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पुनर्योजी कृषि – सतत खाद्य प्रणालियों का मार्ग

Lokesh Pal October 28, 2025 05:15 35 0

सन्दर्भ:

विश्व खाद्य दिवस (16 अक्तूबर), जिसका विषय- “बेहतर खाद्य और बेहतर भविष्य के लिए सबका साथ” (Hand in Hand for Better Foods and a Better Future)एफएओ के 80वें वर्ष को चिह्नित करता है, जिसमें मृदा स्वास्थ्य को बहाल करने, जैव विविधता को बढ़ावा और जलवायु अनुकूलन तथा पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पुनर्योजी कृषि पर प्रकाश डाला गया।

मुख्य बिन्दु

  • अवधारणा और परिभाषा: पुनर्योजी कृषि (RA) एक समग्र कृषि दृष्टिकोण है, जिसका उद्देश्य उत्पादकता बनाए रखते हुए मृदा, जल और जैव विविधता के स्वास्थ्य को बहाल करना है।
  • लक्ष्य: पारंपरिक कृषि के विपरीत, जो उपज को अधिकतम करने पर केंद्रित है, आरए पारितंत्र के उत्थान पर ध्यान केंद्रित करता है, जो दीर्घकालिक पारिस्थितिक, आर्थिक और सामाजिक स्थिरता सुनिश्चित करता है

पुनर्योजी कृषि के प्रमुख सिद्धांत

  • मृदा स्वास्थ्य पुनर्स्थापन: न्यूनतम जुताई, फसल चक्रण, आवरण फसल और कम्पोस्ट जैसी प्रथाओं के माध्यम से मृदा कार्बनिक कार्बन और सूक्ष्मजीव गतिविधि के पुनर्निर्माण पर ध्यान केंद्रित करता है, जिससे दीर्घकालिक उर्वरता और लचीलापन सुनिश्चित होता है।
  • जैव विविधता संवर्धन: बहु-प्रजाति फसल प्रणालीकृषि वानिकी और परागण आवास को प्रोत्साहित करता है, जो पारिस्थितिकी तंत्र स्थिरता और प्राकृतिक कीट विनियमन को बढ़ाता है।
  • जलवायु अनुकूलन: कार्बन को पृथक करनेसूक्ष्म जलवायु का विनियमन तथा सतत भूमि प्रथाओं के माध्यम से जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए पारिस्थितिकी तंत्र की क्षमता को मजबूत करता है।
  • पोषण सुरक्षा संवर्धन: मृदा स्वास्थ्य की बहाली, फसलों में जैव उपलब्ध सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की सुनिश्चितता और रासायनिक आदानों पर निर्भरता को कम करके भोजन के पोषक घनत्व में सुधार करता है।

मुख्य अंतर- निष्कर्षण बनाम पुनर्योजी कृषि

मुख्य बिन्दु निष्कर्षण कृषि (Extractive Agriculture) पुनर्योजी कृषि (Regenerative Agriculture)
कार्य अल्पकालिक उत्पादकता और लाभ पर ध्यान केंद्रित करता है दीर्घकालिक पारिस्थितिकी तंत्र बहाली और स्थिरता का लक्ष्य
मृदा एवं इनपुट प्रबंधन मिट्टी की उर्वरता को कम करता है; सिंथेटिक उर्वरकोंकीटनाशकों और जीवाश्म ईंधन पर बहुत अधिक निर्भर करता है जैविक इनपुट, कम्पोस्ट और जैवउर्वरकों का उपयोग करके मिट्टी के कार्बनिक कार्बन और उर्वरता का पुनर्निर्माण करता है
जैव विविधता और फसल प्रणाली एकल-कृषि और आनुवंशिक एकरूपता को बढ़ावा देता है बहु-फसल, कृषि वानिकी और पारिस्थितिक विविधता को प्रोत्साहित करता है
जल चक्र और कार्बन चक्र भूजल में कमी का कारण बनता है और ग्रीनहाउस गैसों का शुद्ध उत्सर्जक है जल प्रतिधारण में सुधार करता है और कार्बन सिंक के रूप में कार्य करता है
पर्यावरणीय और आर्थिक परिणाम इससे संसाधनों का ह्रासमृदा अपरदन और किसानों की ऋणग्रस्तता बढ़ती है संसाधन नवीनीकरणजलवायु अनुकूलन और सतत आजीविका सुनिश्चित करता है

