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भारत में पुलिस व्यवस्था में सुधार: समग्र अवलोकन

Lokesh Pal September 10, 2025 05:00 34 0

संदर्भ:

सोलापुर की घटना, जहाँ महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने आईपीएस अधिकारी अंजना कृष्णा की अवैध रेत खनन के खिलाफ कार्रवाई में हस्तक्षेप करने का प्रयास किया, ने एक बार पुनः पुलिसिंग में राजनीतिक हस्तक्षेप की गहन समस्या को उजागर किया है।

पुलिस में राजनीतिक हस्तक्षेप:

  • राष्ट्रीय पुलिस आयोग (1979): चेतावनी दी गई, कि राजनीतिक हस्तक्षेप पुलिस करियर की उन्नति को योग्यता की बजाय राजनीतिक पक्ष की ओर मोड़ देता है।
  • केरल पुलिस पुनर्गठन समिति (1959): दलीय राजनीति के वर्चस्व को कुशल पुलिस व्यवस्था में सबसे बड़ी बाधा के रूप में पहचाना गया।
  • पंजाब पुलिस आयोग (1961-62): आयोग के अनुसार, सत्तारूढ़ पार्टी के सदस्य गैर-कानूनी उद्देश्यों के लिए पुलिस के कार्यों में हस्तक्षेप करते थे।
  • दिल्ली पुलिस आयोग (1968): पुलिस के भीतर भ्रष्टाचार के एक प्रमुख स्रोत के रूप में राजनीतिक हस्तक्षेप पर प्रकाश डाला गया।
  • तमिलनाडु पुलिस आयोग (1971): पिछले कुछ वर्षों में पुलिसिंग को प्रभावित करने वाले राजनीतिक हस्तक्षेप में निरंतर वृद्धि दर्ज की गई।

ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:

  • आपातकाल का दुरुपयोग (1975): आपातकाल (1975) के दौरान पुलिस का राजनीतिक उद्देश्यों के लिए दुरुपयोग किया गया, जिसके परिणामस्वरूप व्यापक शोषण और हिंसा की घटनाएँ हुईं तथा नागरिकों के अधिकारों में कटौती की गई।
  • सिख विरोधी दंगे (1984): 1984 के सिख विरोधी दंगों में, पुलिस व्यापक रूप से मूकदर्शक बनी रही, जबकि सत्तारूढ़ पार्टी के गुंडों ने हिंसा की।
  • शाह आयोग की सिफारिशें: शाह आयोग ने पुलिस प्रणाली में व्यापक परिवर्तन की सिफारिश की, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अधिकारी निडरता से वैध कर्तव्यों का पालन कर सकें और विधि के शासन को बनाए रख सकें, लेकिन सुधारों को कभी लागू नहीं किया गया।

सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश (2006)

  • राज्य सुरक्षा आयोग: न्यायालय ने राज्यों को पुलिस को राजनीतिक दबाव से बचाने के लिए राज्य सुरक्षा आयोग स्थापित करने का निर्देश दिया।
  • पुलिस स्थापना बोर्ड: इसने स्थानांतरण और पोस्टिंग में पारदर्शिता तथा स्वायत्तता सुनिश्चित करने के लिए पुलिस स्थापना बोर्ड के गठन का आदेश दिया
  • शिकायत प्राधिकरण: न्यायालय ने पुलिस कदाचार की जाँच के लिए राज्य और जिला स्तर पर शिकायत प्राधिकरणों की स्थापना का आदेश दिया
  • अधिकारियों के लिए निश्चित कार्यकाल: परिचालन स्तर पर अधिकारियों को उनके कार्य में निरंतरता और स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए दो वर्ष का न्यूनतम निश्चित कार्यकाल प्रदान किया गया।
  • पारदर्शी डीजीपी चयन: इसने मनमानी नियुक्तियों को रोकने के लिए पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) के चयन के लिए एक पारदर्शी प्रक्रिया निर्धारित की
  • कर्तव्यों का पृथक्करण: न्यायालय ने दक्षता बढ़ाने के लिए महानगरीय क्षेत्रों में जाँच को कानून-व्यवस्था से पृथक करने का निर्देश दिया।

सुधारों की विफलता के कारण:

  • एक उपकरण के रूप में नियंत्रण: राजनीतिक वर्ग पुलिस पर अपना नियंत्रण छोड़ने को तैयार नहीं है, वह नियंत्रण को शक्ति के एक उपकरण के रूप में देखता है।
  • प्रतिरोध: पुलिस प्रशासन पर अपना प्रभुत्व बनाए रखने के लिए नौकरशाही ने भी परिवर्तन का विरोध किया है।
  • कागजी अनुपालन: न्यायालय द्वारा आदेशित सुधारों का अनुपालन प्रायः केवल कागजों पर ही किया गया तथा जमीनी स्तर पर कोई ठोस परिवर्तन नहीं हुआ।
  • औपनिवेशिक विरासत: 1861 के औपनिवेशिक पुलिस अधिनियम की विरासत आज भी एक ऐसी प्रणाली को आकार दे रही है, जो सार्वजनिक सेवा की बजाय नियंत्रण के लिए बनाई गई है।

आगे की राह:

  • स्मार्ट पुलिसिंग को अपनाना: प्रधानमंत्री ने पुलिस बल के आधुनिकीकरण के लिए स्मार्ट पुलिस का विचार प्रस्तावित किया, जिसकी प्रमुख विशेषताएँ हैं – संवेदनशील, गतिशील, जवाबदेह, उत्तरदायी और तकनीकी रूप से दक्ष
    • हालाँकि, पुलिस व्यवस्था के विषय पर राज्यों और केंद्र के बीच मतभेदों के कारण, जो कि राज्य का विषय है, सुधारों की गति धीमी हो गई।
      • केंद्र में भी वास्तविक प्रतिबद्धता का अभाव था, क्योंकि सुधारों को पूरी तरह से लागू नहीं किया गया था।
  • पुलिस की राजनीतिक तटस्थता सुनिश्चित करना: पुलिस को पक्षपातपूर्ण दबावों से मुक्त रखा जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके, कि कानून प्रवर्तन एकसमान और निष्पक्ष बना रहे – चाहे कोई भी राजनीतिक दल सत्ता में हो

निष्कर्ष:

पुलिस प्रणाली को पुनर्गठित करने तथा उसमें व्यापक सुधार की तत्काल आवश्यकता है। केवल एक प्रगतिशील, आधुनिक और राजनीतिक रूप से तटस्थ पुलिस बल जो सभी परिस्थितियों में विधि का शासन लागू करता है, भारत की विकासात्मक महत्त्वाकांक्षाओं का समर्थन कर सकता है तथा विकसित भारत के दृष्टिकोण को सुनिश्चित कर सकता है

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

भारत में पुलिस की कार्यप्रणाली विभिन्न आयोगों, सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश तथा सुधार पहलों के बावजूद विभिन्न चुनौतियों का सामना कर रही है। भारतीय पुलिस व्यवस्था में उन लगातार मुद्दों पर चर्चा कीजिए, जो पुलिस सुधारों में बाधाएँ उत्पन्न करते हैं और एक जवाबदेह एवं आधुनिक पुलिस बल सुनिश्चित करने के उपाय सुझाइए, जो विधि के शासन को बनाए रखने में सक्षम हों।

(15 अंक, 250 शब्द)

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