प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण, संविधान का अनुच्छेद 21, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग, ईट राइट इंडिया, फिट इंडिया मूवमेंट और पोषण 2.0।
मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: जंक फूड की खपत को रोकने के उपाय, युवाओं की आहार संबंधी आदतों में मुद्दे
संदर्भ :
वर्तमान दौरा में कई अन्य देशों की तरह ही भारत भी एक बड़े “पोषण परिवर्तन” के दौर से गुजर रहा है।
भारत में बदलती पोषण आदतें :
आहार पैटर्न में बदलाव: भारत एक महत्त्वपूर्ण पोषण संक्रमण के दौर से गुजर रहा है। आर्थिक प्रगति और शहरीकरण के कारण, फाइबर युक्त पारंपरिक आहार की जगह उच्च कैलोरी वाले पश्चिमी शैली के प्रसंस्कृत (प्रोसेस्ड) आहार की ओर लोगों का रुझान बढ़ रहा है।
जंक फूड की खपत में वृद्धि: तेजी से हो रहे आर्थिक विकास और शहरीकरण के कारण पैकेज्ड और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की खपत बढ़ गई है।
“जंक फूड“, जिनमें पोषक तत्व कम होते हैं लेकिन कैलोरी, वसा, नमक और चीनी की मात्रा अधिक होती है।
ऐसे जंक या उच्च वसा वाले चीनी व नमक (HFSS) युक्त खाद्य पदार्थों के उदाहरणों में कुकीज़, केक, चिप्स, नमकीन, इंस्टेंट नूडल्स, शर्करा पेय, प्रशीतित भोजन(फ्रोजन फ़ूड), डिब्बाबंद फल, भारतीय मिठाई और बेकरी उत्पाद इत्यादि शामिल हैं।
स्वास्थ्य संबंधी निहितार्थ : वैज्ञानिक पर्मानों से पता चलता है कि जंक फूड का सेवन , कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, मोटापा और कैंसर के बढ़ते खतरों के लिए जिम्मेदार है जो भारत में बीमारियों को बढ़ाने में योगदान देता है।
2023 में प्रकाशित भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) के अध्ययन से पता चलाता है कि भारत में 11% लोग मधुमेह से, 35% लोग उच्च रक्तचाप से और लगभग 40% लोग पेट के मोटापे से पीड़ित हैं।
भारतीय आहार पर भ्रामक खाद्य विज्ञापन का प्रभाव: भारतीयों के बदलते आहार पैटर्न का आकलन करते समय विचार करने के लिए एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा “स्वादिष्ट” और “किफायती” आरामदायक खाद्य पदार्थों को बढ़ावा देने के लिए भ्रामक विज्ञापन का प्रभाव है, खासकर युवा उपभोक्ताओं के बीच।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, 93% बच्चों ने पैक किया हुआ खाना खाया, 68% ने सप्ताह में एक से अधिक बार पैकेज्ड मीठे पेय पदार्थ पिया और 53% ने दिन में कम से कम एक बार इन खाद्य पदार्थों को खाया।
अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य उद्योग का विकास: भारत में अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य उद्योग 2011 और 2021 के मध्य 13.37% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ा है।
इसके अलावा, भारत का खाद्य प्रसंस्करण उद्योग 2025-26 तक 535 बिलियन डॉलर तक का होने का अनुमान है।
सरकारी पहल और चिंताएँ:
उच्चतम न्यायालय का निर्णय: भारत के उच्चतम न्यायालय ने असुरक्षित भोजन से उत्पन्न सार्वजनिक स्वास्थ्य खतरों के संबंध में संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार पर जोर दिया।
सरकारी पहल: ईट राइट इंडिया, फिट इंडिया मूवमेंट और पोषण 2.0 जैसी सरकारी पहल स्वस्थ भोजन और सक्रिय जीवन शैली को बढ़ावा देने को प्राथमिकता देती है।
नियामक उपाय: FSSAI के नियम स्कूल के वातावरण में उच्च वसा वाले चीनी व नमक (HFSS) युक्त खाद्य पदार्थों की बिक्री को प्रतिबंधित करता है।
