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Lokesh Pal
September 16, 2024 05:15
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भारत में कुल भू-भाग का 40% से अधिक हिस्सा शुष्क या अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों का है, जहाँ अनियमित और वर्षा की कम मात्रा प्राप्त होती है। जलवायु परिवर्तन के कारण स्थिति और भी खराब हो गई है, जिसने वर्षा प्रतिरूप को बाधित किया है तथा देश भर में जल की कमी को और बढ़ा दिया है। स्थानिक और अस्थाई दोनों तरह की वर्षा में भी भिन्नता है। 2019 के नीति आयोग के एक अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2050 तक भारत की जल आपूर्ति की अनुमानित माँग के आधे तक घटने की संभावना है, जिससे प्रभावी माँग-पक्ष की जल प्रबंधन प्राथमिकता बन गई है। इसके परिणामस्वरूप गंभीर जल तनाव व्याप्त होगा, जिससे इन क्षेत्रों में लाखों लोगों के जीवन और आजीविका प्रभावित हो सकती है।
विशेष रूप से वॉल्यूमेट्रिक प्रणालियों को अपनाने के माध्यम से प्रभावी जल मूल्य निर्धारण, स्थायी जल उपयोग को बढ़ावा देगा तथा कुशल प्रौद्योगिकियों को अपनाने को प्रोत्साहित करेगा। भारत में बढ़ती जल की कमी को दूर करने, समान वितरण सुनिश्चित करने एवं जल प्रबंधन के लिए अधिक उत्तरदायी दृष्टिकोण को बढ़ावा देने के लिए जल को एक आर्थिक वस्तु के रूप में मान्यता देते हुए इसे सार्वभौमिक रूप से लागू किया जाना चाहिए।
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