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जनसांख्यिकीय में क्षेत्रीय असमानताएँ विद्यमान : जन्म-समर्थक नीतियाँ और प्रभाव

Lokesh Pal November 08, 2024 05:45 37 0

संदर्भ :

भारत में बढ़ती उम्र की आबादी का मुद्दा और भी गंभीर होता जा रहा है, क्योंकि जनसांख्यिकीय रुझानों में क्षेत्रीय असमानताएं विद्यमान हैं। 

  • हाल ही में, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने दक्षिणी राज्यों में घटती आबादी और इसके संभावित प्रभावों के बारे में चिंता जताई है और जनता से अधिक बच्चे पैदा करने का आग्रह किया है।

जनसंख्या वृद्धि सांख्यिकी एवं रुझान

A. वर्तमान स्थिति

  • भारत की कुल प्रजनन दर (टीएफआर): 1.9 (2021)
    • यह 2.1 की प्रतिस्थापन प्रजनन दर से कम है, जो जनसंख्या स्थिरीकरण की ओर रुझान को दर्शाता है।
    • हालांकि कम प्रजनन दर के बावजूद, भारत की जनसंख्या में लगातार वृद्धि हो रही है और यह जनसंख्या वृद्धि वर्ष 2070 तक जारी रहने की उम्मीद है।

B. भविष्य के अनुमान

  • विश्व जनसंख्या वृद्धि : विश्व जनसंख्या अनुमान के मुताबिक वैश्विक जनसंख्या 2080 तक बढ़ती रहेगी।
  • हालांकि भारत की जनसंख्या विश्व औसत से पहले स्थिर होने की उम्मीद है, क्योंकि देश का  जनसांख्यिकी प्रक्षेपवक्र आसमान है।

ऐतिहासिक संदर्भ और नीतिगत प्रतिक्रियाएँ

  • स्वतंत्रता के बाद जनसंख्या संबंधी चिंताएँ: स्वतंत्रता के बाद, भारत को ‘जनसंख्या बिस्फोट’ का सामना करना पड़ा, जिसने अधिक जनसंख्या के बारे में चिंताएँ पैदा कीं।
    • जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए, भारत ने आपातकाल के दौरान विवादास्पद नसबंदी जैसे कठोर उपायों को भी लागू किया, हालांकि उसके प्रभाव सीमित थे।
  • चीन का दृष्टिकोण : चीन ने एक-बच्चा नीति अपनाई, जिसके तहत उसने सफलतापूर्वक अपनी जनसंख्या वृद्धि को कम किया।

यह ध्यान रखना आवश्यक है कि भारत की प्रजनन दर में ये हालिया गिरावट मुख्य रूप से सामाजिक-आर्थिक कारकों के कारण है, न कि दबावपूर्ण उपायों या सरकारी प्रोत्साहनों के कारण।

प्रजनन दर में गिरावट के महत्त्वपूर्ण कारक 

भारत की घटती प्रजनन दर के लिए अनेक महत्त्वपूर्ण कारक जिम्मेदार हैं, जिनमें शामिल हैं:

  • जीवन-यापन लागत का प्रभाव : स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा सहित दैनिक जीवन के बढ़ते खर्च बड़े परिवारों को हतोत्साहित करते हैं।
  • आवास लागत का जोखिम : लगातार महंगे होते आवास के कारण परिवारों के लिए बच्चों के लिए पर्याप्त जगह का खर्च उठाना मुश्किल हो जाता है।
  • बच्चों की परवरिश का वित्तीय बोझ : बच्चों की परवरिश का वित्तीय बोझ, जिसमें स्वास्थ्य सेवा, स्कूली शिक्षा और पाठ्येतर गतिविधियों की लागत शामिल है, एक महत्वपूर्ण बाधा है।
  • महिलाओं का अवैतनिक कार्य व करियर के अवसर: कई महिलाओं को बच्चों की देखभाल और घरेलू कामों की ज़िम्मेदारी बहुत ज़्यादा होती है, जिससे उनके पेशेवर विकास की क्षमता सीमित हो जाती है और वे छोटे परिवारों को प्राथमिकता देती हैं। अवैतनिक देखभाल कार्य के कारण उन्हें करियर में असफलता का सामना करना पड़ता है, जिससे उन्हें बड़े परिवार रखने पर पुनर्विचार करना पड़ता है।

