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उर्वरक संकट को कम करने के लिए पोषक तत्त्वों के पुनर्चक्रण की आवश्यकता

Lokesh Pal June 03, 2024 05:15 128 0

संदर्भ:

मानवीय गतिविधियों की वजह से जैव-भू-रासायनिक चक्र बाधित हो रहे हैं जिससे पृथ्वी पर जीवन के लिए आवश्यक कई महत्त्वपूर्ण रासायनिक तत्त्वों में तेजी से कमी आ रही है। 

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: पोषक तत्त्व पुनर्चक्रण, मैक्रो और सूक्ष्म पोषक तत्त्व, आदि।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: भारत में उर्वरक संकट को ठीक करने के लिए पोषक तत्त्व पुनर्चक्रण, पोषक तत्त्व पुनर्चक्रण का महत्त्व।

उर्वरक संकट को कम करने के लिए पोषक तत्त्वों के पुनर्चक्रण की आवश्यकता:

  • मानव गतिविधि का प्रभाव: यदि हम और आप यह सोचते हैं कि पृथ्वी पर जीवन को बनाए के लिए कार्बन ही सबसे खराब है, तो हम और आप भूल कर रहे हैं क्योंकि पृथ्वी पर जीवन को कायम रखने वाले अन्य आवश्यक तत्त्व भी स्थिरता की ग्रहीय सीमाओं को पार कर रहे हैं, क्योंकि मानवीय गतिविधियों की वजह से इन आवश्यक रासायनिक तत्त्वों के ‘जैव भू-रासायनिक’ चक्र टूट रहे हैं
  • पारंपरिक कृषि पद्धतियाँ: ‘हरित क्रांति, के आने से लगभग दस हजार वर्ष पूर्व तक किसान फलीदार फसल चक्र और पशुपालन को मिलाकर बिना उर्वरक के फसलों का उत्पादन करते थे
    • फलिदार फसलें और कुछ मृदा सूक्ष्मजीव वायुमंडलीय नाइट्रोजन, के स्थिरीकरण में सहायक होते हैं, जबकि पशुधन से प्राप्त खाद और मूत्र मिट्टी को पोषक तत्त्वों खासकर, नाइट्रोजन (N), फास्फोरस (P), पोटेशियम (K), सल्फर (S), कार्बन (C) और यहाँ तक ​​कि सूक्ष्म पोषक तत्त्वों से भी समृद्ध करते हैं।
  • आधुनिक खेती: लेकिन भारत में आधुनिक फसल चक्र फली आधारित फसल चक्र से अलग हट कर की जा रही है और यह खाद के बजाय एनपीके उर्वरकों पर अधिक निर्भर है, जिससे भारतीय सरकार को सब्सिडी के रूप में प्रति वर्ष तकरीबन 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हो रहा है।
  • पशुपालन का प्रभाव: जैसे-जैसे पशुपालन फसलों से दूर होता गया और शहरी क्षेत्रों में डेयरियों का प्रचलन बढ़ता गया, जिसकी वजह से पशुओं द्वारा निर्मुक्त खाद और मूत्र हमारे भूमिगत और सतही जल निकायों में पहुँच गए
    • अनुपचारित डेयरी या घरेलू और अन्य अपशिष्टों के छोड़े जाने से नई दिल्ली में साहिबी नदी एक अपशिष्ट जल नाले (नजफगढ़ नाला) में बदल गई है, जो शाहदरा नाले के साथ मिलकर यमुना नदी को भारी मात्रा में प्रदूषित करता है।
  • पोषक तत्व प्रदूषण से निपटना: पोषक तत्व चक्र पोषक तत्व प्रदूषण का कारण बन रहे हैं, लेकिन अच्छी खबर यह है कि कुछ प्रदूषक कुछ जगहों पर पोषक तत्त्व के रूप में कार्य करते हैं और उन्हें वापस लाया जा सकता है।
  • उर्वरकों का उपयोग: दुर्भाग्यवश, उर्वरक के रूप में आपूर्ति किये जाने वाले पोषक तत्त्वों का 30 प्रतिशत से भी कम हिस्सा फसल की उपज के रूप में प्राप्त हो पाता है तथा शेष बढ़ते प्रदूषण में योगदान देता है।
  • पोषक तत्त्वों के पर्यावरणीय प्रभाव: 
    • जल निकायों में इन पोषक तत्त्वों के संचय से अवांछित रूप से शैवालों की संख्या में वृद्धि हो जाती है, जिससे सुपोषण की स्थिति उत्पन्न हो जाती है तथा मछलियों और अन्य उपयोगी जलीय एवं समुद्री प्रजातियों की मृत्यु हो जाती है।
    • इसकी वजह से पारिस्थितिकी तंत्र के नष्ट हो जाने का खतरा बढ़ जाता है तथा मछली पकड़ने, पर्यटन और अन्य पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर निर्भर लोगों की आजीविका नष्ट हो जाती है।
    • हमारे तटीय क्षेत्रों में, शैवालों के सुपोषण के कारण धीरे-धीरे हरे ज्वार, भूरे और अंततः लाल ज्वार आते हैं तथा इससे जहरीली प्रजातियों का जमाव भी होता है।
    • इन प्रवृत्तियों को उलटने से जल अर्थव्यवस्था का पुनर्निर्माण हो सकता है और लाखों लोगों को आजीविका को सहारा मिल सकता है।
  • वायु प्रदूषण: उर्वरकों, खादों, मूत्र और मल-मूत्र से निकलने वाले नाइट्रोजनयुक्त यौगिक अमोनिया या नाइट्रस ऑक्साइड के रूप में वायु प्रदूषण का कारण बनते हैं।
    • अमोनिया, बिजली, परिवहन उद्योग या अपशिष्ट निपटान के लिए ईंधन या अवशेषों के जलने से उत्सर्जित NO2 गैसों (नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और नाइट्रिक ऑक्साइड) के साथ मिलकर कण प्रदूषण (PM2.5 और PM5) में योगदान देता है।
    • भारत में प्रति वर्ष दस लाख से अधिक मौतें PM2.5 के कारण होती हैं, जबकि कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि सभी मौतों में से तकरीबन 7 प्रतिशत मौतें ही PM2.5 के कारण होती हैं, क्योंकि PM2.5 के संदर्भ में विश्व के सबसे प्रदूषित शहरों की संख्या भारत में सबसे अधिक है।

