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Lokesh Pal September 02, 2024 05:15 202 0
हाल ही में विभिन्न उच्च न्यायालयों में 60 लाख से अधिक मामले लंबित होने एवं 30% न्यायिक पद रिक्त होने के कारण न्यायिक नियुक्तियों का मुद्दा पुनः चर्चा में आया है। तकनीकी रूप से लंबित मामलों की उच्च मात्रा के साथ, अधिक न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए एक ठोस प्रयास आवश्यक है। हालाँकि इस दबावयुक्त गहन आवश्यकताओं के बावजूद, न्यायिक रिक्तियाँ बनी हुई हैं, जिससे समस्या और बढ़ रही है।
केशवानंद भारती वाद (1973) : केशवानंद भारती मामले में न्यायालय ने माना कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता संविधान के मूल ढाँचे का हिस्सा है। चूँकि एनजेएसी इस स्वतंत्रता को खतरे में डालता है, इसलिए इसे असंवैधानिक माना गया। |
अस्वीकृति के बाद भी, सभी हितधारकों की चिंताओं को बेहतर ढंग से संबोधित करने हेतु NJAC में पुनः सुधार किया जा सकता है |
भारत में न्यायिक नियुक्ति प्रक्रिया में सुधार न्यायपालिका की कार्यकुशलता में सुधार लाने और जनता का विश्वास बहाल करने हेतु महत्त्वपूर्ण है। जहाँ तक कॉलेजियम प्रणाली सवाल है, इसने भी न्यायिक स्वतंत्रता की रक्षा की है, जिसकी पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी को दूर करने की आवश्यकता है। अंतर्राष्ट्रीय प्रथाओं का लाभ उठाकर, भारत के पास एक अधिक संतुलित और प्रभावी प्रणाली तैयार करने का अवसर है, जो न्याय में देरी और रिक्तियों के दबाव संबंधी मुद्दों को संबोधित करते हुए न्यायिक अखंडता को बनाए रखने में सहायक होगी ।
मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्नभारत में कॉलेजियम प्रणाली के विषय में बताते हुए, ‘राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग’ की आवश्यकता की समीक्षा कीजिए | यह न्याय में देरी तथा रिक्त पदों को भरने संबंधी मुद्दों के निपटान में किस प्रकार सहायक होगा? (15 अंक, 250 शब्द) |
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