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विकासशील देशों को जलवायु वित्त प्रदान करना

Lokesh Pal October 21, 2024 06:00 42 0

संदर्भ :

11 से 22 नवंबर तक बाकू, अजरबैजान में आयोजित होने वाले UNFCCC के 29वें सम्मेलन (COP 29) के एक ‘वित्तीय COP’ होने की उम्मीद है, जिसमें जलवायु वित्त संबंधी मुद्दे इसके शीर्ष विषय होंगे।

जलवायु वित्त

  • जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) जलवायु वित्त को स्थानीय, राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय वित्तपोषण के रूप में परिभाषित करता है, जो सार्वजनिक, निजी और वैकल्पिक स्रोतों से प्राप्त होता है, जिसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए शमन और अनुकूलन कार्यों का समर्थन करना है।

जलवायु परिवर्तन से निपटने के उपाय

  • अनुकूलन :
    • इसका तात्पर्य वर्तमान या अपेक्षित जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों के साथ समायोजन की प्रक्रिया से है।
    • अनुकूलन रणनीतियों का उद्देश्य लोगों, पारिस्थितिकी तंत्रों और अर्थव्यवस्थाओं पर जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों को कम करना है।
    • उदाहरण के लिए, ऐसी फसलें विकसित करना जो परिवर्तित जलवायु परिस्थितियों के प्रति लचीली हों।
  • शमन :
    • इसमें जलवायु परिवर्तन को सीमित करने के लिए ग्रीनहाउस गैसों (GHG) के उत्सर्जन को कम करने या रोकने के प्रयास शामिल हैं।
    • शमन रणनीतियाँ कार्बन पदचिह्न को कम करने तथा कार्बन सिंक को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करती हैं।
    • उदाहरण के लिए, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को पूरी तरह से रोकने के उपायों को लागू करना।

विकासशील देशों को जलवायु वित्त की आवश्यकता

  • जलवायु भेद्यता : भौगोलिक कारकों और कृषि जैसे संवेदनशील क्षेत्रों पर उनकी निर्भरता के कारण।
  • सीमित संसाधन : इन देशों के पास विकसित देशों की तुलना में कम वित्तीय और विशेष मानव संसाधन हैं, जो जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने तथा इसके प्रभावों से उबरने की उनकी क्षमता को सीमित करते हैं एवं उनकी अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित करता है।
  • आरंभिक समस्या : जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल की छठी मूल्यांकन रिपोर्ट से संकेत मिलता है, कि विकासशील देशों की तुलना में कम आबादी होने के बावजूद 1850 के बाद से विकसित देशों में संचयी उत्सर्जन का 57% हिस्सा है।
  • प्रतिस्पर्द्धी विकासात्मक आवश्यकताएँ : विकासशील देशों को कई विकासात्मक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जो स्वतंत्र जलवायु कार्रवाई करने की उनकी क्षमता में बाधा डालती हैं।

जलवायु वित्त से संबंधित मुद्दे

  • जलवायु वित्त की संरचना : अंतर्राष्ट्रीय सार्वजनिक जलवायु वित्त में वाणिज्यिक और कम ब्याज दर पर ऋण, अनुदान, इक्विटी और अन्य संसाधन शामिल हैं।
  • रिपोर्ट में कमियाँ : विकासशील देश और ऑक्सफैम जैसे संगठन OECD की जलवायु वित्त रिपोर्ट की आलोचना करते हैं।
    • वास्तविक संवितरण : उनका तर्क है कि रिपोर्ट में प्रतिबद्धताओं के बजाय वास्तविक संवितरण को दर्शाया जाना चाहिए।
    • सहायता का पुनर्वर्गीकरण : ऐसे उदाहरण मौजूद हैं, जहाँ पहले दी गई सहायता को जलवायु वित्त के रूप में पुनर्वर्गीकृत किया गया है।
    • अनुदानों पर बल : जलवायु वित्त गणना में केवल अनुदान या अनुदान-समतुल्य वित्त को ही शामिल किया जाना चाहिए, न कि वाणिज्यिक अनुदानों को।
  • प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में विफलता : 2009 के कोपेनहेगन समझौते के तहत विकसित देशों ने 2020 तक विकासशील देशों को जलवायु वित्त के रूप में प्रतिवर्ष $100 बिलियन उपलब्ध कराने की प्रतिबद्धता जताई थी, जिसे 2025 तक बढ़ा दिया गया।
    • इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए विकसित देशों को विकासशील देशों को ऋण उपलब्ध कराने में सहायता करनी होगी, क्योंकि इन देशों को आमतौर पर उच्च ब्याज दरों का सामना करना पड़ता है।

