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राहत, पुनर्वास: भारत के पूर्वी तट और चक्रवात

Lokesh Pal October 29, 2025 05:00 44 0

संदर्भ:

भारत का पूर्वी तट चक्रवातों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है, खासकर अक्टूबर और नवंबर के दौरान, जब बंगाल की खाड़ी में अक्सर भयंकर तूफान आते हैं। हाल के दशकों में आपदा तैयारियों में सुधार के बावजूद भी, संपत्ति और आजीविका का व्यापक स्तर पर नुकसान हो रहा है।

पूर्वी तट पर चक्रवात की संवेदनशीलता:

  • मौसमी पैटर्न: अक्टूबर-नवंबर का महीना बंगाल की खाड़ी में चक्रवात के आगमन का चरम समय होता हैं।
    • 18वीं-20वीं शताब्दी के बीच आए 12 प्रमुख चक्रवातों में से नौ इसी अवधि के दौरान आए
  • ऐतिहासिक आपदाएँ: वर्ष 1977 का चक्रवात (निजामपट्टनम, आंध्र प्रदेश): लगभग 10,000 मौतें।
    • वर्ष 1999 का सुपर साइक्लोन (पारादीप, ओडिशा): लगभग 10,000 मौतें।
    • दोनों घटनाएं इस क्षेत्र की बार-बार होने वाली भेद्यता की स्पष्ट याद दिलाती हैं

भारत का पूर्वी तट पश्चिमी तट की तुलना में चक्रवातों के प्रति अधिक संवेदनशील क्यों है?

  • समुद्री सतह का तापमान: बंगाल की खाड़ी में समुद्र का तापमान अधिक (~ 28-30 डिग्री सेल्सियस) होता है, जो अधिक ऊष्मा और आर्द्रता प्रदान करता है – चक्रवात निर्माण के लिए आदर्श स्थितियां।
  • संलग्न भूगोल: यह खाड़ी अर्ध-संलग्न है, जो ऊष्मा/ताप को रोकती है और निम्न-दबाव के क्षेत्र के निर्माण में सहयोग करती है, जबकि अरब सागर तेजी से ठंडा होता है।
  • अधिक निम्न-दाब प्रणालियाँ: दक्षिण चीन सागर और प्रशांत महासागर के माध्यम से कई दबाव खाड़ी में प्रवेश करते हैं और चक्रवातों में बदल जाते हैं।
  • अनुकूल वायुमंडलीय परिस्थितियां: खाड़ी में ऊर्ध्वाधर पवन अपरूपण कम होता है तथा आर्द्रता अधिक होती है, जो तूफान के विकास में सहायक होती है; अरब सागर में प्रायः विपरीत परिस्थितियां निर्मित होती हैं।
  • उच्च जोखिम और संवेदनशीलता: पूर्वी तट पर घनी आबादी वाले डेल्टा क्षेत्र (ओडिशा, आंध्र, पश्चिम बंगाल) और निचले मैदान स्थित हैं, जिससे भूस्खलन के दौरान अधिक क्षति होती है।

चक्रवात मोन्था/मोंथा (2025)

  • विकास: 27-28 अक्टूबर, 2025 को मेंथा बंगाल की खाड़ी में एक निम्न-दाब क्षेत्र के रूप में विकसित हुआ तथा शीघ्र ही गंभीर चक्रवाती तूफान में परिवर्तित हो गया।
    • यद्यपि यह 1977 और 1999 के चक्रवातों की तुलना में कमजोर था, फिर भी इसने तटीय राज्यों के लिए गंभीर चिंताएं उत्पन्न कर दीं।
  • प्रभावित क्षेत्र: 
    • आंध्र प्रदेश: विशाखापत्तनम, अनाकापल्ली, श्रीकाकुलम, काकीनाडा, कोनसीमा।
    • ओडिशा: गंजम और गजपति (रेड अलर्ट के अंतर्गत)।
  • सरकार की प्रतिक्रिया:
    • आंध्र प्रदेश के संवेदनशील क्षेत्रों से लगभग 10,000 लोगों को निर्वासित किया गया।
    • ओडिशा सरकार ने निकासी का समन्वय किया तथा आपातकालीन सहायता के लिए NDRF की टीमें तैनात कीं।

तैयारी में सुधार:

