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राजस्थान : पृथक ‘भील प्रदेश’ की मांग

Lokesh Pal July 20, 2024 05:15 127 0

संदर्भ: 

हाल ही में, राजस्थान की एक महत्वपूर्ण भील जनजाति के लोग राजस्थान में एक रैली में बड़ी संख्या में एकत्र हुए और एक स्वतंत्र ‘भील राज्य’ की “लंबे समय से प्रतीक्षित” मांग को बुलंद करने लगे।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: भील प्रदेश, आदिवासी जलियांवाला, गोविंद गुरु, राजस्थान की प्रमुख जनजातियाँ आदि।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: भील प्रदेश, भारत में छोटे राज्यों का निर्माण- आवश्यकता, महत्व, चुनौतियाँ और परिणाम, आदि।

‘भील प्रदेश’ के बारे में :

  • मांग के प्रमुख क्षेत्र: भील समुदाय मांग कर रहा है कि राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों को मिलाकर चार राज्यों में से 49 जिले अलग करके भील प्रदेश बनाया जाए।
  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: भील समाज सुधारक और आध्यात्मिक नेता गोविंद गुरु ने पहली बार 1913 में आदिवासियों के लिए एक अलग राज्य की मांग उठाई थी।
    • आदिवासियों के लिए एक अलग राज्य की मांग मुख्य रूप से मानगढ़ हत्याकांड के बाद हुआ था, जो जलियाँवाला बाग से छह साल पहले हुआ था और जिसे कभी-कभी “आदिवासी जलियाँवाला” के रूप में भी जाना जाता है।

“आदिवासी जलियाँवाला” : 

  • इसमें 17 नवंबर, 1913 को राजस्थान-गुजरात सीमा पर मानगढ़ की पहाड़ियों में ब्रिटिश सेना द्वारा सैकड़ों भील आदिवासियों की हत्या की गई थी।
  • 1913 में आदिवासियों का बलिदान सिर्फ भक्ति आंदोलन के लिए नहीं था, बल्कि भील प्रदेश की मांग के लिए था।
  • आजादी के बाद भील प्रदेश की मांग बार-बार उठती रही।

आदिवासियों को अलग राज्य की आवश्यकता क्यों:  

  • एक इकाई के हिस्से से विभाजित : पहले राजस्थान में डूंगरपुर, बांसवाड़ा, उदयपुर क्षेत्र और गुजरात, मध्य प्रदेश आदि एक इकाई का हिस्सा थे। लेकिन आजादी के बाद आदिवासी बहुल क्षेत्रों को विभाजित कर दिया गया।
  • कार्यान्वयन में देरी: बदलती केंद्र सरकारों द्वारा अपने कार्यकालों के दौरान समय-समय पर आदिवासियों पर विभिन्न “कानून, लाभ, योजनाएं और समिति रिपोर्ट” पारित किये गये, लेकिन उनके निष्पादन और कार्यान्वयन में धीमी गति से काम किया।
    • उदाहरण: पंचायतों के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996 बनाया गया था। हालांकि, राजस्थान सरकार ने इसे 1999 में अपना तो लिया परंतु इस सम्बन्ध में वर्ष 2011 में नियम बनाए।
    • जानकारी का अभाव: अनेक गांवों में स्थानीय लोगों को पंचायतों के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम के बारे में आज तक भी जानकारी नहीं है। यहां तक ​​कि विधानसभाओं और कार्यपालिकाओं को भी इस कानून के बारे में उचित जानकारी नहीं है।
      • पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996 के प्रावधान, जनजातीय क्षेत्रों में शासन का विकेन्द्रीकरण और ग्राम सभाओं को सशक्त बनाने के लिए बनाया गया कानून है।

भारत में छोटे राज्यों के निर्माण के पक्ष में तर्क:

  • बेहतर शासन और प्रशासन: छोटे राज्यों का प्रबंधन और प्रशासन आसान होता है, क्योंकि उनकी आबादी और भौगोलिक क्षेत्र छोटा होता है। इससे बेहतर सार्वजनिक सेवाएँ और विकास हो सकता है।
  • संसाधनों का अधिक न्यायसंगत वितरण: छोटे राज्य यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि संसाधन विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों के बीच अधिक समान रूप से वितरित हों। ऐसा इसलिए है क्योंकि संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा कम होती है और सरकार लोगों के प्रति अधिक जवाबदेह होती है।
  • लोकतांत्रिक भागीदारी में वृद्धि : छोटे राज्य लोकतंत्र में अधिक भागीदारी को प्रोत्साहित कर सकते हैं, क्योंकि लोग अपनी सरकार से अधिक जुड़ाव महसूस करते हैं और निर्णय लेने में उनकी अधिक भागीदारी होती है।
  • सांस्कृतिक और भाषाई संरक्षण: छोटे राज्य अलग-अलग संस्कृतियों और भाषाओं को संरक्षित और बढ़ावा देने में मदद कर सकते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि लोगों को छोटे राज्य से पहचान और जुड़ाव की भावना अधिक महसूस होती है।

भारत में छोटे राज्यों के निर्माण के विपक्ष में तर्क:

  • प्रशासनिक लागत में वृद्धि: नए राज्यों के निर्माण से प्रशासनिक लागत में वृद्धि हो सकती है, क्योंकि एक नये राज्य को भी अपने कामकाज हेतु विभिन सरकारी संस्थानों की स्थापना और रखरखाव की आवश्यकता होती है।
  • अंतर-राज्यीय विवाद: छोटे राज्यों के कारण अंतर-राज्यीय विवादों में वृद्धि हो सकती है, क्योंकि संसाधनों और क्षेत्र के लिए अधिक प्रतिस्पर्धा होती है।
  • राष्ट्रीय एकता की भावना का कमजोर होना : नए राज्यों के निर्माण से राष्ट्रीय एकता की भावना कमज़ोर हो सकती है, क्योंकि लोग पूरे देश की तुलना में अपने राज्य के साथ ज़्यादा जुड़ाव महसूस कर सकते हैं।
  • क्षेत्रीय असंतुलन: छोटे राज्य अपनी आवश्यकताओं की दीर्घकालीन पूर्ति को बनाए रखने के लिए पर्याप्त संसाधन उत्पन्न करने में सक्षम नहीं हो सकते हैं, जिससे क्षेत्रीय असंतुलन की स्थिति पैदा हो सकता है।

निष्कर्ष:

अतः भारत में, नए राज्यों का निर्माण एक दोधारी तलवार है। हालाँकि इसमें एक तरफ महत्वपूर्ण संभावनाएँ हैं तो वहीं दूसरी ओर इसमें कई चुनौतियाँ भी हैं। इस तरह के महत्वपूर्ण कदम उठाते समय व्यापक राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखते हुए एक सूचित, संवेदनशील और सहभागी दृष्टिकोण बहुत ज़रूरी है। स्थानीय शासन को सशक्त बनाने और समय- समय पर उठने वाले ऐसे मामलों (भील प्रदेश, गोरखा लैंड, नागालिम, पश्चिमी उत्तर प्रदेश इत्यादि) के आधार पर राज्य निर्माण की माँगों को निर्धारित करने की आवश्यकता है। 

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न:

प्रश्न: भारतीय राजनीति में, छोटे राज्यों की मांग एक आवर्ती विषय रही है।  भारत में, विशेष रूप से हाल की मांगों के संदर्भ में, छोटे राज्यों के निर्माण के पक्ष और विपक्ष में तर्कों की आलोचनात्मक जांच करें। 

(15 अंक, 250 शब्द)

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