भारत की आवश्यकता

भारत के पास अल्पकालिक और दीर्घकालिक दोनों जलवायु लक्ष्य हैं :

  • अल्पकालिक लक्ष्य (2030 तक):
    • गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से 500 गीगावाट उत्पादन क्षमता स्थापित करना।
    • हरित हाइड्रोजन की प्रति वर्ष 5 मिलियन मीट्रिक टन उत्पादन क्षमता प्राप्त करना।
    • विभिन्न इलेक्ट्रिक वाहन (EV) श्रेणियों के लिए प्रवेश के विभेदित स्तर विकसित करना।
    • 2030 तक 450 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा प्राप्त करने के लिए, ₹16.8 लाख करोड़ के अतिरिक्त निवेश की आवश्यकता होगी।
  • दीर्घकालिक लक्ष्य (2020-2070):
    • शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने के लिए, भारत को संभवतः लगभग ₹850 लाख करोड़ के निवेश की आवश्यकता होगी।

NCQG (नया सामूहिक परिमाणित लक्ष्य)  

  • बैठक का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य एक नया वार्षिक जलवायु वित्त जुटाने का लक्ष्य निर्धारित करना है, जिसे “नया सामूहिक परिमाणित लक्ष्य” (New Collective Quantified Goal- NCQG) के रूप में जाना जाता है। यह लक्ष्य विकासशील देशों को आवंटित जलवायु वित्त की राशि निर्धारित करेगा।
  • NCQG के लिए सुझाए गए मानदंड :
    • वास्तविक संवितरण : NCQG में वित्तीय प्रवाह शामिल होना चाहिए, जो वास्तविक संवितरण को दर्शाता हो न कि केवल प्रतिबद्धताओं को प्रदर्शित करता हो ।
    • नया और अतिरिक्त वित्तपोषण : यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वित्तपोषण नया हो और मौजूदा वित्तीय संसाधनों में वृद्धि करे।
    • सार्वजनिक पूँजी : NCQG को प्रत्यक्ष अनुदान के रूप में सार्वजनिक पूँजी को प्राथमिकता देनी चाहिए।
    • संयोजित निजी पूँजी : इसमें सार्वजनिक वित्तपोषण के माध्यम से जुटाई गई निजी पूँजी को शामिल किया जाना चाहिए, लेकिन विकासशील देशों में निजी वित्त के प्रवाह को शामिल नहीं किया जाना चाहिए।

COP26 और COP27 के अध्यक्षों द्वारा गठित एक स्वतंत्र उच्च स्तरीय विशेषज्ञ समूह ने अनुमान लगाया है, कि विकासशील देशों (चीन को छोड़कर) को 2030 तक लगभग $1 ट्रिलियन के बाह्य वित्त की आवश्यकता होगी।

निष्कर्ष 

जलवायु वित्त केवल मौद्रिक योगदान के बारे में नहीं है, यह वैश्विक समानता का भी प्रतीक है और ऐतिहासिक अन्याय को संबोधित करता है। विकसित देशों को इस महत्त्वपूर्ण प्रयास में विकासशील देशों का समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए।

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न 

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) को समझाते हुए आगामी COP29 के प्रमुख बिन्दुओं तथा उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए |

(15 अंक, 250 शब्द)   

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