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स्थानीय लोकतंत्र की रक्षा करना

Lokesh Pal March 07, 2024 05:30 103 0

संदर्भ: 

  • सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत हाल ही में चंडीगढ़ में हुए मेयर चुनाव के नतीजे को रद्द कर दिया है।
  • सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस नतीजे को रद्द करने पीछे प्रमुख कारण यह है कि चुनाव में किए जाने वाले इस तरह के छल से “लोकतंत्र को विफल” नहीं होने देना।

प्रारंभिक परीक्षा की प्रासंगिकता: स्थानीय निकाय-संरचना, चुनाव और कार्य।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: भारत में सहभागी लोकतंत्र- आवश्यकता, चुनौतियाँ, भारत में स्थानीय निकाय और चुनावों का मुद्दा।

पृष्ठभूमि: मेयर चुनाव में सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप:

  •  मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ  ने AAP  उम्मीदवार कुलदीप कुमार को वैध रूप से निर्वाचित मेयर घोषित करने के लिए अनुच्छेद 142 की शक्तियों का इस्तेमाल किया है।
  • सीसीटीवी दृश्यों से पता चलता है कि पीठासीन अधिकारी ने मेयर के चुनाव में कुछ मतपत्रों को विकृत कर दिया था। 
    • इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने विजेता का निर्धारण करने के लिए मतपत्रों की दोबारा से जाँच करवाई।
  • सुप्रीम कोर्ट के फैसले से ठीक पहले AAP के तीन पार्षद बीजेपी में शामिल हो गए थे ।
  • भाजपा ने परिषद में बहुमत हासिल कर डिप्टी और सीनियर डिप्टी मेयर का चुनाव जीत लिया था।

समस्याएँ:

  • स्थानीय चुनावों का प्रशासन:
    • अप्रत्यक्ष चुनाव प्रक्रिया: स्थानीय सरकार के चुनावों की देखरेख राज्य चुनाव आयोगों द्वारा किया जाटा है।
      • चंडीगढ़ पंजाब नगर निगम अधिनियम, 1976 द्वारा शासित होता है जिसमें एक आंतरिक प्रक्रिया शामिल होती है।
    • पंजाब नगर निगम अधिनियम, 1976 की धारा 60 के अनुसार, मेयर के चुनाव के लिए बैठक मंडलायुक्त द्वारा बुलाई जाएगी, जो बैठक की अध्यक्षता करने के लिए एक पार्षद (जो कि चुनाव के लिए उम्मीदवार नहीं हैं ) को नामित करता है।
  • नियुक्ति प्रक्रिया:
    • समस्या इसलिए होती है क्योंकि नगरपालिका कानून महापौर चुनावों की अध्यक्षता के लिए किसी भी पार्षद की नौकरशाही नियुक्ति की अनुमति देता है।
    • तदनुसार, 2022 के चंडीगढ़ चुनावों में, मेयर के चुनाव के लिए बैठक के लिए अनिल मसीह को पीठासीन अधिकारी के रूप में नामित किया गया था।
  • स्थानीय स्तर पर दलबदल:
    • स्थानीय सरकारों में दलबदल के मामले में अदालत के हस्तक्षेप की गुंजाइश सीमित है क्योंकि संविधान की 10वीं अनुसूची के तहत दलबदल विरोधी कानून पंचायतों और नगर पालिकाओं पर लागू नहीं होती है।
    • केरल और कर्नाटक जैसे राज्यों ने स्थानीय चुनावों में दलबदल पर रोक लगाने वाले विशिष्ट कानून पारित किए हैं। 
      • अधिकांश राज्यों में दलबदल के खिलाफ कोई स्पष्ट वैधानिक प्रतिबंध नहीं हैं।
    • केंद्र शासित प्रदेशों (UT) में लोकतांत्रिक शासन सुनिश्चित करने की चुनौती: केंद्र सरकार द्वारा केंद्र शासित प्रदेशों में निर्वाचित निकायों को नियंत्रित करने का प्रयास।
  • केंद्र शासित प्रदेश (UT) दो प्रकार के होते हैं:
    • विधानमंडल वाले केंद्र शासित प्रदेश: दिल्ली, जम्मू और कश्मीर तथा पुडुचेरी।
    • विधानमंडल के बिना केंद्र शासित प्रदेश: अंडमान और निकोबार, चंडीगढ़, दादरा और नागर हवेली एवं दमन और दीव, लद्दाख तथा लक्षद्वीप।
    • दिल्ली और पुडुचेरी जैसे विधानसभा वाले केंद्रशासित प्रदेशों में, केंद्र निर्वाचित सरकार पर उपराज्यपाल को अधिकार देना चाहता है।
    • लक्षद्वीप जैसे बिना विधान सभा वाले केंद्रशासित प्रदेशों में, केंद्र द्वारा नियुक्त प्रशासक ने व्यापक विधायी उपाय पेश किए, जिन पर स्थानीय लोगों ने आपत्ति जताई है।
    • विधान सभाओं के बिना केंद्र शासित प्रदेशों को अधिक शक्तियाँ और सशक्तिकरण प्रदान करने की आवश्यकता है।
    • राजनीतिक दलों की भूमिका: जबकि राजनीतिक दलों की शुरुआत में स्थानीय चुनावों में एक गैर-प्रमुख भूमिका निभाने की कल्पना की गई थी, स्थानीय सरकारों की पार्टी-राजनीतिक प्रकृति अब एक वास्तविकता है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। 
      • इसलिए, स्पष्ट वैधानिक उपाय अपनाने की आवश्यकता है जिससे स्थानीय स्तर पर दलबदल पर अंकुश लगाया जा सके।

निष्कर्ष: सत्ता के केंद्रीकरण का मुकाबला करने और सहभागी लोकतंत्र को प्रोत्साहित करने के लिए केंद्र शासित प्रदेशों और स्थानीय सरकारों में संघवाद और लोकतंत्र सिद्धांतों को लागू करने की आवश्यकता है।

News Source:The Hindu

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