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भारत में जातिवाद और भ्रष्टाचार जैसी कुरीतियों से प्रभावित पुलिस प्रशासन

Lokesh Pal October 25, 2025 05:00 52 0

सन्दर्भ:

हरियाणा के दो पुलिसकर्मियों की हालिया आत्महत्याओं ने पुलिस बल के भीतर जातिगत भेदभाव और भ्रष्टाचार की बुराइयों पर चर्चा को पुनः आरंभ कर दिया है।

पृष्ठभूमि:

  • दलित आईपीएस अधिकारी वाई. पूरन कुमार और असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर संदीप कुमार ने जाति-आधारित उत्पीड़नतबादलों में पक्षपात और भ्रष्टाचार का हवाला देते हुए आत्महत्या कर ली। ये मामले आपस में जुड़े व्यवस्थागत भेदभाव और कुकृत्यों को उजागर करते हैं, जिससे मनोबल तथा संस्थागत विश्वसनीयता कमज़ोर होती है।
  • समस्याओं में वृद्धि: ये मामले यह दर्शाते हैं, कि जाति-आधारित भेदभाव और भ्रष्टाचार अलग-अलग बुराइयाँ नहीं हैं – ये अक्सर एक-दूसरे को मजबूत करते हैं, तथा शासन संस्थाओं के मनोबल और विश्वसनीयता को हानि पहुँचाते हैं।

जातिवाद और भ्रष्टाचार के बीच गठजोड़:

  • परिचालन तंत्र: भारत में पुलिस, जाति और कानून पर शोध से पता चलता है, कि स्टेशन हाउस ऑफिसर (SHO) जैसी पोस्टिंग प्रायः जातिगत समीकरणों पर निर्भर करती है।
    • वरिष्ठ अधिकारी (संरक्षक) अपनी ही जाति के सगे-संबंधियों को उच्च पदों पर नियुक्त करते हैं।
    • बदले में ये भ्रष्टाचार से प्राप्त धन को अपने संरक्षकों के साथ साझा करते हैं।
  • पारस्परिक सुदृढ़ीकरण: जाति विश्वास का आधार प्रदान करती है जो भ्रष्टाचार को संभव बनाती है, भ्रष्टाचार पुनः जातिगत निष्ठा को वैध बनाता है, जिससे एक स्व-स्थायी चक्र निर्मित होता है।
  • समाज का प्रतिबिम्ब: नागरिकों के बीच देखे जाने वाले जातिगत संघर्ष,जैसे- जाट-दलित या मराठा-दलित प्रतिद्वंद्विता – अनिवार्य रूप से पुलिस बल में भी प्रवेश कर जाते हैं, जिससे पता चलता है कि पुलिस अधिकारियों को सामाजिक दोष रेखाओं से पूरी तरह से अलग नहीं कर सकती।

पदोन्नति में आरक्षण:

  • संवैधानिक प्रावधान: 77वें संविधान संशोधन (1995) द्वारा सम्मिलित अनुच्छेद 16(4A) राज्य को अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिए पदोन्नति में आरक्षण प्रदान करने का अधिकार देता है, जहाँ सेवाओं में उनका प्रतिनिधित्व अपर्याप्त है
  • मूल भावना: आरक्षण ऐतिहासिक अन्याय की नैतिक स्वीकृति थी – एक क्षमा याचना -जिसका उद्देश्य निष्पक्ष प्रवेश सुनिश्चित करना था, न कि तीव्र पदानुक्रमिक उत्थान।
  • अनुशासन पर प्रभाव: जब आरक्षित पदोन्नति के माध्यम से कनिष्ठ वरिष्ठों से आगे निकल जाते हैं, तो इससे असंतोष उत्पन्न होता है, जिससे पुलिस सेवाओं में महत्वपूर्ण कमान शृंखला और आपसी सम्मान का क्षरण होता है।
  • न्यायिक सुरक्षा: एम. नागराज (2006) और जरनैल सिंह (2018) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने माना, कि राज्यों को ऐसी पदोन्नति नीतियों को कम प्रतिनिधित्व के मात्रात्मक साक्ष्य के साथ उचित ठहराना चाहिए, जिससे योग्यता और समानता संतुलित बनी रहे।