  • आपदा प्रबंधन विकास: पिछले दो दशकों में, केंद्र और राज्य सरकारों ने प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों, निकासी प्रोटोकॉल और राहत समन्वय में काफी सुधार किया है।
    • बड़े पैमाने पर होने वाली मौतें – जो पहले के दशकों में आम थीं – काफी हद तक कम की जा चुकी हैं
  • संस्थागत सुदृढ़ीकरण: IMD, NDRF, और राज्य आपदा प्रतिक्रिया प्राधिकरणों (SDRA) के बीच बेहतर अंतर-एजेंसी समन्वय स्थापित किए गए।
    • समुदाय स्तर पर जागरूकता बढ़ाना और डिजिटल चेतावनी प्रणाली का उपयोग करना।

विद्यमान चुनौतियाँ:

  • आजीविका और संपत्ति की हानि: मानवीय हताहतों में कमी के बावजूद, सार्वजनिक और निजी संपत्ति की क्षति व्यापक बनी हुई है।
    • कृषि, मत्स्य पालन और अनौपचारिक श्रम पर निर्भर वंचित समुदायों को स्थायी आय व्यवधान का सामना करना पड़ रहा है।
  • पशुधन पर प्रभाव: दुधारू और भारवाहक पशु, मुर्गीपालन और संबंधित आजीविकाएं अक्सर प्रभावित होती हैं।
    • उदाहरण: तमिलनाडु में चक्रवात गज (2018) के दौरान, नागपट्टिनम और तंजावुर में मवेशियों और मुर्गियों की बड़े पैमाने पर हानि हुई

आगे की राह:

  • संरचनात्मक उपाय: तटीय क्षेत्रों में तटबंधों, चक्रवात आश्रयों और बुनियादी ढाँचे को मजबूत करना।
    • जलवायु अनुकूल आवास और कृषि को बढ़ावा देना।
  • गैर-संरचनात्मक उपाय: निरंतर क्षमता निर्माणपूर्व चेतावनी संचार और सामुदायिक तैयारी रणनीति
    • कमजोर समूहों की सुरक्षा के लिए बीमा और आजीविका विविधीकरण
  • CRZ प्रवर्तन: जोखिम मानचित्रण, जोखिम आधारित भूमि उपयोग योजना और संवेदनशील तटीय क्षेत्रों में पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बुनियादी ढाँचे के माध्यम से तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ) अनुपालन को मजबूत करना।
  • मैंग्रोव पुनर्स्थापन: प्राकृतिक चक्रवात बफर के रूप में मिष्टी योजना के अंतर्गत मैंग्रोव वृक्षारोपण और संरक्षण को बढ़ावा देना, तथा सक्रिय सामुदायिक भागीदारी के साथ उन्हें पारिस्थितिकी तंत्र आधारित आपदा जोखिम न्यूनीकरण (Eco-DRR) में एकीकृत करना।
  • जवाबदेही और निष्पक्षता: राजनीतिक नेतृत्व को राहत सहायता का निष्पक्ष और पारदर्शी वितरण सुनिश्चित करना चाहिए।
    • सभी प्रभावित व्यक्तियों को क्षेत्र या संबद्धता की परवाह किए बिना सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए
  • प्रशासनिक सतर्कता: राहत उपायों को आपातकालीन प्रतिक्रिया से आगे बढ़ाकर दीर्घकालिक पुनर्वास और आजीविका बहाली को भी शामिल किया जाना चाहिए

निष्कर्ष:

यद्यपि भारत की चक्रवात प्रबंधन क्षमता में उल्लेखनीय सुधार हुआ है, लेकिन वास्तविक राहत दीर्घकालिक पुनर्वास को एकीकृत करने, आजीविका की पुर्नबहाली सुनिश्चित करने और आपदा प्रतिक्रिया में समानता बनाए रखने में निहित है। पूर्वी तट की आवर्ती आपदा के कारण तटीय आपदा प्रबंधन के लिए एक सतत, समावेशी और अनुकूल दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: भारत चक्रवातों से ‘जीवन’ बचाने में सफल रहा है, लेकिन ‘आजीविका’ सुरक्षित रखना अभी भी एक चुनौती है। विश्लेषण कीजिए।

(10 अंक, 150 शब्द)

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