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मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (PMLA)

Lokesh Pal April 02, 2024 05:00 155 0

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: PMLA विधान, वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (Financial Action Task Force)

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: PMLA कानून से संबंधित मुद्दे, मनी लॉन्ड्रिंग और प्रभाव

संदर्भ:

वर्तमान दौर में मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (PMLA), 2002 की जाँच की जा रही है, क्योंकि ऐसा माना जा रहा है कि इसका विस्तार प्राथमिक फोकस अर्थात् ड्रग मनी लॉन्ड्रिंग के निपटान से  कहीं अधिक बढ़कर हो गया है।

पृष्ठभूमि और मूल उद्देश्य:

  • PMLA का उद्देश्य: इस कानून का उद्देश्य काले धन के शोधन अर्थात् मनी लॉन्ड्रिंग पर अंकुश लगाना और देश की अर्थव्यवस्था को अस्थिर होने से बचाना है ।
  • वैश्विक चिंताएँ: PMLA का कार्यान्वयन मनी लॉन्ड्रिंग, विशेष रूप से मादक पदार्थों की तस्करी से होने वाले राजस्व से निपटान संबंधी अंतरराष्ट्रीय प्रयासों से प्रेरित था।
  • नारकोटिक ड्रग्स और साइकोट्रॉपिक पदार्थों के अवैध तस्करी के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन 1988: इस कन्वेंशन के तहत सभी देशों से नशीली दवाओं से संबंधित अपराधों और अन्य संबंधित गतिविधियों के तहत आय के शोधन को रोकने के लिए तत्काल कदम उठाने का आग्रह किया गया था।
  • FATF का गठन: सात प्रमुख औद्योगिक देशों द्वारा पेरिस (जुलाई 1989) में एक शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया एवं इसके अंतर्गत मनी लॉन्ड्रिंग समस्या की जाँच करने और इस खतरे से निपटने के उपायों की सिफारिश करने के लिए वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (FATF) की स्थापना की गई थी ।
  • UNGA संकल्प: संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) द्वारा राजनीतिक घोषणा और कार्रवाई का वैश्विक कार्यक्रम (Political Declaration and Global Programme of Action) नामक एक प्रस्ताव को अपनाया गया , जिसमें सभी सदस्य देशों से नशीली दवाओं के तहत धन के शोधन को प्रभावी ढंग से रोकने के लिए उपयुक्त कानून बनाने का आह्वान किया गया।
  • संसदीय अधिनियम: ड्रग मनी लॉन्ड्रिंग के विरुद्ध कार्रवाईयों पर ध्यान देने के साथ अंतरराष्ट्रीय संधियों और निर्णयों को लागू करने के लिए अनुच्छेद 253 के तहत भारत की संसद द्वारा PMLA कानून पारित किया गया था।

          पहलू

     PMLA मामले

सामान्य आपराधिक मामले

सबूत का विपरीत भार (Reverse Burden of Proof) 

कुछ परिस्थितियों में, अभियुक्त को यह साबित करना होता है कि अपराध संबंधी कथित आय कानूनी रूप से अर्जित की गई थी।

अभियुक्त के अपराध को साबित करने का भार हमेशा अभियोजन पक्ष पर होता है।
जमानत (Bail) PMLA की धारा 45 के तहत जमानत को एक अपवाद एवं जेल का नियम बताया गया है। आरोपी (Accused) को जमानत पाने के लिए प्रथम दृष्टया निर्दोष साबित करना होगा, जो एक कठिन शर्त है। इसके तहत जमानत नियम है एवं जेल अपवाद है I यदि अभियोजन (Prosecution) प्रथम दृष्टया मामला स्थापित करने में विफल रहता है, तो आरोपी को जमानत दी जा सकती है।

जमानत के लिए सबूत का भार (Burden of Proof for Bail) 

अभियुक्त/आरोपी को जमानत पाने के लिए प्रथम दृष्टया स्वयं को निर्दोष साबित करना पड़ता है, जो सामान्य सिद्धांतों के विपरीत है जहाँ सबूत का भार अभियोजन पक्ष पर रहता है। अभियोजन को अभियुक्त को जमानत से इनकार करने के लिए आरोपी के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला स्थापित करना होगा।

संपत्ति कुर्की (Property Attachment)

संबंधित अधिकारी सख्त प्रावधानों के तहत बिना मुकदमे या दोषसिद्धि के अपराध से प्राप्त संदिग्ध आय को कुर्क कर सकते हैं। संपत्ति की कुर्की आम तौर पर दोषसिद्धि के बाद या अधिक उचित प्रक्रिया के साथ होती है।

बयानों की रिकॉर्डिंग (Recording of Statements)

जाँच अधिकारी के समक्ष दर्ज किए गए बयानों को अदालत में सबूत के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, जिसकी सामान्य आपराधिक मुकदमों में अनुमति नहीं है।

पुलिस द्वारा दर्ज किए गए बयान सबूत के रूप में स्वीकार्य नहीं हैं जब तक कि कुछ शर्तें पूरी न की गई हों।

पीएमएलए से जुड़ी चिंताएँ:

  • विविध अपराधों का समावेश: समय के साथ, PMLA अनुसूची में उसके प्रारंभिक उद्देश्य से असंबंधित विभिन्न प्रकार के अपराध शामिल होते गए, यथा IPC या अन्य विशेष कानूनों में निर्दिष्ट अपराध, जिससे यह सिर्फ ड्रग मनी लॉन्ड्रिंग पर केन्द्रित न रहकर भटकता चला गया ।
  • समान अनुप्रयोग: PMLA के कठोर प्रावधान, जो मूल रूप से नशीली दवाओं के तस्करों के लिए बनाये गए थे, अब सभी अनुसूचित अपराधों पर समान रूप से लागू होते हैं, जिनमें 1988 के भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत भ्रष्टाचार जैसे गैर-नशीली दवाओं से संबंधित अपराध भी शामिल हैं।

जमानत प्रावधान

  • अपराध की धारणा: PMLA का जमानत प्रावधान (धारा 45) निर्दोषता की अवधारणा को उलट देता है, जिससे आरोपी को जमानत देने के लिए निर्दोषता साबित करने की आवश्यकता होती है, जिसके परिणामस्वरूप बिना जाँच के आरोपी को लंबी कैद हो जाती है, जो व्यक्तिगत अधिकारों के बारे में चिंताएं उत्पन्न करता है।
  • असंवैधानिक जमानत प्रावधान: निकेश ताराचंद शाह बनाम भारत संघ (2018) मामले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय की दो-न्यायाधीश पीठ द्वारा इसे अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 21 का उल्लंघन बताते हुए असंवैधानिक घोषित किया गया था।
  • विजय मदनलाल चौधरी बनाम भारत संघ (2022) मामला: संसद द्वारा कुछ संशोधनों के साथ इस प्रावधान को बहाल किया गया, जिसे विजय मदनलाल चौधरी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2022) में खानविलकर केस में न्यायमूर्ति ए.एम. की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा बरकरार रखा गया । 

निष्कर्ष:

गौरतलब है कि जमानत से इनकार करने से व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन होता है, जो हमारे संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार है। जमानत से इनकार करने की शक्ति अदालतों के लिए एक महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी मानी जाती है, जिसका प्रयोग व्यक्ति और समाज दोनों पर पड़ने वाले इसके प्रभाव के संबंध में गंभीरता से विचार करते हुए किया जाना चाहिए।

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