दक्षिण भारत में जनसंख्या गतिशीलता से संबंधित प्रमुख चिंताएँ

1. वृद्ध आबादी की वृद्धि दर में उत्तर-दक्षिण विभाजन

  • दक्षिणी राज्य: केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में तेजी से वृद्ध जनसंख्या में वृद्धि देखी जा रही है, क्योंकि :
    • प्रजनन दर में कमी।
    • जीवन प्रत्याशा में वृद्धि।
    • अतः दक्षिण भारतीय राज्यों में बुजुर्गों की आबादी तेजी से बढ़ रही है, केरल में 2021 में 60 वर्ष से अधिक आयु की 16.5% आबादी है, जिसके 2036 तक बढ़कर 22.8% होने की उम्मीद है। इसी तरह, तमिलनाडु में 13.7% है, जिसके बढ़कर 20.8% होने की उम्मीद है।
  • उत्तरी राज्यों के आँकड़े : इसके विपरीत, बिहार जैसे राज्यों में बुज़ुर्ग लोगों का अनुपात बहुत कम है। 2021 में, बिहार की बुज़ुर्ग आबादी 7.7% थी, जिसके 2036 तक 11% तक बढ़ने का अनुमान है।
    • उत्तरी राज्यों में बुढ़ापे की गति उच्च प्रजनन दर और निम्न जीवन प्रत्याशा के कारण धीमी है।

2. कार्यशील आयु वर्ग की जनसंख्या में क्षेत्रीय असमानता

  • दक्षिणी राज्यों में बढ़ती उम्रदराज आबादी के कारण, कामकाजी आयु वर्ग के लोगों का अनुपात घट रहा है।
    • इससे संभावित आर्थिक चुनौतियाँ पैदा होंगी, क्योंकि श्रम शक्ति में योगदान देने के लिए कम लोग उपलब्ध होंगे, जिससे उत्पादकता, आर्थिक विकास और सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों पर असर पड़ेगा।

3. संघीय प्रतिनिधित्व और परिसीमन

  • चूंकि जनसंख्या की गतिशीलता में बदलाव होगा, इसलिए परिसीमन के बाद संघीय प्रतिनिधित्व प्रभावित हो सकता है।
    • कम विकास दर वाले दक्षिणी राज्यों में उत्तरी राज्यों की तुलना में राजनीतिक प्रतिनिधित्व में कमी देखी जा सकती है, जो तेज़ गति से विकास कर रहे हैं। इससे संसदीय प्रणाली में निष्पक्ष प्रतिनिधित्व को लेकर चिंताएँ पैदा होती हैं।

4. प्रवासन संबंधी मुद्दे 

रोजगार के अवसरों से प्रेरित प्रवासन टकराव पैदा कर सकता है, क्योंकि स्थानीय लोग प्रवासी श्रमिकों की आमद से असन्तुष्ट हो सकते हैं। यह तनाव अक्सर “भूमिपुत्रों” और प्रवासियों के बीच संघर्ष को जन्म देता है।

वृद्ध जनसंख्या की समस्या के समाधान के रूप में प्रो-नेटलिस्ट नीतियाँ :

  • जन्म-समर्थक नीतियाँ ऐसी नीतियाँ हैं जो किसी क्षेत्र की जन्म दर/प्रजनन दर को बढ़ाने के उद्देश्य से बनाई जाती हैं।
  • जन्म-समर्थक नीतियाँ, जिनका उद्देश्य प्रोत्साहन या अन्य उपायों के माध्यम से जन्म दर को बढ़ाना है, कई देशों में सीमित सफलता दिखाती हैं।
  • हाल ही में, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री नायडू ने पंचायत चुनावों के लिए दो बच्चों वाले लोगों की पात्रता को सीमित करने का प्रस्ताव रखा है।

प्रो-नेटल नीतियों के सकारात्मक पहलू

  • जनसंख्या की बढ़ती उम्र को कम करना: आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में, जहाँ बढ़ती उम्र की आबादी चिंता का विषय बन रही है, उच्च जन्म दर को प्रोत्साहित करने से जनसांख्यिकीय प्रोफ़ाइल को संतुलित करने में मदद मिल सकती है, जिससे भविष्य में पर्याप्त कार्यबल और स्थिर निर्भरता अनुपात सुनिश्चित हो सकता है।
  • आर्थिक विकास हेतु युवा आबादी आवश्यक : युवा आबादी एक जीवंत श्रम शक्ति का समर्थन करती है, जो आर्थिक विकास को गति दे सकती है।
  • सामाजिक कल्याण स्थिरता सुनिश्चित करना: युवा आबादी एक बड़ा कर आधार प्रदान करके सामाजिक कल्याण प्रणालियों पर बोझ को कम करती है।
    • जैसे-जैसे वृद्धों की आबादी बढ़ती जाएगी, सिकुड़ते कार्यबल को पेंशन, स्वास्थ्य देखभाल और अन्य सामाजिक लाभों को बनाए रखने में कठिनाई होगी। इससे वित्तीय बोझ बढ़ेगा और योजनाएं प्रभावित होंगी।  

