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विदेश मंत्रालय में आवश्यक सुधार

Lokesh Pal January 13, 2025 05:15 15 0

संदर्भ:

भारत की बढ़ती वैश्विक प्रतिष्ठा के लिए एक अधिक सशक्त विदेश मंत्रालय (MEA) की आवश्यकता है। हालाँकि, लंबे समय से चली आ रही कर्मचारियों की कमी उभरती कूटनीतिक चुनौतियों का प्रभावी ढंग से सामना करने की क्षमता में बाधा पैदा करती है।

भारत का वैश्विक उदय:

  • विदेश नीति की सफलता: भारत अपनी सतत आर्थिक वृद्धि (वी आकार की रिकवरी: तीव्र आर्थिक गिरावट के बाद आर्थिक प्रदर्शन के मापदंडों में त्वरित और निरंतर सुधार की विशेषता), राजनीतिक स्थिरता और एक साहसिक एवं स्वायत्त विदेश नीति के कारण वैश्विक स्तर पर तेजी से उभर रहा है।
    • चाहे वह जी-20 की अध्यक्षता की सफलता हो, या रूस-यूक्रेन संघर्ष के दौरान इसकी रणनीतिक स्वायत्तता हो।
    • कोविड-19 के दौरान वैक्सीन कूटनीति में अपने नेतृत्व की बात हो या फिर ग्लोबल साउथ की चिंताओं को आवाज़ देने की पहल, इन सबके जरिये भारत ने वैश्विक मामलों में प्रमुख भूमिका स्थापित की है।
  • विदेश मंत्रालय में कमियाँ: विदेश मंत्रालय को स्टाफ की अपर्याप्तता, संरचनात्मक अकुशलता और परिचालन सीमाओं जैसी नई युग की मांगों को पूरा करने के लिए खुद को अनुकूलित करने की आवश्यकता है।

विदेश मंत्रालय से जुड़ी चुनौतियाँ:

  • अपर्याप्त स्टाफ: विदेश मंत्रालय में लगभग 850 भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) स्तर के अधिकारी कार्यरत हैं जिनका कार्य विश्व भर में 193 दूतावासों और वाणिज्य दूतावासों में विदेश नीति तैयार करना और उन्हें क्रियान्वित करना है। 
    • हालाँकि, हाल के वर्षों में भारतीय विदेश सेवा के अधिकारियों की वार्षिक संख्या 12-14 से बढ़कर 32-35 हो गई है, लेकिन यह अभी भी अत्यंत अपर्याप्त है।
  • वैश्विक तुलना: तुलनात्मक रूप से, अमेरिका में लगभग 14,500 विदेश सेवा अधिकारी हैं; ब्रिटेन में 4,600; तथा रूस में लगभग 4,500 अधिकारी हैं।
  • प्रादेशिक विभाजनों में चुनौतियाँ: भारत के निकटतम पड़ोस का प्रबंधन चार अलग-अलग विभाजनों द्वारा किया जाता है:
    • PAI डिवीजन (पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान)
    • BM डिवीजन (बांग्लादेश और म्यांमार)
    • Northern डिवीजन (नेपाल और भूटान)
    • IOR डिवीजन (श्रीलंका, मालदीव और अन्य हिंद महासागर देश)
  • निरीक्षण जोखिम: हालाँकि, इनसे प्राप्त इनपुट उच्च स्तर पर एकत्रित किए जाते हैं, लेकिन इस प्रकार के विखंडन से निरीक्षण का जोखिम बढ़ जाता है तथा सामंजस्यपूर्ण क्षेत्रीय सहभागिता में बाधा उत्पन्न होती है।
  • क्षेत्रीय प्रभागों में विसंगतियाँ: खाड़ी प्रभाग आठ खाड़ी देशों की देखरेख करता है। WANA डिवीजन शेष पश्चिमी एशिया और उत्तरी अफ्रीका को संभालता है। तुर्की का प्रबंधन मध्य यूरोप प्रभाग द्वारा किया जाता है। ईरान PAI प्रभाग के अंतर्गत आता है।
  • आवास संबंधी चुनौतियाँ: जहाँ विदेश में तैनात अधिकारियों को पर्याप्त वित्तीय और प्रशासनिक सहायता मिलती है, वहीं दिल्ली में उनके समकक्षों को महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। आवास सुविधाओं में सुधार हुआ है, लेकिन बढ़ते कैडर को समायोजित करने के लिए अभी भी अपर्याप्त हैं।
  • सीमित वित्तीय प्रोत्साहन: इसके अलावा, भारत में तैनात अधिकारियों के लिए वित्तीय प्रोत्साहन और भत्ते सीमित हैं जिससे विदेशी नियुक्तियों की तुलना में घरेलू नियुक्तियाँ कम आकर्षक हो जाती हैं।
  • स्थानांतरण प्रणाली (रोटेशनल पोस्टिंग): रोटेशनल पोस्टिंग सिस्टम के कारण भाषा कौशल का अक्सर कम उपयोग होता है। अधिकारियों का भाषा प्रशिक्षण हमेशा अगली पोस्टिंग के अनुरूप नहीं होता, जिससे इसके दीर्घकालिक लाभ कम हो जाते हैं।

