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भारत में मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति संबंधी प्रक्रिया

Lokesh Pal February 28, 2025 05:00 424 0

सत्य बोलने वाले से अधिक घृणा किसी से नहीं की जाती।” – प्लेटो

संदर्भ:

निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया को 2023 में एक नए विधेयक के माध्यम से संशोधित किया गया है|

मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें एवं कार्यकाल) विधेयक, 2023 :

  • नया कानून: मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें और कार्यकाल) विधेयक, 2023 संविधान के अनुच्छेद 324(5) के तहत संसद द्वारा लाया गया पहला कानून है।
  • उद्देश्य: यह मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CIC) और अन्य निर्वाचन आयुक्तों (EC) की नियुक्ति की प्रक्रिया निर्धारित करता है।
  • पृष्ठभूमि: यह विधेयक सर्वोच्च न्यायालय के मार्च 2023 के आदेश के उत्तर में प्रस्तुत किया गया था, जिसमें निर्देश दिया गया था, कि CIC और EC को एक उच्च-शक्ति समिति की सिफारिश के आधार पर नियुक्त किया जाना चाहिए।
    • इससे पहले, मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति केवल प्रधानमंत्री की सिफारिश पर भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती थी, जिसे न्यायालय ने असंतोषजनक पाया।
  • न्यायालय का निर्देश: सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया, कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति एक उच्च-शक्ति समिति द्वारा की जानी चाहिए, जिसमें निम्नलिखित लोग शामिल हों:
    • प्रधानमंत्री
    • लोकसभा में विपक्ष के नेता (LOP)
    • भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI)
  • विधायी कार्रवाई: इसका उद्देश्य संसद द्वारा इस मामले पर कानून निर्माण तक अंतरिम उपाय के रूप में था।
  • चिंताएँ: न्यायालय ने इस बात पर बल दिया है, कि नियुक्तियों पर कार्यकारी नियंत्रण निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता से समझौता कर सकता है।

विधेयक से संबंधित चिंताएँ:

  • न्यायालय के निर्देश में संशोधन: नए कानून में भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) की जगह चयन समिति में प्रधानमंत्री द्वारा नामित कैबिनेट मंत्री को शामिल किया गया है। अब समिति में निम्नलिखित शामिल हैं:
    • प्रधानमंत्री (अध्यक्ष)
    • लोकसभा में विपक्ष के नेता (LoP)
    • एक कैबिनेट मंत्री (प्रधानमंत्री द्वारा नामित)
  • उल्लंघन: इस परिवर्तन को न्यायमूर्ति के. एम. जोसेफ (सेवानिवृत्त) की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ के मूल निर्देश का उल्लंघन करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है।
  • चयन प्रक्रिया की चिंताएँ: विधि मंत्री की अध्यक्षता वाली एक समिति विचार के लिए पाँच उम्मीदवारों का चयन करती है।
    • चयन किए गए नामों का खुलासा करने में पारदर्शिता की कमी से अस्पष्टता बढ़ती है, जिससे संभावित भ्रष्टाचार या पक्षपात की संभावनाएँ उत्पन्न होती हैं।
  • पूर्व निर्धारित परिणाम: विपक्ष के नेता (LoP) की असहमति के बावजूद, वरिष्ठतम EC को दो सरकार समर्थित सदस्यों द्वारा CEC के रूप में नियुक्त किया गया।
    • इससे यह चिंताएँ और भी बढ़ जाती हैं, कि इस प्रक्रिया में वास्तविक मूल्यांकन का अभाव है और यह सत्तारूढ़ सरकार के हितों की पूर्ति करती है।
  • ECI की भूमिका: अनुच्छेद 324 भारत के निर्वाचन आयोग (ECI) को स्वतंत्र और निष्पक्ष निर्वाचन प्रक्रिया सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी देता है।
    • भारत के निर्वाचन आयोग बनाम तमिलनाडु राज्य (1993) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने पुष्टि की, कि चुनावी पारदर्शिता को बनाए रखने के लिए ईसीआई को स्वतंत्र और निष्पक्ष होना चाहिए।
  • पूर्व निर्धारित बहुमत: कैबिनेट मंत्री को प्रधानमंत्री द्वारा नामित किया जाता है, जिससे सरकार के पक्ष में 2:1 का अनुमानित बहुमत निर्मित होता है।
    • यह पूर्व निर्धारित बहुमत सुनिश्चित करता है, कि निर्वाचन में सरकार का प्रभुत्व विद्यमान रहेगा, जिससे तटस्थ मूल्यांकन निरर्थक हो जाता है।
  • तटस्थता को कम करना: प्रधानमंत्री द्वारा समिति के सदस्य (कैबिनेट मंत्री) की नियुक्ति तटस्थता को कम करती है।
    • एक कैबिनेट मंत्री प्रधानमंत्री का समर्थन करने के लिए बाध्य है, जिससे चयन प्रक्रिया में निष्पक्ष और स्वतंत्र निर्णय प्रक्रिया समाप्त हो जाती है।
  • वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन का अभाव: एक समिति में स्वतंत्र सदस्यों को योग्यता के आधार पर उम्मीदवारों पर चर्चा और मूल्यांकन करना चाहिए। हालाँकि, इस व्यवस्था में परिणाम पूर्व निर्धारित होता है, जिससे चयन प्रक्रिया वास्तविक मूल्यांकन की बजाय एक औपचारिकता मात्र बन जाती है।

संवैधानिक व्यवहार्यता:

  • एकपक्षीय (Arbitrary): चयन समिति की संरचना एकपक्षीय है और इसमें तर्कसंगत आधार का अभाव है, जिससे यह कानून असंवैधानिक हो जाता है।
  • वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन को बाधित करना: सरकार के उम्मीदवार के लिए बहुमत सुनिश्चित करके, कानून अन्य योग्य उम्मीदवारों के वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन को बाधित करता है।
  • अनुच्छेद 14 का उल्लंघन: यह समान अवसरों को कमजोर करता है, जो संभवतः संविधान के अनुच्छेद 14 (समता का अधिकार) का उल्लंघन है।

चुनावी प्रक्रिया पर प्रभाव

  • मूल भावना: मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों का चयन सीधे तौर पर भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावी प्रक्रिया की मूल भावना को प्रभावित करता है।
  • मूल ढाँचे का सिद्धांत: चुनाव प्रणाली संविधान के मूल ढाँचे का भाग है, जो सुनिश्चित करता है कि लोकतंत्र निष्पक्ष और पारदर्शी बना रहे।
  • पारदर्शिता: इससे जनता की चुनावी प्रणाली को लेकर विश्वसनीयता कम हो सकती है।

निष्कर्ष:

भारतीय निर्वाचन आयोग के उच्च संवैधानिक महत्त्व को देखते हुए, सर्वोच्च न्यायालय को इस कानून की वैधता की सावधानीपूर्वक जाँच करनी चाहिए, साथ ही सरकार को स्वयं इस विषय पर पूर्ण सहयोग देते हुए चुनावी प्रणाली की पारदर्शिता और विश्वसनीयता को बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए|

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

निर्वाचन आयुक्तों के लिए नई चयन प्रक्रिया के संवैधानिक और प्रशासनिक निहितार्थों की आलोचनात्मक जाँच कीजिए। क्या चयन समिति की संरचना चुनावी लोकतंत्र की पर्याप्त सुरक्षा करती है? ऐसे सुधार सुझाइए, जो संवैधानिक नैतिकता को बनाए रखते हुए कार्यकारी विशेषाधिकार और संस्थागत स्वायत्तता के बीच संतुलन स्थापित करे।

(15 अंक, 250 शब्द)

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