भ्रामक स्वास्थ्य पेय विज्ञापनों को वापस लेने की अपील :राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने एक स्वास्थ्य पेय कंपनी को सभी भ्रामक विज्ञापनों, पैकेजिंग और लेबलों का मूल्यांकन करने और उन्हें वापस लेने के लिए नोटिस भी जारी किया, जो उत्पाद को “स्वास्थ्य पेय” के रूप में ब्रांड करते हैं।
चिंताएँ: नीतिगत इरादों के बावजूद, प्रभावी कार्यान्वयन एक चुनौती बनी हुई है, जिसके लिए आगे की कार्रवाई की आवश्यकता है।
परिवर्तन के लिए रणनीतियाँ:
उच्च वसा, चीनी, नमक (HFSS) युक्त खाद्य पदार्थों की स्पष्ट परिभाषा: बच्चों को हानिकारक प्रभावों से बचाने पर ध्यान केंद्रित करते हुए, खाद्य सुरक्षा नियमों के बेहतर कार्यान्वयन को सक्षम करने के लिए HFSS खाद्य पदार्थों को परिभाषित करना चाहिए |
अनुपालन को मजबूत करना:राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग जैसी संस्थाओं द्वारा सख्त प्रवर्तन के माध्यम से अनुपालन को मजबूत करना।
फ्रंट-ऑफ-पैक लेबलिंग (FOPL): सूचित उपभोक्ता विकल्पों की सुविधा के लिए FOPLको लागू करें, जैसे- उच्च नमक सामग्री का संकेत देने वाले चेतावनी लेबल।
भारतीय पोषण रेटिंग (INR): उपभोक्ताओं का मार्गदर्शन करने, संभावित खामियों और स्वैच्छिक अनुपालन की चिंताओं को दूर करने के लिए पोषण प्रोफाइल के आधार पर INR का परिचय देना चाहिए।
स्वैच्छिक विनियम: इसके अलावा, विनियमों की अंतिम अधिसूचना की तारीख से चार साल की अवधि तक नियम स्वैच्छिक है।
स्वस्थ खाद्य पदार्थों पर सब्सिडी : उपलब्धता और सामर्थ्य में सुधार के लिए संपूर्ण खाद्य पदार्थ, बाजरा, फल और सब्जियों जैसे स्वस्थ खाद्य पदार्थों के लिए सब्सिडी की पेशकश करने वाली नीतियाँ विकसित करना चाहिए ।
आगे कि राह :
व्यवहार परिवर्तन अभियान: स्वस्थ आहार संबंधी आदतों को बढ़ावा देने के लिए बच्चों और वयस्क युवाओं को लक्षित करने वाले मल्टीमीडिया अभियान लॉन्च करना चाहिए।
संतुलित आहार पर शैक्षिक प्रयासों के साथ-साथ स्थानीय और मौसमी उपज और पारंपरिक खाद्य पदार्थों का समर्थन करने के लिए “वोकल फॉर लोकल” जैसी पहल का उपयोग करना चाहिए।
स्वस्थ विकल्पों को बढ़ावा देना: जंक फूड के स्वास्थ्य जोखिमों के बारे में मुख्यधारा की चर्चाओं में सोशल मीडिया पर प्रभावशाली लोगों को शामिल करना और सावधानीपूर्वक खाने की प्रथाओं को प्रोत्साहित करना ।
कार्रवाई का आह्वान: स्वास्थ्यवर्धक आहार अपनाने और पौष्टिक खाद्य पदार्थों की सार्वजनिक माँग को बढ़ावा देने की तात्कालिकता को स्वीकार करें।
सूचित विकल्पों को सशक्त बनाना: सूचित भोजन विकल्पों को सशक्त बनाने के लिए वास्तविक नीतिगत पहल के साथ स्वस्थ और पौष्टिक आहार के लिए एक “जन आंदोलन” या लोगों के आंदोलन को स्वीकार करें।
निष्कर्ष
निष्कर्षतः भारत में अस्वास्थ्यकर आहार संबंधी आदतों से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के लिए पौष्टिक खाद्य पदार्थों की पहुँच और खपत को बढ़ावा देने के लिए नियामक उपायों, उपभोक्ता जागरूकता अभियानों और नीतिगत हस्तक्षेपों को शामिल करते हुए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम, 2006 ने खाद्य अपमिश्रण की रोकथाम (Prevention of Food Adulteration) अधिनियम, 1954 को प्रतिस्थापित किया।
भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (Food Safety and Standards Authority of India-FSSAI) केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय में स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक के प्रभार में है।
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