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भारतीय जिलों का एक लोकतांत्रिक संस्था के रूप में पुनः प्रस्तुतीकरण

Lokesh Pal October 02, 2025 06:00 33 0

संदर्भ:

भारत की 65% जनसंख्या 35 वर्ष से कम आयु की है, इसलिए मुख्य चुनौती युवाओं को आर्थिक और लोकतांत्रिक जीवन में एकीकृत करना है, जिलों को समावेशी लोकतांत्रिक स्थानों के रूप में पुनर्कल्पित किए बिना, केंद्रीकरण तथा असमान विकास इस जनसांख्यिकीय लाभांश को नष्ट कर सकते हैं

पृष्ठभूमि:

  • वैश्विक विखंडन: विश्व में सार्वजनिक जीवन खंडित होता जा रहा है, जिसका प्रमाण अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों में सामाजिक विभाजन (जैसे- अश्वेत और श्वेत के बीच, या आव्रजन समर्थकों और विरोधियों के बीच) है।
  • भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश और मुख्य चुनौती:
    • युवा शक्ति: भारत की 65% जनसंख्या 35 वर्ष से कम आयु की है, जो एक अद्वितीय जनसांख्यिकीय लाभांश प्रदान करती है।
    • समयबद्ध अवसर: यह अवसर हमेशा के लिए नहीं विद्यमान रहेगा।
    • केंद्रीय प्रश्न: क्या भारत युवाओं को रोजगार, कौशल और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में सक्रिय भागीदारी प्रदान करके आर्थिक तथा लोकतांत्रिक रूप से मुख्यधारा में ला सकता है?

जिला-प्रथम दृष्टिकोण:

  • जिला-प्रथम दृष्टिकोण, लोकतांत्रिक और आर्थिक सहभागिता की प्राथमिक इकाइयों के रूप में, जिलों को सशक्त बनाने पर केंद्रित है
  • जिला-प्रथम दृष्टिकोण के लाभ:
    • लोकतांत्रिक पुनर्संरचना: जिला प्रथम दृष्टिकोण शासन को एक गहन लोकतांत्रिक और आधारभूत प्रक्रिया के रूप में पुनः स्थापित करता है तथा सत्ता को शीर्ष पर केन्द्रित करने की बजाय समुदायों में पुनर्वितरित करता है
    • जवाबदेही और भागीदारी: यह स्थानीय सहयोग के माध्यम से सामूहिक जवाबदेही को बढ़ावा देता है और नीतिगत डिजाइन और जीवित प्रभाव के बीच विद्यमान अंतराल को कम करता है।
    • युवा-केन्द्रित विकास: यह सुनिश्चित करता है, कि लोकतंत्र शहरी केंद्रों से परे युवाओं की आवश्यकताओं के प्रति उत्तरदायी बना रहे और स्थानीय राजनीतिक नेतृत्व को विकास परिणामों से जोड़े
    • संस्थाओं का सुदृढीकरण: भारत में पहले से ही जिला-प्रथम नौकरशाही है और अब जिला-प्रथम लोकतंत्र की ओर बढ़ने की आवश्यकता है, जो स्थानीय भागीदारी को प्राथमिकता दे।
    • सामाजिक एकीकरण: स्थानीय सहयोग का यह ढाँचा ठोस साझा आधार निर्मित करने का अवसर प्रदान करता है, जो देश के प्रति साझा प्रेम पर आधारित है, न कि प्रदर्शनकारी या ध्रुवीकरणकारी पक्षपात में फँसने पर।

जनसंख्या के अनुकूल लाभ को अधिकतम करने में विद्यमान चुनौतियाँ::

