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भारत में शरणार्थी और प्रवासी समस्या तथा नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019

Lokesh Pal October 16, 2025 05:00 53 0

संदर्भ:

हाल ही में, केंद्रीय गृहमंत्री ने शरणार्थियों और घुसपैठियों के बीच अंतर करने की आवश्यकता पर बल दिया है।

शरणार्थी, आर्थिक प्रवासी और घुसपैठिए

  • शरणार्थी (Refugee): संयुक्त राष्ट्र अभिसमय के अनुसार, शरणार्थी वह व्यक्ति होता है जो धर्म, जाति, जातीयता या राजनीतिक विचारों के आधार पर उत्पीड़न के सुस्थापित भय के कारण अपने देश से भाग जाता है, तथा संरक्षण चाहता है क्योंकि अपने मूल निवास स्थान पर वापस लौटने से उसका जीवन खतरे में पड़ जाएगा।
  • आर्थिक प्रवासी (Economic Migrant): आर्थिक प्रवासी स्वेच्छा से बेहतर रोज़गार या जीवन स्तर की तलाश में सीमा पार करता है, न कि जीवन या स्वतंत्रता के लिए किसी खतरे के कारण।
  • घुसपैठिया (Infiltrator): घुसपैठिया अवैध रूप से और चोरी-छिपे प्रवेश करता है, अक्सर जासूसी, आतंकवाद या अन्य गैरकानूनी गतिविधियों जैसे दुर्भावनापूर्ण उद्देश्य से—हालाँकि ऐसे व्यक्ति कभी-कभी अपनी पहचान छिपाने के लिए गलत तरीके से उत्पीड़न का दावा कर सकते हैं।

भारत का नीतिगत दृष्टिकोण

भारत 1951 के संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी अभिसमय का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है। भारत ने इस निर्णय के लिए तीन प्रमुख कारण बताएँ हैं:

  • यूरोकेंद्रीयता (Eurocentricity): भारत को लगा, कि यह अभिसमय द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूरोप की समस्याओं के आधार पर तैयार किया गया था, जो भारत के पड़ोसी देशों से बड़े पैमाने पर प्रवसन की वास्तविकताओं के अनुरूप नहीं था।
  • संप्रभुता: भारत एक अंतर्राष्ट्रीय संधि से दबाव में आए बिना अपनी नीतियों को निर्धारित करने का अधिकार बनाए रखना चाहता था।
  • अस्पष्ट परिभाषा: भारत का मानना था कि “उत्पीड़न” की परिभाषा अस्पष्ट थी और इसका दुरुपयोग होने की व्यापक संभावना थी।

भारत में वर्तमान विधिक ढाँचा

चूँकि शरणार्थियों के लिए कोई विशिष्ट, व्यापक कानून नहीं है, भारत इन व्यक्तियों को कई मौजूदा संविधियों का उपयोग करके तदर्थ (ad hoc) आधार पर संभालता है:

  • विदेशी अधिनियम, 1946: यह कानून केंद्र सरकार को किसी भी विदेशी नागरिक का पता लगाने, हिरासत में लेने और निर्वासित करने की असीमित शक्ति प्रदान करता है। यह अधिनियम घुसपैठिए और शरणार्थी के मध्य अंतर नहीं करता है।
  • पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920: यह अधिनियम पासपोर्ट के बिना भारत में प्रवेश को रोकता है।
  • नागरिकता अधिनियम, 1955: यह कानून किसी भी व्यक्ति को, जो वैध दस्तावेज़ों के बिना भारत में प्रवेश करता है या अपने वीज़ा से अधिक समय तक रहता है, अवैध प्रवासी के रूप में परिभाषित करता है।
  • 2 जून, 2023 तक भारत में कुल 211,000 शरणार्थी व्यक्ति निवास कर रहे थे।

नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA), 2019

  • उद्देश्य: यह पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए छह गैर-मुस्लिम धार्मिक अल्पसंख्यकों (हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी, ईसाई) के लिए भारतीय नागरिकता प्राप्त करने की प्रक्रिया को निर्धारित करता है, जिन्होंने 31 दिसंबर, 2014 से पहले भारत में प्रवेश किया था।
  • आलोचना: CAA की आलोचना इसलिए की जाती है क्योंकि यह भारत के इतिहास में पहली बार नागरिकता के लिए धर्म को एक मानदंड के रूप में उपयोग करता है तथा स्पष्ट रूप से मुसलमानों को बाहर करता है।
    • आलोचकों का तर्क है, कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 में निहित धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा का परोक्ष रूप से उल्लंघन करता है।
    • यह केवल तीन पड़ोसी देशों का चयन करता है, अन्य में प्रताड़ित समूहों, जैसे- म्याँमार में रोहिंग्या मुसलमानों और श्रीलंका में तमिल अल्पसंख्यकों, या पाकिस्तान में प्रताड़ित शिया और अहमदीया मुसलमानों की अनदेखी करता है।

आगे की राह

  • एक राष्ट्रीय शरणार्थी कानून का मसौदा निर्मित करें: भारत को एक राष्ट्रीय कानून की आवश्यकता है जो शरणार्थी को परिभाषित करे, संयुक्त राष्ट्र अभिसमय से प्रेरणा ले लेकिन इसे स्थानीय संदर्भ में अनुकूलित करे।
  • उत्पीड़न के विश्वसनीय साक्ष्य पर ध्यान दें: शरणार्थी दर्जे का निर्धारण व्यक्ति द्वारा सामना किए गए उत्पीड़न के साक्ष्य के आधार पर होना चाहिए, न कि उनकी राष्ट्रीयता के।
  • सुरक्षा और मानवता को संतुलित करें: नीति को प्रत्येक शरणार्थी को संदेह की दृष्टि से देखे बिना, एक मज़बूत लेकिन निष्पक्ष स्क्रीनिंग प्रक्रिया के माध्यम से राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए। इसे मानवीय ज़िम्मेदारियों को बनाए रखना चाहिए।
  • दीर्घकालिक समाधान: शिविरों में रखे गए शरणार्थियों के लिए समाधान खोजे जाने चाहिए, जिसमें कार्य परमिट, स्थानीय एकीकरण विकल्प या सुरक्षित वापसी (प्रत्यावर्तन) शामिल है, जब उनके गृह देशों में स्थितियाँ सुधर जाएँ।

निष्कर्ष

भारत, पारसी, यहूदी और तिब्बतियों जैसे सताए गए समुदायों को आश्रय देने की अपनी लंबी परंपरा के साथ, अतिथि देवो भव की अपनी विरासत को बनाए रखना चाहिए—मानवीय गरिमा और संवैधानिक नैतिकता में निहित एक व्यापक शरणार्थी कानून के माध्यम से संप्रभुता को करुणा के साथ संतुलित करना चाहिए।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

प्रश्न: जबकि ‘शरणार्थी’ और ‘घुसपैठिए’ के बीच अंतर राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, भारत में एक व्यापक घरेलू शरणार्थी कानून का अभाव प्रायः शरण चाहने वालों के प्रति मनमाने और भेदभावपूर्ण दृष्टिकोण को जन्म देता है। भारत द्वारा विभिन्न शरणार्थी समुदायों के साथ किए गए व्यवहार के संदर्भ में इस कथन का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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