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सुरक्षित दवाओं के क्षेत्र में अपना नेतृत्व पुनः स्थापित करना

Lokesh Pal August 23, 2025 05:00 9 0

संदर्भ:

भारत, जिसे “विश्व की फार्मेसी” कहा जाता है, को घटिया और नकली दवाओं (SF) के कारण गंभीर खतरा का सामना करना पड़ रहा है, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य और वैश्विक स्तर पर विश्वास को कमजोर करती हैं।

भारत की वैश्विक औषधि स्थिति:

  • वैश्विक पहुंच और प्रभाव: भारत विश्व की 60% से अधिक वैक्सीन मांग की आपूर्ति करता है, जिसका अर्थ है कि वैश्विक स्तर पर प्रशासित प्रत्येक दस में से छह वैक्सीन भारत में निर्मित होते हैं
    • भारत संयुक्त राज्य अमेरिका को 40% जेनेरिक दवाइयां तथा यूनाइटेड किंगडम को 25% दवाइयां उपलब्ध कराता है।
    • हमारी सस्ती, उच्च गुणवत्ता वाली दवाओं ने लाखों लोगों की जान बचाई है, विशेष रूप से निम्न और मध्यम आय वाले देशों में, और ये जन औषधि तथा आयुष्मान भारत जैसी घरेलू पहलों के लिए भी महत्वपूर्ण हैं।
  • जेनेरिक दवाओं के बारे में: जेनेरिक दवाएं लागत प्रभावी विकल्प हैं जो मूल दवा के पेटेंट अधिकार की समाप्ति के बाद निर्मित/उत्पादित किए जाते हैं।
    • ये दवाइयां सस्ती होती हैं क्योंकि उनमें प्रारंभिक अनुसंधान और विकास लागत शामिल नहीं होती है, जिससे भारत उनके उत्पादन में विश्व में अग्रणी बन गया है।
  • आर्थिक फुटप्रिंट और विश्वास: भारत का फार्मास्युटिकल निर्यात 2023 में 25 बिलियन डॉलर से अधिक का हो गया है
    • भारत में 650 से अधिक अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन (FDA)-अनुमोदित विनिर्माण सुविधाओं की उपस्थिति हमारे गुणवत्ता मानकों में रखे गए वैश्विक विश्वास का प्रमाण है और राष्ट्रीय गौरव का स्रोत है।

घटिया और नकली (SF) दवाओं का बढ़ता खतरा:

  • घटिया दवाओं के बारे में: घटिया दवाएं वे हैं जो गुणवत्ता मानकों और विनिर्देशों को पूरा नहीं करते हैं, जो अक्सर खराब विनिर्माण प्रथाओं या अपर्याप्त गुणवत्ता नियंत्रण के कारण होता है।
  • नकली दवाओं के बारे में: यह धोखाधड़ी से जुड़ा एक जानबूझकर किया गया आपराधिक कृत्य है। नकली दवाओं में ब्रांडिंग और पैकेजिंग की नकल की जाती है, जिसमें चाक पाउडर जैसे निष्क्रिय पदार्थ, यहाँ तक कि हानिकारक रसायन भी शामिल होते हैं, जिन्हें अनुचित लाभ प्राप्ति के लिए मिलाया जाता है।
  • आंकड़े: 2023 में किए गए एक अध्ययन के अनुसार भारत में बिकने वाली लगभग 20% दवाइयां नकली या खराब गुणवत्ता वाली होती हैं।
    • वैश्विक स्तर पर, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने चेतावनी दी है कि निम्न और मध्यम आय वाले देशों में दस में से एक चिकित्सा उत्पाद घटिया और नकली है।
  • घटिया और नकली का जोखिम: प्रत्येक नागरिक घटिया और नकली चिकित्सा उत्पादों का सामना कर सकते है, जिसमें शामिल हैं:
    • सुभेद्य/कमजोर आबादी
    • सामाजिक सुरक्षा की कमी वाले देश
    • कमजोर स्वास्थ्य प्रणालियों वाले देश
    • अनधिकृत स्रोतों (ऑनलाइन सहित) से चिकित्सा उत्पाद खरीदने वाले व्यक्ति
    • बाधित आपूर्ति श्रृंखला वाले देश
    • ऐसे देश जहां विशिष्ट चिकित्सा उत्पादों की मांग बढ़ रही है।
  • घटिया और नकली के कारण दुखद मानव मौतें:
    • अंतर्राष्ट्रीय घटनाएँ: 2022 में, भारत में निर्मित कफ सिरप के कारण गाम्बिया में 70 से अधिक बच्चों की मौत हुई
    • उज्बेकिस्तान और कैमरून में भी ऐसी ही विनाशकारी घटनाएं घटित हुई, जिससे भारत की अंतर्राष्ट्रीय विश्वसनीयता और छवि को गंभीर नुकसान पहुंचा है।
      • जांच से पता चला कि कफ सिरप में डायथिलीन ग्लाइकॉल और एथिलीन ग्लाइकॉल जैसे जहरीले औद्योगिक रसायन मौजूद थे।
      • घरेलू प्रभाव: नकली दवाओं की मौजूदगी का मतलब है कि कैंसर रोगियों को अप्रभावी कीमोथेरेपी मिल रही है, जबकि अन्य रोगी बढ़ते रोग या गलत निदान से पीड़ित हैं, जिससे परिवारों को लंबे समय तक पीड़ा और वित्तीय बर्बादी का सामना करना पड़ता है।