प्रसव-समर्थक नीतियों के नकारात्मक पहलू

  • आर्थिक और सामाजिक दबाव: बच्चों की बढ़ती संख्या से परिवारों पर वित्तीय बोझ बढ़ सकता है, खासकर उन परिवारों पर जिनकी स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और नौकरी की सुरक्षा तक सीमित पहुँच है।
  • लैंगिक असमानता को बढ़ावा देना: जन्म-समर्थक नीतियाँ, खासकर ऐसी नीतियाँ हैं, जो महिलाओं पर अधिक बच्चे पैदा करने का दबाव डालती हैं, अनजाने में पारंपरिक लिंग भूमिकाओं को मजबूत कर सकती हैं।
    • यह कार्यबल, शिक्षा और सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भागीदारी में बाधा डाल सकती है, जिससे लैंगिक असमानता और भी बढ़ सकती है और महिला सशक्तिकरण सीमित हो सकता है।
  • पर्यावरण और संसाधन तनाव : जनसंख्या में उल्लेखनीय वृद्धि पर्यावरणीय चुनौतियों को बढ़ा सकती है, जैसे कि संसाधनों की कमी, प्रदूषण और आवास विनाश का खतरा बना रहता है।
  • दीर्घकालिक समस्याओं के लिए अल्पकालिक समाधान : ये नीतियाँ वृद्ध होती जनसंख्या के अंतर्निहित मुद्दों, जैसे कि एक मजबूत स्वास्थ्य सेवा प्रणाली और बुजुर्गों की देखभाल की आवश्यकता को संबोधित नहीं करती हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय उदाहरण : हंगरी, पोलैंड और स्वीडन जैसे देशों ने वित्तीय प्रोत्साहन, विस्तारित मातृत्व/पितृत्व अवकाश और कर छूट सहित विभिन्न प्रजनन-समर्थक नीतियों को लागू किया है, फिर भी इनसे प्रजनन दर में कोई खास बदलाव नहीं आया है।

वृद्ध जनसंख्या की समस्या से निपटने के लिए वैकल्पिक समाधान

1. राजनीतिक प्रतिनिधित्व और वित्त आयोग का समायोजन

  • प्रतिनिधित्व हेतु संतुलित दृष्टिकोण अपनाना : राजनीतिक प्रतिनिधित्व के लिए केवल जनसंख्या के आकार पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाना महत्वपूर्ण है जो निष्पक्ष प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए जीवन प्रत्याशा, आयु संरचना और सामाजिक संकेतकों जैसे कारकों पर भी विचार करता है। 
  • वित्त आयोग के समायोजन उपाय : वित्त आयोग को जनसंख्या की गुणवत्ता और जनसांख्यिकीय स्वास्थ्य, जैसे दीर्घायु उपायों को ध्यान में रखना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि केरल और तमिलनाडु जैसे वृद्ध आबादी वाले राज्यों को सामाजिक सेवाओं और विकास के लिए वित्त पोषण में नुकसान न हो।

2. गैर-कार्यशील आयु वर्ग की आबादी के साथ अनुकूलन

  • बुज़ुर्गों को फिर से कुशल बनाना: जीवन प्रत्याशा में वृद्धि के साथ, बुज़ुर्ग व्यक्ति कार्यबल में योगदान देना जारी रख सकते हैं, जिससे उन्हें मूल्यवान अनुभव और विशेषज्ञता प्राप्त होगी।
  • सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाना: विस्तारित जीवन प्रत्याशा का लाभ उठाने के लिए, सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने से बुज़ुर्ग कर्मचारी लंबे समय तक आर्थिक रूप से सक्रिय रह सकते हैं।
  • कार्यकारी गतिविधियों में लचीलापन: कार्य के लचीले घंटे, दूर से काम करना और अंशकालिक भूमिकाएँ बुज़ुर्ग व्यक्तियों को लंबे समय तक कार्यबल में बने रहने में मदद कर सकती हैं।

3. कार्यबल में महिलाओं को शामिल करना

  • कम प्रजनन दर, विशेष रूप से दक्षिण भारतीय राज्यों में, रोजगार और अवैतनिक देखभाल कार्य में लिंग अंतर से जुड़ी हुई है।
  • महिलाओं की असंगत देखभाल जिम्मेदारियाँ कार्यबल की भागीदारी और परिवार के आकार को सीमित करती हैं।
  • समान वेतन, करियर विकास और कामकाजी माताओं के लिए बेहतर समर्थन को बढ़ावा देने वाली नीतियाँ वित्तीय सुरक्षा को बढ़ा सकती हैं, जिससे उच्च प्रजनन दर को बढ़ावा मिलता है।

निष्कर्ष :

अतः भारत को वृद्ध होती जनसंख्या की चुनौतियों के प्रबंधन के लिए जन्म-समर्थक नीतियों पर ध्यान केन्द्रित करने के बजाय अधिक समग्र दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। एक संतुलित दृष्टिकोण असमानता को समाप्त करके देश की सामाजिक-आर्थिक प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है । 

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न :

प्रश्न: भारत में जनसांख्यिकीय परिवर्तन में क्षेत्रीय भिन्नताएँ देखने को मिलती हैं, जिसमें दक्षिणी राज्यों में उत्तरी राज्यों की तुलना में वृद्धावस्था अधिक तेजी से बढ़ रही है। जनसांख्यिकीय विभाजन की प्रमुख चुनौतियों का विश्लेषण करें तथा जनसंख्या स्थिरीकरण और वृद्धों की देखभाल संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिए व्यापक नीतिगत उपाय सुझाएँ।

(15 अंक, 250 शब्द)

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