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स्वच्छ भारत मिशन की वास्तविकता

Lokesh Pal April 25, 2024 05:15 153 0

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक (EPI), कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिए अटल मिशन (AMRUT), प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) और राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP)।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: स्वच्छ भारत मिशन,  WASH (जल, स्वच्छता और स्वास्थ्य) से जुड़ी चुनौतियाँ।

संदर्भ :

2022 में पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक (EPI) में भारत को 180 देशों में सबसे निचले पायदान पर रखा गया था।

पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक (EPI) में भारत की निम्न रैंकिंग:

  • पर्यावरणीय प्रदर्शन का ढाँचा : वर्ष 2022 का EPI 40 प्रदर्शन संकेतकों को 11 निर्गम श्रेणियों में  बांँट कर 3 नीतिगत उद्देश्यों यथा  -जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन, पर्यावरण स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी तंत्र जीवन शक्ति के आधार पर देशों का मूल्यांकन करता है।
  • EPI मूल्यांकन पर प्रतिक्रिया: भारत सरकार ने EPI की कार्यप्रणाली की आलोचना करते हुए यह दावा किया कि यह सूचकांक  भारत की पर्यावरणीय स्थिति को सटीक रूप से प्रतिबिंबित नहीं करती है।

विकास पहल की आलोचना:

  • भारत की पर्यावरणीय प्रदर्शन चुनौतियाँ: स्वच्छ भारत मिशन (SBM), कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिए अटल मिशन (AMRUT), प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) और राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) जैसी पहलों के बावजूद, भारत का पर्यावरणीय प्रदर्शन स्तर खराब बना हुआ है।
  • मिशन की विफलताएँ: SBM का उद्देश्य WASH (जल, स्वच्छता और स्वास्थ्य) के मुद्दे को संबोधित करना है। इसी तरह, SCM से कस्बों की स्वच्छ ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने की अपेक्षा की जाती है।
    • इन मिशनों का उद्देश्य जीवन स्तर में सुधार करना और स्वच्छता और स्वच्छ ऊर्जा जैसे मुद्दों का समाधान करना था, लेकिन यह वायु और जल प्रदूषण को कम करने में विफल रहे हैं।
  • SBM की सीमाएँ: उदाहरण के लिए, SBM जाति-आधारित स्वच्छता प्रथाओं को जारी रखता है और अपशिष्ट प्रबंधन को प्रभावी ढंग से निपटान किए  बिना पूँजी-गहन प्रौद्योगिकियों पर निर्भर करता है।

स्वच्छ भारत मिशन की चुनौतियाँ :