सुधार की आवश्यकता:

  • पार्श्विक नियुक्तियाँ (Lateral Hirings): वर्तमान भर्ती दर को देखते हुए, भारत को 1,500 अधिकारियों के आदर्श कार्यबल तक पहुँचने में दशकों लगेंगे।
    • इस चुनौती से निपटने के लिए मंत्रालय को अन्य सरकारी सेवाओं से अधिकारियों की पार्श्विक नियुक्ति और समायोजन पर विचार करना चाहिए जिसमें रक्षा अताशे (Defence attachés) के रूप में अनुभव रखने वाले रक्षा कार्मिक और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में विशेषज्ञता रखने वाले शिक्षाविद शामिल हों।
  • कड़े चयन मानदंड: ऐसी भर्ती में गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए कड़े चयन मानदंड और परिवीक्षा अवधि का पालन किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त, विशेष भूमिकाओं के लिए सलाहकारों को नियुक्त किया जा सकता है
  • विशेषज्ञ सलाहकार: विशिष्ट भूमिकाओं के लिए विशेषज्ञों को शामिल करना चाहिए ताकि “अस्थायी समाधान” की धारणा को दूर किया जा सके।
  • संरचनात्मक पुनर्गठन: विदेश मंत्रालय के आंतरिक ढाँचे को पुनर्गठित करने की आवश्यकता है ताकि कमियों को कम किया जा सके और समन्वय में सुधार हो सके।
  • एकीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता:  क्षेत्रीय विभागों में अनेक विसंगतियाँ दर्शाती हैं कि विभागों के पुनर्गठन और समेकन (Consolidation) की आवश्यकता है जिससे एक अधिक कुशल और एकीकृत दृष्टिकोण अपनाया जा सके।
  • बेहतर बुनियादी ढाँचा तैयार करना: अधिकारियों और उनके परिवारों के लिए बेहतर आवास, चिकित्सा कवरेज और शैक्षिक सुविधाएँ प्रदान करना उनके मनोबल को अत्यधिक बढ़ा सकता है। साथ ही, दिल्ली में पोस्टिंग के लिए वित्तीय प्रोत्साहन की पेशकश से घरेलू नियुक्तियों को आकर्षक बनाया जा सकता है। 
  • भाषा कौशल का लाभ उठाना:अनुवादकों पर निर्भरता कम करने के लिए प्रत्येक दूतावास में कम-से-कम एक भाषा-प्रशिक्षित अधिकारी को तैनात किया जाना चाहिए। अक्सर, मुश्किल बातचीत में, भाषा कौशल निर्णायक साबित हुआ है। मंत्रालय को इस पहलू का पूरा लाभ उठाना चाहिए।
  • विशेषज्ञता को प्रोत्साहित करना: इसके अलावा, जैसे-जैसे अधिकारी अपने करियर में आगे बढ़ते हैं, उन्हें विशेषज्ञ या विषय-विशेषज्ञ बनने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। 
  • उभरती हुई प्रौद्योगिकियों में क्षमता निर्माण: इन तकनीकी क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए साइबर सुरक्षा, अंतरिक्ष नीति और एआई में डोमेन विशेषज्ञों को नियुक्त करें। आईएफएस अधिकारियों को तकनीकी विशेषज्ञताओं पर नहीं, बल्कि मूल जिम्मेदारियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

सरकार द्वारा उठाए गए कदम:

  • नए प्रभाग और पहल: नीति, योजना और अनुसंधान, तथा समकालीन चीन अध्ययन केंद्र की स्थापना।
  • नेतृत्व: डॉ. जयशंकर का गतिशील नेतृत्व विदेश नीति में नवाचार और दृढ़ता को बढ़ावा देता है।
  • संरेखण: विदेश नीति को भारत के ‘विकसित भारत’ के लक्ष्य के साथ संरेखित करने पर ध्यान केंद्रित करना।

निष्कर्ष:

जैसे-जैसे भारत 2047 में अपनी स्वतंत्रता के 100 वर्ष पूरे करने की ओर बढ़ रहा है, इसकी विदेश नीति को इसकी वैश्विक महत्वाकांक्षाओं के अनुरूप विकसित होना होगा।

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