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पंचायती राज वित्त पर RBI की रिपोर्ट (RBI report on Panchayati Raj finance)

Samsul Ansari January 31, 2024 11:23 111 0

संदर्भ:

हाल ही में, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा वित्तीय वर्ष 2020-21 से 2022-23 के लिए “पंचायती राज संस्थानों का वित्त” शीर्षक से एक  रिपोर्ट जारी की गई है। यह उनके वित्त और भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में उनकी भूमिका का आकलन प्रस्तुत करता है।

प्रारंभिक परीक्षा की प्रासंगिकता: भारत में पंचायती राज संस्थाएँ।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: पंचायती राज संस्थाएँ- संवैधानिक प्रावधान, महत्त्व, चुनौतियाँ तथा आगे की राह।

रिपोर्ट की मुख्य बातें

  • पंचायतों के अपने राजस्व स्रोत: पंचायतों के अपने राजस्व स्रोत सीमित हैं, जो मुख्य रूप से संपत्ति कर, शुल्क और जुर्माने के रूप में प्राप्त होता है ।
  • पंचायतों का औसत राजस्व: यह आँकड़ा वित्तीय वर्ष 2020-21 में 21.2 लाख, 2021-22 में 23.2 लाख और 2022-23 में मामूली गिरावट के साथ 21.23 लाख पर था।
  • पंचायतों का औसत व्यय: यह व्यय वित्तीय वर्ष 2020-21 में 17.3 लाख से घटकर 2022-23 में 12.5 लाख हो गया है।
  • शक्तियों का हस्तांतरण: पंचायतों को प्राप्त शक्तियों और कार्यों के हस्तांतरण से संबंधित अंतर-राज्यीय भिन्नताएँ (विभिन्न राज्यों के मध्य बहुत ज्यादा अंतर ) अत्यधिक हैं।
  • असमान राजकोषीय डेटा: पंचायतों के राजस्व और व्यय से संबंधित डेटा की असमान उपलब्धता के कारण पंचायती राज संस्थानों (PRIs) के राजकोषीय घाटे का आकलन करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य हो जाता है I

पंचायती राज के बारे में

  • स्वशासन: भारत में पंचायती राज व्यवस्था ग्रामीण स्थानीय स्वशासन की प्रणाली का प्रतीक मानी जाती है।
  • जमीनी स्तर का लोकतंत्र: महात्मा गांधी ने शासन के विकेंद्रीकृत रूप में ग्राम स्वराज की वकालत की थी, जो भारत की राजनीतिक व्यवस्था की आधारशिला के रूप में कार्य करता है।
  • 73वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1992: इस अधिनियम द्वारा संविधान के अनुच्छेद- 40 को व्यावहारिक आकार दिया गया है और संविधान में एक नया भाग-IX जोड़ा गया (अनुच्छेद-243 से 243O तक)।
  • इसमें एक नई ग्यारहवीं अनुसूची भी जोड़ी गई, जिसमें 29 कार्यात्मक वस्तुएँ शामिल हैं।

भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में पंचायती राज की भूमिका

  • ग्रामीण विकास: इसमें कृषि, ग्रामीण उद्योग और आवश्यक सामाजिक बुनियादी ढाँचे, जैसे- स्कूल, क्लीनिक, सड़क आदि सहित विभिन्न क्षेत्र शामिल हैं।
  • कृषि विकास: PRIs की कार्यावाहियों और अन्य पहलों द्वारा कृषि उत्पादकता को बढ़ावा मिलता है एवं  टिकाऊ कृषि पद्धतियों को समर्थन प्रदान किया जाता हैं तथा समग्र आर्थिक  लोच में भी वृद्धि होती है।
  • SDG का स्थानीयकरण: पंचायती राज मंत्रालय (MoPR) द्वारा ग्रामीण भारत में PRIs के सहयोग से सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) को आगे बढ़ाया जा रहा है।
  • महिला सशक्तीकरण: स्थानीय शासन में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी और बेहतर परिणामों के बीच एक सकारात्मक तथा महत्त्वपूर्ण संबंध पाया गया है।

भारत में पंचायती राज से जुड़ी चुनौतियाँ

  • निधि: भारत में पंचायती राज से जुड़ी विभिन्न चुनौतियों के तहत निधि संबंधी चुनौतियाँ प्रमुख हैं, जिनके अंतर्गत अपर्याप्त वित्तीय संसाधन, अनुदानों पर अधिक निर्भरता (लगभग 95%) और राजस्व सृजन में व्याप्त विसंगतियाँ आदि निहित हैं।
  • कार्यशीलता : पंचायती राज से संबंधित एक अन्य चिंता शक्ति के प्रभावी हस्तांतरण में कमी से जुड़ा हुआ है। इसके अलावा, ग्रामीण विकास रिपोर्ट पर स्थायी समिति के अनुसार, पंचायतों द्वारा अनिवार्य बैठकें नहीं ली जाती रही हैं और साथ ही विशेष रूप से महिला प्रतिनिधियों की उपस्थिति कम पाई गई है।
  • कार्यकर्ता: ग्रामीण विकास पर स्थायी समिति के अनुसार, सहायक कर्मचारियों और कर्मियों की अत्यधिक कमी पाई गई है, जो उनके कामकाज और सेवाओं के निष्पादन को प्रभावित करती है।
    • संविधान का अनुच्छेद-243G पंचायतों को शक्तियों (धन, कार्य और पदाधिकारी) के हस्तांतरण के मामले में राज्य सरकारों को विवेक की अनुमति देता है।

आगे की राह

  • 3F का हस्तांतरण: राज्य सरकारों को आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय योजनाओं के संबंध में प्रभावी ढंग से योजना बनाने के लिए पंचायतों को धन, विभिन्न कार्यों और पदाधिकारियों की उपलब्धता बनाए रखने के लिए पर्याप्त प्रयास करने चाहिए।
  • राज्य FC की समय पर स्थापना: रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि वर्तमान में हो रही  अत्यधिक देरी से बचने के लिए SFC की शीघ्र स्थापना जरूरी है । SFC पीआरआई की वित्तीय स्थिति को मजबूत कर सकते हैं और उन्हें अपनी जिम्मेदारियों को बेहतर ढंग से पूरा करने में मदद कर सकते हैं।
  • स्थानीय राजस्व सृजन: PRIs स्थानीय राजस्व सृजन में सुधार कर सकते हैं और पारदर्शी बजट तथा राजकोषीय अनुशासन, स्थानीय समुदाय की सक्रिय भागीदारी आदि जैसे उपायों के माध्यम से अपने सीमित संसाधनों का अधिक कुशलतापूर्वक एवं प्रभावी ढंग से उपयोग कर सकते हैं।
  • डेटा सृजन : जी20 डेटा गैप्स इनिशिएटिव (G20 Data Gaps Initiative) द्वारा नीति निर्माण के लिए प्रासंगिक डेटा अंतराल के समाधान की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। वर्तमान में राष्ट्रीय स्तर पर पंचायत बजट की जानकारी का प्राथमिक स्रोत ई ग्राम स्वराज ( eGramSwaraj) है।
  • भागीदारी में सुधार: ग्रामीण विकास पर स्थायी समिति द्वारा सिफारिश की गई है कि राज्य सरकारों को महिलाओं सहित पंचायत प्रतिनिधियों की भागीदारी को सुनिश्चित करने हेतु ग्राम सभा की बैठकों में कोरम पूरा करना जरूरी है।

                                                                                                                                                 News Source: Livemint

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