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भारतीय शासन में क्षेत्रवाद : विविधतापूर्ण समरसता का प्रबंधन

Lokesh Pal November 02, 2024 05:45 57 0

संदर्भ: 

21 अक्टूबर 2024 को,  लद्दाख के प्रसिद्ध पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख के प्रशासन पर भविष्य की चर्चा के संबंध में केंद्रीय गृह मंत्रालय से एक पत्र प्राप्त होने के बाद अपने अनिश्चितकालीन उपवास को समाप्त कर दिया। उनके प्रयासों ने भारतीय सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और प्रशासनिक शासन में क्षेत्रवाद  की अवधारणा को रेखांकित किया है। 

क्षेत्रवाद का तात्पर्य : 

  • उदाहरण: महाराष्ट्र में मराठी गौरव, तमिलनाडु में तमिल पहचान और भाषा के प्रति लगाव, पूर्वोत्तर में जनजातीय पहचान, क्षेत्रवाद के प्रमुख उदाहरण हैं ।

क्षेत्रवाद = क्षेत्रीय पहचान + क्षेत्रीय आकांक्षाएँ

  • क्षेत्रवाद एक जटिल विचार है, जिसके सकारात्मक और नकारात्मक दोनों अर्थ हैं। 
  • सकारात्मक अर्थों में, यह लोगों के गौरव और अपनी संस्कृति, भाषा और क्षेत्र को संरक्षित करने के उद्देश्य को दर्शाता है, जिससे उन्हें एक विशिष्ट पहचान को बनाए रखने में मदद मिलती है।
  • हालाँकि, नकारात्मक अर्थों में, यह किसी क्षेत्र के प्रति अत्यधिक लगाव को इंगित कर सकता है, जो राष्ट्रीय एकता और अखंडता के लिए खतरा हो सकता है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • ब्रिटिश काल में क्षेत्रवाद : भारत में क्षेत्रवाद की शुरुआत औपनिवेशिक काल से मानी जाती है। अंग्रेजों ने अपनी “फूट डालो और राज करो” की नीति को लागू करने के लिए भारतीय लोगों के मध्य व्याप्त मतभेदों का लाभ उठाया।
    • उन्होंने अपनी “फूट डालो और राज करो” नीति को लागू करने के लिए प्रशासनिक प्रांत बनाए। उदाहरण के लिए, 1905 में बंगाल का विभाजन।
  • पोट्टी श्रीरामलु : स्वतंत्र भारत में क्षेत्रवाद की प्रथम अभिव्यक्ति भाषाई राज्यों के गठन की मांग थी, जिसकी शुरुआत पोट्टी श्रीरामलु की भूख हड़ताल से हुई, जिन्होंने इसके लिए वर्ष 1952 में आमरण अनशन किया था।

पोट्टी श्रीरामलु का आमरण अनशन : 

अक्टूबर 1952 में आंध्र के नेता पोट्टी श्रीरामलु ने आमरण अनशन शुरू कर दिया। उन्होंने तेलुगु भाषियों के लिए अलग आंध्र प्रांत बनाने की मांग की। दिसंबर में श्रीरामलु की मृत्यु हो गई, जिसके कारण हिंसक प्रदर्शन हुए। बाद में सरकार आंध्र राज्य की स्थापना के लिए सहमत हो गई।

  • क्षेत्रीय दल: इसके अतिरिक्त, 1960 के दशक के दौरान तमिलनाडु में INC (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस) पर DMK (द्रविड़ मुनेत्र कड़गम) की जीत ने क्षेत्रीय राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं के लिए एक महत्त्वपूर्ण बदलाव को रेखांकित किया।
    • क्षेत्रीय दल प्रायः क्षेत्रीय मुद्दों को उठाते हैं या उनका उपयोग करते हैं, जबकि राष्ट्रीय दल राष्ट्रीय मुद्दों के साथ -साथ राजनीतिक लाभ के लिए व्यापक रणनीति अपनाते हैं।

क्षेत्रवाद पर भारत बनाम चीन

  • भारत और चीन जैसे बड़े देशों की एकता को प्रायः अलगाववादी आंदोलनों और क्षेत्रीय इच्छाओं का सामना करना पड़ता है। 
  • उदाहरण के लिए, चीन “एक देश, दो व्यवस्था’’ (One Country Two Systems) के सिद्धांत द्वारा अपनी राष्ट्रीय एकता को बनाए हुए है, जिसे डेंग शियाओपिंग द्वारा हांगकांग और मकाऊ को मुख्य भूमि चीन के साथ एकीकृत करने के लिए प्रस्तुत किया गया था। 
  • चीन के विपरीत, भारत स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद इन अलगाववादी आकांक्षाओं को प्रबंधित करने में चीन की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक सफल रहा है क्योंकि भारत ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया के माध्यम से ऐसे मुद्दों को हल करने का प्रयास किया है।

संवैधानिक प्रावधान 

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 3 संसद को नए राज्यों के निर्माण और वर्तमान राज्यों को साधारण बहुमत से संशोधित करने का अधिकार प्रदान करता है, इसके लिए प्रभावित राज्य की सहमति की आवश्यकता नहीं होती है । 
  • यह निर्णय संसद के विवेक पर निर्भर होता है।