घटिया और नकली (SF) दवाओं के परिणाम:

  • प्रत्यक्ष स्वास्थ्य प्रभाव: नकली दवाएं उपचार नहीं करती, बल्कि स्वास्थ्य की स्थिति को और खराब कर देती हैं, हानिकारक रसायन सीधे तौर पर प्रभावित कर सकते हैं या मृत्यु का कारण बन सकते हैं
    • एंटीबायोटिक दवाओं की गलत खुराक से रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) क्षमता प्रभावित होती है, जिससे संक्रमण के विरुद्ध दवाएं अप्रभावी हो जाते हैं।
  • विश्वास का क्षरण: जब दवाइयाँ अप्रभावी हो जाते हैं, तो मरीज़ों का डॉक्टरों, स्वास्थ्य सेवा प्रणाली और दवाओं की प्रभावशीलता पर से बुनियादी विश्वास उठ जाता है। इस टूटे हुए विश्वास को पुन: स्थापित करना मुश्किल होता है।
  • आर्थिक और भू-राजनीतिक क्षति: भारत का 25 अरब डॉलर का दवा निर्यात बाजार गंभीर संकट का सामना कर रहा है। देश का “विश्व की फार्मेसी” का खिताब, जो उसकी सॉफ्ट पावर और राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है, दांव पर है, जिससे उसकी वैश्विक प्रतिष्ठा खतरे में पड़ गई है।
  • राष्ट्रीय योजनाओं को कमजोर करना: आयुष्मान भारत जैसी महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य पहल, जो 50 करोड़ भारतीय परिवारों को स्वास्थ्य कवरेज प्रदान करने के लिए बनाई गई है, मूल रूप से तब विफल हो जाती है, जब आपूर्ति की गई दवाएं नकली होती हैं, जिससे अपेक्षित स्वास्थ्य परिणामों की प्राप्ति में बाधा उत्पन्न होती है।

घटिया और नकली दवाओं पर सरकार की प्रतिक्रिया:

  • अवैध विनिर्माण इकाइयों पर छापे और नकली माल की जब्ती,
  • प्रामाणिकता सत्यापन के लिए सर्वाधिक बिकने वाली दवाओं पर क्यूआर कोड का अनिवार्य कार्यान्वयन
  • तीव्र एवं अधिक सटीक परीक्षण सुनिश्चित करने के लिए केन्द्रीय औषधि परीक्षण प्रयोगशालाओं का उन्नयन, विनिर्माण से उपभोक्ता तक आपूर्ति श्रृंखला को पारदर्शी बनाने के लिए ट्रैक एवं ट्रेस तंत्र की शुरूआत।

घटिया और नकली (SF) दवाओं से निपटने में विद्यमान बाधाएँ:

  • सीमित सार्वजनिक जागरूकता: जनसंख्या का एक महत्वपूर्ण हिस्सा, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, दवा सत्यापन के लिए क्यूआर कोड जैसे उपकरणों का उपयोग करने के बारे में जागरूकता या तकनीकी जानकारी का अभाव रखता है।
  • ग्रामीण भेद्यता: ग्रामीण भारत, अपनी खंडित चिकित्सा पहुंच के साथ, बिना लाइसेंस वाली फार्मेसियों और असत्यापित दवाओं के प्रति अत्यधिक संवेदनशील बना हुआ है, जिससे असली दवाएं उपलब्ध कराने और नकली दवाओं को रोकने की दोहरी चुनौती उत्पन्न होती है।
  • आपूर्ति श्रृंखला में घुसपैठ: मजबूत ट्रैक और ट्रेस प्रणालियों के बावजूद, भ्रष्टाचार और अस्पष्टता के कारण रिसाव हो सकता है, जिससे नकली दवाएं वैध आपूर्ति श्रृंखलाओं में शामिल हो जाते हैं।
  • कमजोर प्रवर्तन और समन्वय: मौजूदा कानूनों को अक्सर पर्याप्त रूप से लागू नहीं किया जाता है, तथा केंद्रीय और राज्य औषधि प्राधिकरणों के बीच समन्वय का अभाव है।
  • दोषपूर्ण मानसिकता: नकली दवाओं के उत्पादन और वितरण को अक्सर घातक परिणामों वाले गंभीर आपराधिक कृत्य के बजाय महज तकनीकी उल्लंघन माना जाता है।

आगे की राह:

  • कानून और प्रवर्तन को मजबूत करना: नकली दवाओं के उत्पादन और बिक्री को सदोष हत्या के रूप में वर्गीकृत करने के लिए ड्रग्स और कॉस्मेटिक अधिनियम 1940 जैसे कानून में संशोधन करना महत्वपूर्ण है, जिससे त्वरित, अनुकरणीय और निवारक सजा सुनिश्चित हो सके।
    • केन्द्रीय और राज्य औषधि प्राधिकरणों के बीच बेहतर समन्वय होना चाहिए, प्रवर्तन एजेंसियों को पर्याप्त संसाधन उपलब्ध होने चाहिए तथा उन्हें अपने परिणामों के लिए जवाबदेह बनाया जाना चाहिए।
  • अनिवार्य उद्योग स्व-नियमन: दवा उद्योग को छेड़छाड़-रोधी पैकेजिंग, उन्नत क्रमांकन (प्रत्येक दवा पट्टी को विशिष्ट कोड प्रदान करना) तथा वास्तविक समय आपूर्ति श्रृंखला ट्रैकिंग प्रौद्योगिकियों को सक्रिय रूप से अपनाना तथा उनमें निवेश करना चाहिए।
    • जटिल ऑडिट प्रक्रिया, कठोर गुणवत्ता आश्वासन जांच, तथा अनियमितताओं की रिपोर्ट करने के लिए नियामकों के साथ सक्रिय सहयोग आदि से कोई समझौता नहीं किया जाना चाहिए।
  • खुदरा विक्रेताओं और फार्मासिस्टों को सशक्त बनाना: केमिस्ट और फार्मासिस्ट महत्वपूर्ण द्वारपाल के रूप में कार्य करते हैं।
    • उन्हें अत्यधिक सतर्कता बरतनी चाहिए, केवल अधिकृत वितरकों से ही माल खरीदना चाहिए तथा उचित प्रमाणीकरण या ट्रेसेबिलिटी के अभाव वाले किसी भी स्टॉक को स्पष्ट रूप से अस्वीकार कर देना चाहिए।
  • जन जागरूकता अभियान: सभी प्रमुख मीडिया प्लेटफार्मों – टेलीविजन, रेडियो, डिजिटल चैनलों और सोशल मीडिया प्रभावशाली लोगों का लाभ उठाते हुए – व्यापक स्तर पर “जागो ग्राहक जागो” (जागो, उपभोक्ता) शैली जैसे कार्यक्रमों का आयोजन होना चाहिए ताकि जनता को वास्तविक दवाओं की पहचान करने और सत्यापित करने के बारे में शिक्षित किया जा सके।
  • प्रौद्योगिकी का उपयोग: यद्यपि प्रौद्योगिकी कोई रामबाण औषधि नहीं है, फिर भी यह एक शक्तिशाली साधन है।
    • उन्नत AI अनुप्रयोगों का उपयोग दवा में त्रुटि का पता लगाने, विशाल साक्ष्य को सारांशित करने और न्यायिक अनुसंधान समय को काफी हद तक कम करने के लिए किया जा सकता है, जिससे दवा विनियमन और संबंधित कानूनी प्रक्रियाओं में दक्षता बढ़ सकती है।
  • सहयोगात्मक और दृढ़ कार्यवाही: इस संकट के लिए “समग्र सरकार, समग्र उद्योग और समग्र समाज के दृष्टिकोण” की आवश्यकता है
    • उद्योग जगत के लोगों, नियामक निकायों, कानून प्रवर्तन एजेंसियों और जनता के बीच मजबूत सहयोग सर्वोपरि है।
    • इन आवश्यक सुधारों को आगे बढ़ाने के लिए कानूनी और फार्मास्युटिकल दोनों क्षेत्रों के नेताओं की दृढ़ इच्छाशक्ति और दृढ़ संकल्प महत्वपूर्ण है।

निष्कर्ष:

भारत के दवा उद्योग की शुद्धता/ विश्वसनीयता महज आर्थिक हित से परे है; यह 1.4 अरब भारतीयों और वैश्विक स्तर पर अनगिनत लोगों के स्वास्थ्य और विश्वास को प्रभावित करता है, जो “भारत में निर्मित” दवाओं पर निर्भर हैं

  • यह एक राष्ट्रीय संकट है जिसके लिए त्वरित, महत्वाकांक्षी और दृढ़ कार्यवाही की आवश्यकता है, न कि क्रमिक कदम उठाने की।
  • अब यह आवश्यक हो गया है कि हम तुरंत कार्यवाही करें, तथा यह सुनिश्चित करें कि “मेड इन इंडिया” लेबल वाली प्रत्येक गोली/दवा/चिकित्सा उत्पाद में सुरक्षा, प्रभावकारिता और शुद्धता का अटूट आश्वासन हो।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: घटिया और नकली (SF) दवाओं के बढ़ते संकट से भारत की “विश्व की फार्मेसी” के रूप में प्रतिष्ठित स्थिति को चुनौती मिल रही है। भारत के लिए इस संकट के बहुआयामी प्रभावों पर चर्चा कीजिए। भारत में निर्मित दवाओं की गुणवत्ता और शुद्धता सुनिश्चित करने के लिए एक व्यापक, बहु-हितधारक रणनीति का सुझाव दीजिए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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