बढ़ता पारिस्थितिक तनाव और भारत का मृदा स्वास्थ्य संकट

  • जनसंख्या दबाव: वैश्विक जनसंख्या 1 बिलियन (1804) से बढ़कर 2 बिलियन (वर्तमान) हो गई है, जिससे ग्रह के सीमित प्राकृतिक संसाधनों पर तीव्र दबाव उत्पन्न हो गया है
  • भूमि सीमा: पृथ्वी की सतह का केवल 29% भाग भूमि है, जिसमें से 7% पर खेती की जाती है, जो अब अत्यधिक उपयोग और प्रदूषण से प्रभावित है।
  • भारतीय परिदृश्य: 52% कृषि योग्य भूमि होने के बावजूद, भारत को संसाधनों की कमी और पर्यावरणीय समस्या का सामना करना पड़ रहा है, जिससे कृषि की दीर्घकालिक स्थिरता खतरे में पड़ रही है
    • गंभीर गिरावट: औसत मृदा कार्बनिक कार्बन <0.3%, जो विभिन्न विशेषज्ञों द्वारा अनुशंसित 1% मानक से अत्यंत नीचे है।
    • क्षेत्रीय प्रभाव: पंजाब, हरियाणा, राजस्थान जैसे राज्य गंभीर मृदा क्षरण का सामना कर रहे हैं, जिसके लिए तत्काल पुनर्वास की आवश्यकता है।
  • कार्रवाई की आवश्यकता: मृदा को पुनर्जीवित करने और कृषि के पारिस्थितिक आधार को सुरक्षित करने के लिए पुनर्योजी कृषि पर एक राष्ट्रीय मिशन का निर्माण किया जा सकता है।

पुनर्योजी कृषि की चुनौतियाँ

  • मृदा क्षरण: भारत की मृदा में भारी कमी हो चुकी है तथा औसत कार्बनिक कार्बन स्तर 3% से कम, जो न्यूनतम अनुशंसित स्तर 1% से अत्यंत कम है।
  • रासायनिक आदानों पर अत्यधिक निर्भरता: हरित क्रांति की उच्च उपज देने वाली किस्मों की विरासत और सिंथेटिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से दीर्घकालिक पर्यावरणीय हानि हुई है।
  • नीतिगत अंतराल: वर्तमान नीतियाँ दलहन और तिलहन की खेती के लिए पर्याप्त प्रोत्साहन प्रदान नहीं करती हैं, जो पुनर्योजी कृषि के लिए आवश्यक हैं।
  • समन्वय का अभाव: यद्यपि पुनर्योजी प्रथाओं में नवाचार हो रहा है, निजी क्षेत्र के प्रयासों में प्रायः सरकारी समर्थन और अनुसंधान के साथ समन्वय का अभाव होता है।

ऐतिहासिक उपलब्धि – हरित क्रांति

  • तकनीकी सफलताएँ: उच्च उपज देने वाली गेहूँ और चावल की किस्मों (बोरलॉग, बीचेल, खुश) के विकास से खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हुई और अकाल की घटनाओं की रोकथाम हुई।
  • औद्योगिक नवाचार: हैबर-बॉश प्रक्रिया ने सिंथेटिक उर्वरक उत्पादन को सक्षम बनाया, जिससे वैश्विक स्तर पर पैदावार में वृद्धि हुई।
  • अनपेक्षित परिणाम: अति प्रयोग और पोषक तत्त्व असंतुलन (N:P:K) के कारण भारत में मृदा क्षरणGHG उत्सर्जन और भूजल प्रदूषण हुआ।

