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भारत में राजनीतिक वित्तपोषण

Lokesh Pal December 26, 2025 05:30 9 0

संदर्भ:

राजनीतिक निधि का प्रवाह प्रत्यक्ष तौर पर लोकतंत्र की कार्यप्रणाली को प्रभावित करता है, यह निर्धारित करता है कि कौन प्रभावी ढंग से चुनाव लड़ सकता है और किसके हितों का सबसे अधिक प्रतिनिधित्व होता है।

संविधान सभा की बहस (1948):

  • राज्य का मामला: संस्थापकों ने इस बात पर जोर दिया कि चुनाव राज्य का मामला है, न कि निजी चिंता का विषय।
  • राजनीतिक निष्पक्षता: असमान वित्तपोषण लोकतांत्रिक निष्पक्षता को कमजोर करता है।
  • धनिकतंत्र का खतरा: जब धन तक पहुंच असमान होती है, तो अधिक वित्तपोषित लोग असमान रूप से प्रभाव प्राप्त कर लेते हैं, जिससे चुनावी प्रतिस्पर्धा और नीति निर्माण में विकृति आ जाती है।

वास्तविकता का परीक्षण – कॉर्पोरेट प्रभुत्व:

  • कॉर्पोरेट अनुदान (2013-14 से 2023-24): सत्ताधारी दल को अन्य सभी राष्ट्रीय दलों के संयुक्त अनुदान की तुलना में चार गुना अधिक प्रत्यक्ष कॉर्पोरेट अनुदान प्राप्त हुआ है (कुल कॉर्पोरेट निधियों का 84.65%)।
  • विपक्ष का हिस्सा: शेष दलों को कॉरपोरेट अनुदान का केवल 15% हिस्सा मिला।
  • प्रभाव: चुनावी वित्तपोषण में समान अवसर उपस्थित नहीं है; एक पार्टी को भारी वित्तीय लाभ प्राप्त है, जो संभावित रूप से राजनीति और चुनावों को प्रभावित कर सकता है।

कार्यविधि – चुनावी न्यास:

  • उद्देश्य: कॉर्पोरेट दान के लिए एक औपचारिक चैनल बनाने के उद्देश्य से 2013 में स्थापित किया गया।
  • अनुपालन: चुनाव आयोग को अनुदान की रिपोर्ट देना और प्राप्त धनराशि का 95% पंजीकृत राजनीतिक दलों को दान करना अनिवार्य है। अनुदान देने वालों को पैन नंबर (निवासियों के लिए) या पासपोर्ट नंबर (निर्वासित भारतीयों के लिए) प्रदान करना होगा।
  • उदाहरण: प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट ने पिछले दशक में अपने फंड का 75% हिस्सा सत्ताधारी पार्टी (भाजपा) को दिया।
  • कानूनी आधार: आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 17CA भारतीय नागरिकों, कंपनियों, फर्मों, HUFs या संघों को दान करने की अनुमति देती है।

चुनावी ट्रस्टों में पारदर्शिता की कमजोर कड़ी:

  • दाता-प्राप्तकर्ता संबंध का अज्ञात होना: जनता यह नहीं देख सकती कि किस कंपनी ने किस पार्टी को दान दिया, जिससे राजनीतिक दबाव और संभावित लेन-देन की संभावना बनी रहती है।
  • क्विड प्रो क्वो: लैटिन भाषा का शब्द “कुछ के बदले कुछ”, जो दानदाताओं को दिए जाने वाले अप्रत्यक्ष प्रतिफल को संदर्भित करता है।

उच्चतम न्यायालय के निर्णय:

  • संस्थागत भ्रष्टाचार: चुनावी बांड संबंधी निर्णय में यह स्वीकार किया गया कि कॉर्पोरेट अनुदान अनुकूल व्यवहार प्राप्त करने के उद्देश्य से दिया जाता है, जो कि quid pro quo (लेन-देन) और संस्थागत भ्रष्टाचार की एक प्रणाली का गठन करता है।

ब्रीफकेस राजनीति:

  • 1969-1985: व्यवसायों को राजनीति से दूर रखने के लिए कॉर्पोरेट दान पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
  • काले धन का उदय: ब्रीफकेस में नकदी के माध्यम से धन का वितरण जारी रहा, जिससे एक भ्रष्ट और अपारदर्शी प्रणाली का निर्माण हुआ।

आगे की राह:

  • चुनावों के लिए राज्य द्वारा वित्त पोषण: इंद्रजीत गुप्ता समिति (1998) ने सैद्धांतिक रूप से राज्य द्वारा वित्त पोषण का समर्थन किया और वित्तीय बाधाओं का हवाला देते हुए केवल मान्यता प्राप्त दलों के लिए सीमित प्रकार की सार्वजनिक सहायता की सिफारिश की।
  • पूर्व-आवश्यक सुधार:
    • आंतरिक लोकतंत्र: दलों को आंतरिक चुनाव कराने होंगे।
    • सूचना के अधिकार का दायरा: संबंधित पक्षों को सूचना के अधिकार अधिनियम के अधीन होना चाहिए।
    • लेखापरीक्षा: स्वतंत्र लेखापरीक्षकों द्वारा की जाने वाली कठोर वित्तीय जांच।
    • विविधीकरण: कॉरपोरेट्स पर निर्भरता कम करें, नागरिकों द्वारा छोटे दान को प्रोत्साहित करें।

मुख्य अभ्यास प्रश्न

प्रश्न. भारत में राजनीतिक वित्त पोषण न तो निष्पक्ष है और न ही पारदर्शी। हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियों और ADR आंकड़ों के आलोक में इस कथन की चर्चा कीजिए। भारतीय लोकतंत्र में समान अवसर सुनिश्चित करने के लिए किन संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता है?

(15 अंक, 250 शब्द)

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