आगे की राह:

  • पोषक चक्र को बहाल करना: ये आँकड़े सामान्य रूप से वायु प्रदूषण और विशेष रूप से PM2.5 को नियंत्रित करने के लिए कठोर उपायों की माँग को रेखांकित करते हैं, लेकिन इसके लिए न सिर्फ ईंधन के जलने से होने वाले प्रदूषण पर अंकुश लगाना होगा, बल्कि कृषि और अपशिष्ट प्रबंधन में पोषक चक्र को भी बहाल करना होगा।
  • खाद पुनर्चक्रण की संभावना: भारत में पशुधन खाद का केवल एक अंश ही फसल उत्पादन के लिए पुनर्चक्रित किया जाता है, जबकि मूत्र का पुनर्चक्रण लगभग नगण्य है।
    • यदि हम 200 मिलियन मवेशियों द्वारा उत्पादित प्रतिदिन प्रति पशु 15 किलोग्राम गोबर का पुनर्चक्रण करें, तो इसका 5 प्रतिशत एनपीके पोषक तत्त्व 1,50,000 मीट्रिक टन होगा।
    • यह हमारे औसत दैनिक उर्वरक उपभोग से कहीं ज़्यादा है, जो लगभग 1,37,000 मीट्रिक टन है। 
    • इसमें प्रति पशु प्रतिदिन 15-20 लीटर मवेशी मूत्र से लगभग 3 प्रतिशत पोषक तत्त्वों की हानि को जोड़ दें, जो कुल मिलाकर 1,20,000 मीट्रिक टन है।
  • वैश्विक स्तर पर पुनर्चक्रण : खाद और मूत्र से पोषक तत्त्व प्रतिधारण और पुनर्चक्रण को अधिकतम करने के लिए यूरोप और अन्य स्थानों पर प्रौद्योगिकियाँ और सर्वोत्तम प्रथाएँ उपलब्ध हैं।
  • गोबर की खाद के लाभ: हम पहले से ही जानते हैं कि वर्तमान में अनुशंसित उर्वरक की कम से कम आधी मात्रा को फसल की उपज में किसी भी प्रकार की हानि के बगैर गोबर की खाद से प्रतिस्थापित किया जा सकता है।
    • इससे न सिर्फ एक लाख करोड़ रुपये तक ही बचत होती है, बल्कि उर्वरकों, खादों और कृषि के पर्यावरणीय प्रभाव में भी कमी आती है।
  • कम अपशिष्ट जल उपचार क्षमता: इसी तरह, भारत में प्रतिदिन उत्पादित 150 बिलियन लीटर से अधिक अपशिष्ट जल से 55,000 मीट्रिक टन से अधिक पोषक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं, जो हमारे उर्वरक उपभोग के 40 प्रतिशत के बराबर है। ऐसा हमारी बेहद कम अपशिष्ट जल उपचार क्षमता यानी लगभग 27 प्रतिशत के कारण होता है।
  • सीवेज उपचार संयंत्रों की संख्या को बढ़ाना: अधिकांश सीवेज उपचार संयंत्र (STP) केवल शहरों में ही मौजूद हैं और उनमें से केवल कुछ ही काम करते हैं।
    • दिल्ली और हैदराबाद जैसे कुछ महानगरीय शहर अपनी एसटीपी क्षमता का तेजी से विस्तार कर रहे हैं, ताकि एक या दो वर्षों में वे 100 प्रतिशत अपशिष्ट जल उपचार में सक्षम बन सकें और भारत के कुछ अन्य बड़े शहर भी इसका अनुसरण कर रहे हैं।

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न :

जीएस-03: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन। 

प्र. भारत में पर्यावरणीय स्थिरता और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर बाधित जैव-भू-रासायनिक चक्रों के प्रभाव की चर्चा करें और पोषक तत्त्व चक्रों को बहाल करने और प्रदूषण को कम करने के लिए व्यापक रणनीतियों का सुझाव प्रस्तुत करें।    (15 अंक, 250 शब्द) 

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