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प्री-एक्लेम्प्सिया : सुरक्षित मातृत्व और प्रसव

Lokesh Pal May 22, 2024 05:30 100 0

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता : उच्च रक्त चाप और संबंधित विकार,  प्री-एक्लेम्प्सिया का आशय, गर्भावस्था संबंधी कानून, मातृ एवं शिशु मृत्यु दर आदि। 

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता :  प्री-एक्लेम्प्सिया और इससे संबंधित विकारों की रोकथाम, सुरक्षित मातृत्व और प्रसव हेतु सरकारी योजनाएँ आदि।  

 संदर्भ:

हाल के स्वास्थ्य परीक्षणों में, उच्च रक्त चाप की समस्या के ग्रस्त आबादी में निरंतर बढोतरी हो रही है।  प्री-एक्लेम्प्सिया (Preeclampsia) अर्थात गर्भावस्था के दौरान उच्च रक्त चाप की समस्या है, एक नए रक्त परीक्षण के रूप में, गर्भावस्था के प्रारंभिक सप्ताहों में प्रीक्लेम्पसिया के जोखिम का आकलन करने पर चर्चा हो रही है ताकि इस समस्या को नियंत्रित किया जा सके। 

प्री-एक्लेम्प्सिया के बारे में:

  • प्री-एक्लेम्प्सिया: यह उच्च रक्तचाप से संबंधित एक गंभीर विकार है, जो माँ के मूत्र में उपस्थित  प्रोटीन की उपस्थिति को दर्शाता है । यह स्थिति आमतौर पर गर्भावस्था के 20 सप्ताह के बाद देखि जा सकती है।
  • यद्यपि प्री-एक्लेम्प्सिया को आमतौर पर प्रबंधित किया जा सकता है, लेकिन कभी-कभी यह पूर्ण एक्लेम्प्सिया या हेल्प (HELLP) सिंड्रोम में विकसित हो सकता है। 
    • भारत में, गर्भावस्था के दौरान इस विकार से पीड़ितों की संख्या तकरीबन 5% से 10% तक दर्ज की गयी है। 
  • कभी-कभी, प्री-एक्लेम्प्सिया माता-पिता और उनके बच्चों दोनों के जीवन के लिए खतरा हो सकता है।
  • भारत में गर्भावस्था के प्रतिकूल परिणाम:
    • विश्व के प्रतिकूल गर्भावस्था परिणामों में से लगभग एक चौथाई भारत में हैं ।
    • एनएफएचएस-5 के आँकड़ों से स्पष्ट होता है कि प्रसवकालीन मृत्यु दर प्रति 1,000 गर्भधारण पर 32, नवजात मृत्यु दर प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर 25 है।
    • गर्भावस्था में उच्च रक्तचाप संबंधी विकार मातृ मृत्यु का एक प्रमुख कारण है।

आगे की राह

  • सामूहिक जिम्मेदारी: हितधारकों में प्रसूति विशेषज्ञ, रेडियोलॉजिस्ट, भ्रूण चिकित्सा विशेषज्ञ, नवजात शिशु विशेषज्ञ को शामिल किया जाना चाहिए।
    • फ्रंटलाइन कार्यकर्ता: इस प्रकार के विकारों से निजात पाने में अक्सर फ्रंट लाइन कार्यकर्ता महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं अतः मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं का सहयोग सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
  • प्री-एक्लेम्प्सिया के प्रभाव : समय से पहले जन्म, जन्म के समय कम वजन, अवरुद्ध विकास और प्री-एक्लेमप्सिया मातृ और नवजात रोग और मृत्यु दर में योगदान करते हैं।
    • गर्भावस्था के उच्च रक्तचाप संबंधी विकार (HDP) से माता और शिशु के लिए दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
    • प्री-एक्लेमप्सिया से हृदयाघात, कोरोनरी (धमनी) हृदय रोग, स्ट्रोक और हृदय संबंधी मृत्यु दर का जोखिम बढ़ जाता है।
  • प्रसवोत्तर देखभाल: प्रसवोत्तर हृदय मूल्यांकन का महत्त्व समझा जाना चाहिए और  प्री-एक्लेमप्सिया के बाद प्रसवोत्तर मातृ हृदय स्वास्थ्य की देखभाल की जानी चाहिए। 
  • प्री-एक्लेमप्सिया जागरूकता:
    • मई माह को ” प्री-एक्लेम्प्सिया  रोकथाम माह ” और 22 मई को विश्व प्री-एक्लेम्प्सिया दिवस के रूप में मनाये जाने का प्रावधान किया गया है ।
    • लक्षण: उच्च रक्तचाप, हाथ और पैरों इत्यादि में सूजन, गंभीर सिरदर्द, दृष्टि में परिवर्तन, पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द, सांस लेने में कठिनाई आदि ।
  • स्क्रीनिंग और प्रबंधन:
    • पहली तिमाही में प्री-एक्लेमप्सिया और भ्रूण के विकास प्रतिबंध की जाँच ।
    • स्थापित प्रोटोकॉल के साथ उच्च जोखिम युक्त गर्भधारण का प्रबंधन करना ।
    • संयुक्त स्क्रीनिंग: मातृ इतिहास, जनसांख्यिकी, डॉपलर अल्ट्रासाउंड, माध्य धमनी दबाव, प्लेसेंटल बायोमार्कर, समय पर औषधीय हस्तक्षेप।
    • सभी तिमाहियों में व्यापक देखभाल ।
  • भारत में कार्यक्रम: इंडियन रेडियोलॉजिकल एंड इमेजिंग एसोसिएशन (IRIA) कार्यक्रम ।
    • दशक के अंत तक प्री-एक्लेमप्सिया को 8%-10% से घटाकर 3% तक सीमित करने और भ्रूण के विकास प्रतिबंध को तकरीबन 25%-30% से घटाकर 10% करने की प्रतिबद्धता है ।
    • हालाँकि अनुकूल परिणामों के लिए, सामुदायिक सहभागिता और सतत नेतृत्व आवश्यक है।

निष्कर्ष:

निष्कर्ष स्वरुप नई पीढ़ी देश का भविष्य होती है अतः उनका स्वस्थ होना देश के लिए आवश्यक है इसलिए हमें सुरक्षित मातृत्व को बढ़ावा देना चाहिए, जागरूकता फैलानी चाहिए और उचित मातृत्व-शिशु देखभाल सुनिश्चित करनी चाहिए।

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