  • बुनियादी ढाँचे की खराब गुणवत्ता: रिपोर्ट स्वच्छ भारत मिशन (SBM) के तहत शौचालयों की अपर्याप्त निर्माण गुणवत्ता का सुझाव देती है, जिससे पहल की प्रभावशीलता पर सवाल उठते हैं।
    • 2020 में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की एक रिपोर्ट में SBM की सफलता पर सरकार के दावों पर सवाल उठाए हैं।
  • शहरी क्षेत्रों में स्लम स्वच्छता गैप: कुछ शहरीकरण अध्ययनों से पता चलाता है कि कुछ महानगरों में, झुग्गी बस्तियों में समुदायों के पास अभी भी सार्वजनिक शौचालयों तक पहुँच का अभाव है।
  • अपशिष्ट उपचार का अभाव: ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालय निर्माण अपशिष्ट उपचार से जुड़ा नहीं है, जिससे मल कीचड़ का अनुचित निपटान होता है और पर्यावरण प्रदूषित होता है।
  • हाथ से मैला ढोना (मैनुअल स्कैवेंजिंग): सेप्टिक टैंकों को मैनुअल स्कैवेंजरों द्वारा साफ किया जाता है और कीचड़ को विभिन्न जल प्रणालियों में फेंक दिया जाता है।
  • अप्रभावी अपशिष्ट प्रबंधन प्रौद्योगिकियाँ: बड़ी, पूँजी-गहन अपशिष्ट प्रबंधन प्रौद्योगिकियाँ अपेक्षाओं को पूरा करने में विफल रही हैं, जिसके परिणामस्वरूप स्वास्थ्य संकट पैदा हुआ है और उन्हें ठीक करने के लिए अतिरिक्त संसाधनों की आवश्यकता है।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं का निजीकरण: स्वच्छता कार्य की आउटसोर्सिंग निजी प्रबंधकों को करने से, जो अधीनस्थ समुदायों को रोजगार प्रदान करते हैं से सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण और जातिगत भेदभाव को बढ़ावा मिला है।
    • शहर में  सरकारों से अधिक मशीनें खरीदने के लिए कहा जा रहा है, जिनमें रोड स्वीपिंग मशीनें भी शामिल हैं, जिनकी लागत अधिक है, जियो-टैगिंग के साथ कचरे को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए अधिक वाहन इत्यादि।
  • ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में सफलता का अभाव: अधिकांश शहरों में, केंद्र सरकार ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में तकनीकी समाधान अपना रही है।
    • इनमें से कुछ समाधान अपशिष्ट-से-ऊर्जा संयंत्रों और जैविक मिथेनीकरण के रूप में हैं। लेकिन प्राय: मामले में सफलता की मात्र दिखावा ही है।
  • अपर्याप्त मानव संसाधन: स्वच्छता निरीक्षकों की कमी और भर्ती प्रयासों में अपर्याप्तता स्थानीय स्तर पर स्वच्छता कार्यक्रमों की प्रभावी निगरानी और प्रबंधन में बाधा डालती है।
    • हिमाचल प्रदेश राज्य में जहाँ 50 से अधिक नगर निकाय हैं, वहाँ केवल 20 स्वच्छता निरीक्षक हैं।

EPI प्रदर्शन को विकास मॉडल से जोड़ना:

  • विकास मॉडल की खामियाँ: भारत की निम्न EPI रैंकिंग इसके विकास मॉडल और वहनीयता में खामियों को उजागर करती हैं।
  • जलवायु परिवर्तन और मानवाधिकार संबंध: जलवायु परिवर्तन और मानवाधिकारों के मध्य संबंध पर उच्चतम न्यायालय की टिप्पणी विकास नीतियों के पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता को रेखांकित करती है।
  • विकास का पुनर्मूल्यांकन: मानवजनित और प्रणालीगत कारक पर्यावरणीय चुनौतियों में योगदान करते हैं, जिससे विकास मॉडल और नीतियों का पुनर्मूल्यांकन आवश्यक हो जाता है।

निष्कर्ष

अतः जलवायु परिवर्तन से निपटने और सतत विकास सुनिश्चित करने के लिए नीतियों को मानवाधिकारों के अनुरूप बनाना आवश्यक है। भारत में पर्यावरणीय गिरावट को कम करने और समान विकास को बढ़ावा देने के लिए सुधारों की आवश्यकता है।

Source: The Hindu

प्रारंभिक परीक्षा पर आधारित प्रश्न :                                                            (UPSC:2022)

प्रश्न. WHO के वायु गुणवत्ता दिशा-निर्देशों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:                

  1. PM2.5 का 24 घंटा माध्य 15 µg/m³ से अधिक नहीं बढ़ना चाहिये और PM2.5 का वार्षिक माध्य 5 µg/m³ से अधिक नहीं बढ़ना चाहिये। 
  2. एक वर्ष में ओज़ोन प्रदूषण का उच्चतम स्तर प्रतिकूल मौसम के दौरान होता है। 
  3. PM10 फेफड़े के अवरोध का वेधन कर रक्त-प्रवाह में प्रवेश कर सकता है। 
  4. वायु में अत्यधिक ओज़ोन दमा को उत्पन्न कर सकती है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा सही है?

  1. केवल 1, 3 और 4 
  2. केवल 1 और 4 
  3. केवल 2, 3 और 4 
  4. केवल 1 और 2 

उत्तर: (b) 

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