क्षेत्रवाद के प्रकार

  • पृथकतावाद (Secessionism): पृथकतावाद संघ से अलग होने की इच्छा है, जिसे प्रायः उग्रवादी या कट्टरपंथी समूहों का समर्थन प्राप्त होता है। इस तरह के क्षेत्रवाद को सरकार कभी स्वीकार नहीं करती है।
    • उदाहरण : खालिस्तान पृथक राष्ट्र हेतु आंदोलन। 
  • अलगाववाद (Separatism): अलगाववाद एक बड़ी इकाई, जो राज्य, के भीतर भाषा, धर्म या जातीयता जैसे कारकों के आधार पर एक विशिष्ट समूह के हितों का समर्थन करने पर केंद्रित होती है।
    • उदाहरण : असम में बोडोलैंड के लिए आंदोलन। 
  • अधिक स्वायत्तता (Greater Autonomy): यह तब होता है जब आंदोलन या पार्टियांँ अधिक स्वायत्तता और पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग करती हैं।
    • उदाहरण: सोनम वांगचुक द्वारा लद्दाख में आंदोलन का नेतृत्व किया जाना या दिल्ली सरकार द्वारा अधिक स्वायत्तता की मांग करना।

क्षेत्रवाद के बढ़ने के कारण 

  • आर्थिक कारक: देश के विभिन्न भागों में असमान विकास को क्षेत्रवाद और अलगाववाद का प्रमुख कारण माना जा सकता है।
    • उदाहरण: तेलंगाना पृथक राज्य की मांग इसलिए उठी क्योंकि वहाँ की जनता को लगा कि इस क्षेत्र का विकास आंध्र प्रदेश के अन्य भागों की तुलना में अत्यधिक धीमी गति से हुआ है।
  • सांस्कृतिक कारक: इसमें प्रायः विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान, भाषा और परंपराओं की सुरक्षा की मांग शामिल होती है। ये आकांक्षाएँ अद्वितीय सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने और बढ़ावा देने की इच्छा से उत्पन्न होती हैं।
    • उदाहरण: तमिलनाडु में भाषाई और सांस्कृतिक पहचान, खासतौर पर तमिल भाषा और विरासत संबंधी गर्व पर ज़ोर देने से क्षेत्रवाद को बढ़ावा मिला है। 
    • उदाहरण: पूर्वोत्तर भारत में जातीय पहचान सर्वोपरि है।
  • राजनीतिक कारक: यह प्रायः एक बड़ी इकाई के अंतर्गत कुछ समूहों के लिए राजनीतिक प्रतिनिधित्व की कथित कमी या राजनीतिक प्रभुत्तव की विचारधारा से उत्पन्न होता है। 
  • प्रशासनिक कारक: यह प्रायः अनुचित शासन की धारणाओं से उत्पन्न होता है, जिसके कारण समुदाय अधिक स्वायत्तता की मांग करते हैं या अधिक प्रभावी स्थानीय प्रशासन सुनिश्चित करने के लिए नई राजनीतिक संस्थाओं का गठन करते हैं।

भारत में  विविधतापूर्ण समरसता के प्रबंधन हेतु उठाए गए कदम

  • भारत ने मंत्रिमंडल में राजनीतिक प्रतिनिधित्व और राज्यसभा में अनुसूची चार के तहत सीटों के आवंटन के माध्यम से राज्यों के प्रतिनिधित्व से, अपने संघीय ढाँचे को मजबूत करने की कोशिश की है। 
  • सरकार विशेष रूप से योजनाओं के माध्यम से विभिन्न स्तरों पर विभिन्न पहचानों और विचारधाराओं की पहचान करने और उनके साथ कार्य करने की कोशिश करती है। 
  • प्रायः राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों के बीच गठबंधन देखा जाता है।
    • उदाहरण: पंजाब में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और अकाली दल का गठबंधन, हालाँकि दोनों ने दो अलग-अलग पहचानों पर ध्यान केंद्रित करने का प्रयास किया है । 
    • अन्य उदाहरण: जम्मू-कश्मीर में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) के बीच गठबंधन।
  • सरकार कम विकसित क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करके संसाधनों को बेहतर ढंग से वितरित करने का प्रयास करती है, हालाँकि अनेक दक्षिण भारतीय राज्यों द्वारा समय-समय पर इस संदर्भ में प्रश्न उठाए जाते रहे हैं । 
  • पंचायती राज, सरकार की एक और पहल है जो सत्ता का विकेंद्रीकरण करती है और स्थानीय प्रशासन को अधिकार प्रदान करती है, जिससे लोगों को अपने निर्णय लेने का अधिकार प्राप्त होता है।

निष्कर्ष 

भारत को क्षेत्रवाद के प्रबंधन के लिए अपने दृष्टिकोण को निरंतर अद्यतन करने की आवश्यकता है। हालांकि बहु-हितधारक दृष्टिकोण अपनाकर, कम विकसित क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करके संसाधनों के बेहतर वितरण आदि प्रयासों के माध्यम से राष्ट्रीय एकता और स्थिरता को बढ़ावा दिया जा रहा है,  जो विविध पहचानों को अपनाने की उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न 

प्रश्न: संवैधानिक प्रावधानों और लोकतांत्रिक ढाँचे के बावजूद, भारतीय  शासन में क्षेत्रवाद एक सतत् चुनौती बना हुआ है। संघीय लचीलेपन के माध्यम से विविध पहचानों के प्रबंधन के लिए भारत का दृष्टिकोण किस प्रकार सफल रहा है तथा क्षेत्रीय आकांक्षाओं को संबोधित करने में उसे किस प्रकार की सीमाओं का सामना करना पड़ा है, परीक्षण कीजिए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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