  • असमान विकास और प्रतिभा का निम्न उपयोग: शहरों के पास केवल 3% भूमि है, लेकिन वे सकल घरेलू उत्पाद का 60% से अधिक उत्पादन करते हैं, जिससे जिलों को निम्न सेवा प्राप्त होती है
    • 85% भारतीय अपने जन्मस्थानों में ही रहते हैं, अतः अवसर महानगरों में ही केंद्रित रहते हैं तथा स्थिर मजदूरी घरेलू उपभोग को कम करती है, जिससे समावेशी आर्थिक विकास सीमित हो जाता है
  • शासन का केंद्रीकरण: तकनीकी योजनाएँ और डिजिटल वितरण स्थानीय संस्थाओं की तुलना में शीर्ष-डाउन दृष्टिकोण को प्राथमिकता देते हैं।
    • निर्वाचित प्रतिनिधि मुख्य रूप से विकासात्मक नेताओं की बजाय स्थिर मध्यस्थ के रूप में कार्य करते हैं, जबकि कल्याण-केंद्रित चुनावी राजनीति रोजगार सृजन में कम लाभ देती है।
    • 73वें और 74वें संविधान संशोधन के बावजूद केंद्रीकृत योजनाओं ने विकेंद्रीकरण की भावना को कमजोर कर दिया है।
  • जिला स्तर पर लोकतांत्रिक घाटा: जिले प्रशासनिक केंद्र बने हुए हैं, जहाँ नौकरशाही प्रभावी है, जिससे नागरिक भागीदारी सीमित हो रही है
    • स्थानीय समुदाय अक्सर सक्रिय भागीदार की बजाय निष्क्रिय लाभार्थी बन जाते हैं, जिससे शासन में जवाबदेही, पारदर्शिता और नागरिक सहभागिता कम हो जाती है

आगे की राह:

  • जिले को एक लोकतांत्रिक संस्था के रूप में पुनः स्थापित करना: जिले को महज एक प्रशासनिक इकाई से एक “लोकतांत्रिक संस्था/कॉमन” में परिवर्तित किया जाना चाहिए, जहाँ नागरिक विकास संबंधी चर्चाओं में सक्रिय रूप से भाग लें, प्रश्न उठाएँ और जवाबदेही सुनिश्चित करें।
  • राष्ट्रीय योजनाओं को विभाजित करना: बड़ी राष्ट्रीय योजनाओं को जिला स्तर पर विभाजित किया जाना चाहिए।
    • उदाहरण: कौशल भारत मिशन को स्थानीय उद्योग की जरूरतों के अनुरूप बनाया जाना चाहिए, जिससे जवाबदेही और प्रासंगिकता बढ़ सके।
  • अलगाव में कमी: स्वास्थ्य, शिक्षा, जल और महिला एवं बाल विकास जैसे मंत्रालयों को जिला स्तर पर समन्वय प्राप्त करना चाहिए।
    • कुपोषण जैसे जटिल मुद्दों के लिए अलग-अलग विभागीय कार्य से परे एकीकृत समाधान की आवश्यकता होती है।
  • स्थानीय परिणाम पर ध्यान केंद्रित करना: शिक्षा की गुणवत्ता और नौकरी की उपलब्धता को मापने के लिए प्रत्येक जिले के लिए एक युवा अवसर सूचकांक बनाया जाना चाहिए।
    • जिला विकास समन्वय एवं निगरानी समिति (दिशा) के माध्यम से स्थानीय सांसदों को इस सूचकांक के आधार पर सीधे जवाबदेह बनाया जाना चाहिए।
  • समान संसाधन आवंटन: जिला-स्तरीय आँकड़ों के आधार पर आवंटन किया जाना चाहिए तथा पिछड़े जिलों को अधिक संसाधन प्राप्त होने चाहिए।
    • आकांक्षी जिला कार्यक्रम इस लक्षित दृष्टिकोण का एक सकारात्मक उदाहरण है।
  • साझा उत्तरदायित्व: सरकार अकेले इन परिवर्तनों को लागू नहीं कर सकती, उत्तरदायित्व सामूहिक होना चाहिए।
    • राजनीतिक नेताओं, कॉर्पोरेट अधिकारियों और बुद्धिजीवियों को आगे आना होगा।
    • कॉरपोरेट्स को कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) निधियों को जिलों में भेजना चाहिए।
    • नागरिक समाज और गैर-सरकारी संगठन योजना और निगरानी में सहायता कर सकते हैं।
    • शिक्षाविद नीति निर्माण और सुधार में सहायता कर सकते हैं।

निष्कर्ष:

भारतीय जिलों पर ध्यान केंद्रित करके, हम राष्ट्रीय विकास और लोकतांत्रिक सहभागिता के मूलभूत सिद्धांतों को पुनर्जीवित कर सकते हैं।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

प्रश्न: भारत में स्थानीय लोकतंत्र और सहभागी शासन को सुदृढ़ बनाने में जिला प्रशासन की भूमिका पर चर्चा कीजिए। एक वास्तविक ‘लोकतांत्रिक साझा संसाधन’ के रूप में इसके कार्य में कौन-सी चुनौतियाँ बाधा डालती हैं?

(10 अंक, 150 शब्द)

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