारित भेदभाव को संबोधित करने में धीमी है। 
  • गांधीजी का मानना था कि छात्रों को एक साथ भोजन करने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि वे अपने नैतिक सिद्धांतों द्वारा निर्देशित होते हैं। उनका मानना ​​था कि सामाजिक सुधार एक क्रमिक प्रक्रिया है। उनके दृष्टिकोण में इस अंतर ने पेरियार को निराश किया और 1925 में उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया, पार्टी पर जातिगत भेदभाव के खिलाफ उन्होंने लड़ने के बजाय इसे जारी रखने का आरोप लगाया।

ई.वी. रामास्वामी (पेरियार) का जीवन और कार्य

  • राजनीतिक स्वतंत्रता के साथ-साथ सामाजिक सुधार: यद्यपि कांग्रेस पार्टी ने ब्रिटिश शासन से भारत की स्वतंत्रता पर ध्यान केंद्रित किया परंतु पेरियार ने तर्क दिया कि हमें राजनीतिक और सामाजिक सुधारों को साथ-साथ चलना चाहिए। उन्होंने जातिगत असमानता को संबोधित करने को प्राथमिकता दी, उनका मानना ​​था कि तमिल पहचान स्वाभाविक रूप से समतावादी थी यहाँ तक कि उत्तर से आर्य आक्रमणकारियों द्वारा शुरू किए गए जातिगत विभाजन से अप्रभावित थी। पेरियार के अनुसार, सच्ची स्वतंत्रता के लिए सामाजिक न्याय आवश्यक था।
  • जस्टिस पार्टी और आत्म सम्मान आंदोलन: कांग्रेस छोड़ने के बाद, पेरियार ने खुद को जस्टिस पार्टी से जोड़ा और आत्म सम्मान आंदोलन में नेतृत्व की भूमिका निभाई। जस्टिस पार्टी ने नौकरशाही में गैर-ब्राह्मणों के लिए आरक्षण की लंबे समय से वकालत की थी। जब वह वर्ष 1921 में मद्रास प्रेसीडेंसी में सत्ता में आए, तो उन्होंने इन नीतियों को लागू करने के आदेश जारी किए।
  • वायकोम सत्याग्रह में भूमिका: पेरियार को 1924 के वायकोम सत्याग्रह के दौरान राष्ट्रीय पहचान मिली। यह एक जन आंदोलन था जिसमें मांग की गई थी कि वायकोम मंदिर के पास सार्वजनिक सड़कों तक निचली जाति के लोगों को पहुँचने की अनुमति दी जाए। आंदोलन में भाग लेने के कारण पेरियार और उनकी पत्नी को दो बार गिरफ़्तार किया गया था। उनके प्रयासों ने उन्हें वायकोम वीर (वायकोम का नायक) की उपाधि दिलाई। इस आंदोलन ने न केवल हाशिए पर पड़े समुदायों के अधिकारों के लिए पेरियार की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया, बल्कि भारत में एक अग्रणी समाज सुधारक के रूप में उनकी स्थिति को भी मजबूत किया।
  • हिंदी आध्यारोपित करने और तमिल पहचान का संकट : 1930 के दशक में, पेरियार ने तमिल आबादी पर कांग्रेस मंत्रालय द्वारा हिंदी आध्यारोपित करने का विरोध किया, इसकी तुलना आर्यकरण से की और इसे तमिल पहचान और आत्म-सम्मान पर हमला करार दिया। यही कारण है कि भाषा आज भी तमिलनाडु में एक भावनात्मक मुद्दा बना हुआ है, जिसकी जड़ें तमिल संस्कृति और स्वायत्तता को बनाए रखने के ऐतिहासिक संघर्ष में निहित हैं।
  • द्रविड़ कझगम की स्थापना: पेरियार ने तमिलनाडु से आगे बढ़कर वर्ष 1940 के दशक में, द्रविड़ कझगम (Dravidar Kazhagam /डीके) की स्थापना की, जिसने तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना के दक्षिणी राज्यों को मिलाकर एक स्वतंत्र द्रविड़ नाडु के गठन की वकालत की। हालांकि अन्य राज्यों से समर्थन की कमी के कारण यह विचार साकार नहीं हो सका। भूत कम समय में ही उनके नेतृत्व में, द्रविड़ आंदोलन एक शक्तिशाली ताकत बन गया, जिसने जातिगत भेदभाव और तमिल समाज में ब्राह्मणों के वर्चस्व को चुनौती दी। पेरियार के अनुसार, तमिल राष्ट्रीय पहचान अक्सर भारतीय राष्ट्रीय पहचान पर वरीयता रखती थी, जो कांग्रेस के दृष्टिकोण के साथ अधिक संरेखित न थी।
  • सामाजिक सुधार: पेरियार के सामाजिक सुधार का मसौदा व्यापक था, जिसमें न केवल जाति-आधारित असमानताओं को रेखांकित किया गया, बल्कि लैंगिक और सांस्कृतिक मुद्दों को भी रेखांकित किया गया।
  • लैंगिक समानता के हिमायती : उनका मानना ​​था कि महिलाओं को बच्चे पैदा करने वाली पारंपरिक भूमिकाओं तक सीमित नहीं रहना चाहिए। अतः इसके लिए उन्होंने शिक्षा और रोजगार में समान अधिकारों पर जोर दिया। आत्मसम्मान आंदोलन ने बिना किसी रीति-रिवाज के विवाह, तलाक के अधिकार और महिलाओं के लिए समान संपत्ति के अधिकार को बढ़ावा दिया जो उस समय की जटिल परिस्थितियों के लिए क्रांतिकारी विचार साबित हुआ।
  • सामाजिक समानता की पहल: उन्होंने लोगों से अपने नामों के बाद के जाति प्रत्यय को हटाने और जाति का उल्लेख न करने की अपील की। ​​उन्होंने 1930 के दशक में सार्वजनिक सम्मेलनों में दलितों द्वारा पकाए गए भोजन के साथ सह-भोज की शुरुआत की। उनके द्वारा सम्पन्न किए गए ये प्रयास क्रांतिकारी थे, क्योंकि उन्होंने सीधे तौर पर गहरी जड़ें जमा चुके रूढ़िवादी और सामाजिक मानदंडों को चुनौती दी।

निष्कर्ष 

तमिलनाडु में पेरियार का व्यापक प्रभाव है, उनके विचार सभी राजनीतिक दलों को प्रभावित करते हैं। आज भी पेरियार तमिल पहचान, भाषाई गौरव और सामाजिक समानता के प्रतीक हैं। एक ऐतिहासिक व्यक्ति से कहीं ज़्यादा, पेरियार आत्म-सम्मान, सामाजिक न्याय और तर्कवाद की विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते हैं। हाशिए पर पड़े लोगों के लिए उनके प्रयास और महिला सशक्तीकरण के प्रति उनकी प्रतिबद्धता उन्हें एक अग्रणी समाज सुधारक और द्रविड़ गौरव का एक स्थायी प्रतीक बनाती है।

 

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न 

प्रश्न: “पेरियार की विरासत राजनीतिक सीमाओं से परे है, जो आधुनिक सामाजिक सुधार आंदोलनों के एक बुनियादी स्तंभ के रूप में कार्य करती है।” समकालीन भारत में ई वी रामास्वामी नायकर के विचारों की प्रासंगिकता पर प्रकाश डालें। 

(10 अंक, 150 शब्द)

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