सुधार संबंधी चुनौतियाँ:

  • धन सहित अन्य लाभ: आज, धन सहित अन्य लाभ सरकारी विभागों में कार्रवाई के प्रमुख चालक हैं।
  • भ्रष्टाचार का जारी रहना: भ्रष्टाचार से निपटने के राजनीतिक वादों के बावजूद, यह उन जगहों पर जारी है जहाँ नागरिक सीधे तौर पर पुलिस स्टेशन, तहसील और यातायात पुलिस जैसे तंत्र से संपर्क करते हैं।
  • लोकलुभावनवाद नागरिकों का ध्यान भटकाता है: नागरिकों को प्रायः मुफ्त उपहारों के “खिलौने” द्वारा चुप करा दिया जाता है या प्रणालीगत मुद्दों से उनका ध्यान भटका दिया जाता है।
    • यह लोकलुभावनवाद, जिसमें वोट हासिल करने के लिए खुलेआम धन वितरित करना शामिल है, अंततः देश को हानि पहुँचाता है।

आगे की राह:

  • योग्यता-केंद्रित नेतृत्व: भर्ती और पदोन्नति में योग्यता को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। नेताओं को जूलियो रिबेरो जैसे उदाहरणों का अनुकरण करना चाहिए, जिन्होंने अधिकारियों का चयन केवल उनकी योग्यता के आधार पर किया था – उदाहरण के लिए, वाई.सी. पवार एक दलित अधिकारी जिन्होंने मुंबई अंडरवर्ल्ड का खात्मा किया और एक अन्य युवा आईपीएस अधिकारी जिन्होंने सशस्त्र शाखा को पुनर्जीवित किया।
    • इससे यह पता चलता है कि जाति नहीं, बल्कि व्यावसायिकता संस्थाओं को मजबूत बनाती है।
  • संतुलित आरक्षण नीति: एम. नागराज और जरनैल सिंह के अनुसार, अल्प-प्रतिनिधित्व के मात्रात्मक प्रमाण के बाद ही पदोन्नति कोटा लागू करें।
    • मनोबल और अनुशासन को बनाए रखने के लिए सामाजिक न्याय को दक्षता के साथ एकीकृत कीजिए।
  • जातिवाद और भ्रष्टाचार पर संस्थागत जाँच: जाति-संबंधी शिकायतों के लिए स्वतंत्र शिकायत प्रकोष्ठों की स्थापना करें और संरक्षण तथा जातिवाद और भ्रष्टाचार नेटवर्क को बाधित करने के लिए डिजिटल, यादृच्छिक पोस्टिंग प्रणाली अपनाएँ।
  • नैतिक और मानसिक स्वास्थ्य सुधार: जातिगत पूर्वाग्रह और नैतिकता पर नियमित रूप से जागरूकता कार्यक्रम चलाएँ। कार्यस्थल पर तनाव कम करने और आत्महत्याओं को रोकने के लिए गोपनीय परामर्श तथा शिकायत निवारण तंत्र प्रदान कीजिए।
  • आवश्यक सुधार: सार्थक प्रणालीगत सुधार प्राप्त करने के लिए राज्य सुरक्षा आयोगों का गठनपुलिस महानिदेशक का कार्यकाल निर्धारित करना तथा जाँच को कानून और व्यवस्था कार्यों से अलग करना सहित 2006 के प्रकाश सिंह निर्णय के निर्देशों को लागू करना।

निष्कर्ष:

वास्तविक सुधार नेतृत्व में योग्यता, पारदर्शिता और नैतिक साहस को बहाल करने में निहित है – यह सुनिश्चित करना कि न तो जाति और न ही भ्रष्टाचार भारतीय पुलिस व्यवस्था के मार्ग को निर्धारित करे।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: संवैधानिक सुरक्षा उपायों के बावजूद, शिक्षित और नौकरशाह वर्गों में भी जाति-आधारित पूर्वाग्रह बने हुए हैं। भारत में शहरी और व्यावसायिक क्षेत्रों में जातिगत भेदभाव के बने रहने का मूल्यांकन कीजिए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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