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राजनीतिक दल पारिवारिक व्यवसाय नहीं हो सकते

Lokesh Pal February 27, 2024 05:15 168 0

संदर्भ:

वर्तमान युग की भारतीय राजनीति के समक्ष आने वाली सबसे प्रासंगिक चुनौतियों की जड़ें उम्मीदवार चयन और पार्टी चुनावों में अंतर-पार्टी लोकतंत्र की कमियों के रूप में देखि जा सकती हैं।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: संवैधानिक प्रावधान जो लोकतंत्र को कायम रखते हैं

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: अंतर-पार्टी लोकतंत्र, वंशवादी राजनीति के खतरे और परिवार-केंद्रित राजनीतिक दल।

लोकतंत्र के प्रकार: 

  • लोकतांत्रिक सिद्धांत में प्रक्रियात्मक और वास्तविक लोकतंत्र दोनों शामिल हैं।
  • प्रक्रियात्मक लोकतंत्र: सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार का अभ्यास, आवधिक चुनाव, गुप्त मतदान।
  • वास्तविक लोकतंत्र: पार्टियों की आंतरिक लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली को संदर्भित करता है, जो कथित तौर पर लोगों का प्रतिनिधित्व करती हैं।

राजनीतिक दलों में लोकतंत्र की आवश्यकता:

  • प्रतिनिधित्व: अंतर-पार्टी लोकतंत्र की अनुपस्थिति ने राजनीतिक दलों को बंद निरंकुश संरचना बनने में योगदान दिया है।\
    • यह सभी नागरिकों के राजनीति में भाग लेने और चुनाव लड़ने के समान राजनीतिक अवसर के संवैधानिक अधिकार को प्रभावित करता है।
  • गुटबाजी: जमीनी स्तर से जुड़े नेताओं को दरकिनार नहीं किया जा सकता है। इससे पार्टियों में गुटबाजी और विभाजन की समस्या का बहुत हद तक निदान हो सकेगा।
  • पारदर्शिता: पार्टी संरचना और प्रक्रियाओं में उचित टिकट वितरण और उम्मीदवार चयन की अनुमति मिलेगी। उम्मीदवारों का चयन बड़ी पार्टी की पसंद का प्रतिनिधित्व करेगा।
  • जवाबदेही: एक लोकतांत्रिक पार्टी अपने पार्टी सदस्यों के प्रति जवाबदेह होगी, क्योंकि यदि वे सही से कार्य नहीं किए तो वे अपनी कमियों के कारण चुनाव के अगले सत्र में हार जाएंगे।
  • सत्ता का विकेंद्रीकरण: राज्य और स्थानीय स्तर पर इकाइयों वाली राजनीतिक पार्टियाँ विभिन्न स्तरों पर सत्ता केंद्रों की स्थापना को सक्षम बनाती हैं।
    • यह प्राधिकार के विकेंद्रीकरण को बढ़ावा देता है और जमीनी स्तर पर निर्णय लेने की सुविधा प्रदान करता है।
  • राजनीति का अपराधीकरण: जीतने की क्षमता के आधार पर स्पष्ट टिकट वितरण प्रक्रिया के अभाव के कारण आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं।

सिफ़ारिशें:

  • भारत का विधि आयोग: भारत का विधि आयोग अपनी 170वीं रिपोर्ट में आंतरिक पार्टी लोकतंत्र पर कानून बनाने पर जोर देता है।
  • एनसीआरडब्ल्यूसी (NCRWC) रिपोर्ट: भारत में राजनीतिक दलों या पार्टियों के गठबंधन और उनके पंजीकरण एवं उनके कामकाज को विनियमित करने वाले व्यापक कानून की आवश्यकता।
  • दूसरी प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) की रिपोर्ट: इस रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि भ्रष्टाचार अति-केंद्रीकरण से उत्पन्न होता है, क्योंकि अधिकार और जवाबदेही के बीच अधिक दूरी तब होती है जब सत्ता का प्रयोग लोगों से दूर किया जाता है।

लोकतंत्र की कमी के कारण:

  • वंशवाद की राजनीति: अंतर-पार्टी लोकतंत्र की कमी भाई-भतीजावाद को बढ़ावा देती है, क्योंकि वरिष्ठ नेता चुनावों के लिए अपने रिश्तेदारों को चुनते हैं, इसके अलावा वे पारिवारिक निर्वाचन क्षेत्रों के लिए उत्तराधिकार योजनाएँ स्थापित करते हैं।
  • राजनीतिक दलों की केंद्रीकृत संरचना: केंद्रीकृत पार्टी कार्यप्रणाली और 1985 का दल-बदल विरोधी कानून विधायकों को राष्ट्रीय और राज्य विधानसभाओं में व्यक्तिगत प्राथमिकताओं के आधार पर मतदान करने से हतोत्साहित करता है।
  • कानून का अभाव: भारत में राजनीतिक दलों के लिए स्पष्ट आंतरिक लोकतांत्रिक नियमों का अभाव है।
    • जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए पार्टी पंजीकरण को नियंत्रित करती है, लेकिन आंतरिक चुनावों को लागू करने के चुनाव आयोग के अधिकार को दंडात्मक प्रावधानों के बिना कमजोर कर दिया गया है।
  • व्यक्तित्व पंथ: नायक पूजा के कारण अक्सर नेता पार्टियों पर अधिकार स्थापित कर लेते हैं, जिससे पार्टी के भीतर लोकतंत्र खत्म हो जाता है, उदाहरण: चीन में माओत्से तुंग और संयुक्त राज्य अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प ने अपनी-अपनी पार्टियों को बहुत हद तक नियंत्रित कर लिया था।
  • आंतरिक चुनावों को पलटना आसान: स्थापित शक्ति केंद्र निर्विवाद रूप से यथास्थिति को मजबूत करने और बनाए रखने के लिए आंतरिक प्रक्रियाओं में हेरफेर कर सकते हैं।

आगे की राह :

  • चुनावों को अनिवार्य बनाने का कानून: राजनीतिक दल सभी स्तरों पर चुनाव कराने के लिए बाध्य है, राष्ट्रीय और राज्य स्तर के चुनावों की देखरेख भारत के चुनाव आयोग (ECI) द्वारा नियुक्त पर्यवेक्षकों द्वारा की जाती है।
  • दल-बदल विरोधी कानून में संशोधन: 1985 का दल-बदल विरोधी कानून विधायकों को आंतरिक असंतोष को सीमित करते हुए पार्टी व्हिप का पालन करने का आदेश देता है।
    • पार्टी लोकतंत्र को बढ़ाने के लिए, दलबदल विरोधी कानून केवल अविश्वास प्रस्ताव जैसी महत्वपूर्ण घटनाओं के दौरान पार्टी व्हिप के खिलाफ मतदान करने पर अयोग्यता पर ध्यान केंद्रित कर सकता है।
  • आरक्षण: महिलाओं और अल्पसंख्यकों सहित पिछड़े समुदाय के सदस्यों के लिए सीटें आरक्षित की जा सकती हैं।
  • वित्तीय पारदर्शिता/ऑडिट: सभी राजनीतिक दलों को निर्धारित समय सीमा के भीतर अपने व्यय विवरण ईसीआई को प्रस्तुत करने के लिए बाध्य किया जाना चाहिए।
    • सबमिशन की समय सीमा या निर्धारित प्रारूपों का अनुपालन करने में विफलता के परिणामस्वरूप दंड का प्रावधान किया जाना चाहिए।
  • ईसीआई को सशक्त बनाना: ईसीआई को चुनाव की आवश्यकता वाले किसी भी प्रावधान के गैर-अनुपालन के आरोपों की जाँच करने की स्वतंत्रता होगी।
  • गैर-अनुपालन के लिए दंड: ईसीआई के पास किसी पार्टी का पंजीकरण रद्द करने की दंडात्मक शक्ति होनी चाहिए जब तक कि पार्टी में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव नहीं हो जाते।

News Source: India Today

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