नवाचार और निजी क्षेत्र की पहल

  • सरकारी प्रयास: अटल नवाचार मिशन और अनुसंधान एनआरएफ अभी भी विकसित हो रहे हैं तथा इसमें सीमित सफलताएँ मिली हैं।
  • निजी नेतृत्व: AgVaya और BioSTL जैसी फर्मों ने ICRIER के साथ साझेदार के रूप में “पुनर्योजी कृषि के लिए नवाचार” पर एक सेमिनार का सह-आयोजन किया।
  • ग्लोबल एग्जेलरेट लॉन्च: कृषि-नवप्रवर्तकों को वैश्विक बाजारों से जोड़ने, ज्ञान के आदान-प्रदान को बढ़ावा देने और नवाचार को बढ़ाने के लिए मंच।

आगे की राह:

  • पोषण सुरक्षा: दलहन में आत्मनिर्भरता मिशन का उद्देश्य दलहन उत्पादन को बढ़ाना तथा आयात पर निर्भरता को कम करना है।
  • नीतिगत सुधार: दलहन और तिलहन के लिए फसल-तटस्थ प्रोत्साहन लागू करना, गेहूँ और चावल जैसी प्रमुख फसलों के समान बाजार समर्थन प्रदान करना।
  • अनुसंधान में निवेश: उत्पादकता और लचीलेपन को बढ़ावा देने के लिए कृषि अनुसंधान और विकास (R&D) को बढ़ावा देना, यह सुनिश्चित करना कि पुनर्योजी पद्धतियाँ मापनीय और सतत हों।
  • परिवर्तन के लिए रूपरेखा – 4P: परिवर्तन के लिए नीतियों, उत्पादों, प्रथाओं और साझेदारियों के प्रबंधन की आवश्यकता होती है।
  • नवप्रवर्तन भूमिका: नई प्रौद्योगिकियों और सतत कृषि समाधानों को बढ़ावा देना।
  • सहयोगात्मक भूमिका: समन्वित साझेदारी के माध्यम से प्रभावी स्केलिंग, स्वीकृति और कार्यान्वयन सुनिश्चित करना।
    • सार्वजनिक-निजी भागीदारी: पुनर्योजी प्रथाओं को बढ़ाने और प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए सरकारनिजी क्षेत्र और किसानों के मध्य सहयोग को मजबूत करना।
    • वैश्विक सहयोग: ग्लोबल एग्जेलरेट प्लेटफॉर्म जैसी पहल और भारत तथा अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के मध्य सहयोग कृषि क्षेत्र में नवीन समाधान करने में मदद कर सकते हैं।

निष्कर्ष:

पुनर्योजी कृषि भारत में मृदा स्वास्थ्य को बहाल करनेपोषण सुरक्षा सुनिश्चितता और जैव विविधता को बढ़ावा देने की कुंजी है। इस दृष्टिकोण को अपनाकर और नीतियोंनवाचार तथा सहयोग के माध्यम से इसका समर्थन करके भारत एक अधिक सतत और अनुकूल कृषि भविष्य का निर्माण कर सकता है

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: ”जहाँ हरित क्रांति ने भारत की ‘खाद्य सुरक्षा’ (पेट भरण) को सफलतापूर्वक सुनिश्चित किया, वहीं इसके गहन रासायनिक मॉडल ने गंभीर पारिस्थितिक और स्वास्थ्य संकटों को जन्म दिया है, जिसका प्रतीक पंजाब की ‘कैंसर ट्रेन’ है।” इस कथन का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिए। पुनर्योजी कृषि द्वारा संचालित ‘पोषण सुरक्षा’ (पोषण भरण) की दिशा में नीतिगत परिवर्तन इस विरोधाभास का स्थायी समाधान किस प्रकार प्रस्तुत कर सकता है?

(15 अंक, 250 शब्द)

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